रानीखेत के चौबटिया में 1932 में स्थापित पर्वतीय फल शोध केंद्र और आजादी के बाद का उद्यान निदेशालय वर्तमान में बुरे दौर से गुजर रहा है। कभी वैज्ञानिकों की खोज रही सेब की ष्प्रिंस ऑफ चौबटियाष् प्रजाति ने देश ही नहीं विदेशों में भी रंगत बिखेरी थी। डेढ़ दशक पहले उद्यान से स्वदेशी प्रजाति के पेड़ों को काट दिया गया थाए इसके बाद यहां अमेरिकी प्रजाति के सेबों का उत्पादन किया गया। लेकिन यह प्रजाति यहां सफल नहीं हो सकी। इसके बाद यह संस्थान कभी वैज्ञानिकों की कमी के चलते तो कभी निदेशक के यहां न बैठने से चर्चाओं में रहा। चौबटिया गार्डन एक बार फिर डेपुटेशन पर आए निदेशक डॉण् हरमिंदर सिंह बवेजा के कारनामों की वजह से चर्चा में है। हिमाचल प्रदेश में निदेशक पद का दुरुपयोग करते हुए भ्रष्टाचार के आरोपी रहे बवेजा पर उत्तराखण्ड के उद्यान एवं प्रसंस्करण विभाग में भी घपले.घोटाले के आरोप लग रहे हैं
ब्रिटिश शासकों ने पर्वतीय क्षेत्रों में फलों के उत्पादन की जानकारी देने के उद्देश्य से 1932 में अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में पर्वतीय फल शोध केंद्र की स्थापना की थी। 1952 में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत ने पर्वतीय विकास का सपना देखा और यहां के मालरोड में उद्यान विभाग का निदेशालय की स्थापना की। 1988 में उत्तर प्रदेश सरकार ने निदेशालय का भवन चौबटिया में बनाने का निर्णय लिया। 1992 में निदेशालय का यह भवन बनकर तैयार हो गया। यह निदेशालय उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग यूपी के नाम से जाना जाता है। राज्य बनने के बाद चौबटिया उद्यान निदेशालय के दिन बहुरने की उम्मीद थीए लेकिन सबसे अधिक उपेक्षा इसी बीच हुई है। किसी समय पर यहां वैज्ञानिकों और अधिकारी
कर्मचारियों की लंबी चौड़ी फौज होती थी।
यह उद्यान सेब के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहा। यहां किंग डेविडए विंटर बनानाए गोल्डन डेलीसेसए बर्किंघमए रेड गोल्डए गोल्डन वैली जैसी सेब की प्रजातियां थींए इन प्रजातियों को अंग्रेज विदेश से अपने साथ लाए थे। चौबटिया गार्डन की खास उपलब्धि यहां की उत्पादित ष्प्रिंस ऑफ चौबटियाष् की प्रजाति थी। प्रिंस ऑफ चौबटिया सेब खाने में बहुत स्वादिष्ट और आकार में पाव भर का होता था। इसके पेड़ उम्र पूरी कर चुके हैं। एक दो पेड़ बचे हैं जिनकी उम्र भी 40 से 50 साल हो चुकी है। पहले इन पेड़ों पर पांच.पांच क्विंटल सेब का उत्पादन होता था। अब यह प्रजाति भी अंतिम चरण में है।
राज्य बनने के बाद प्रदेश का यह निदेशालय प्रगति नहीं कर सका। राज्य बनने से पहले तक चौबटिया में उद्यान, प्लांट ब्रीडिंग, भू रसायन, प्लांट पैथोलॉजीए एंटोमोलॉजी, प्लांट फिजियोलॉजी, मशरूम, कला एवं प्रचार प्रसार के लिए कई शोधरत अनुभाग थे। इस केंद्र में एक मेट्रोलॉजी ऑब्जर्वेटरी भी स्थापित की गई थी। इससे पालाए ओला पड़ने या आंधी आने की सटीक जानकारी मिल जाती थी। शोध केंद्र बंद होने के साथ ही यह सब भी बंद हो गए हैं।पिछले एक दशक से यहां निवेशकों ने नियमित रूप से बैठना ही बंद कर दिया है। सभी कार्य कैंप कार्यालय देहरादून से चल रहे थे। यहां तक कि त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में तो निदेशालय को रानीखेत से देहरादून शिफ्ट करने तक की बातें होने लगी थी। तब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसका जबरदस्त विरोध किया था।
