उत्तराखण्ड के आम चुनाव में पहली बार यह देखने को मिल रहा है कि यहां राजनेताओं की आपसी उठा-पटक की सुर्खियां तो है लेकिन आम जनमानस के मुद्दे कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं। 2017 में जिस तरह मोदी लहर पर सवार भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी वह भी इस बार नहीं दिखाई दे रही है। मतलब साफ है कि यहां न मोदी है, न मुद्दा है। राज्य में इस बार साइलेंट वोटरों की संख्या पहले से ज्यादा नजर आ रही है। मतदाताओं की चुप्पी अक्सर सत्ता के खिलाफ सामने आती रही है। वैसे भी इस बार चुनाव में भाजपा एंटी इन्कमबेंसी से जूझती नजर आ रही है। इस इलेक्शन में परसेप्शन सच्चाई पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। समर्थक अपने-अपने प्रत्याशियों के हवाई पुलिंदा बांध रहे हैं तो जमीनी हकीकत कुछ और ही दिखाई दे रही है
अल्मोड़ा में कांटे की टक्कर
अल्मोड़ा में इस बार भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर है। कहा जा रहा है कि अगर भाजपा पूर्व विधायक रघुराज चौहान को टिकट देती तो कांग्रेस प्रत्याशी मनोज तिवारी की एकतरफा जीत तय थी। लेकिन भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक कैलाश शर्मा के मैदान में आने से कांग्रेस प्रत्याशी को कड़ी टक्कर मिल गई है। कैलाश शर्मा वर्ष 2007 में अल्मोड़ा के विधायक बने थे। उसके बाद 2012 में भाजपा ने उनका टिकट काटकर रघुराज चौहान को दे दिया था। तब कैलाश शर्मा ने भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में कैलाश शर्मा को 6500 वोट मिले थे। तब भाजपा में कैलाश शर्मा की बगावत ने पार्टी के प्रत्याशी रघुराज चौहान की हार का रास्ता बना दिया था। 2017 में मोदी लहर के चलते रघुराज चौहान विधायक बने थे। इस बार भाजपा ने उनका टिकट काटकर कैलाश शर्मा को दिया तो वह बगावत पर उतर आए। साथ में ललित लटवाल को भी अपने साथ ले आए थे। लेकिन भाजपा ने दोनों को मना लिया है। कांग्रेस में भी मनोज तिवारी का टिकट तय हो जाने के बाद बिट्टू कर्नाटक बगावत की राह चल दिए थे।
बिट्टू ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। लेकिन बाद में उन्हें भी पार्टी नेताओं द्वारा मना लिया गया। सुनने में आ रहा है कि भाजपा के असंतुष्ट नेता कैलाश शर्मा के फिर से विधानसभा पहुंचने में बाधा खड़ी कर सकते हैं। यहां कांग्रेस के बजाय भाजपा में भीतरघात की आशंका ज्यादा दिखाई दे रही है। फिलहाल, भाजपा द्वारा अल्मोड़ा में मनोज तिवारी को बाहरी बनाकर मुद्दा बनाया जा रहा है। स्थानीय निवासी रवि बिष्ट कहते हैं कि ‘मनोज तिवारी तराई से अल्मोड़ा पढ़ने आए थे और बाद में अल्मोड़ा में ही राजनीति में हाथ आजमाने लगे। जबकि कैलाश शर्मा हमारे लोकल नेता हैं।’
जागेश्वर में फिर कुंजवाल की गूंज
जागेश्वर विधानसभा में इस बार गोविंद सिंह कुंजवाल का सामना कभी उनके चुनावी मैनेजमेंट देखने वाले मोहन सिंह मेहरा से हो रहा है। जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके मोहन सिंह मेहरा पहले कांग्रेस में थे और कुंजवाल को चुनाव जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे। लेकिन गत पंचायत चुनाव में कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य के इशारे पर मोहन सिंह मेहरा कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। तब मोहन सिंह मेहरा को भाजपा में शामिल कराने के पीछे असली मंशा जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट अपने खाते में करने का प्रयास करना था। लेकिन मेहरा के भाजपा में आने के बाद भी जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट पर द्वाराहाट के पूर्व विधायक मदन बिष्ट की पत्नी उमा बिष्ट का कब्जा हो गया। जागेश्वर से भाजपा के सुभाष पांडे पूर्व में 2017 का विधानसभा चुनाव लड़े थे। वह महज 399 वोटों से हारे थे। इस बार भी उनकी मजबूत दावेदारी थी। लेकिन भाजपा ने अंतिम समय में सुभाष पांडे को दावेदारी से दूर कर मोहन सिंह मेहरा को पार्टी प्रत्याशी बना दिया। इसके पीछे भाजपा की सोच यह है कि मदन सिंह मेहरा को भाजपा का वोट तो मिलेगा ही साथ में वह कांग्रेस का वोट भी अपनी तरफ खींच लेंगे। हालांकि कुंजवाल के खेमे से कांग्रेस में सेंध लगाना मेहरा के लिए इतना आसान भी नहीं है। जागेश्वर विधानसभा क्षेत्र में तीन प्रमुख क्षेत्र पड़ते हैं। जिनमें धौलादेवी और जागेश्वर में मोहन सिंह मेहरा की कांग्रेस के कार्यकाल से ही अच्छी पकड़ बताई जा रही है। जबकि लमगड़ा क्षेत्र में कुंजवाल मजबूत है। काफली खान से भनौली तक का इलाका भी कांग्रेसी गढ़ कहा जाता है। जिसमें भाजपा को उम्मीद है कि इस गढ़ में मोहन सिंह मेहरा कांग्रेसी वोटों में सेंध लगा सकते हैं।
