देवभूमि उत्तराखण्ड के कण-कण में भगवान होने का दावा किया जाता है, लेकिन इसी देवभूमि की एक हकीकत ऐसी भी है, जिसे उत्तराखण्ड के चेहरे पर दाग और लोकतंत्र के साथ मजाक कहना ही ठीक होगा। वह है यहां के दलितों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार। यह वर्ग जब भी सर उठा कर चलने का साहस करता है तो कोई घटना ऐसी घट जाती है जिससे देवभूमि की सामाजिक और न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठने लगते हैं। एक बार फिर अंतर्जातीय विवाह दलित युवक जगदीश चंद्र की हत्या का कारण बनकर सामने आया है। इस हत्याकांड में पुलिस-प्रशासन के साथ ही जनप्रतिनिधियों की भी संवेदनहीनता सामने आ रही है
आपने ज्यादातर यह सुना होगा कि जनप्रतिनिधि गांव गोद लेकर न केवल उसका विकास करते हैं बल्कि गांव के लोगों का हर तरह से ध्यान भी रखते हैं। उन्हें शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ ही मूलभूत सुविधाओं की गारंटी भी देते हैं। लेकिन शायद यह बहुत कम लोग जानते हैं कि पुलिस भी गांव गोद लेती है। जिस गांव को पुलिस गोद लेती है वहां वह सुरक्षा को प्राथमिकता देने के साथ ही गांव के लोगों के दुःख-दर्द भी दूर करती है। उनके हर सुख-दुःख में भागीदार बनती है। लेकिन मित्र पुलिस का दर्जा प्राप्त उत्तराखण्ड पुलिस गांव को गोद लेकर ही भूल जाती है। मित्र पुलिस द्वारा गांव को गोद लेने का बोर्ड लगाकर ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर दी जाती है। इस मामले में फिलहाल उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जनपद का गांव पनुवाधोखन चर्चाओं के केंद्र में है। वहां कुछ इस तरह का वाकया हुआ है कि उत्तराखण्ड पुलिस के गांव गोद लेने की औपचारिकता पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। हालांकि यह गांव अंतर्जातीय विवाह के बाद दलित युवक की वीभत्स हत्या के कारण मीडिया की सुर्खियों में है। यह हत्या उस गांव के युवक की हुई है जिसे पुलिस ने गोद ले रखा है।
4 सितंबर को जब इस गांव में मृतक युवक जगदीश चंद्र की शोकसभा थी तब पूरे 40 पुलिसकर्मी वहां तैनात थे। गांव का हर शख्स इस बात से खफा था कि जब गांव में आकर उच्च जाति के दबंग लोग जगदीश चंद्र को मौत के घाट उतार देने की धमकी देकर चले जाते हैं तो पुलिस उनका बाल बांका भी नहीं कर पाती है। अधिकतर लोग इस बात से खफा दिखे कि जब 27 अगस्त को जगदीश चंद्र की पत्नी गीता उर्फ गुड्डी ने जिले के पुलिस कप्तान और जिलाधिकारी को अपनी सुरक्षा की बाबत पत्र लिखकर गुहार लगाई थी तब पुलिस और प्रशासन क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे? क्यों किसी प्रेमी जोड़े की सुरक्षा के नाम पर सक्रियता नहीं दिखाई गई? पत्र लिखने के बाद भी नियम और कानून का हवाला देकर हत्यारों को मौका क्यों दिया गया?
कहते हैं कि जब सांप निकल जाता है तो लोग लकीर पीटते रह जाते हैं। कुछ ऐसा ही आजकल उत्तराखण्ड पुलिस कर रही है। कुमाऊं परिक्षेत्र के डीआईजी निलेश आनंद भरणे अब मृतक युवक की पत्नी गीता द्वारा सुरक्षा के बाबत दिए गए इस पत्र की जांच कराने की बात कर रहे हैं। भरणे ने कहा है कि पत्र पर लापरवाही किनकी वजह से हुई और क्यों हुई इसकी तह में जाया जाएगा। लेकिन सवाल है कि क्या भागुली देवी का लाल जगदीश चंद्र अब वापस आ पाएगा? वह जगदीश चंद्र जो उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी का युवा नेता था, तीन बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था और सल्ट विधानसभा क्षेत्र की तस्वीर बदलने की कोशिशों में जुटा था। उस बेचारे की अभागिन मां, बहन गंगा तथा भाई दिलीप और पृथ्वीपाल की तकदीर अब कौन संवारेगा?
