देहरादून। उत्तराखण्ड प्रदेश के इतिहास में पहली बार प्रचंड बहुमत वाली त्रिवेन्द्र रावत सरकार के द्वारा खनन कारोबरियो को नदियों में चुगान के लिये जेसीबी और पोकलैण्ड मशीनो के उपयोग की इजाजत दी है। मजेदार बात यह है कि सरकार ने यह अनुमति कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के नाम पर दी है। जबकि पहले ही प्रदेश सरकार नदियों में तीन मीटर की गहराई तक चुगान करने का नया नियम लगाू कर चुकी है। अब सरकार के इस नये फैसले से राज्य की नदियों में जमकर चुगान के नाम पर खनन कर के दस फिट तक नदियों की गहराई में खनन होने की पूरी आंशका जातई जाने लगी है। इसस से पर्यावरण को भी भारी नुकसान होने की संभावना है साथ ही नदियों का परिस्थितिक तंत्र भी बिगड़ने की संभावनाये बढ़ गई है।
अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के द्वारा प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को और भूतत्व और खनिक कर्म इकाई निदेशक को पत्र संख्या 479\VII ,A -1\2020 -05(11)-2020 दिनांक 13 मई को जारी किया। जिसमें 100 हैक्टियर तक नदी के तल में चुगान के लिये हल्की मशीनो के उपयोग 15 जून 2020 तक किये जाने की अनुमति दी गई है। पत्र मे इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि कोरोना संक्रमण के चलते खनन श्रमिको की कमी होने से चुगान कार्य मशीनो के उपयोग द्वारा खनन किये जाने का प्रस्ताव शासन के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
इस पत्र के जारी होने के साथ ही अब प्रदेश में नदियों मे खनन और चुगान आदि के कार्य में प्रतिबंधित रही मशीनो जैसे जेसीबी और पोकलैण्ड आदी से खनन की अनुमति जारी हो गई है। यह राज्य के 20 वर्ष के इतिहास मे पहली बार देखने को मिल रहा है। हांलाकी शासनादेश में खनन ओर चुगान दोनो का ही उल्लेख किया गया है जबकि तकनीकी तौर पर उत्तराखण्ड में चुगान करने की ही अनुमति मिली हुई है लेकिन इसकी आड़ में जम कर खनन होता रहा है।
पूर्व में 30 जनवरी को कैबिनेैट की बैठक कर के प्रदेश सरकार ने खनन कारोबारियों के हित में राज्य की नदियों में ढेड़ मीटर तक की ही गहराई में अनुमान्य चुगान की नीति को बदल कर तीन मीटर यानी दस फिट कर दिया था। जबकि राज्य की खनन नीति के तकनीकी तौर पर यह हो ही नही सकता। क्यों कि चुगान दस फिट की गहराई में होने से वह चुगान की बजाये स्पष्ट तौर पर खनन ही माना जाता है। बावजूद इसके सरकार ने पूरे प्रदेश की नदियों में एक एकतरफ से खनन की अनुमति देकर नदियों को तबाह करने का निणर्य लागू कर दिया था।
अब जो कसर बची थी वह खनन में मशीनो के उपयोग करने की इजाजत देकर पूरी कर दी है। हांलाकी सरकार ने इस अनुमति को 15 जून 2020 तक को ही मान्य रखा है,लेकिन इन दो महिनो में नदियों में जो जम कर तीन मीटर गहराई तक का खनन होगा उससे कितना बड़ा पर्यावर्णीय क्षति होगी इसका आंकलन सरकार ने नहीें दिया है।
राज्य मे खनन विभाग मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के अधीन हैं एक तरह से मुख्यमंत्री ही खनन विभाग के विभागीय मंत्री है। और अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश के पास खनन विभाग भी है। बावजूद इसके न तो मुख्यमंत्री ने राज्य की नदियों में तीन मीटर तक गहराई में होने वाले चुगान को तकनीकी तौर पर समझने की जरूरत समझी और न ही अब मशीनो के द्वारा खनन से होने वाले बड़े नुकसान का ही आंकलन किया।
इस मामले मे राज्य सरकार की नीतियों पर ही सवाल खड़े होने लगे है। एक तरफ राज्य सरकार राज्य में श्रमिकों को रोजगार देने के बड़े दावे कर रही है खास तौर पर कोरोना संकट के दौरान राज्य में काम करने वाले बाहरी राज्यों के श्रमिको को राज्य में ही कई रोजगार देने का दबा कर रही है ते वही शाससनादेश मे यह भी उल्लेख कर रही है कि खनन कार्य मे श्रमिको की कमी के चलते खनन कार्य नही हो पा रहा है।
इससे यह साफ हो गया हे कि राज्य सरकार श्रमिको को खनन कार्य में भी रेाजगार देने में सफल नही हो पा रही है जबकि कारखानो की बजाय नदियों मे खनन के कार्य में सोशल डिशटैंडिंग का पालन आसानी से हो सकता है। इससे बाहरी राज्यों के श्रमिको को जो अपना रोजगार छिन जाने की बजह से राज्य से बाहर जाने को आतुर है उनको आसानी से खनन के कार्य में लगाया जा सकता है।
राज्य सरकार और खास तौेर पर खनन विभाग किस तरह से खनन करोबारियों के पक्ष में हमेशा से खड़ी रही है यह सरकार के अब तक के फैसलो और खनन नीति में बड़े बदलाव से सामने आ चुका है। सबसे पहले राज्य में चुगान के नाम पर हो रहे खनन को एक तरह से कानूनी जामा पहनाने के लिये तीन मीटर की गहराई को लागू किया फिर रिवर ट्रेनिग के नाम पर खनन की छूट को दो माह से बढ़ा कर चार माह तक कर दिया गया। इसके बाद अब कोरोना की आड़ में नदियों में चुगान के नाम पर जेसीबी मशीनो के उपयोग की छूट दे कर खनन करोबारियों को बहुत बड़ी राहत देने का काम भी कर दिया। इस से स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश की सरकार ओर शासन पूरी तरह से राज्य के खनन कारोबारियों के हित में ही काम कर रहा है।