[gtranslate]
Uttarakhand

संविदा पर स्वास्थ्य

जिस नैनीताल जिले ने नारायण दत्त तिवारी, कृष्ण चंद्र पंत, इंदिरा हृदयेश, वंशीधर भगत, यशपाल आर्य जैसे नेताओं को पहचान दी, वहां के लोग आज भी मामूली बीमारियों के इलाज को मोहताज हैं। सोचने वाली बात है कि जब राजकीय मेडिकल काॅलेज से जुड़ा अस्पताल ही सर्दी- जुमाक के इलाज तक सीमित रह जाए तो दूरस्थ इलाकों की स्वास्थ्य सेवाओं का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। अस्पतालों में चिकित्सा उपकरणों को चलाने वाला स्टाफ नहीं है या ये उपकरण वर्षों से खराब पड़े हैं। चिकित्सकों और स्टाफ की हर जगह भारी कमी है। जिले में डाॅक्टरों के 75 पद खाली हैं। जहां डाॅक्टर कार्यरत हैं, वहां भी कई संविदा और बाॅन्ड पर हैं। जिन अस्पतालों को पीपीपी मोड पर दिया गया उनकी हालात भी दयनीय है

राज्य गठन के 20 साल हो चुके हैं। ऐसे में विकास के नाम पर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सड़क जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की अनदेखी अब तक की सरकारों की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। खासकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारों की विफलता ये सोचने को बाध्य करती है कि ये सरकारों की प्राथमिकता की सूची में है भी या नहीं। और ये तब है जब स्वास्थ्य विभाग उन 40 से अधिक विभागों में से है जिनका दायित्व प्रदेश के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत पर है। उत्तराखण्ड की स्वास्थ्य सेवाओं को आइना दिखाती है नीति आयोग की रिपोर्ट। ‘स्वास्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ शीर्षक से जारी नीति आयोग की रिपोर्ट में राज्यों की ‘इन्क्रीमेंटल रैंकिंग पर गौर करें तो वर्ष 2016-17 में उत्तराखण्ड 21 राज्यों में 44.2 अंकों के साथ 17वें नंबर पर था, लेकिन 2017-18 में 5.02 अंकों की गिरावट के साथ 40.20 अंक लेकर 19वें स्थान पर खिसक गया। 23 अलग-अलग मानकों पर तैयार नीति आयोग की रिपोर्ट को राज्यों के लिए ‘स्वास्थ्य इंडेक्स’ माना गया है। उत्तराखण्ड से नीचे 20वें नंबर पर उत्तर प्रदेश और 21वें नंबर पर बिहार है। नीति आयोग जैसी संस्था द्वारा उत्तराखण्ड में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर किए इस आकलन एवं असफलताओं का प्रवाह पूरे उत्तराखण्ड की स्वास्थ्य सेवाओं पर परिलक्षित होता है। ये बदहाली ग्राम स्तर पर ही नहीं ब्लाॅक, तहसील, जिला हर स्तर पर साफ दिखाई देती है।

