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Uttarakhand

डरा रहा है दरबान सिंह का ड्रीम प्रोजेक्ट

विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद यूनाइटेड किंगडम एवं अन्य राष्ट्रमंडल समूह के तत्कालीन महाराजा जॉर्ज पंचम ने भारत के दरबान सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया था। इस दौरान पंचम ने दरबान सिंह से उनकी इच्छा पूछी थी। क्योंकि नेगी उत्तराखण्ड के थे सो उन्होंने ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक पहाड़ पर ट्रेन चलवाने की अपील की थी। जिसे अंग्रेज तो पूरा नहीं कर पाए लेकिन अब वर्तमान केंद्र सरकार दरबान की अधूरी इच्छा को पूरी करने में जुट गई है। ऑल वेदर रोड के बाद अब मोदी इस रेल प्रोजेक्ट को चार धाम योजना से जोड़कर आस्था का प्रतीक बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। दरबान नेगी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को 2025 तक धरातल पर उतारने के लिए रेल विकास निगम जोर-शोर से जुटा है जोशीमठ का डरावना सच सामने आने के बाद अब इस रेल परियोजना से प्रभावित लोगों के दिलों में दहशत देखी जा रही है। रेल प्रोजेक्ट की बन रही सुरंग जोशीमठ की तरह ही तबाही का संकेत देती दिख रही है

‘ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना के तहत टनल के निर्माण में दो कंपनियां काम कर रही हैं। एक मेघा कन्स्ट्रक्शन कंपनी और दूसरी डीबीएल। दोनों की अनियमितता की शिकायत हम कई बार रेलवे विकास निगम से कर चुके हैं। मेरे पालिकाध्यक्ष के कार्यकाल में यह अनुबंध हुआ था कि सुरंग खोदने के लिए किसी भी विस्फोटक का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। सुरंग टीबीएम तकनीक से की जाएगी। जिसमें ब्लास्टिंग फिक्स और कुछ एरिया तक ही सीमित होता है, लेकिन इसके बिल्कुल उलट कार्य किया जा रहा है। टीबीएम तकनीक से सुरंग नहीं खोदी गई है। जिससे हमारी नगर पालिका गौचर के बंदर खंड, भट्ट नगर और पलसारी गांव में कई घरों और कृषि भूमि में दरारें आ गई हैं। हमने उन लोगों के लिए मुआवजे की भी मांग की थी जिनके घरों में दरारें आई हैं। रेलवे विकास निगम द्वारा स्थानीय काश्तकारों से जो वायदे पूरे करने को कहा गया था वे वायदे पूरे नहीं किए जा रहे हैं। निगम ने स्थानीय युवाओं को नौकरी में प्राथमिकता देने का भी आश्वासन दिया गया था। रेलवे विकास निगम और निर्माणधीन कंपनियां स्थानीय लोगों, काश्तकारों और युवाओं के साथ किए गए वायदे को नजरंदाज कर और मानकों को ताक पर रख कर निर्माण कार्य कर किसी बड़ी आपदा को न्यौता देने का कार्य कर रही है, ऐसे में हम इन सब के खिलाफ एक बड़े विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर हो जाएंगे।’ यह कहना है गौचर के पूर्व पालिकाध्यक्ष मुकेश नेगी का।

अकेले मुकेश नेगी ही नहीं बल्कि ऐसे बहुत-से लोग हैं जो आजकल खौफ के साए में हैं। जब से जोशीमठ की आपदा आई है तब से लोगों को पहाड़ में विकास का सपना डराने लगा है। जोशीमठ में भू-धंसाव से उपजे हालात को देखते हुए प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में संचालित हो रही कई परियोजनाओं को लेकर लोग चिंतित हैं। जिनमें से एक पहाड़ पर रेल चढ़ाने की बहुप्रतीक्षित ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना है। इस परियोजना को लेकर भी चिंता बढ़ना लाजमी है क्योंकि जोशीमठ की तरह ही इनके घरों में दरारें आ गई है। गौचर सहित उन इलाकों के लोगों की आजकल नींद उड़ी हुई है जिनके करीब से होकर ऋषिकेश- कर्णप्रयाग रेल परियोजना का कार्य चल रहा है। पर्यावरणविदों का कहना है कि सुरंग के अंदर अगर लगातार अनियंत्रित विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जाता है तो उससे ग्लेशियर कच्चे पड़ जाते हैं वे अचानक से टूट कर ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों के रास्ते तबाही मचाते हुए आगे बढ़ जाते हैं। ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के आस-पास के गांवों पर भी कुछ ऐसा ही खतरा मंडराने लगा है।