निदेशालय तो रुक गया लेकिन इसके बाद फरवरी 2021 में यहां हिमाचल से डेपुरेशन पर आए एक अधिकारी डॉ ़हरमिंदर सिंह बवेजा को निदेशक बनाकर भेजा गया। उनके आने के बाद एकबारगी लगा कि अब चौबटिया गार्डन के दिन बहुरेंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। पूर्व की भांति एक बार फिर यहां भ्रष्टाचार की बू आने लगी है। इस बार आरोप निदेशक डॉ ़हरमिंदर सिंह बवेजा पर लगे हैं। आरोप लगाने वाले दीपक करगेती हैं। रानीखेत विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड चुके करगेती ने चौबटिया गार्डन में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बकायदा जनजागरण अभियान चलाया है। उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मिले सबूतों के आधार पर निदेशक डॉ हरमिंदर सिंह बवेजा के खिलाफ जमकर मोर्चा खोल दिया है। इस मुद्दे पर स्थानीय जनता का साथ दीपक करगेती को मिल रहा है। इसके बाद डॉ ़हरमिंदर सिंह बवेजा के खिलाफ विजिलेंस जांच शुरू हो गई है।
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी कीवी
उत्तराखण्ड में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा कृषकों के पलायन रोकने और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए सरकार द्वारा अनेकों योजनाएं 50 से 90 प्रतिशत सब्सिडी आधारित चलाई जा रही हैं। उत्तराखण्ड सरकार और भारत सरकार की मंशा है कि उत्तराखण्ड में कृषकों की आजीविका बागवानी आधारित कई पर्वतीय राज्यों के अनुरूप हो। लेकिन विभाग में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा योजनाओं का लाभ जमीन तक पहुंचने ही नहीं दिया जा रहा है। सरकार किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए बागवानी मिशन तथा जिला सेक्टर की योजनाओं में कीवी के क्षेत्रफल विस्तार की योजनाएं चलाई जा रही है। कीवी की पौध दो प्रकार से तैयार की जाती है पहला तो सीड की बुवाई कर उससे तैयार सिडलिंग पर कीवी की टहनियों को ग्राफ्ट कर तैयार किया जाता है तथा दूसरा कीवी की टहनियों को काटकर सीधे मिट्टी की क्यारी में लगाकर तैयार किया जाता है। कीवी एक अंगूर की तरह लता वाला पौधा है। कीवी की कटिंग से तैयार पौधे की अधिक प्रमाणिकता होती है। वर्तमान में डेंगूए कोविड आदि जैसी बीमारियों में खून में प्लेटलेट्स की कमी को बढ़ाने में मददगार होने के कारण कृषकों में इसकी खेती करने का रुझान बढ़ा है। अंगूर की खेती की तरह ही इसका भी ट्रेलिस सिस्टम से पौधे लगाना ही उत्तम तरीका माना गया है। भारत में कीवी की सामान्य प्रचलित प्रजातियां जैसे ब्रूनोए एलिसन एबॉटए मोंटीए हेवार्ड इत्यादि हैं। उद्यान विभाग उत्तराखण्ड द्वारा कीवी की टहनियों से तैयार पौधे कटिंग की दर वर्ष 2018 में 35 रुपए निर्धारित की गई थी और कीवी के सीड से उत्पादित सीडलिंग पर ग्राफ्टेड पौधे की दर रुपया 75 निर्धारित की गई थी। लेकिन वर्तमान उद्यान निदेशक डॉ हरमिंदर सिंह बवेजा द्वारा 15 मई 2021 को कीवी पौंध की कीमतों को बेतहाशा बढ़ाकर कटिंग की दर रुपया 35 से 75 रुपए कर दी गई। जबकि ग्राफ्टेड की कीमत बढ़ाकर रुपए 75 से 175 कर दी गई है जो कि 2018 की दर के लगभग 3 गुना अधिक है। इस बढ़ी हुई दर के साथ भी निदेशक को जब संतुष्टि नहीं हुई तो उन्होंने पुनः 14 दसंबर 2021 को दरों को बढ़ाते हुए एक नई सूची जारी कर दी। जिसमें कटिंग वाले पौधों की दर 75 रुपए से बढ़ाकर सीधे 225 रुपए और ग्राफ्टेड कीवी पौध की दर को 175 से 275 रुपए कर दिया गया। इस भ्रष्टाचार को अंजाम देते हुए 80 हजार से भी अधिक पौधों की खरीद बाहरी राज्यों की नर्सरियों से बिना निविदा आमंत्रित किए ही कराई गई। करीब 3 करोड़ से भी अधिक की इस खरीद फरोख्त में जमकर लूट की गई यही नहीं बल्कि जब इन दरों को उद्यान विभाग हिमाचल की दरों से मिलाया गया तो पाया कि वहां पर मौजूदा दर इन दरों से 3 से 4 गुना कम है। सवाल है कि आखिर ऐसी स्थिति में कैसे उत्तराखण्ड हिमाचल की तर्ज पर आगे बढ़ेगा।
अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के नाम पर घपला
निदेशक डॉ हरमिंदर सिंह बवेजा पर आरोप है कि उन्होंने 3 करोड़ से भी अधिक धनराशि को विभिन्न मदों बागवानी मिशन प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ;पीएमकेएसवाईद्ध एवं प्रधानमंत्री सूक्ष्म उद्यम उन्नयन योजना से मनमाने तरीके से सभी नियमों को ताक पर रखते हुए तत्कालीन अपर सचिव रामविलास यादव से सांठ.गांठ कर निकाल लिया गया। इस धनराशि को चार विभिन्न विषयों पर अंतरराष्ट्रीय नाम देकर सेमिनार एवं प्रदर्शनी के नाम पर खर्च दिखाया गया। जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव देहरादूनए अंतरराष्ट्रीय मशरूम महोत्सव हरिद्वारए अंतरराष्ट्रीय मसाला एवं सब्जी महोत्सव टिहरी और अंतरराष्ट्रीय मौन पालन महोत्सव ज्योलीकोट नैनीताल के नाम पर खर्च दिखाया गया। आरोप है कि यह सब कुछ इसी विभाग के जेल में कैद रामविलास यादव और निदेशक बवेजा द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करते हुए किया गया। नियम है कि इन सभी सेमिनार में केंद्र पोषित ोजना मिशन बागवानी के निर्देशानुसार 4 दिन तक चलने वाले अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के लिए अधिकतम 7ण्50 लाख रुपए की धनराशि का प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन निदेशक बवेजा और पूर्व अपर सचिव रामविलास की सांठ.गांठ से सभी नियमों को ताक पर रखते हुए भारत सरकार के मानक से 9 गुना अधिक धनराशि का उपयोग इस मद से महज 3 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में कर दिया गया।
चौंकाने वाली बात यह है कि बागवानी मिशन योजना को छोड़कर अन्य योजनाओं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एवं प्रधानमंत्री सूक्ष्म उद्यम उन्नयन योजना में व्यय की गई धनराशि को अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों में व्यय करने की स्वीकृति भी सरकार द्वारा नहीं ली गई। जिसके साक्ष्य भी सरकार और विजिलेंस में उपस्थित करवाए जा चुके हैं। इन तीनों योजनाओं के अतिरिक्त भी बवेजा के द्वारा तथ्यों को छुपाते हुए परम्परागत कृषि विकास योजनाए उत्तराखण्ड हॉर्टिकल्चर मार्केटिंग बोर्ड और कंपनियों द्वारा प्रायोजित धनराशि का दुरुपयोग भी इन अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों के नाम से किया गया। लोगों का कहना है कि केवल 20 लोगों को एक टेंट के नीचे इकट्ठा कर सभी नियमों को ताक पर रख किए जाने वाले ऐसे अंतरराष्ट्रीय सेमिनार पर सरकार की नजर क्यों नहीं पड़ती है। जबकि यह धनराशि औद्यानिकी को बढ़ाने और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयोग की जानी थी। हालांकि अब इस मामले में विभाग के अनुसचिव विकास कुमार श्रीवास्तव ने बवेजा का न केवल गैर जिम्मेदार व्यवहार माना है बल्कि उनको अनियमितता का नोटिस भी थमा दिया है। श्रीवास्तव के नोटिस में स्पष्ट है कि बवेजा ने अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में तय समय सीमा से अधिक धनराशि खर्च की है।
हल्दी और अदरक बीज खरीद में घोटाला
