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Uttarakhand

विरासत तक नहीं संवार सके माननीय

प्रदेश में अब तक 11 मुख्यमंत्री हो चुके हैं। जब भी कोई नेता मुख्यमंत्री की शपथ लेता है तो उसके गांव में दीवाली मनाई जाती है कि मुख्यमंत्री और कुछ नहीं तो अपने गांव के लिए अवश्य कोई काम करेंगे, लेकिन सारी उम्मीदें धरी की धरी रह जाती हैं। सभी मुख्यमंत्रियों ने ‘दीपक तले अंधेरा’ वाली कहावत को चरितार्थ किया है। अन्य गांवों की तरह ही माननीयों के गांव भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं

पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका पैतृक गांव ‘टुंडी’ चर्चा में है। चर्चा दो तरह की चल रही है। एक तो यह कि इस गांव की माटी का लाल मुख्यमंत्री बना है, तो दूसरा मुख्यमंत्री बनते ही प्रशासन हरकत में भी आया है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब मुख्यमंत्री बनने के दूसरे-तीसरे दिन ही प्रशासन की टीम उनके गांव पहुंच गई। अधिकारियों को आरामतलबी छोड़ पांच किमी पैदल चल उनके गांव तक पहुंचना पड़ा। गांव में लोगों को कोरोना वैक्सीन भी लगी। सड़क, बिजली, पानी के निस्तारण की योजना भी बनाई गई। ग्रामीाणों की समस्या भी सुनी गई। पैतृक गांव को जोड़ने के लिए धुरचू से टुंडी तक सड़क बनेगी, यह आश्वासन गांव के लोगों को दिया गया। लो वोल्टेज की समस्या निस्तारण भी होगा। विकास का ब्लू प्रिंट भी मुख्यमंत्री के पैतृक गांव में ही तैयार किया गया। अब यह धरातल पर कितना उतरता है, यह तो समय बताएगा। लेकिन मुख्यमंत्री की यह पहल लोगों को जरूर रास आ रही है। वरना जब-जब पहाड़ी पृष्ठभूमि का व्यक्ति प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर बैठा तो उनका गांव चर्चा में रहा। लोग उम्मीद लगाते रहे कि माटी का लाल मुख्यमंत्री बना है तो उनके गांव की भी किस्मत संवर ही जाएगी। मुख्यमंत्री बदलते रहे लेकिन गांव आज भी यथास्थिति में हैं। जहां तक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पैतृक गांव ‘टुंडी’ का सवाल है तो वहां सड़क, स्वास्थ्य एवं संचार की सुविधा नहीं है। स्कूल पढ़ने के लिए विद्यार्थियों को 10 किमी दूर जाना पड़ता है। रोजगार के अभाव में बेरोजगारी चरम पर है। गांव में सैकड़ों युवा बेरोजगार हैं। गांव में प्राथमिक स्कूल तो है लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए 20 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। ऐसे में बालिका शिक्षा प्रभावित होती रही है।

जानते हैं कि प्रदेश का कौन मुख्यमंत्री अपने पुरखों के गांवों को संवार पाने में सफल रहा। प्रदेश के अंतरिम सरकार के प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी का जन्म यूं तो हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में स्थित नारनौल में हुआ था। नारनौल नगर जिला मुख्यालय भी है। वैसे भी दूसरा प्रदेश होने के नाते स्वामी के समक्ष यहां करने के लिए कुछ भी नहीं था। दूसरा उनका प्रवास देहरादून में ही रहा। वह 2002 एवं 2007 में देहरादून के लक्ष्मण चौक विधानसभा सीट से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दिनेश अग्रवाल के मुकाबले चुनाव लड़े लेकिन दोनों बार हार गए। प्रदेश की अंतरिम सरकार में वह पहले मुख्यमंत्री बने। नवंबर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक वे प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। जटिल भौगोलिक क्षेत्र वाले इस राज्य की जटिल प्रक्रिया को वह समझ पाते तब तक उनके हाथ से मुख्यमंत्री की कुर्सी निकल चुकी थी। अंतरिम सरकार में दूसरे मुख्यमंत्री का दायित्व अनुभवी कहे जाने वाले भगत सिंह कोश्यारी के हाथ सौंप गया। नित्यानंद स्वामी की कैबिनेट में उनके पास ऊर्जा एवं सिंचाई जैसे अहम पद थे। वह 30 अक्टूबर 2001 से मार्च 2002 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे। अपने को गधेरु कहलाना पसंद किया। वह वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भी हैं। भगत सिंह कोश्यारी ने राजनीति में बड़ा सफर तय किया लेकिन उनकी जन्मस्थली ‘नामती चेटाबगड़’ आज भी बुनियादी सुविधाओं का मोहताज है। गांव को जोड़ने वाली सड़क आए दिन बंद रहती है। स्वास्थ्य एवं शिक्षा की स्थिति बेहतर न होने से उनके गांव के आस-पास के क्षेत्र के लोग पलायन करने को मजबूर हैं। पैदल रास्तों की स्थिति बदतर है। पैदल पुल आपदा की भेंट चढ़ चुके हैं। आयुर्वेदिक अस्पताल में डॉक्टर नहीं हैं। इलाज के लिए कपकोट एवं बागेश्वर की दौड़ लगानी पड़ती है। इंटर कॉलेज में शिक्षक नहीं है। संचार सुविधाएं लचर हैं।