उत्तराखण्ड में चार धाम यात्रा को सुगम बनाने की घोषणा केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पिछले काफी अरसे से की जाती रही है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्ष्य ऑल वेदर रोड के बाद अब चार धाम यात्रा को रेल से जोड़ने का प्रधानमंत्री द्वारा तय समय पर धरातल पर उतारने के लिए रेल विकास निगम पूरी ताकत झोंके हुए है। 2019 में शुरू हुआ यह कार्य वर्ष 2025 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है। इस परियोजना को नौ पैकेजों में विभाजित किया गया है। इस प्रोजेक्ट को लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड पूरा कर रही है।

केंद्र के साथ ही राज्य सरकार के द्वारा दावे किए जा रहे हैं कि वर्ष 2025 में इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद चारधाम यात्रा की तस्वीर पूरी तरह से बदल जाएगी। इस प्रोजेक्ट से न केवल पहाड़ की दुश्वारियां काफी कम होगी बल्कि इसके साथ ही चारधाम यात्रा भी सरल और सुगम हो जाएगी। इस प्रोजेक्ट के पूरा होते ही ऋषिकेश और कर्णप्रयाग के बीच यात्रा का समय जो 7 घंटे का है वह घटकर सिर्फ 2 घंटे हो जाएगा। इससे कर्णप्रयाग से बद्रीनाथ का साढ़े चार घंटे का सफर भी मात्र दो घंटे में पूरा होगा। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की यात्रा में सिर्फ चार घंटे लगेंगे जबकि इस यात्रा में पहले 11 घंटे लगते थे। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद बद्रीनाथ ही नहीं बल्कि इससे केदारनाथ, यमुनोत्री एवं गंगोत्री तक पहुंचना आसान हो जाएगा। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की मानें तो इस परियोजना में बड़ी संख्या में पहाड़ के बेरोजगारों को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे।

16,216 करोड़ की लागत से तैयार हो रही 125 किमी लंबी इस रेल परियोजना में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक 105 किमी रेल लाइन 17 सुरंगों के भीतर से होकर गुजरेगी। ऋषिकेश कर्णप्रयाग ब्राडगेज रेल परियोजना निर्माण में 17 सुरंगों में पैकेज 1, ढालवाला से शिवपुरी, पैकेज 2, शिवपुरी से ब्यासी, पैकेज 3, ब्यासी से देवप्रयाग, पैकेज 5-जनासू से श्रीनगर, पैकेज 6-श्रीनगर से धारी देवी, पैकेज 7 ए-धारी देवी से तिलनी, पैकेज 7 बी-तिलनी से घोलतीर, पैकेज 8-घोलतीर से गौचर, पैकेज 9-गौचर से सिवाई (कर्णप्रयाग) तक एनएटीएम (न्यू आस्ट्रियन टनलिंग मैथड) तकनीकी से बन रही है। जबकि पैकेज संख्या 4-में सौड़ (देवप्रयाग) से जनासू तक निर्माण किया जा रहा है। देवप्रयाग से जनासू के बीच की यह सुरंग सबसे लंबी सुरंग 14.08 किमी है। इस सुरंग का निर्माण टीबीएम (टनल बोरिंग मशीन) से किया जा रहा है। जिसके लिए रेल विकास निगम ने जर्मनी से टीबीएम की दो टीबीएम मशीनें मंगवाई है। जबकि, सबसे छोटी सुरंग 200 मीटर सेवई से कर्णप्रयाग के बीच है। 11 सुरंगों की लंबाई छह-छह किमी से अधिक है।

