औद्योगिक एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार के कुलपति ने पहले रोस्टर के साथ बदलाव किया फिर नियम विरुद्ध जाकर अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए भर्ती प्रक्रिया में सभी नियमों की धज्जियां उड़ा दी। सामाजिक कार्यकर्ता दीपक करगेती ने जब इस पूरे प्रकरण की शिकायत प्रदेश के राज्यपाल से की तो उन्होंने 15 दिन में जांच के आदेश दिए। लेकिन विश्वविद्यालय ने राज्यपाल के आदेशों को ही धता बता दिया
औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार में हुए एसोसिएट प्रोफेसर और एसिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर हुई भर्तियों में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। जिसमें विश्वविद्यालय द्वारा रोस्टर बदलकर अपने चहेतों को नौकरी देने का मामला सामने आया था। इस मुद्दे को पर्वतीय कृषक कृषि बागवान और उद्यमी संगठन तथा अन्य संगठनों ने जोरों से उठाया था। सामाजिक कार्यकर्ता दीपक करगेती द्वारा इस प्रकरण की शिकायत प्रदेश के राज्यपाल से की गई तो उन्होंने वित्त नियंत्रक प्रवीण कुमार बड़ौनी को जांच सौंपते हुए आदेशित किया कि 15 दिन के भीतर समस्त जांच कर संपूर्ण कार्यवाही से सचिव राज्यपाल, शिकायतकर्ता और शासन को भेजी जाए लेकिन आदेश होने के डेढ़ माह बाद भी जांच का कोई अता-पता नहीं है।
अब वित्त नियंत्रक बड़ौनी द्वारा सचिव कृषि एवं कृषक कल्याण को पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया है कि विश्वविद्यालय के निदेशक शोध तथा मुख्य कार्मिक अधिकारी ने जांच से संबंधित मांगे गए दस्तावेज उपलब्ध ही नहीं कराए। जब विश्वविद्यालय से पुनः पत्राचार किया गया तो दोनों अधिकारियों ने जांच अधिकारी को मौखिक में बताया कि कुलपति भरसार ने जांच सम्बंधी मांगे गए कोई भी दस्तावेज देने से मना किया है। वित्त नियंत्रक ने शासन के नियमों का हवाला देते हुए विश्वविद्यालय को अनुस्मारक भी भेजे हैं लेकिन विश्वविद्यालय जांच में सहयोग देने को तैयार नहीं है। इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि विश्वद्यालय के कुलपति पर शासन और राज्यपाल के आदेशों का कोई असर नहीं पड़ता है।
सामाजिक कार्यकर्ता दीपक करगेती का कहना है कि कुलपति को भ्रष्टाचार में कृषि मंत्री का संरक्षण प्राप्त है जिसके कारण भरसार विश्वविद्यालय लगातार भर्ती घोटाले कर रहा है। सरकार ने समस्त भर्ती प्रक्रिया की उच्च स्तरीय जांच एसआईटी से करानी चाहिए जिससे कई लोग इस घोटाले में सलाखों के भीतर जाएंगे। गौरतलब है कि भरसार विश्वविद्यालय में जो नियुक्तियां की गई हैं उसमें उत्तराखण्ड शासन की बिना अनुमति के ही 2019 में जारी भर्ती रोस्टर को पूरी तरह से बदलकर 2023 में नया भर्ती रोस्टर विज्ञापित किया गया था जो पूर्ण रूप से गलत था। पुराने रोस्टर अनुसार जिन पदों के लिए नियुक्तियां की जानी थी उसको पूरी तरह बदल दिया गया। इस चलते योग्य अभ्यार्थी जो पिछले कई वर्षों से पूर्व में विज्ञापित पदों के विषयों के अनुसार अपनी-अपनी तैयारी कर रहे थे उनसे उनका हक छीन लिया गया। अपने चहेतों को विश्वविद्यालय में भर्ती कराने के लिए बदले गए रोस्टर के हिसाब से भर्तियां करवा दी गई। आरोप है कि विश्वविद्यालय कुलपति एवं कुछ अन्य अधिकारियों द्वारा ये रोस्टर अपने चहेतों और उनके परिजनों को फायदा पहुंचाने और मोटी कमाई के लिए बदला गया। याद रहे कि उत्तराखण्ड शासन के रोस्टर सम्बंधित नियम के अनुसार एक बार रोस्टर तैयार किए जाने के बाद किसी भी दशा में आरक्षित पदों में कोई बदलाव नहीं हो सकता है। साथ ही अगर पद रिक्त होता है तो इस दशा में आरक्षित पद पुनः उसी श्रेणी में विज्ञापित किया जाएगा।
दीपक करगेती के अनुसार उत्तराखण्ड शासन के कृषि अनुभाग द्वारा भी शासन के कार्मिक विभाग से परीक्षण कराने के उपरांत विज्ञप्ति रोस्टर में आरक्षण नियमों के उल्लंघन एवं संशोधन के सम्बंध में समय-समय पर विश्वविद्यालय से पत्राचार किए गए। लेकिन बावजूद इसके पूरा मामला विश्वविद्यालय के संबंधित अधिकारियों के संज्ञान में होने के बावजूद भी बदले गए रोस्टर के अनुसार अपनों को लाभ पहुंचाने के लिए साक्षात्कार प्रक्रिया गतिमान रखी गई।
विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति पर आरोप है कि उन्होंने पूर्व में विज्ञापित पद जिन विषयों के लिए आवंटित थे उन सबको बदल कर पूरी भर्ती प्रक्रिया को धुमिल कर दिया। पदों के विज्ञापन तक सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने हेतु विश्वविद्यालय के चार ऐसे सहायक प्राध्यापकों (डॉ.एस.पी. सती, डॉ. वी.पी. खण्डूडी, डॉ. अरविंद बिजल्वाण एवं डॉ. अमोल वशिष्ठ) को (जिन पर माननीय उच्च न्यायालय में उनकी अपनी भर्ती जो 2018 में हुई थी पर अभी भी जांच विचाराधीन है), उच्च एवं महत्वपूर्ण पदों पर बिठा दिया गया ताकि उन महत्वपूर्ण पदों के नाम का सहारा लेकर उनसे ही सभी अनियमितता कराई जा सके। ऐसे में जबकि इन चारों के अपने पद भी भविष्य में सुरक्षित रहेंगे या नहीं इसका फैसला भी उच्च न्यायालय से आना बाकी है।
विश्वविद्यालय में वर्तमान में शैक्षणिक पदों पर जो भर्तियां चल रही हैं उसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी. रेगुलेशन 2018) एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आई.सी.ए.आर.) के तय मानकों तक को भी पूरा नहीं किया गया। चौकाने वाली बात यह है कि गैर शैक्षणिक पदों के आवेदकों को सह प्राध्यापक के पद पर बुलाया गया था। यूजीसी रेगुलेशन 2018 के अनुसार साक्षात्कार के लिए बनाई जाने वाली कमेटी में सम्बंधित महाविद्यालय के अधिष्ठता और संबंधित विभाग के विभागाध्यक्ष को रखा जाना चाहिए था, लेकिन विश्वविद्यालय द्वारा ऐसा नहीं किया गया। अनुदान आयोग (यू.जी.सी. रेगुलेशन 2018) के अनुसार ये सभी चार लोग सह प्रध्यापक, प्राध्यापक पद के लिए योग्यता नहीं रखते हैं। प्राध्यापक पद के लिए कम से कम एक पीएचडी स्टूडेंट गाइड किया होना चाहिए जिस नियम को यह पूरा नहीं करते हैं।