देश में सीलिंग एक्ट 1960 में आया। इसके अनुसार एक व्यक्ति के पास 12.5 एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं रह सकती थी। जमींदारी प्रथा उन्मूलन के बाद इस एक्ट को लागू किया गया। देहरादून के प्रसिद्ध चाय बागानों के इलाके भी इस एक्ट के अधीन आए। भू-स्वामियों द्वारा अपनी भूमि को सीलिंग से बचाने के लिए सरकार के साथ एक समझौता किया गया। फलस्वरूप चाय बागान की जमीन की श्रेणी में बदलाव हुआ जिसके तहत इस जमीन पर सिर्फ चाय, कॉॅफी और रबड़ के प्लांट लगाए जा सकते हैं। साथ ही यह भी शर्त रखी गई कि किसी भी सूरत में जमीन को बेचा नहीं जा सकता है। लेकिन कुछ वर्षों बाद ही सीलिंग एक्ट के समझौते की जमकर धज्जियां उड़ाई जाने लगी। जिस भूमि पर चाय के बागान लगाए जाने थे उस पर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए। देखते ही देखते भू-माफिया और राजस्व विभाग की मिलीभगत से सैकड़ों एकड़ जमीन खुर्द-बुर्द होने लगी। इसकी जद में प्रदेश भाजपा मुख्यालय निर्माण की जमीन भी आ चुकी है। खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सीलिंग की इस जमीन की जांच के लिए मैदान में उतरना पड़ा। सीएम के रजिस्ट्रार कार्यालय में औचक निरीक्षण से कई रहस्यों से पर्दा उठ चुका है। चाय बागान की जमीनों के दस्तावेज में हेर-फेर कर भू-माफिया को फायदा पहुंचाने का खेल खेला गया है। इसकी जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी गई है। बहरहाल, सीएम धामी के ‘जीरो टॉलरेंस’ के दावे का सच सामने आना बाकी है
प्रकरण एक

17 अक्टूबर 2020 : देहरादून में रिंग रोड स्थित एक बड़े भूखंड में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यालय का शिलान्यास। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने किया श्रीगणेश। जिसमें तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बंशीधर भगत और तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अलावा लगभग सभी भाजपा के दिग्गज नेता भी शमिल हुए। भाजपा ने देहरादून में 2010 में 0.88 हेक्टेयर (16 बीघा) जमीन, जिसकी कीमत लगभग 3 करोड़ प्रदेश मुख्यालय बनाने के लिए खरीदी थी। यह जमीन ग्राम रायपुर में भूमि खाता संख्या 143 के खसरा नंबर 4305 में स्थित है। यह जमीन चाय बागान के लिए आरक्षित है। 10 अक्टूबर 1976 के बाद चाय बागान की जमीनों पर हुए सभी बैनामे शून्य मानकर रायपुर की यह पूरी जमीन राज्य सरकार में निहित हो चुकी है। तत्पश्चात इस भूमि पर सभी व्यक्तियों के अधिकार समाप्त हो चुके हैं। बावजूद इसके 43 साल बाद भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के नाम से यह जमीन खरीदी गई। चुफाल ने यह जमीन संतोष अग्रवाल से खरीदी थी। संतोष अग्रवाल से पहले यह जमीन कुंवर चंद्र बहादुर के नाम पर थी जिसे उन्होंने सीलिंग की कार्यवाही से बचने के लिए अपने नजदीकी रिश्तेदारों के नाम गिफ्ट में दिया। इसी जमीन को बाद में बेचा गया। कुंवर चंद्र बहादुर द्वारा 12 मई 1987 को इस भूमि का इंद्रावती के हक में बैनामा किया। जो बाद में उनके पुत्र संतोष अग्रवाल को मिली। जिन्होंने इस भूमि के कई बैनामे विभिन्न लोगों के हक में किए जिनमें से एक बिशन सिंह चुफाल थे। इस भूमि पर चुफाल सहित 11 लोगों को भूखण्ड बेचे गए हैं।