 राज्य का नैनीताल जिला बेशक वीआईपी जिला हो। हल्द्वानी शहर स्वयं के लिए ‘उत्तराखण्ड की आर्थिक राजधानी’, ‘कुमाऊं का प्रवेश द्वार जैसी उपमाओं से भले ही गर्व की अनुभूति करता हो, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली न वीआईपी जिला देखती है, न ही उपमाओं को। स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी, केसी पंत, वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं वर्तमान नेता विपक्ष डाॅ इंदिरा हृदयेश, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वंशीधर भगत, कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य जैसे नेताओं को पहचान दिलाने वाला नैनीताल जिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में खुद की पहचान ढूंढ़ रहा है। कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी से शुरू करें और सुदूर बेतालघाट, ओखलकांडा क्षेत्रों में जाएं तो स्वास्थ्य सेवाओं की हालत सब जगह कमोबेश एक-सी है। नैनीताल जिले की समग्र में बात करें तो चिकित्साधिकारियों के स्वीकृत 304 पदों के सापेक्ष नियमित डाॅक्टर 164 हैं, संविदा बाॅन्ड पर 43 और संविदा पर 22 डाॅक्टर कार्यरत हैं। इस प्रकार 304 के सापेक्ष 229 डाॅक्टर कार्यरत हैं और 75 पद खाली हैं। शुरुआत हल्द्वानी से करें तो कहने को यहां राजकीय मेडिकल काॅलेज, डाॅ सुशीला तिवारी स्मारक चिकित्सालय, सोबन सिंह जीना बेस चिकित्सालय और महिला चिकित्सालय हैं, लेकिन यहां की बेहाल स्वास्थ्य सेवाएं आम तबके की पूर्ति में अक्षम हैं। सुशीला तिवारी अस्पताल कुमाऊं की रीढ़ है। इस पर दबाव भी ज्यादा है। पूर्व में इसे ट्रस्ट से राज्य सरकार के अधीन लाने में वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विशेष रुचि दिखाई थी लेकिन राज्य सरकार के अधीन आ जाने के बाद इसकी बदहाली पर सरकार का ध्यान गया ही नहीं। हमेशा फैकल्टी की कमी से जूझने वाला राजकीय मेडिकल काॅलेज हल्द्वानी और विशेषज्ञ डाॅक्टरों की कमी से जूझता सुशीला तिवारी अस्पताल अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर ही नहीं पा रहे। चिकित्सालय के ही एक वरिष्ठ चिकित्सक का कहना है कि जिस ‘विजन’ के साथ इस अस्पताल की परिकल्पना की गई थी उस पर ये चिकित्सालय खरा उतरने में असफल रहा है। राजकीय मेडिकल काॅलेज से जुड़ा चिकित्सालय अगर सिर्फ सर्दी-जुकाम के इलाज तक सीमित रह जाए तो सवाल उठना लाजिमी है।

कोविडकाल के दौरान नेता प्रतिपक्ष डाॅ इंदिरा हृदयेश भी अस्पताल की अव्यवस्थाओं से रूबरू हुईं। कोविड से संक्रमित होने के बाद वो इसी अस्पताल में भर्ती हुई थी, लेकिन अग्रिम इलाज के लिए उन्हें देहरादून होते हुए मेदांता गुरुग्राम में इलाज के लिए जाना पड़ा। गंभीर बीमारियों से पीड़ित सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों के लोग अच्छे एवं सस्ते इलाज के लिए सुशीला तिवारी अस्पताल का रुख करते हैं लेकिन उन्हें यहां निराशा ही हाथ लगती है और अंत में निजी अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है। एक चिकित्सक कहते हैं यहां गरीबों को चैरिटी की आवश्यकता है लेकिन अस्पताल प्रबंधन की चैरिटी में सक्षम लोग शामिल होते हैं जो महंगा इलाज का खर्च वहन कर सकते हैं। कई चिकित्सकों एवं अधिकारियों के लिए तो ये चिकित्सालय अपने निजी हितों को साधने का साधन केंद्र है। उनकी अपनी निजी प्रैक्टिस और उनके अपने चिकित्सालयों के लिए मरीज यहीं से रेफर हो जाते हैं। बताया जाता है कि अस्पताल के अंदर के कई स्टाफकर्मी तो निजी अस्पतालों के एजेंट के रूप में कार्य करते हैं। ये एजेंट मरीजों को अस्पताल की कमियों एवं अव्यवस्थाओं का हवाला देते हुए उचित दाम पर निजी अस्पतालों में मरीज के इलाज का मशविरा देते खुलेआम देखे जा सक ते हैं। हालांकि कोविडकाल में सुशीला तिवारी अस्पताल एवं उसके स्टाफ की भूमिका सराहनीय रही।

सोबन सिंह जीना बेस चिकित्सालय पर हल्द्वानी और हल्द्वानी के आस-पास की एक बड़ी आबादी आश्रित है लेकिन यहां चिकित्सकों के 49 पदों के सापेक्ष 20 चिकित्सक कार्यरत हैं। 29 पद रिक्त हैं बाॅन्डधारी एक तथा
संविदा पर दो चिकित्सक कार्यरत हैं। मरीजों के भारी दबाव वाले इस अस्पताल में फिजीशियन के तीन पद स्वीकृत हैं जिसमें से 2 पद खाली हैं। शल्य चिकित्सक के तीन पद स्वीकृत हैं। जिसमें एक पद पर ही चिकित्सक कार्यरत हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ के चार पद स्वीकृत हैं और चारों ही खाली हैं। यही हाल कमोबेश महिला चिकित्सालय का है। जहां स्वीकृत 29 पदों के सापेक्ष 13 चिकित्सक कार्यरत हैं।