यह रेल परियोजना गढ़वाल मंडल के पांच जिलों को जोड़ेगी। परियोजना पर कुल 13 रेलवे स्टेशन हैं, जिनमें दो स्टेशन वीरभद्र व योगनगरी ऋषिकेश, देहरादून जिले में हैं।इसके अलावा टिहरी जिले में शिवपुरी, व्यासी, मलेथा व चौरास, पौड़ी जिले में देवप्रयाग, जनासू व धारी देवी, रुद्रप्रयाग जिले में सुमेरपुर और चमोली में घोलतीर, गौचर व कर्णप्रयाग के सेवई रेलवे स्टेशन होंगे। वित्तीय वर्ष 2021-22 में प्रोजेक्ट के लिए 4200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। जानकारी के अनुसार ऋषिकेश- कर्णप्रयाग रेल लाइन प्रोजेक्ट के तहत अब तक 17 सुरंगों, 35 पुलों और 12 स्टेशन के निर्माण का लगभग आधा काम हो चुका है। इस प्रोजेक्ट का काम काफी तेजी से चल रहा है। हर रोज करीब 100 मीटर सुरंग बनाने का कार्य किया जा रहा है। बीते वर्ष दिसंबर तक लगभग 78 किमी सुरंग खोदने का कार्य पूरा हो चुका है। शिवपुरी और व्यासी के बीच 26 दिन में 1.12 किलोमीटर लंबी रेलवे सुरंग बनाकर इस निर्माण कार्य में पहला लक्ष्य हासिल किया जा चुका है।

जोशीमठ के बाद एक और धार्मिक नगरी ऋषिकेश के पास के गांव अटाली में घरों और जमीन पर दरारें पड़ने की खबरें आ रही हैं। अटाली गांव ऋषिकेश से करीब 25 किलोमीटर दूर है। यह गांव बदरीनाथ नेशनल हाईवे पर व्यासी के पास है। ऋषिकेश के इस गांव से होते हुए कर्णप्रयाग तक रेल की पटरी बिछाई जा रही है। जिसके लिए रेल विकास निगम ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट के तहत सुरंग की खुदाई करवा रहा है। यहां के लोगों का कहना है कि इस सुरंग की खुदाई से ही उनके घरों और जमीनों में दरारें आ गई हैं। अटाली के लोगों का कहना है कि सुरंग खोदे जाने की शुरुआत के साथ ही जमीन में कंपन हो रहा है। इस कंपन से घरों की दीवारों, छत और फर्श में दरारें पड़ रही हैं। उनकी जमीन धंसती जा रही है और खेतों तक में दरारें आ गई हैं। यहां के निवासियों का कहना है कि अगर जल्दी ही कुछ न किया गया, तो यहां भी हालात जोशीमठ और कर्णप्रयाग जैसे हो सकते हैं। इसके मद्देनजर लोगों ने विस्थापन और उचित मुआवजे की मांग धामी सरकार से की है।