देहरादून के एडीएम डॉ एसके बरनवाल ने अवैध जमीन खरीदने के मामले में कुल 11 लोगों को नोटिस दिए। जिनमें बिशन सिंह चुफाल पुत्र स्व श्री नारायण सिंह चुफाल सहित मोनिका चौधरी पत्नी विजय सरोहा,

इला खंडूरी पत्नी विनोद कुमार, रमेश भट्ट पुत्र सुरेशानंद भट्ट, उमा जैन पत्नी रमेश चंद जैन, राजा डोगरा पुत्र अमरनाथ डोगरा, विनोदा कुमार पुत्र जसवंत सिंह, संजय गुलैरिया पुत्र धर्मवीर गुलैरिया, शांती देवी पत्नी दीपक नेगी, सरोज बिष्ट पत्नी मातबर सिंह बिष्ट, सविता पुत्री मांडू सिंह के नाम शामिल हैं। देहरादून के एडीएम (प्रशासन) डॉ एसके बरनवाल ने 15 जून 2023 को इस मामले में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल को नोटिस दिया तो सियासी खलबली मच गई। एडीएम बरनवाल ने चुफाल को भेजे नोटिस में 24 जून की तारीख निर्धारित करते हुए कहा कि 24 जून को स्वामित्व से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किए जाए। इस पर बिशन सिंह चुफाल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि ‘वर्ष 2010 में मैं पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष था। उसी समय भाजपा के प्रदेश कार्यालय के लिए जमीन खरीदने का प्रस्ताव आया। किसी व्यक्ति के बताने पर मैंने यह जमीन देखी। पार्टी के तत्कालीन पदाधिकारियों को भी दिखाई। जमीन खरीदने से संबंधित तीन सदस्यीय कमेटी भी बनाई। उसके बाद सभी की सहमति से जमीन खरीदी गई। तत्कालीन अध्यक्ष होने के नाते जमीन की रजिस्ट्री मेरे नाम से हुई। इसलिए नोटिस मेरे नाम से आया।’
भाजपा ने देहरादून में अपने प्रदेश मुख्यालय का निर्माण 2024 तक पूर्ण करने का दावा किया था। लेकिन एडीएम बरनवाल के नोटिस ने पार्टी के अरमानों पर पानी फेर दिया। बहरहाल, भाजपा प्रदेश मुख्यालय का निर्माण सवालों में है। साथ ही भाजपा पर विपक्ष का यह भी आरोप लग चुका है कि वह पूरे प्रदेश में अवैध अतिक्रमण हटाने का ढोल पीट रही है लेकिन खुद के पार्टी कार्यालय को चाय बागान की अतिक्रमित जमीन पर बनाने का ख्वाब देख रही है। गौरतलब है कि रिंग रोड स्थित इस भूमि के स्वामित्व को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे लेकिन इन सवालों का जबाब न तो किसी सरकार ने कभी दिया और न ही जिला प्रशसन द्वारा स्थिति को स्पष्ट किया गया।
प्रकरण दो
15 जुलाई 2023 : इस दिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा देहरादून रजिस्ट्रार कार्यालय में छापा मारा गया। जहां अनेक अनियमिताएं सामने आई। आश्चर्यजनक यह कि चाय बागान से संबंधित फाइल गायब मिली। इसके अलावा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के समक्ष जांच में सामने आया कि दस्तावेज स्कैन नहीं किए गए थे और कई दस्तावेजों की जिल्द की बाइंडिंग खुली हुई थी। लाल की जगह नीली स्याही का प्रयोग किया गया था। स्याही नई और चमकदार थी जबकि पहले की स्याही इससे अलग है। स्टाम्प