रामनगर-रानीखेत राष्ट्रीय राजमार्ग से दाना-पानी से कुछ आगे चलते ही पहाड़ काटकर एक सड़क बनाई जा रही है। यह सड़क पिछले कई सालों से बन रही है। सिर्फ पहाड़ काटकर पत्थर नीचे बिछा दिए गए हैं। जहां से पैदल चलना जान जोखिम में डालने के बराबर है। पनुवाधोखन पूर्व प्रधान राकेश के अनुसार सड़क कई साल से कंप्लीट इसलिए नहीं हो रही है कि वह गांव दलित बाहुल्य है। गांव के 11 तोक है। जिनमें 2000 की आबादी बसती है। गांव के लोग एक सितंबर तक जगदीश चंद्र के बारे में सिर्फ इतना जानते थे कि वह समाज सेवा कर रहा है और दलित वर्ग के साथ ही सर्व समाज की समस्याओं को सुनकर उनका निराकरण करा रहा है। लेकिन जैसे ही सुबह-सुबह अखबार में उसकी हत्या की खबर आई तो गांव के लोगों को एक बारगी विश्वास ही नहीं हुआ।
देवताओं की नगरी उत्तराखण्ड दलितों के लिए जातिगत अभिशाप बनती जा रही है। 1980 में कफलटा कांड में 14 दलितों की हत्या के बाद देश भर से इस प्रकरण की जमकर भर्त्सना हुई थी। देश के तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह तक कफलटा में आकर दलितों के दर्द पर मरहम लगाकर गए थे। तब देश भर के दलित चिंतकों का जमावड़ा प्रदेश में लगा था और कहा गया था कि वह दलितों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। अन्याय के खिलाफ उनका साथ देंगे। लेकिन उसके बाद भी निरंतर अन्याय होते रहे हैं। कभी बागेश्वर में चक्की पर आटे में हाथ लगाने पर तो कभी शादी में कुर्सी पर बैठकर खाना खाने पर दलितों की हत्या की जाती रही है। यहां तक कि चंपावत के जिस स्कूल में सभी समाज को एक समान बनाए रहने की शिक्षा दी जाती है वहां जब भोजन माता दलित होती है तो उसका बहिष्कार कर दिया जाता है। दलित मानसिकता के प्रति ऐसी धारणा रखने वाले एक समाज का मानना है कि यह वर्ग उनके सामने सिर उठाकर चले वह उन्हें मंजूर नहीं है। सिर उठाकर चलने वाले ऐसे ही एक दलित युवक जगदीश चंद्र ने जब उच्च जाति के सौतेले बाप और भाई द्वारा सताई गई युवती गीता उर्फ गुड्डी से प्रेम विवाह किया तो इन्हें अपना सम्मान गिरा हुआ नजर आया। जो मां अपनी सौतेली बेटी को दलित युवक से शादी होने पर साथ देने की बात कर रही थी वह भी अपने पति और बेटे के साथ दामाद के खून में शामिल हो गई।
जगदीश चंद्र और गीता ने गेराड मंदिर में 21 अगस्त को शादी करके अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू की। तब उन्होंने ख्वाब सजाएं थे कि वह भी अपनी दुनिया को खूबसूरत बनाएंगे। लेकिन क्या पता था कि एक महीना भी नहीं होगा और उनकी इस खूबसूरत दुनिया को उनके अपने ही उजाड़ कर तहस-नहस कर देंगे। हालांकि गीता को इस बात का अहसास पहले ही हो चुका था कि उनकी दुनिया इतनी सुरक्षित भी नहीं है कि वह आजादी से विचरण कर सकें। देश को आजाद हुए बेशक 75 साल हो गए। लेकिन अभी भी कुछ लोगों की मानसिकता बदली नहीं है। अपने परिवार की कुत्सित मानसिकता को देखते हुए गीता ने अपने और पति के भविष्य को बचाने की सोची थी।
इसी सोच के चलते गीता ने सुरक्षा की गुहार लगाई। 27 अगस्त को वह छुपते-छुपाते अल्मोड़ा पहुंची और वहां जाकर उसने जिले के दोनों प्रमुख अधिकारियों, जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के दरबार में अपनी तथा अपने पति की जान की सलामती की गुहार लगाई। गीता ने इस पत्र में सौतेले पिता और सौतेले भाई के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने और सुरक्षा देने की मांग की थी। पत्र में लिखा था कि एक साल पहले जगदीश से उनकी मुलाकात भिकियासैंण बाजार में हुई थी। उसके बाद दोनों की बातचीत होती रही और उन्होंने शादी करने का फैसला किया। गीता ने लिखा था कि उन्होंने अपनी मां से भी जगदीश चंद्र को मिलवाया था और इस साल 26 मई को वह जगदीश के साथ अल्मोड़ा आ गई थी और तब शादी करना चाहती थी। लेकिन उनके सौतेले पिता उन्हें अल्मोड़ा से जबरदस्ती अपने साथ ले गए और धमकी दी थी कि अगर उसने जगदीश से शादी की तो वह उसे जान से मार देंगे।
