उत्तराखण्ड में जंगली जानवरों का प्रकोप बढ़ने से खेती-बाड़ी निरंतर घट रही है। इसके बावजूद उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है। उत्तराखण्ड को उत्पादन में बेहतर प्रदर्शन के लिए 2017-18 में राज्य कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है। जबकि 2016-17 में खाद्यान्न उत्पादन में प्रशंसा पुरस्कार प्राप्त किया है। यह संभव हो सका है प्रदेश के प्रगतिशील किसानों की बदौलत। जिन्होंने खेती के आधुनिक तौर-तरीके अपनाकर न सिर्फ खेती-किसानी की तस्वीर बदली है, बल्कि वे अपनी भी तकदीर बदल रहे हैं
प्रदेश में कृषि आज भी लाखों लोगों के जीवन, आजीविका व संस्कृति का स्रोत रही है। पशुधन, डेयरी, मत्स्य पालन कृषि से जुड़े मुख्य उद्यम रहे हैं। यूं तो पर्वतीय क्षेत्र में खेती- किसानी के समक्ष कई तरह के संकट खड़े हैं। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव खेती पर पड़ा है तो वहीं जंगली जानवरों के उत्पात के चलते भी खेती प्रभावित हुई है। लेकिन तमाम चुनौतियों के बावजूद प्रदेश में कुछ ऐसे प्रगतिशील किसान भी हैं जिन्होंने खेती के आधुनिक तौर-तरीके अपनाकर न सिर्फ खेती-किसानी की तस्वीर बदली है, बल्कि वे अपनी तकदीर भी बदलने में कामयाब हो रहे हैं। संख्या बल में भले ही इनकी संख्या बेहद कम हो लेकिन खेती-किसानी में ये एक नई लकीर खींचने में कामयाब हो रहे हैं। पारंपरिक रूप से खेती-बागवानी करने वाले प्रदेश के किसानों का मिजाज बदलने में इन्होंने मदद की है। अब प्रदेश में नए जमाने के हिसाब से खेती के तौर-तरीके बदल रहे हैं तो वहीं आजीविका में भी बढ़ोतरी हो रही है। कहीं सरकारी मशीनरी की मदद से तो कहीं खुद के प्रयासों से खेती-बागवानी का चेहरा बदलने की कोशिश हो रही है।
जनपद पिथौरागढ़ का एक गांव है, डुंगरी। यह गांव अब मत्स्य पालन में आत्मनिर्भर बन चुका है। यहां के किसान अब पारंपरिक गेहूं, धान की खेती को छोड़कर मछली व बागवानी का काम कर रहे हैं। यहां कृषि विभाग व मनरेगा के तहत कच्चे तालाब बनाए गए। इन टैंकों का प्रयोग किसानों ने सिंचाई और मछली उत्पादन के लिए किया। अब तक पूरे गांव में 152 तालाब बन चुके हैं। लोग मछली उत्पादन के साथ ही सेब व चाय का बागान भी विकसित कर रहे हैं। यही नहीं जनपद के अलग-अलग हिस्सों में 200 से अधिक किसान 300 हेक्टेयर भूमि पर तेजपत्ता का उत्पादन कर रहे हैं। इसका उत्पादन प्रतिवर्ष 1500 क्विंटल तक पहुंच गया है। किसानों को इससे असानी से 55 रुपए प्रति किलो तक दाम मिल जा रहे हैं। कनालीछीना के चमढुंगरी के ही 35 परिवार इससे जुड़ चुके हैं। जनपद का मुनस्यारी विकासखंड जैविक उत्पाद और जड़ी-बूटी क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है। यहां पर जैविक राजमा, आलू का बेहतर उत्पादन किसान कर रहे हैं। यहां हरकोट की मूली व सब्जी, बौना, नामिक और क्वीरीजीमिया का राजमा, आलू, पैंकुती की मिर्च, टुम्मर का तिमूर, जोशा का रिंगाल निर्मित उत्पाद, मल्ला जोहार व रालम की जड़ी-बूटियां, ऊनी हस्तशिल्प, नापड़ का गुड़, बलाती का ट्यूलिप, ढिमढिमिया और प्यांगती का घी, राथीं और जैंती की ट्राउट मछली एवं पापडी का देशी मुर्गा व अंडा अपनी खास पहचान बना चुके हैं।
