राज्य में इस समय 12 किस्म के सुगंधित तेलों का उत्पादन हो रहा है। सरकार सगंध खेती को बढ़ावा देकर 350 करोड़ रुपए का सालाना टर्नओवर का लक्ष्य पाना चाहती है
प्रदेश में संगध (एरोमा) की खेती किसानों की जिंदगी में खुशहाली ला रही है। प्रदेश के 18 हजार से अधिक हेक्टेयर कृषि भूमि में इसकी खेती चल रही है। जिसमें करीब 18 हजार किसान जुटे हैं। 12 तरह के सुगंधित तेलों का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन हो रहा है। इसके लिए प्रदेश में 109 कलस्टर बनाए गए हैं। लेमनग्रास, जापानी मिंट, गेंदू, गुलाब, पामारोज, खस, डेमस्क, जिरेनियम, काला जीरा, तेजपत्ता, तिमूर, चंदन, कोमोमाइल, सिट्रोनेला, पामारोजा, तुलसी, गेंदा, जेरेनियम, स्याहजीरा, आर्टीमीशिया सहित 28 प्रजातियों की खेती प्रदेश में हो रही है। किसानों के लिए यह वरदान साबित हो रही है। किसानों ने जिस तरह से इसकी खेती में रुचि दिखाई है, उसे देखते हुए उत्तराखण्ड सरकार ने 350 करोड़ रुपए सालाना टर्नओवर का लक्ष्य रखा हुआ है।
प्रदेश सरकार संगध फसलों पर आधारित कलस्टर खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल, हरिद्वार में एरोमा वैली विकसित हो रही है। पौड़ी में लेमनग्रास, अल्मोड़ा में डेमस्क रोज, नैनीताल में तेजपत्ता, हरिद्वार में मिंट वैली विकसित हो रही है। अभी तक 109 कलस्टर विकसित हो चुके हैं। सरकार इंटीग्रटेड को-आॅपरेटिव डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (आईसीडीपी) की इसमें मदद ले रही है। प्रत्येक वैली में 500 हेक्टेयर की संगध खेती का लक्ष्य है। चमोली जिले के जोशीमठ के 12 गांवों में गुलाब की खेती हो रही है। जिसमें गुलाब जल एवं तेल का उत्पादन किया जा रहा है। 90 से अधिक काश्तकार इससे जुड़े हुए हैं, जिसमें 54 संयत्र भी प्रदान किए हुए हैं। प्रदेश में अकेले डेमस्क रोज के 39 कलस्टरों में खेती हो रही है। 1229 किसान इससे जुड़े हैं। 73 हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है। 250 कुंतल डेमस्क रोज का उत्पादन हो रहा है। इसके लिए पिथौरागढ़, चंपावत, रुद्रप्रयाग में 2, ऊधमसिंह नगर एवं उत्तरकाशी में 1, देहरादून, बागेश्वर में 3, नैनीताल, पौड़ी, टिहरी में 5 एवं चमोली में 6 कलस्टरों में किसान इसकी खेती से जुड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जोशीमठ में तैयार हो रहे गुलाब जल की सराहना कर चुके हैं। यहां की महिलाएं उन्हें गुलाब का तेल गिफ्ट भी कर चुकी हैं। प्रदेश में सगंध खेती के तहत पौड़ी जिले के जयहरीखाल ब्लाॅक के 73 किसानों ने 21 हेक्टेयर भूमि में लैमनग्रास की खेती कर नई नजीर पेश की है। वर्तमान में लेमनग्रास के तेल की बाजार में कीमत 1200 रुपया लीटर है। बंजर भूमि को आबाद कर अब काश्तकार अपनी झोली भर रहे हैं। उत्तराखण्ड में उत्पादित कैमोमाइलो के फूल तो यूरोप तक भेजे जा रहे हैं। काश्तकारों का गंधयुक्त औषधीय पौधों की खेती की तरफ बढ़ता रुझान पर्यावरण और जीविका के लिहाज से बेहतर माना जा रहा है।
यह किसानों की आय को दोगुना करने का प्रयास है। एरोमा वैली विकसित करने के पीछे किसानों की आर्थिक दशा सुधार है। सरकार ने सगंध पौधों की खेती पर सरकारी सहायता भी दोगुनी कर दी है। पहले सगंध पौध पर प्रति नाली 550 रुपए की सहायता मिलती थी जो अब 1000 रुपए कर दी गई है। 22 प्रकार के सुगंधित तेलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी सरकार ने तय किया हुआ है। ऐसा करने वाला यह देश का पहला राज्य है।
सुबोध उनियाल, कृषि मंत्री उत्तराखण्ड
वर्ष 2002 में जब देहरादून के सेलाकुई में सगंध पौध केंद्र (कैप) अस्तित्व में आते समय जो उम्मीद लगाई गई थी वह अब पूरी होती दिख रही है। वर्ष 2004 में देहरादून के राजावाल गांव से सगंध खेती की शुरुआत हुई थी जो आज 109 एरोमा कलस्टरों तक पहुंच चुकी है। प्रदेश में सगंध खेती का बढ़ता दायरा कृषि एवं औद्यानिकी की दृष्टि से बेहतर माना जा रहा है। इसकी खेती में पलायन रोकने एवं युवाओं को रोजगार देने की क्षमता है। पहाड़ में खेती-किसानी ने पलायन को सबसे अधिक प्रभावित किया है। अब सगंध खेती किसानों के लिए सबसे मुफीद मानी जा रही है। इसमें मुनाफा भी अच्छा है और जंगली जानवर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते। इसीलिए सरकार ने लक्ष्य रखा है कि आने वाले समय में इसका दायरा बढ़ाया जाए, हजारों किसानों को इससे जोड़ा जाए। इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, मनरेगा, हार्टिकल्चर मिशन सहित योजनाओं को इससे जोड़ने का प्रयास हो रहा है। सरकार की मंशा एरोमा पार्क भी विकसित करने एवं सगंध तेल समेत विभिन्न उत्पाद तैयार करने की भी है। गुलाब तेल का समर्थन मूल्य पांच लाख रुपए प्रति लीटर निर्धारित किया गया है। खुले बाजार में यह सात से आठ लाख रुपए लीटर बिकता है। सगंध खेती में श्रम एवं लागत कम लगती है। यह बंजर भूमि में भी पैदा हो सकता है।
यह कार्बन अधिग्रहण में भी अहम भूमिका निभाता है। इसकी फसलों के लिए पानी की भी कम जरूरत पड़ती है। सगंध उत्पादों के लिए समर्थन मूल्य भी तय किए गए हैं। अगर खुले बाजार में इसकी बिक्री नहीं होती तो कैप इसे किसानों से खरीदता है। यह भूक्षरण रोकने में मददगार साबित होता है। इससे भूमि में जल संचरण एवं जल धारण की क्षमता बढ़ जाती है। सगंध खेती किसानों की आर्थिकी संवारने में प्रभावी हो सकती है। बशर्ते इस तरफ ठोस रणनीति के साथ काम किया जाए। यह बाड़ का भी काम करती है। इसके सड़ने-गलने की समस्या नहीं है। ये खेतों में हरियाली लौटाने के साथ ही आर्थिकी के लिहाज से भी अहम है। सगंध पौधा केंद्र लगातार इस ओर प्रयासरत है। लक्ष्य तो 50 हजार किसानों को जोड़ने का भी है।