रुद्रप्रयाग जिले में रेल लाइन 11 गांवों से होकर गुजर रही है। इन दिनों सभी क्षेत्रों में निर्माण कार्य जोरों पर है। स्थानीय लोगों का कहना है कि रेल लाइन निर्माण के लिए जिस तरह से विस्फोटकों का इस्तेमाल हो रहा है, उससे उनके गांवों को नुकसान हो रहा है। हालत यह है कि अगस्त्यमुनि ब्लॉक की रानीगढ़ पट्टी के मरोड़ा गांव के अस्तित्व पर ही संकट पैदा हो गया है। ऋषिकेश -कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण का काम लोगों के लिए दहशत का सबब बन गया है। गांव में मकान और गौशाला दरारों से पटी पड़ी हैं। यहां रह रहे 40 परिवारों में से 19 परिवार सुरक्षा की खातिर अपने मकान छोड़कर दूसरी जगह शरण ले चुके हैं। बताया जा रहा है कि दरारों के लगातार बढ़ने से कई परिवार सुरक्षित स्थान पर जाने की तैयारी में हैं। जहां यहां मकानों एवं आंगन में दरारें पड़नी शुरू हो गई हैं। ग्रामीणों को अनहोनी का डर सताने लगा है। डर के मारे लोग रात-रातभर सो नहीं पाते। उन्होंने प्रशासन व रेलवे बोर्ड से क्षेत्र का मौका मुआयना करने की मांग की साथ ही उन्होंने प्रशासन से उन्हें किसी अन्य जगह विस्थापित करने की मांग की। ग्रामीणों की शिकायत पर जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने 20 दिसंबर 2021 को उपजिलाधिकारी को भूगर्भीय टीम के साथ जांच करने के निर्देश दिए थे। जिसकी रिपोर्ट के बाद कई घरों में दरारों की पुष्टि की गई। इसके बाद रेल लाइन का निर्माण कार्य कर रही कार्यदायी संस्था की ओर से पीड़ितों के रहने के लिए टिन शेड बनाए गए हैं। लेकिन पीड़ित इन टिन शेडों में नहीं रह रहे हैं। पीड़ितों का आरोप है कि इन टिनशेडों में किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं है। शुरुआती चरण में प्रभावित परिवारों को रेलवे किराया देती थी। अब किराया देना भी बंद कर दिया है।

 

कर्णप्रयाग के मरोदा गांव का क्षतिग्रस्त एक घर

1 अगस्त 2022 को श्रीनगर गढ़वाल के श्रीकोट गंगानाली में गैस गोदाम के समीप रेल सुरंग निर्माण कार्य को आक्रोशित जनता ने रुकवा दिया। लोगों का कहना है कि रेल सुरंग निर्माण को लेकर हो रही ब्लास्टिंग से तोल्यूं के आवासीय भवनों को नुकसान पहुंच रहा है। डरे हुए लोग रात-रातभर सो नहीं पा रहे हैं। लेकिन रेल विकास निगम प्रभावितों की समस्या की ओर ध्यान नहीं दे रहा। सभासद विभोर बहुगुणा और व्यापार सभा अध्यक्ष नरेश नौटियाल समेत कई लोगों ने कंपनी के अधिकारियों के साथ ही निगम के प्रबंधक विनोद बिष्ट से भी मौके पर ही वार्ता की। परियोजना को लेकर प्रभावित ग्रामीण जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि परियोजना के लिए होने वाले ब्लास्ट के चलते उनके घर ढहने के कगार पर हैं, लेकिन निर्माणदायी संस्था इस तरफ ध्यान नहीं दे रही। नगर पालिका परिषद श्रीनगर के सभासद संजय फौजी ने 18 नवंबर को इस संबंध में रेल निगम द्वारा कोई कार्यवाही न किए जाने के बाद जिलाधिकारी को पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने नारा कंस्ट्रक्शन कंपनी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि यह कंपनी श्रीकोट गंगानाली एडिट-5 में रेलवे सुरंग बनाते समय भारी-भरकम विस्फोट का उपयोग कर रही है जिससे समूचे क्षेत्र के आवासीय भवनों में भूकंप जैसी कंपन हो रही है। यही नहीं बल्कि कई घरों में दरारें पड़ गई है। फौजी ने ब्लास्टिंग रोकने और जिन लोगों के घरों में दरारें आई है उनका विस्थापन करने की मांग की है। हालांकि जिलाधिकारी ने इस मामले में उपनिदेशक खनन को जांच करने के आदेश दे दिए हैं। इसके अलावा पौड़ी के लोगों का कहना है कि चल रहे रेलवे प्रोजेक्ट की वजह से उनके घरों में दरारें आ गई है। रेलवे लाइन के सुरंग निर्माण कार्य से श्रीनगर के हेदल मोहल्ला, आशीष विहार और नर्सरी रोड समेत अन्य घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं। आशीष विहार निवासी पीएल आर्य का कहना है कि रेलवे द्वारा दिन-रात ब्लास्टिंग की जाती है, जिससे कंपन होता है, उसी कारण घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं। लोगों की मांग है कि सरकार को जल्द फैसला लेना होगा और मैन्युअली काम करना होगा ताकि उनके घरों को नुकसान न हो।