जनपद के गंगोलीहाट के बेलपट्टी के बनेला गांव के किसान भगत सिंह जैविक उत्पादों का अपने खेतों में अभिनव प्रयोग कर रहे हैं। वह काले गेहूं व काले चावल का उत्पादन कर रहे हैं। चिटगल गांव में 25 नाली जमीन किराए में लेकर वह खेती में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। इसी तरह गंगोलीहाट के कालिका देवी स्वायत्त सहकारिता किसान संघ से 18 समूहों के 350 किसान जुड़ हल्दी, अदरक, सब्जी, धान का उत्पादन कर रहे हैं। अब जनपद के किसान बड़ी इलायची उत्पादन की तरफ भी बढ़ने लगे हैं। जनपद की गर्म घाटियों में इसका उत्पादन होने लगा है। गुरंगघाटी आजीविका स्वायत्त सहकारिता फेडरेशन एवं अजंता महिला समूह दो से तीन क्विंटल इलायची का उत्पादन कर रहा है। 111 महिला समूह इससे जुड़े हैं। वर्तमान में जजुराली और बकसलि सहित आस-पास के गांवों के 100 से अधिक महिलाएं 30 नाली भूमि पर इलायची की खेती कर रही हैं। इस समय प्रतिवर्ष ये समूह पांच क्विंटल प्रतिवर्ष इलायची का उत्पादन कर रही है। यह इलायची ग्रेडिंग के आधार पर 700 से 1200 रुपए प्रति किलो बिक रही है। इसी तरह चंडाक, मुनस्यारी, बिषाढ़, पलेटा में किसान कीवी की खेती कर रहे हैं। अब पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत, नैनीताल जिले में भी इसकी खेती होने लगी है। कुछ किसान तो इसके पौध की नर्सरी भी तैयार करने लगे हैं। इसके अलावा जनपद पिथौरागढ़ में अब रीप परियोजना के माध्यम से महिला स्वयं सहायता समूह बेडू से बने उत्पादों से जैम, चटनी, स्वकैस को बाजार में उतारने की तैयारी कर रही है। जनपद के नाकोट, कनालीछीना, विण, पीपली, सिंघाली, देवलथल, मुवानी, आठगांव शिलिंग, मूनाकोट, गौड़ीहाट, इग्यारदेवी, झूलाघाट, बालाकोट आदि क्षेत्रों में इसका भरपूर उत्पादन होता है। गंगोलीहाट के सुरेंद्र बिष्ट यूरोपीय तर्ज पर क्षेत्र में मधुमक्खी पालन के अभियान में जुटे हैं। वह इसके लिए सेंसरयुक्त बॉक्स उपलब्ध कराने के लिए एनआरआई मित्रों से संपर्क कर रहे हैं। अभी गंगोलीहाट के कुंजनपुर, लाली, चुड्यार, सुनारगांव में शहद उत्पादन हो रहा है।
अल्मोड़ा जनपद के चौखुटिया विकासखंड के बसनलगांव निवासी कैलाश गैरोला आठ नाली जमीन पर जैविक खेती कर रहे हैं, इसमें जैविक खादों का ही उपयोग होता है। हर सीजन में वह 50 हजार रुपए की सब्जी बेच लेते हैं। इसी जनपद के द्वाराहाट के ध्याड़ी गांव निवासी राजेन्द्र बिष्ट भी जैविक खेती के जरिए अच्छी आय प्राप्त करने में सफल रहे हैं। वहीं कृषक राजेंद्र 25 नाली जमीन पर आलू, मटर, टमाटर, मूली, धनिया, पत्तागोभी, मिर्च के साथ ही आम, आंवला, अमरूद व नींबू की हाइब्रिड खेती कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने बकायदा पॉली हाउस व नर्सरी का निर्माण किया हुआ है। इनके खेतों में लेमनग्रास, सतावर, अश्वगंधा, दालचीनी के पौधों की नर्सरी तैयार हो रही है। यह 80 हजार से अधिक आमदनी सालाना इससे प्राप्त कर ले रहे हैं। इसी तरह द्वाराहाट के कुन्थारी गांव के प्रताप सिंह बिष्ट ने 1 मीटर लंबी मूली व 7 किलो की फूलगोभी उगाकर एक नई मिसाल कायम की है। जिले के लमगड़ा, भैंसियाछाना, धौलादेवी, हवालबाग और स्याल्दे के करीब 260 किसान रेशम उत्पादन कर सालाना करीब 50 लाख रुपए की आय अर्जित कर रहे हैं।