27 अगस्त को गीता उर्फ गुड्डी ने अल्मोड़ा के एसएसपी और जिलाधिकारी के कार्यालय में जो शिकायती पत्र दिया था उसमें उसने साफ तौर पर मां भावना देवी को अपना पक्षधर बताया था। पत्र के मुताबिक गीता की मां ने ही उसे मनमुताबिक जीवन साथी चुनकर अच्छी जिंदगी जीने की सलाह दी थी। लेकिन जब जगदीश चंद्र के अपहरण और हत्या के बाद पुलिस ने जिस गाड़ी से गीता के सौतेले पिता और भाई को गिरफ्तार किया उस गाड़ी में शव के साथ गीता की मां भी मौजूद थी। अब पुलिस के सामने कई सवाल भी खड़े हो गए हैं। क्या गीता की मां साजिश में शामिल थी या फिर उसे भी डरा-धमकाकर इस हत्याकांड में शामिल किया गया है।
तीनों से ही पूछताछ में यह बात सामने आई है कि जगदीश का अपहरण कर आरोपितों ने उसे सीलापानी के एक कमरे में अधमरा कर छिपा दिया था। जोगा सिंह अचेत अवस्था में पड़े जगदीश की पहरेदारी में बैठा था, जबकि इस बीच तीन लोग गीता को ढूंढ़ते अल्मोड़ा आए थे। गीता को यहां से ले जाने में वे सफल नहीं हो सके तो देर शाम तीनों वापस सीलापानी पहुंचे। इसके बाद जगदीश की निर्मम पिटाई की गई जिससे उसकी मौत हो गई। शव को ठिकाने लगाने के दौरान पुलिस ने उनको पकड़ लिया है। पुलिस को जगदीश चंद्र के शव के साथ वैन में जो तीन लोग मिले उन्हीं को आरोपी बना कर जेल भेज दिया गया। जबकि गांव वालों का कहना है कि जगदीश चंद्र की हत्या करने वाले तीन लोग नहीं बल्कि 9 लोग हैं। ऐसा इस घटना के एकमात्र चश्मदीद गवाह भगीरथ ने बताया। हालांकि उस गवाह को भी पुलिस ने कई दिनों तक थाने में बिठाए रखा है। नीमा आर्य का कहना है कि चश्मदीद गवाह को पुलिस डरा-धमका कर बयान बदलने को मजबूर कर रही है।
पुलिस की इस मामले में संवेदनहीनता शुरू से ही सामने आ रही है। चाहे वह गीता के पिता का गांव में आकर जगदीश चंद्र को ठिकाने लगाने का फरमान जारी करना हो या फिर गीता द्वारा पुलिस कप्तान को सुरक्षा की बाबत पत्र लिखना। हर तरह से पुलिसिया लापरवाही सामने आती रही। हद तो उस समय हो गई जब अभागिन भागुली देवी और उनके दो बेटे और बेटी गंगा को मृतक जगदीश चंद्र का चेहरा भी नहीं देखने दिया गया। परिवार अपने घर में तड़पता रहा और अंतिम दर्शन के लिए इंतजार करता रहा। लेकिन पुलिस डेड बॉडी को सीधा श्मशान घाट ले गई और वहां आनन-फानन में ही अंत्येष्टि करा दी गई। गांव वालों का कहना है कि पुलिस ने ऐसा इसलिए किया कि जगदीश चंद्र की बॉडी को देखकर ग्रामीणों में कहीं पुलिस के प्रति आक्रोश पैदा न हो जाए। जबकि दूसरी तरफ पुलिस का कहना यह है कि वह डेड बॉडी को घर इसलिए नहीं ले गई क्योंकि डेड बॉडी देखने लायक नहीं थी। मेडिकल रिपोर्ट में जो सामने आया है उसमें जगदीश चंद्र को 27 जगह गंभीर चोटों के निशान लगे हुए हैं। पुलिस इसी को आधार बनाकर अपना बचाव करती नजर आई कि परिवार वाले उसकी छत-विछत डेड बॉडी नहीं देख सकते थे, इसलिए ऐसा करना पड़ा।
पनुवाधोखन के ग्राम प्रधान बीरबल कहते हैं कि पुलिस ने अपहरणकर्ताओं और हत्यारों के न्यायालय से पुलिस रिमांड की मांग नहीं करके अपनी दोहरी मानसिकता का परिचय दिया है। इस दौर में जहां साधारण-सी बात पर और सोशल मीडिया में सत्ता दल के खिलाफ लिखने वालों के लिए रिमांड मांगा जाता हो, अपहरणकर्ताओं और हत्यारों को पुलिस रिमांड में न लेना यह दर्शाता है कि प्रदेश का पुलिस तंत्र किस तरह आरोपियों को शह दे रहा है। सबसे निराशाजनक प्रतिक्रिया सत्तारूढ़ दल भाजपा की रही है। चुनाव में तीन-तीन बार गांव का दौरा करने वाले स्थानीय विधायक और