ड्यूटी वर्ष 1980 से 1985 के बीच निर्धारित नहीं पाई गई। दस्तावेज के पहले, दूसरे और छठे पेज पर मोहर लगाई गई है जबकि अन्य किसी दस्तावेज पर कोई मोहर नहीं मिली। हर लेख पत्र के पहले पेज पर मोहर सूची एक और दो बनाई गई है जबकि अन्य दस्तावेजों पर मोहर, बर्तनी आकार और स्याही अलग पाई गई। यही नहीं बल्कि कई रजिस्ट्रियों के बीचों-बीच से पन्ने गायब थे। उनकी जगह दूसरे पन्ने प्रेस करके इस कदर लगाए गए थे कि वे पुराने जैसे ही लगे। इसकी गहनता से छानबीन करते समय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को मामला संदेहास्पद लगा। इस बाबत सीएम धामी ने पूछा तो कार्यालय की एक महिला कर्मचारी ने ऐसी बातें उजागर की जिससे स्पष्ट है कि भूमि रजिस्ट्रार कार्यालय की मिलीभगत से बरसों से धांधलेबाजी का खेल खेला जा रहा है।
मुख्यमंत्री द्वारा इस मामले में कड़ी कार्यवाही करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं तथा इस पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी गठिन किए जाने के भी निर्देश जारी कर दिए गए हैं। जिलाधिकारी देहरादून द्वारा भी इस मामले पर एक्शन लिया गया और सख्त निर्देश जारी कर दिए गए हैं जिस पर पुलिस द्वारा रिकॉर्ड रूम में छेड़छाड के मामले में मुकदमा भी दर्ज किया गया है। साथ ही नौ पूर्व रजिस्ट्रार एवं 18 लिपिको के कार्यकाल की जांच के आदेश भी जारी हो चुके हैं। रजिस्ट्रार रामदत्त मिश्रा को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया।
हाईकोर्ट के भी हुए आदेश
गत् वर्ष जब भाजपा के विशाल भव्य कार्यालय का शिलान्यास किया गया तो नगर के अधिवक्ता विकेश नेगी द्वारा इस मामले को लेकर गहरी छानबीन की गई ओैर अनेक प्रमाण एकत्र किए। जिसमें मामला चाय बागान की भूमि की सुनियोजित खरीद-फरोख्त का सामने आया।
7 जुलाई 2022 को अधिवक्ता विकेश नेगी द्वारा नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। जिस पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए चाय बागान की भूमि पर किसी भी प्रकार की खरीद-बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी। गौर करने वाली बात यह है कि जनहित याचिका में तब महज 350 बीघा भूमि का ही बात सामने आई थी लेकिन जब इस मामले को लेकर विकेश नेगी द्वारा राजस्व विभाग से अभिलेख और आरटीआई प्राप्त किए तो चाय बागान के अलावा करीब 3 हजार बीघा सीलिंग की भूमि की खरीद-बिक्री का मामला सामने आया।
सीलिंग की भूमि को इस स्तर पर खुर्द-बुर्द किए जाने की जानकारी अधिवक्ता विकेश नेगी द्वारा हाईकोर्ट में प्रस्तुत की गई। जिस पर हाईकोर्ट नैनीताल द्वारा सितंबर 2023 में सुनवाई के लिए सभी प्रमाणों और अभिलेखों को कोर्ट के समक्ष रखे जाने के निर्देश राज्य सरकार को दिए। हाईकोर्ट के चाय बागान की 350 बीघा भूमि की खरीद-बिक्री पर रोक लगाए जाने के बाद देहरादून जिला प्रशासन सक्रिय हुआ और अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) डॉ शिव कुमार बरनवाल ने चक रायपुर, रायपुर औेर लाडपुर की चाय बागान की भूमि की खरीद- फरोख्त की जांच की जिसमें उक्त मामला सामने आया।