आरोप है कि निदेशक के पद का दुरुपयोग करते हुए डॉ ़हरमिंदर सिंह बवेजा द्वारा मनमाने तरीके से उत्तराखण्ड में अदरक बीज एवं हल्दी बीज की दरों को बढ़ा दिया गया। जबकि बवेजा द्वारा इन बीजों को बेचने के लिए उनके क्रय का माध्यम एनएससी ;नेशनल सीड कारपोरेशनद्ध को बना दिया गया और यह भ्रम फैलाया गया कि एनएससी द्वारा सर्टिफाइड बीज काश्तकारों को उपलब्ध कराया जा रहा है। जबकि अदरक एवं हल्दी के बीज का सर्टिफिकेशन ही नहीं किया जाता है। क्योंकि ये ट्रूथफुल बीज हैं। आरोप है कि इनके द्वारा यह कार्य केवल धनराशि अर्जित करने के उद्देश्य से किया गया। याद रहे कि एनएससी केवल उन्हीं उत्पादों को क्रय कर सकता है जिसका वो उत्पादन करता है और हल्दी तथा अदरक के बीज का उसके द्वारा किसी भी प्रकार से उत्पादन नहीं किया जाता।
बवेजा पर आरोप है कि एनएससी के माध्यम से जनता के टैक्स के रुपयों की लूट मचाने के लिए उनके द्वारा निर्धारित दरें प्राइवेट फर्म से भी ढाई से तीन गुना अधिक (अदरक बीज ) 90.80 प्रति किलो एवं हल्दी बीज रु 39.80 प्रति किलोद्ध कर दी गई। आरोप है कि प्रदेश के 7 जिलों में दबाव बनाकर यह क्रय भी करवाई गई। जबकि प्राइवेट फर्म द्वारा कृषकों में प्रचलित विज्ञापित दरें (अदरक बीज ) 44.75 प्रति किलो एवं हल्दी बीज रु 19.10 प्रति किलो पर उत्तराखण्ड के 6 जनपदों में कृषकों को आपूर्ति की गई। उत्तराखण्ड के उन 7 जनपदों में जहां एनएससी से बवेजा द्वारा दबाव में अदरक और हल्दी बीज क्रय कराए गए वहां के काश्तकारों द्वारा लगातार घटिया बीज एवं कम मात्रा में होने की शिकायतें आती रही। लेकिन काश्तकारों की पीड़ा की ओर किसी का ध्यान तक नहीं गया। कुछ काश्तकारों द्वारा अपने जिले के डीएम से एनएससी से प्राप्त बीज की शिकायत करते हुए अपनी खरीद धनराशि को वापस दिलवाने की मांग भी की गई। सवाल यह है कि हजारों कुंतल के बीज की खरीद बिना किसी निविदा के आखिर क्यों की गईघ् आखिर जब प्रधानमंत्री मोदी का ष्किसान सम्मान निधिष् का रुपया सीधे किसानों के खाते में जा सकता है तो निदेशक द्वारा भी डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के माध्यम से यह कार्य क्यों नहीं कियाघ् आरोप है कि बवेजा को इस धनराशि पर मोटी रकम बनाने का मौका मिल गया और उन्होंने खुद को बचाने के लिए एनएससी को सरकार के समक्ष प्रस्तुत कर दिया।
हिमाचल में भी भ्रष्टाचार का आरोपी है बवेजा
यह 2017 से पहले की बात है जब हिमाचल में कांग्रेस की सरकार थी और भाजपा विपक्ष में थी। उस समय भाजपा द्वारा हिमाचल विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाते एक चार्जशीट दाखिल की गई थी। उस
चार्जशीट में कांग्रेस के साथ भ्रष्टाचार में एक अधिकारी डॉ.हरमिंदर सिंह बवेजा का नाम स्पष्ट तौर पर लिखा गया था। तब बवेजा के भ्रष्टाचार को उजागर भी किया गया। यहां तक कि तब भाजपा ने अपनी चुनावी घोषणा में कहा था कि यदि हिमाचल में उनकी सरकार आएगी तो वह भ्रष्टाचार में लिप्त डॉ.हरमिंदर सिंह बवेजा और कांग्रेस के सभी कारनामों की जांच कराएंगे।
इसके बाद हिमाचल में भाजपा की सरकार बनी। बवेजा पर जांच भी चलती रही। विजिलेंस ने बवेजा के द्वारा मार्केटिंग बोर्ड एग्रीकल्चर में एमडी रहते हुए किए गए घोटालों पर जांच कर सरकार से उचित कार्यवाही की मांग की थी। जब बवेजा हिमाचल के उद्यान विभाग में निदेशक के पद पर कार्यरत थे तो इनके भ्रष्टाचार पर शासन ने 27 जून 2022 को चार्जशीट जारी कर दी है। लेकिन उत्तराखण्ड में आते ही बवेजा के सभी कारनामों पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती रही है। सवाल यह है कि जो अधिकारी हिमाचल प्रदेश में भ्रष्टाचार में आरोपी था वह उत्तराखण्ड आते ही सबसे पवित्र और शुद्ध कैसे हो गया है।