सांसद ने गांव में आने की बात तो दूर एक संवेदना व्यक्त करने की जरूरत महसूस नहीं की। उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी ने जब 4 सितंबर को गांव में शोक सभा की तो सभा की समाप्ति पर अपने कुछ दलित नेताओं के साथ पहुंचे विधायक प्रतिनिधि के खिलाफ गांव वालों ने जमकर भड़ास निकाली। गांव वालों के तीखे सवालों का इन दलित नेताओं के पास जवाब नहीं था। हत्या के चौथे दिन तक भाजपा की किसी भी स्तर की लीडरशिप से किसी तरह का बयान या संवेदना संदेश न देने से गांव वालों विशेषकर युवाओं में बहुत रोष था। गांव वालों ने इन कथित भाजपा नेताओं के खिलाफ जबरदस्त हूटिंग की और भाजपा नेता वापस जाओ और इन्हें गांव से बाहर भगाओ के नारे लगाए। तब मामला बिगड़ता देख उपपा के महासचिव प्रभात ध्यानी के हस्तक्षेप चलते मामला शांत हो सका।
उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी ने कहा कि उत्तराखण्ड के लाखों दलितों, वंचितों, पीड़ितों, संवेदनशील लोगों का यह दुर्भाग्य है कि इस राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास प्रखर दलित नेता जगदीश चन्द्र की जघन्य हत्या से दुःखी, आहत, आक्रोशित लोगों के लिए सल्ट क्षेत्र में आने के बावजूद सहानुभूति के दो शब्द तक नहीं थे। यह प्रदेश की भाजपा सरकार का असली चरित्र है। दलित हितैषी होने का दिखावा करने वाले प्रतिपक्ष कांग्रेस की खामोशी भी प्रश्न चिÐ खड़े करती है।
उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी कहते हैं कि 5 सितंबर को खुमाड़ (सल्ट) में प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री, अनुसूचित जाति के सुरक्षित क्षेत्र से चुनकर आने वाले अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ क्षेत्र के सांसद अजय टम्टा, सल्ट भिकियासैंण क्षेत्र के विधायक के साथ में शहीद समारोह में थे, पर इनमें से किसी ने भी पीड़ित परिवार को मुआवजा देने की बात तो छोड़ो, एक सहानुभूति का शब्द भी नहीं बोला, क्यों? उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी ने पीड़ित परिवार को 1 करोड़ रुपए मृतक की पत्नी और बहन को सरकारी नौकरी के साथ ही लापरवाह अधिकारियों पर कार्यवाही करने की मांग की है। मांग पूरी न होने पर आगामी 11 सितंबर को उपपा भाजपा सरकार की भिकियासेन में घेराबंदी करेगी।
कौन देगा इन सवालों के जवाब?
गीता ने 27 अगस्त को ही एक पत्र एसएसपी को तो दूसरा जिलाधिकारी को लिखा। दोनों के कार्यालयों से पत्र पर बकायदा रिसिविंग हुई। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास यह दोनों पत्र मौजूद हैं। दो नहीं बल्कि एक तीसरा पत्र भी लिखा गया। यह पत्र अल्मोड़ा की केंद्र प्रशासिका वन स्टाप सेंटर प्रमिला शाह ने लिखा। पत्रांक संख्या सी 192। प्रमिला साह ने इस पत्र को जिला कार्यक्रम अधिकारी को प्रेषित किया है। इसमें उन्होंने तीन बिंदुओं का स्पष्ट उल्लेख किया है। पहला बिंदु यह है कि सुरक्षा निजी व्यय पर मिल सकती है। दूसरा माननीय न्यायालय के आदेशानुसार तो तीसरा स्थानीय पुलिस या पटवारी की रिपोर्ट एवं जांच के बाद सुरक्षा मिल सकती है। लेकिन इस पत्र पर भी गंभीरतापूर्वक काम नहीं किया गया। गीता की ऐसी स्थिति नहीं है कि वह निजी व्यय पर सुरक्षा ले पाती। घर से बाहर न निकलने की वजह से वह अपने आप में इतनी सक्षम भी नहीं थी कि माननीय न्यायालय के आदेश कराकर वह सुरक्षा ले पाती। इसके अलावा तीसरा विकल्प ऐसा था जिसके अनुसार गीता और जगदीश चंद्र को सुरक्षा मिल सकती थी। जिसमें अगर पुलिस या राजस्व पुलिस सक्रिय होती और तुरंत जांच करके सुरक्षा दे देती तो शायद जगदीश चंद्र की जान बच सकती थी। लेकिन इस पर भी पुलिस या राजस्व पुलिस किसी ने भी जांच करने की जहमत नहीं की।