जमींदारी उन्मूलन एक्ट का हुआ पालन
देश आजाद होने के बाद पूरे देश में भूमि के बंदोबस्त के लिए जमींदारी उन्मूलन एक्ट लागू किया गया। इस एक्ट के बाद एक व्यक्ति के पास 15.5 एकड़ से अधिक भूमि नहीं हो सकती। तय सीमा से ज्यादा भूमि को राज्य सरकार द्वारा सीलिंग के तहत सरकार में निहित कर दी गई और इसे सीलिंग भूमि का दर्जा दिया गया। जमींदारी उन्मूलन कानून, 1960 के अनुसार बड़े स्तर पर सीलिंग का कार्य शुरू किया गया। 24 जनवरी 1971 में सीलिंग की कार्यवाही पूरी हुई। लगभग सभी सीलिंग की भूमि सरकार में निहित हो गई।
इस तरह हुआ सीलिंग की जमीन का सरकार से समझौता
अपनी जमीनों को सीलिंग से बचाने के लिए बड़े भू-स्वामियों और जमींदारां का सरकार से एक समझौता हुआ। इसके अनुसार भू स्वामियों द्वारा अपनी भूमि को सीलिंग में जाने से बचाए रखने के लिए चाय बागान के नाम पर भूमि की श्रेणी में बदलाव किया गया। केंद्र सरकार ने चाय, काफी और रबड़ प्लांट आदी की भूमि को एक शर्त के आधार पर एक्ट से बाहर कर दिया था। जिसमें शर्त यह रखी गई थी कि इस भूमि में चाय बागान ही लगाए जा सकते हैं और किसी भी सूरत में इस भूमि को बेचा नहीं जा सकता है।
सीलिंग एक्ट के समझौते की उड़ी धज्जियां
उक्त शर्त के आधार पर देहरादून में सैकड़ों एकड़ भूमि को भू-स्वामी चाय बागान के नाम पर बचाने में सफल रहे। लेकिन उसके बाद इस भूमि को एक-एक करके बेचा जाने लगा। एक्ट के अनुसार जिस भूमि पर चाय बागान लगाए जाने थे उस भूमि में कंक्रीट के जंगल खड़े होने लगे। हैरानी की बात यह है कि यह सब शासन-प्रशासन की नाक के नीचे होता रहा और एक्ट को ताक पर रखकर भू-स्वामियों और राजस्व विभाग की मिलीभगत से जमीनों के बैनामे होते रहे। यहां तक कि पॉवर ऑफ अटर्नी के जरिए जमीनों के स्वामित्व में भी परिवर्तन किया जाता रहा जबकि कृषि भूमि पर पॉवर ऑफ अटर्नी का नियम लागू ही नहीं होता। बावजूद इसके राजस्व विभाग द्वारा भू स्वामियों के हितां में काम किया जाता रहा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर नहीं हुआ अमल
10 अक्टूबर 1975 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में सींलिग की भूमि की बाबत साफ तौर पर स्पष्ट कर दिया था कि यदि कोई भू स्वामी सीलिंग की खरीद-फरोख्त करेगा तो उसका उस भूमि पर मालिकाना हक समाप्त हो जाएगा तथा उक्त भूमि सरकार में निहित हो जाएगी। बावजूद इसके देहरादून जिले में हजारां बीघा भूमि जो कि सीलिंग में थी, को जमकर खरीदा और बेचा गया। चक रायपुर, रायपुर, लाडपुर तथा पछवादून में सीलिंग की जमीनों की निरंतर खरीद-फरोख्त होती रही और राजस्व विभाग सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए इसके बैनामे पंजीकृत करता रहा।
इस मामले में यह भी सामने आ रहा है कि राजस्व विभाग के भूमि पंजीकरण कार्यालय की मिलीभगत के बगैर यह काम किसी भी सूरत में नही हो सकता है। इसमें विभाग के कर्मचारी और रजिस्ट्रारों की भूमिका पर संदेह किया जा रहा है। रजिस्ट्री कार्यालय में भू अभिलेखों को बदलने का काम भी जमकर किया गया है। असली कागजातां की जगह नकली और फर्जी कागजात लगाकर भू मफियाओं को फायदा पहुंचाया जाता रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के रजिस्ट्रार कार्यालय में औचक निरीक्षण के दौरान यह बातें सामने आ चुकी हैं।