चौकाने वाली बात तो यह है कि वह अपने रसूख के बल पर सांठ.गांठ कर उत्तराखण्ड में महत्वपूर्ण विभाग उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण के निदेशक जैसे पद पर कैसे बैठा दिया जाता है। लोगों का कहना है कि उत्तराखण्ड का यह दुर्भाग्य ही है कि यहां पर विभागीय तौर पर 25 से 29 साल का अनुभव रखने वाले अधिकारियों को दरकिनार कर भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को डेपुरेशन पर आयातीत करने का कार्य किया जाता हैं। जिससे यह देवभूमि को बेहतर तरीके से लूट सकें। सवाल सरकार पर भी लग रहे है कि इतने बड़े पद पर लाने से पूर्व कैसे बवेजा के पुराने सभी कारनामों की जांच क्यों नहीं की गई।
आय से अधिक सम्पत्ति के आरोपी रामविलास से जुड़े हैं तार
प्रतिनियक्ति पर हिमाचल से आए अधिकारी डॉ.हरमिंदर सिंह बवेजा को नियम विरुद्ध दो साल की एक्सटेंशन दे दी गई। नियमों के तहत एक्सटेंशन सिर्फ एक साल का हो सकता है लेकिन बवेजा का यह एक्सटेंशन दो साल का हुआ। इससे भी चौकाने वाली बात यह है कि यह एक्सटेंशन करने वाले अधिकारी आज आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में जेल में है। यह पूर्व अधिकारी है आईएएस रामविलास यादव। यादव पर उत्तराखण्ड सरकार में अधिकारी रहते आय के ज्ञात स्रोतों से 550 गुना अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगे थे। जिसे उत्तराखण्ड की विजलेंस ने अपनी जांच में सिद्ध किया है। इसके बाद यादव को जेल भेजा गया है। बताया जाता है कि वही आईएएस अधिकारी यादव जब उद्यान विभाग में अपर सचिव थे तब उन्होंने ही डॉ हरमिंदर सिंह बवेजा को नियम विरुद्ध दो साल का सेवा विस्तार दिया था।
न्याय की गुहार
‘उद्यान बचाओ – भ्रष्टाचार मिटाओ’ के तहत प्रस्तावित चौबटिया से गैरसैंण बाईक यात्रा को 5 जून 2022 को उद्यान निदेशालय चौबटिया से काश्तकारों के साथ मिलकर प्रारंभ किया गया। जिसमें यात्रा के दौरान 8 विकासखंडों 7 तहसीलों से होते हुए यात्रा 6 जून 2022 को उत्तराखण्ड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण पहुंची। लेकिन 5 जून को भ्रष्टाचार के खिलाफ मेरी इस लड़ाई को रोकने के लिए कुछ सफेदपोश नेताओं द्वारा मुझ पर एक शराबी व्यक्ति को पीटने का आरोप लगाते हुए उसी व्यक्ति द्वारा मेरी एफआईआर तक भतरौंजखान थाने में कर दी गई और पुलिस द्वारा दी को रिसीविंग इन्हें दी गई उसकी छायाप्रति और उस व्यक्ति के कपड़े फड़वाकर एक वीडियो बनाकर सफेदपोश लोगों के यहां नौकरी करने वाले लोगों द्वारा फेसबुक, व्हाट्सएप आदि सभी सोशियल मीडिया में प्रेषित कर दिया गया। मैं जानता था मेरी यात्रा को रोकने के प्रयत्न किए जा रहे हैं मैंने उस विषय पर कोई टिप्पणी न कर केवल अपनी उद्यान बचाओ यात्रा पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन जब 1 महीना बीतने के बाद मेरे द्वारा सूचना में थाना भतरांजखान से उस विषय पर हुई कार्यवाही को मांगा गया तो 1 महीने बाद भी पुलिस यह जवाब देती है कि जांच चल रही है। ‘दि संडे पोस्ट’ के माध्यम से वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय अल्मोड़ा, पुलिस महानिदेशक महोदय से मेरी विनती है कि इस जांच को शीघ्रता से करवाएं और यदि मैं दोषी हूं तो कानूनी धाराओं के तहत मुझे सजा दी जाए लेकिन यदि एफआईआर झूठी है तो ऐसे लोगों के खिलाफ भी कठोर कार्यवाही होनी चाहिए जो प्रशासन का दुरुपयोग कर रहे हैं। मेरी यह यात्रा प्रशासन की नजर में हुई है, एलआईयू, मीडिया और जनता के मध्य से संपूर्ण यात्रा को सफल बनाया है, लेकिन अपने संकल्प को कभी टूटने नहीं दिया।
दीपक करगेती, समाजसेवी रानीखेत