बाॅन्डधारी तथा संविदा पर 3 चिकित्सक कार्यरत हैं। सोबन सिंह जीना बेस चिकित्सालय के प्रति सरकार की
संवेदनशीलता का पता इसके हृदयरोग केंद्र की स्थिति से चलता है। हृदयरोग केंद्र की चार बेड़ों की यूनिट आजकल एक स्टाफ नर्स एवं परिचारक के भरोसे है। पूर्व तैनात हृदय रोग विशेषज्ञ की मृत्यु के बाद सरकारों ने इसकी सुध लेने तक का प्रयास नहीं किया। पिछले पांच सालों से ये चिकित्सकविहीन है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की सेवा लेने का दावा करने वाली सरकार यहां के लिए एक हृदय रोग विशेषज्ञ चिकित्सक तक उपलब्ध नहीं करा पाई।

नैनीताल जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वीकृत पदों के सापेक्ष कार्यरत चिकित्सकों की संख्या लगभग हर जगह कम है। यहां पर संविदा/ बाॅन्डधारी चिकित्सकों की सहायता ली जा रही है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बजून एक दन्त शल्य चिकित्सक के भरोसे चल रहा है। प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जहां चिकित्सक हैं भी वहां चिकित्सकों के मनमाने समयानुसार अस्पताल संचालित हो रहे हैं। लालकुआं से पिछले तीन वर्षों से एक्सरे मशीन खराब है जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बेतालघाट में एक्स-रे मशीन अपनी कम गुणवत्ता के चलते अपेक्षित लाभ नहीं दे पा रही है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोटाबाग में अल्ट्रासाउंड की मशीन तो है मगर सप्ताह में एक बार रेडियोलोजिस्ट व्यवस्था में यहां आते हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की जो सुनहरी तस्वीर सरकार की वेबसाइट दिखाती है धरातल पर हकीकत उससे बिल्कुल जुदा है।

सरकारें अपने उत्तरदायित्व से कैसे विमुख होती जा रही हैं उसका प्रत्यक्ष उदाहरण रामनगर का संयुक्त चिकित्सालय है। पीपीपी मोड़ में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गरमपानी के कड़वे अनुभव के बाद भी रामनगर के चिकित्सालय को पीपीपी मोड में देने का फैसला लोगों के गले उतर नहीं पा रहा है। पीपीपी मोड़ शनैः शनैः चिकित्सा को भी निजी क्षेत्र की ओर धकेलने का प्रारंभिक चरण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही कहें कि सरकारों का काम व्यापार करना नहीं है, लेकिन सरकारें स्वास्थ्य सेवा जैसे सामाजिक दायित्वों को लाभ हानि की दृष्टि से नहीं देख सकती।

नैनीताल की स्वास्थ व्यवस्था अधिकांश जगह सिर्फ एमबीबीएस डिग्रीधारियों के भरोसे है। कुछ क्षेत्र में छोड़ दें तो हर जगह विशेषज्ञ चिकित्सकों का नितांत अभाव है। सरकारी अधिकारी एवं चिकित्सक स्वीकार करते हैं कि विशेषज्ञ चिकित्सकों के अभाव में स्वास्थ्य सेवा पटरी से उतरी है। रेडियोलाॅजिस्ट जैसे विशेषज्ञों का अभाव पूरे प्रदेश में है। हृदयरोग विशेषज्ञ की सेवाएं भी सरकारी अस्पतालों में न के बराबर हैं। सवाल उठता है कि सरकारें सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को कमजोर कर सरकारी अस्पतालों की कीमत पर निजी अस्पतालों को तो बढ़ावा नहीं दे रही? अव्यवस्थाओं और स्वास्थ्य सेवाओं में कमियों के लिए डाॅक्टर्स या अस्पताल के अन्य कर्मचारियों पर दोष नहीं मढ़ा जा सकता क्योंकि वे सीमित संसाधनों में अपनी जिम्मेदारियों का वहन कर ही रहे हैं। 2019-2020 के बजट में सरकार ने 22000 करोड़ का प्रावधान किया था जो 2020-21 में 2 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2427 ़ 71 करोड हो गया जो बजट का 4 ़8 प्रतिशत था। पैसों की कमी का रोना रोने वाली सरकार ने शराब पेट्रोल एवं डीजल पर स्वास्थ्य सेवा कर लगाकर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए धन जुटाने का प्रयास किया। सरकारें योजनाएं कितनी ही बना लें, लेकिन जब तक उनको धरातल पर उतारने की इच्छा शक्ति सरकारों में नहीं होगी तब तक स्वास्थ्य सेवाएं भी भगवान भरोसे ही रहेंगी। उत्तराखण्ड जैसे राज्य में जहां अधिकांश आबादी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर ही निर्भर है, सरकारें सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती।