राजस्व विभाग पर गंभीर आरोप यह लग रहा है कि आज तक सीलिंग की भूमि का कहीं रिकॉर्ड तक सार्वजनिक नहीं किया गया और न ही उक्त रिकार्ड को दिखाया गया है। इसके पीछे पहले से ही विभागीय अधिकारियों का कोई बड़ा षड्यंत्र चल रहा था।
चाय बागान पर मालिकाना हक की अपील खारिज
लाडपुर और चक रायपुर के साथ-साथ रायपुर की चाय बागान की भूमि के स्वामित्व के लिए संतोष अग्रवाल द्वारा अपर जिलाधिकारी शिव कुमार बरनवाल की कोर्ट में अपील दायर करके दावा किया था कि उक्त भूमि पर उनका मालिकाना हक है और इस भूमि की अवैध तरीके से खरीद-फरोख्त की गई है। इस पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता के दावों को खारिज कर दिया तथा साफ कर दिया कि 10 अक्टूबर 1975 के बाद हुआ कोई भी बैनामा मान्य नहीं है।

बात अपनी-अपनी
अभी नोटिस जारी किए गए हैं, इनमें उनकी बात भी सुनी जाएगी। बहुत से लोग अपने-अपने कागजातों को लेकर आ रहे हैं। अभी प्रकिया चल रही है, जब प्रकिया पूरी हो जाएगी तो निर्णय लिया जाएगा। जो अन्य मामले संज्ञान में आ रहे हैं, उन पर भी कार्यवाही हो रही है।
डॉ. शिवकुमार बरनवाल, अपर जिला अधिकारी, (प्रशासन) देहरादून
यह मामला महज 4 हजार बीघा भूमि का नहीं है। कम से कम बीस हजार बीघा भूमि का मामला है। राजस्व विभाग की मिलीभगत से आज हजारों बीघा सरकारी जमीनों की लूट की जा रही है। हमने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की जिस पर हाईकोर्ट ने जमीनों की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने का आदेश दिया और जब हमने 4 हजार बीघा सीलिंग की जमीन की जानकारी प्राप्त की और माननीय हाईकोर्ट को बताया तो सितंबर में फिर सुनवाई होनी है जिसमें 4 हजार सीलिंग की जमीन के मामले पर भी सुनवाई होगी। रजिस्ट्री कार्यालय की मिलीभगत के बगैर इतना बड़ा घोटाला हो ही नहीं सकता। जमीनों की इस लूट में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और असम के अलावा बंगाल आदी के कई भू माफिया इसमें शामिल हैं। सहारनपुर में पहले राजस्व रिकॉर्ड रखे जाते थे उनमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां की गई है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी यह कम नहीं हुआ है। अब प्रदेश के रजिस्ट्री कार्यालयों में बड़े पैमाने पर षड्यंत्र किए जा रहे हैं। मूल कागजातों को हटाकर फर्जी कागजात रखे जाते हैं और पॉवर ऑफ अटर्नी और वसीयत के आधार पर सीलिंग की जमीनों के मालिकाना हक प्राप्त किए जा रहे हैं। यह इतना बड़ा मामला है कि इसकी जांच पुलिस के लिए संभव ही नहीं है। इसके लिए सीबीआई जांच ही एक मात्र व्यवस्था है जो इस पूरे मामले की तह तक जा सकती है। मुझे हैरानी है कि प्रदेश के इस सबसे बड़े स्कैंडल के लिए सीबीआई जांच की सिफारिश सरकार क्यों नहीं कर रही है?
विकेश नेगी, अधिवक्ता देहरादून