रुद्रप्रयाग जिले में रेल लाइन 11 गांवों से होकर गुजर रही है। इन दिनों सभी क्षेत्रों में निर्माण कार्य जोरों पर है। स्थानीय लोगों का कहना है कि रेल लाइन निर्माण के लिए जिस तरह से विस्फोटकों का इस्तेमाल हो रहा है, उससे उनके गांवों को नुकसान हो रहा है। हालत यह है कि अगस्त्यमुनि ब्लॉक की रानीगढ़ पट्टी के मरोड़ा गांव के अस्तित्व पर ही संकट पैदा हो गया है। ऋषिकेश -कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण का काम लोगों के लिए दहशत का सबब बन गया है। गांव में मकान और गौशाला में दरारों से पड़ गई हैं। यहां रह रहे 40 परिवारों में से 19 परिवार सुरक्षा की खातिर अपने मकान छोड़कर दूसरी जगह शरण ले चुके हैं

एनएटीएम सिस्टम

शिवपुरी और व्यासी के बीच 26 दिन में 1.12 किलोमीटर लंबी रेलवे सुरंग बनाकर निर्माण कार्य में पहला रिकॉर्ड बनाया गया था। यह सुरंग एनएटीएम यानी न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड तकनीक से बनाई गई है। न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड सुरंग खोदने का पारंपरिक तरीका है। इसका इस्तेमाल सबसे पहले 1962 में ऑस्ट्रिया के रैजबिज ने किया था। एनएटीएम का इस्तेमाल आम तौर पर उन इलाकों में किया जाता है, जहां पर टर्नल बोरिंग मशीन से सुरंग बनाना संभव होता है। इस तकनीक से शॉटक्रीट, स्टील, लेटिस गर्डर, तार की जाली की अंदरूनी लाइनिंग बनाई जाती है। मिट्टी को स्थिर बनाने के लिए रॉक बोल्ट लगाए जाते हैं। इसके बाद मशीन या नियंत्रित विस्फोट के जरिए खुदाई होती है। खुदाई के दौरान सतह की प्रत्येक गतिविधि को जानने के लिए इन क्लाइनोमीटर, एक्सटेंशन मीटर, लोड सेल जैसे उपकरणों का इस्तेमाल होता है।

 

 

टीबीएम तकनीक
टनल बोरिंग मशीन तीन भागों में विभाजित होती है। आगे की दिशा में कटर लगा हुआ होता है, जिससे खुदाई का काम किया जाता है। ये कटर इतनी सफाई से काम करते हैं कि आस- पास की जगह पर कंपन का असर नहीं होता। मशीन का दूसरा भाग है सपोर्ट बेल्ट। इसका मुख्य काम खुदाई किए गए इलाके को कंक्रीट की प्लेट से ढकना होता है। जैसे ही कटर द्वारा जमीन का हिस्सा काटा जाता है, इसका दूसरा भाग उस हिस्से पर कंक्रीट प्लेट लगा देता है, जिससे निर्माण कार्य में रुकावट नहीं होती है। तीसरा और मुख्य हिस्सा है मिट्टी बाहर निकालने वाला सिलिंडर। जैसे ही कटर द्वारा जमीन का हिस्सा काटा जाता है, सपोर्ट बेल्ट द्वारा कंक्रीट की चद्दर चढ़ाई जाती है, खुदाई के दौरान निकलने वाली मिट्टी सिलिंडर के जरिए एक मग तक पहुंचाई जाती है। यह मग ट्रेन से बाहर खींच लिया जाता है।

 

बात अपनी-अपनी
विशेषज्ञों की टीम प्रभावित इलाकों का जायजा ले रही है। इस बाबत एक रिपोर्ट भी तैयार की जा रही है। रेलवे परियोजना में कार्यरत कार्यदायी संस्थाओं को भी ब्लास्टिंग न करने के लिए कहा गया है।
सुशील कुमार, कमिश्नर गढ़वाल