जनपद चंपावत में बनी बिच्छू घास की चाय इन दिनों काफी चर्चा में है। पाटी विकासखंड के ग्रामीण महिलाओं यानी स्वयं सहायता समूह द्वारा निर्मित बिच्छू घास से बनी चायपत्ती 1400 रुपया प्रतिकिलो के हिसाब से बिक रही है। पाटी के रिखोली गांव के ईष्ट देवता स्वयं सहायता समूह में आठ महिलाएं इस काम में लगी हैं। 50 ग्राम का पैकेट 70 रुपए में बिक रहा है। मां बाराही स्वयं शक्ति समूह इसके विपणन की व्यवस्था कर रहा है। इसे बनाने में महिलाएं पहले बिच्छू घास काटती हैं फिर दो से तीन दिन इसको सुखाती हैं। हाथ से पीसने के बाद समें तेजपत्ता, लेमनग्रास, अदरक, तुलसी आदि मिलाती हैं। अब जनपद में उत्पादित अदरक, शहद व हल्दी को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की कोशिश की जा रही है। जिले के सूखीढांग, श्यामलाताल, लधिया घाटी सहित कई क्षेत्रों में च्यूरा से लेकर मिश्रित फूलों का शहद बहुतायत में होता है। वहीं जिले में 491 हेक्टेयर क्षेत्र में किसान अदरक और हल्दी की जैविक खेती कर रहे हैं। नैनीताल जनपद के ज्योलीकोट का शहद आजीविका का मुख्य साधन बना हुआ है। यहां के 50 प्रतिशत परिवार शहद उत्पादन से जुड़े हैं। यहां प्रतिवर्ष 50 हजार किलो शहद का उत्पादन हो रहा है। ज्योलीकोट की पहचान अब मधु ग्राम के रूप में बन चुकी है। इसी तरह चंपावत में कीवी प्रजाति की तरफ किसानों का रूझान बढ़ा है। स्थानीय किसान कीवी के बगीचे विकसित करने में लगे हैं। जिले के पोखरी, पम्तोला, मौनपोखरी, मुडियानी, जैगांव-जैतोली, फुलारागांव, गोशनी, गरसाड़ी, ढरौच, देवीधूरा आदि के किसान कीवी की खेती से अच्छा-खासा मुनाफा कमा रहे हैं। कीवी का पेड़ तीन वर्ष में फल दे देता है। एक पेड़ में 60 किलो तक पैदावार हो जाती है। बाजार में इसका भाव तीन सौ रुपए किलो है। बागेश्वर जनपद के किसान बलवंत सिंह कार्की ने अपने बागान में तिमूर के पौधे लगाए हैं। रमाड़ी गांव अब प्रदेश का तीसरा तिमूर उत्पादन क्षेत्र बन चुका है। तिमूर से दंत मंजन बनता है। तिमूर का पौधा पांच वर्ष में उपयोग करने लायक हो जाता है।
इसी तरह ऊधमसिंह नगर के सितारगंज में किसान संगठित होकर आधुनिक तरीके से मक्के की खेती कर रहे हैं। जनपद के रूद्रपुर में अब किसान मोती की खेती कर रहे हैं। यहां किसानों का रूझान पर्ल फार्मिग (मोती पालन) की तरफ बढ़ा है। पारंपरिक खेती के मुकाबले किसान इससे दोगुना लाभ कमा रहे हैं। ऊधमसिंह नगर के जसपुर ब्लाक के अशोक कुमार चौहान ने मोती पालन का काम शुरू कर एक नई मिसाल कायम की है। इसी तरह रामनगर के संजय व हेमंत भी इस काम में लगे हैं। पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर जनपद में तीन सौ से अधिक किसान गुलाब की खेती कर रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में डेमस्क गुलाब की नूरजहां प्रजाति का खूब उत्पादन हो रहा है। इससे किसानों की आर्थिकी में भी सुधार हो रहा है। जनपद पिथौरागढ़ के नारायण आश्रम में 100 किसान कलस्टर के रूप में खेती कर रहे हैं। कनालीछीना के पसमा व रावल गांव के 20 किसान इस खेती में लगे हैं। इन तीनों जगह 9.5 हेक्टेयर में खेती हो रही है। अल्मोड़ा के ताकुला में 150 किसान 10 हेक्टेयर में गुलाब का उत्पादन कर रहे हैं। बागेश्वर के कपकोट में 50 लोग इससे जुड़े हैं। कुल मिलाकर किसानों का रुझान आधुनिक खेती की तरफ बढ़ रहा है।