[gtranslate]
Uttarakhand

दलितों के पानी पर दबंगों का कब्जा

  • अली खान

 

आज से करीब 94 साल पहले महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड़ में दलितों पर पानी को लेकर होने वाली छुआछूत के खिलाफ एक आंदोलन की शुरुआत हुई। डॉ . भीमराव अंबेडकर ने सैकड़ों दलितों के साथ महाड़ के सार्वजनिक तालाब चावदार का पानी पिया और छुआछूत के खिलाफ पूरे देश में एक संदेश दिया। इस घटना के करीब 74 साल बाद राजस्थान के जयपुर जिले में चकवाड़ा गांव में भी करीब ऐसी ही घटना घटी। गांव के एकमात्र सार्वजनिक तालाब में दलितों के नहाने और मवेशियों के लिए अलग से घाट था। दो युवक बाबूलाल बैरवा (45) और राधेश्याम बैरवा (25) ने दलितों के साथ इस व्यवहार को खत्म करने की कोशिश की और तालाब के मुख्य घाट पर जाकर नहा लिए। यह मामला 14 दिसंबर 2001 की है। यह तालाब सामान्य, ओबीसी और एसटी वर्ग के लोगों के लिए आरक्षित था। इसलिए इन लोगों ने दोनों युवकों का विरोध किया और रात में बाबूलाल और राधेश्याम के घर पर कथित तौर पर हमला हो गया। पुलिस बुलाई गई, लेकिन अगले दिन पुलिस ने भी दलितों को गांव की परंपरा के साथ चलने का सुझाव दिया। एक तरफ तो देश आजादी का अमृत महोत्सव का जश्न मना रहा है दूसरी तरफ हमारा सामाजिक ढांचा आज भी पुरानी रूढ़िवादिता और जातिवादिता के जहर में जकड़ा हुआ है।


हरिद्वार जिले के रुड़की में एक गांव बेलड़ा में आजकल पानी पर दो जातियों में महाभारत छिड़ा हुआ है। यहां सरकारी ट्यूबवेल को भी दबंगों ने अपने कब्जे में ले लिया है। दलित वर्ग के लोग अपने खेतों को पानी पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ न्याय की आस लेकर जब संबंधित अधिकारी से मिलने जाते हैं तो उन्हें दुत्कार दिया जाता है। यही नहीं बल्कि संबंधित अधिकारी के पास जब मामला पहुंचता है तो वह उल्टा शिकायतकर्ता पर ही केस दर्ज करवा देते हैं।


अपनी इसी समस्या को लेकर बेलडा गांव के काफी लोग कई बार खंड कार्यालय पर इकट्ठा हुए। उन्होंने एक सरकारी नलकूप और उसके चालक के संबंध में बात करनी चाही, लेकिन उनका आरोप है कि स्थानीय अधिशासी अभियंता ने उन्हें बात करने का मौका तक नहीं दिया। मौके पर उपस्थित ‘दि संडे पोस्ट’ के पत्रकार ने जब इन ग्रामीणों से बात की तो उन्होंने बताया कि बेलडा गांव में विधायक हरिदास के प्रस्ताव पर वर्ष 2010 में एक सरकारी नलकूप संख्या आरजी 170 स्थापित हुआ था। काफी समय तक नलकूप से पानी का संचालन उचित तरीके से होता रहा। इस दौरान सभी ग्रामीणों को इसका भारी फायदा हुआ।

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि इस सरकारी नलकूप के लिए एक किसान ने अपनी जमीन अधिग्रहण करवाई थी, जिसका उसे कुछ समय बाद मुआवजा भी मिल गया था। पत्रावलियों में इस जमीन की 50 फुट लम्बाई तथा 50 फुट चौड़ाई अंकित है। कुछ समय बाद इस सरकारी नलकूप पर प्रमोद नामक एक नलकूप ऑपरेटर तैनात कर दिया गया। कुछ समय तक तो यह ऑपरेटर पानी का संचालन सभी गांव वालों को सही प्रकार करता रहा। लेकिन कुछ समय बाद उसकी हरकतें भेदभाव वाली होती गई। आरोप है कि गांव के दबंग लोगों के साथ मिलकर उसने सरकारी नलकूप के पानी का संचालन दलित वर्ग के लोगों के लिए बंद कर दिया। सरकारी नलकूप की चाबी भी प्रमोद द्वारा गांववासी सुनील कुमार को दे दी गई। वह भी अपनी मर्जी अनुसार पानी का संचालन करने लगा।