बात अपनी-अपनी

सरकार लोगों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने को प्रतिबद्ध हैं। डाॅक्टर्स की कमी को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। मैंने स्वयं की सांसद निधि से अस्पतालों में सहयोग किया है।
अजय भट्ट, सांसद नैनीताल

नैनीताल जिला ही क्यों, पूरे उत्तराखण्ड में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। सरकारी अस्पतालों ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है। सुदूर क्षेत्रों में डाॅक्टर अक्सर गायब रहते हैं। महीनों तक चिकित्सक गायब रहते हैं। चिकित्सक होते हुए भी कई जगह फार्मासिस्ट अस्पताल चला रहे हैं। सुशीला तिवारी अस्पताल को खत्म करने की साजिश हो रही है। यहां निजी अस्पतालों के एजेंट बैठे हैं जिनका काम गरीब मरीजों को निजी चिकित्सालयों की ओर ढकेल कर लूटना है। इसीलिए हम मांग कर रहे हैं कि सुशीला तिवारी अस्पताल को एम्स का दर्जा दिया जाए।
मोहन पाठक, कांग्रेस नेता

अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं के दावे खोखले हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं भगवान भरोसे हैं। बेतालघाट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक्सरे मशीन ठीक काम नहीं करती। अस्पताल भी डाॅक्टरों की सुविधानुसार खुलते हैं।
धीरज जोशी, भाजपा नेता

वनभूलपुरा जहां की आबादी लगभग डेढ़ लाख है, वहां एक सिर्फ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है जो कि परचून की दुकान की तरह खुलता है। कोरोनाकाल के दौरान वनभूलपुरा की बड़ी आबादी ने स्वास्थ्य की समस्याओं को आपदा की तरह झेला है। उस दौरान एक पूर्ण अस्पताल की जरूरत को यहां के लोगों ने महसूस किया। उस दौरान महिलाओं के प्रसव भी घर में ही कराने पड़े। हम यहां सुविधाओं से लैस एक चिकित्सालय की मांग लंबे समयसे कर रहे हैं, लेकिन न सरकार सुनती है न ही जनप्रतिनिध।
उवैस राजा, अध्यक्ष वनभूलपुरा संघर्ष समिति हल्द्वानी

You may also like

MERA DDDD DDD DD
bacan4d toto
bacan4d toto
slot demo
slot gacor
Toto Slot
Bacan4d Login
Bacan4d Login
slot gacor
bacan4drtp
bacan4drtp
situs bacan4d
Bacan4d
slot dana
slot bacan4d
slot maxwin
bacan4d togel
bacan4d login
bacan4d login
bacantoto 4d
slot gacor
bacansport
slot toto
bacan4d
bacansport
bacansport
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot77 gacor
JAVHD
Bacan4d Login
Bacan4d toto
Bacan4d
Bacansports
bacansports
Slot Dana
situs toto
bacansports
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot gacor
bacan4d
bacan4d
bacansport
bacansport
gacor slot
slot gacor777
slot gacor bacan4d
bacan4d
toto gacor
bacan4d
bacansports login
slot maxwin
slot dana
slot gacor
slot dana
slot gacor
bacansports
bacansport
bacansport
bacansport
bawan4d
bacansports
bacansport
slot gacor
slot gacor
toto slot
judi bola
slot maxwin
slot maxwin
bacansport
bacan4d
bacan4d slot toto casino slot slot gacor