मरोड़ा गांव के 19 परिवार अभी तक अन्यत्र शरण ले चुके हैं, जिनका किराया आरवीएनएल वहन कर रहा है। साथ ही आरवीएनएल को गांव के विस्थापन को लेकर भी कार्रवाई करने को कहा गया है। मरोड़ा गांव के जो विस्थापित परिवार हैं, उनको शीघ्र ही मुआवजा दिया जाएगा। फिलहाल उनके लिए टिन शेड बनाए गए हैं और आवश्यक सुविधाएं जुटाई जा रही हैं।
मयूर दीक्षित, जिलाधिकारी, रुद्रप्रयाग

परियोजना के तहत जितनी भी सुरंग बनाई जा रही हैं, उनके प्रवेश का कार्य पूरा हो गया है। अब आगे का कार्य सुरंग में काफी गहराई तक चल रहा है। कार्य के दौरान उठने वाली भूमिगत कंपन सुरंग के भीतर तक ही सीमित होती है। यह इसलिए भी जरूरी है कि ब्लास्टिंग के बाद उठने वाली भूमिगत कंपन सीमित रहे और आस-पास आबादी और घरों पर इसका असर न पड़े। चारधाम रेल परियोजना का एलाइनमेंट करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि कहीं भी भूस्खलन जोन न बने। इस लिहाज से परियोजना का स्थान चयनित किया गया है। इसलिए जोशीमठ आपदा के आलोक में इस परियोजना को लेकर किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है। रेल परियोजना के 125 किमी .मार्ग पर उच्च तकनीक से भूगर्भीय जांच के बाद ही एलाइनमेंट किया गया। इसमें सुरंग प्रवेश का कार्य सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि संबंधित क्षेत्र को सबसे ज्यादा प्रभावित
भूगर्भीय परिवर्तन ही करता है। सुरंग का निर्माण भूमि के भीतर होना है। सभी जगह नियंत्रित तरीके से ब्लास्टिंग की जा रही है। यह इसलिए भी जरूरी है कि ब्लास्टिंग के बाद उठने वाली भूमिगत कंपन सीमित रहे और आस-पास आबादी और घरों पर इसका असर न पड़े।
अजीत सिंह यादव, मुख्य परियोजना प्रबंधक, रेल विकास निगम

125 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना के नौ पैकेज में 80 प्रवेश द्वार बनाए जा रहे हैं। करीब 50 प्रवेश द्वार तैयार हो चुके हैं। सभी पैकेज में पर्यावरण, स्वास्थ्य और सुरक्षा का ध्यान रखा गया है। इस काम के लिए सभी पैकेज पर एक ठेकेदार और आरवीएनएल का एक-एक कर्मचारी तैनात रहता है। किसी भी प्रकार की आपदा से बचने के लिए सुरंगों को सुरक्षित बनाया जा रहा है। किसी भी आपदा जैसे भूकंप, बाढ़ और आग से निपटने के लिए आईआईटी रुड़की के विशेषज्ञों की ओर से साइट स्पेसिफिक स्पेक्ट्रम स्टडी तैयार की गई है। इसे विदेशों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की ओर से जांचा गया है। भूस्खलन से बचने के लिए पोरल स्टेबलाइजेशन किया गया है। सभी बातों का ध्यान में रखकर सुरंगों का डिजाइन तैयार किया गया है।
ओमप्रकाश मालगुड़ी, परियोजना प्रबंधक, रेल विकास निगम

फिर कितने हजारों लाखों पेड़ और कटेंगे, पहाड़ टूटेंगे, जंगल बर्बाद होंगे।। फिर वही नुकसान होगा जो चार धाम रोड बनने के समय हुआ। क्या हमारे पहाड़ों में ट्रेन की वाकई में इतनी आवश्यकता है रोड काफी नहीं?
प्रीति रावत जंगपांगी, छात्रा, पिथौरागढ़ डिग्री कॉलेज

 

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