शिकायतकर्ता शिव कुमार गौतम के अनुसार ज्यादातर सरकारी नलकूप का पानी सुनील कुमार की मनमर्जी से ही मिलने लगा। आहिस्ता -आहिस्ता गांव के गरीब लोगों खासकर दलितों को इस सरकारी नलकूप के पानी का फायदा मिलना बंद हो गया। मजबूरीवश शिकायतकर्ता शिवकुमार गौतम गांव के अन्य लोगों के साथ एसडीएम से मिले तथा उन्हें पुरे मामले से अवगत कराया। एसडीएम ने नलकूप खंड के अधिशासी अभियंता सुरेश पाल को तलब कर मामले की स्थिति जानी। इसके बाद भी सरकारी नलकूप पानी का संचालन दबंग लोगों के हाथ में ही रहा। दलित वर्ग के लोगों को सरकारी नलकूप का फायदा फिर भी नहीं मिल रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस प्रकरण को सामने लाने और उपजिलाधिकारी तक मामला पहुंचाने से खिन्न होकर नलकूप खंड के अधिशासी अभियंता सुरेश पाल ने मामले को पलटने की नीयत से शिकायतकर्ता पर ही दबाव बना डाला। जिसके मद्देनजर नलकूप खंड के अधिशासी अभियंता सुरेश पाल द्वारा सिविल लाइंस कोतवाली में शिकायतकर्ता शिव कुमार गौतम के खिलाफ तहरीर दी जिसमें कहा गया कि इनके द्वारा नलकूप क्षेत्र की जमीन पर अतिक्रमण कर लिया गया है।

भ्रष्टाचार का आरोपी है सुरेश पाल


रुड़की स्थित राजकीय उद्योगशाला खंड में कार्यरत अधिशासी अभियंता सुरेश पाल पर कई ऐसे भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं, जिनकी चर्चा विभाग में है। इस संबंध में उच्चाधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार संबंधी जो जांच चल रही है, उसमें शासन को कई आरोप पत्र प्रेषित किए जा चुके हैं। इस संबंध में उत्तराखण्ड शासन के संयुक्त सचिव जेएल शर्मा द्वारा 9 जून 2022 को प्रमुख अभियंता सिंचाई विभाग उत्तराखण्ड को एक पत्र प्रेषित लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि अधिशासी अभियंता सुरेश पाल के विरुद्ध जो आरोप पत्र शासन को प्रेषित किए गए हैं, उन सब आरोप पत्रों का एक नया आरोप पत्र बनाकर भेजा जाए। पत्र में कहा गया है कि 28 फरवरी, 2022 को उपलब्ध कराई गई प्रारंभिक जांच आख्या में इंगित वित्तीय अनियमितताओं तथा 24 अगस्त, 2020 को भेजे गए आरोप पत्र में इंगित अनियमितताओं का एक नया आरोप पत्र बनाकर संयुक्त सचिव को भेजा जाए। गौरतलब है कि अपने कार्यकाल में अधिशासी अभियंता सुरेश पाल एक चर्चित अधिकारी रहे हैं। उद्योगशाला में पेड़ काटने का मामला भी चर्चा का विषय रहा है। क्योंकि जितने पेड काटने के लिए निर्धारित थे, उससे ज्यादा पेड़ काटे गए हैं। इसके अलावा कुछ कर्मचारियों को नया पे ग्रेड देने के मामले में भी भारी अनियमितताएं और लापरवाही बरती गई हैं। विभाग में चर्चा है कि भ्रष्टाचार के कई मामलों की जांच शासन स्तर पर चल रही है।


गौरतलब है कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री द्वारा सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक अभियान छेड़ा हुआ है। मुख्यमंत्री का कहना है कि अगर भ्रष्टाचार के पुख्ता सबूत व शिकायत में सच्चाई है तो आरोपित अधिकारियों को किसी कीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा। मुख्यमंत्री का यह भी कहना है कि अगर पुख्ता सबूत होने पर जांच कार्रवाई में उच्चाधिकारियों द्वारा लीपापोती की जाती है तो जांच अधिकारियों को भी दंडित किया जाएगा।

 

 

You may also like

MERA DDDD DDD DD