वर्ष 2002 में प्रदेश में पहला विधानसभा चुनाव होता है। कांग्रेस सत्ता में आती है। देश की राजनीति में अपना नाम बना चुके अनुभवी राजनेता एनडी तिवारी मुख्यमंत्री बनते हैं। इस दौर में राज्य में विकास होता भी दिखता है। हालांकि तिवारी का गांव बल्यूटी जो बमेठा-अक्सोड़ का हिस्सा है। यहां भी लोगों को सुविधाओं की जरूरत है। लेकिन तिवारी ने क्षेत्र के लिए जो काम किये उससे यह सवाल गौण हो गया कि उनके गांव की हालत क्या है? 18 अक्टूबर 1925 में तिवारी यहीं पैदा होते हैं। बाद में वह तीन बार 1976-77, 1984-85 और 1988-99 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हैं। वर्ष 2002-09 तक वह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रहते हैं। तिवारी के हिस्से पूरे पहाड़ को विकास की प्रकिया से जोड़ने का श्रेय जाता है। उन्होंने अपने क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की। भीमताल को औद्योगिक घाटी बनाया। 1980 के दशक में जब तिवारी उद्योग मंत्री थे
उन्होंने अपने गृह क्षेत्र भीमताल में 100 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करा यहां पर औद्योगिक घाटी बनाई। यहां उद्योग स्थापित हुए। लोगों को रोजगार मिला। लेकिन बाद में स्थितियां बिगड़ती चली गई। आज अस्पतालों में डॉक्टर नहीं है। उद्योग बंद हो चुके हैं। लोग रोजगार की खातिर पलायन कर रहे हैं। राज्य के चौथे एवं छठे मुख्यमंत्री रहे भुवनचंद्र खण्डूड़ी का पैतृक गांव श्री राधा बल्लभ पुरम जो पहले ‘मरगदना’ के नाम से जाना जाता था, आज बुनियादी सुविधाओं के अभाव में पलायन ग्रस्त है। वह दो बार उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रहे। पहले 8 मार्च 2007 से जून 2009 तक फिर 11 सितंबर से 2012 प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। अटल सरकार में उनकी छवि सड़कों को जोड़ने वाले नेता के रूप में रही लेकिन वह खुद अपने गांव में सड़क नहीं पहुंचा पाए। खण्डुड़ी दो बार मुख्यमंत्री बने। ‘खण्डूड़ी है जरूरी’ के नारे भी खूब चर्चा में रहे। उनके पैतृक गांव के लोगों को उम्मीद थी कि खण्डूड़ी गांव का नक्शा बदलकर रख देंगे। उनके गांव में चक्कीधार, मवांण एवं मोलस्यूं तोक में तो पैदल मार्गों की स्थिति तक ठीक नहीं है। खण्डूड़ी खुद भी बहुत कम गांव जा पाए। गांव में विकास के नाम पर एक हाईस्कूल जरूर है लेकिन सड़क, स्वास्थ्य के अभाव में लोग गांव छोड़ने को मजबूर हैं। राशन, गैस की परेशानी भी लोग झेल रहे हैं। जंगली जानवरों के चलते लोग गांव छोड़ने को विवश हैं।

रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने प्रदेश के पांचवे मुख्यमंत्री के रूप में सेवाएं दी। पौड़ी गढ़वाल का ‘पिनानी’ गांव उनका पैतृक निवास है। उनके गांव की तस्वीर भले ही न बदली हो लेकिन निशंक अपने गांव आते-जाते रहते हैं। उन्होंने वहां पर एक घर भी बनाया है। निशंक 27 जून 2009 से 11 सितंबर 2011 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। 31 मई 2019 से 07 जुलाई 2021 तक वह भारत सरकार में मानव संसाधन मंत्री रहे लेकिन वह अपने ही गांव की स्थिति नहीं सुधार सके। खुद निशंक के गांव पिनानी में स्थित अस्पताल फार्मासिस्ट के भरोसे चल रहा है। निशंक के गांव पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, राज्यपाल बेबी रानी मौर्य भी पहुंच चुकी हैं। इन बड़े नेताओं के साथ प्रशासन भी वहां पहुंच चुका है। लेकिन बावजूद इसके उनके गांव की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। प्रदेश के सातवें मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का पैतृक गांव ‘बुघाणी’ जो पौड़ी गढ़वाल के अंतर्गत आता है वहां लोग पेयजल, स्वास्थ्य सहित कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। वह 2012-14 तक राज्य के सातवें मुख्यमंत्री रहे लेकिन अपने पैतृक गांव की स्थिति नहीं सुधार सके। हां पर्वत पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा की स्मृति में उनके पैतृक गांव में एक संग्रहालय अवश्य बना है। हरीश रावत राज्य के आठवें मुख्यमंत्री बने। गांव से उनका लगाव जग-जाहिर है। वह अपने पैतृक गांव ‘मोहनरी’ में हरेला पर्व के साथ ही कई तरह की गतिविधियां संचालित करते रहे हैं। वह गांव की माटी से जुड़े नेता रहे हैं। खुद उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सरिमौली, जूनियर हाईस्कूल चनौला, हाईस्कूल देवलीखेत से किया। अपनी राजनीतिक यात्रा भी ब्लॉक प्रमुख से शुरू की। वह गांव की पगडंडियों एवं वहां के सांस्कृतिक वातावरण में पूरी तरह रचे-बसे रहे हैं। 2014-17 तक वह प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

वह केंद्र में केंद्रीय जल संसाधन विकास मंत्री के साथ ही कृषि मंत्रालय, खाद्य प्रसंस्करण, उद्योग मंत्रालय के साथ ही श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन वह खुद अपने पैतृक गांव को मॉडलगांव के रूप में नहीं बदल सके। जंगली जानवरों के चलते लोगों ने खेती-बाड़ी छोड़ दी है। गांव से लगातार निकासी हो रही है। पहले यहां 60 परिवार रहते थे अब इसकी संख्या 50 के आस-पास पहुंच चुकी है। गांव में पैदल रास्तों की स्थिति भी बेहतर नहीं कही जा सकती। गांव का एक प्राइमरी स्कूल बंद हो चुका है। स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर नहीं है। मोहनरी स्थित प्राथमिक विद्यालय शिक्षकों के अभाव में बंद होने के कगार पर है। निकटवर्ती चौनाला इंटर कॉलेज जिसमें खुद मुख्यमंत्री भी पढ़ चुके हैं वहां शिक्षकों एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के कई पद खाली चल रहे हैं। गांव सड़क से अवश्य जुड़ा है। राज्य के नौवे मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने पैतृक गांव ‘खैरासैंण’ की दशा नहीं सुधार सके। व्यासघाट-सतपुली- खैरासैंण मार्ग को रामनगर स जोड़ना हो या फिर नयारघाटी में झील बनाना कागजों में ही सिमटा रह गया। नवोदय विद्यालय एवं भैरवगढ़ी पंपिंग योजना जरूर उनकी उपलब्धि रही। 18 मार्च 2017 से 9 मार्च 2021 तक वह प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके पैतृक गांव एवं आस-पास के इलाके के लोगों को उम्मीद थी कि उनके गांव की तकदीर और तस्वीर दोनों बदलेगी लेकिन ऐसा कुछ हो न सका। जबकि उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव से हुई। हाईस्कूल एकेश्वर एवं इंटर जयहरीखाल से उन्होंने किया था।

यही हाल राज्य के दसवें मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के पैतृक गांव ‘सीरो’ का भी है। जहां पानी की समस्या के साथ ही कई तरह की बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। वह 10 मार्च 2021 से 4 जुलाई 2021 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनकी बदनसीबी यह रही कि उनके पास विकास का खाका खींचने तक का वक्त नहीं रहा, जब तक वह एक्शन में आते उनके हाथ से कुर्सी निकल गई। पैतृक गांवों की बात छोड़िए जिस पौड़ी गढ़वाल ने राष्ट्रीय स्तर पर हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ ही प्रदेश को विजय बहुगुणा, बीसी खण्डूड़ी, डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत जैसे मुख्यमंत्री दिए वह पौड़ी गढ़वाल की दशा नहीं सुधार सके। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत एवं उनके पुत्र पूर्व रक्षा मंत्री एवं योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे केसी पंत अल्मोड़ा के पैतृक गांव ‘खूंट’ की दशा नहीं सुधार सके। यही हाल तमाम सांसद एवं विधायकों का भी है जिनके गांव आज भी विकास को मोहताज है।

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