हालांकि गोविंद सिंह कुंजवाल के चुनावी मैनेजमेंट को देखें तो मोहन सिंह मेहरा कमजोर पड़ते दिखाई दे रहे हैं। जागेश्वर के पूर्व प्रधान मनमोहन भट्ट की माने तो अगर भाजपा से सुभाष पांडे को टिकट मिलता तो वह कुंजवाल को टक्कर दे सकते थे। क्योंकि पिछले 10 साल से सुभाष पांडे क्षेत्र में जा रहे थे और भाजपा को मजबूत कर रहे थे। लेकिन भाजपा ने जब से उनका टिकट काटा है तब से उनके समर्थक न केवल मायूस है बल्कि सुभाष पांडे के प्रति सहानुभूति अपनाते हुए भाजपा से दूर होते हुए दिखाई दे रहे हैं।
चंपावत भाजपा में चौतरफा भीतरघात
चंपावत में इस बार चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय बनता दिखाई दे रहा है। यहां भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी मदन सिंह मेहर लगातार मजबूत होते दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा ने 2017 में जो प्रत्याशी उतारे थे वही एक बार फिर रिपीट किए हैं। भाजपा के विधायक कैलाश गहतोड़ी और कांग्रेस के पूर्व विधायक हेमेश खर्कवाल का मुकाबला रोचक होता दिखाई दे रहा है। भाजपा के विधायक कैलाश गहतोड़ी के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने क्षेत्र में गरीब लड़कियों की शादी कराने और गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले बच्चों की पढ़ाई करने के लिए आर्थिक मदद की थी। जिसमें इससे जुड़े करीब तीन से चार हजार वोटर उनके साथ दिखाई दे रहा है। भाजपा में भीतरघात की संभावना ज्यादा दिख रही है। वर्ष 2002 और 2012 में विधायक रह चुके हेमेश खर्कवाल पर कांग्रेस ने पांचवीं बार दांव लगाया है। इससे कांग्रेस के स्थानीय नेता नाराज हैं। उनका कहना है कि पिछले 2 दशक से अधिक समय तक वह चुनाव लड़ने की अभिलाषा पाले हुए थे। लेकिन इस बार एक बार फिर कांग्रेस ने हेमेश को ही टिकट देकर उनका चुनाव लड़ने का सपना तोड़ दिया। कैलाश गहतोड़ी के बारे में कहा जाता है कि 5 साल पहले जिन भाजपा के नेताओं ने उन्हें चुनाव लड़ाकर विधानसभा भेजा था वह अब उनके साथ मन से नहीं है। इसके पीछे का कारण बताया जा रहा है कि गहतोड़ी ने हर उस भाजपा नेता को ठिकाने लगाने का काम किया है जो आगे बढ़ने की कोशिश में था। इनमें पहले नंबर पर गोविंद सावंत है। गोविंद सावंत पूर्व में जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं और वह पिछले दिनों ब्लाक प्रमुख का चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे थे। लेकिन गहतोड़ी के राजनीतिक हथकंडे़ से गोविंद सावंत को क्षेत्र पंचायत सदस्य में ही करारी हार का सामना करना पड़ा और उनका ब्लॉक प्रमुख बनने का सपना पूरा न हो सका। इसी तरह प्रकाश तिवारी भी है। जिनको चंपावत नगर पालिका से चेयरमैन का टिकट नहीं होने दिया गया तो बीजेपी के जिला अध्यक्ष दीप पाठक भी है जो टनकपुर से नगरपालिका का चेयरमैन का चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन गहतोड़ी पर आरोप है कि उन्होंने प्रकाश तिवारी की तरह ही दीप पाठक को भी ठिकाने लगा दिया। इसी तरह भाजपा के नेता सुभाष बघौली और शंकर पांडे भी गहतोड़ी की राजनीति का शिकार हुए। यह सभी वही नेता है जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में गहतोड़ी के लिए दिन रात एक कर दिए थे। कहां जा रहा है कि भाजपा प्रत्याशी कैलाश गहतोड़ी के सामने 2012 की स्थिति आ सकती है। 2012 में भाजपा की हेमा जोशी चुनाव लड़ी थी। लेकिन वह भीतरघात का शिकार होकर हेमेश खर्कवाल के सामने चुनाव हार गई थी। इस बार मदन सिंह महर के आप के टिकट पर मजबूती से चुनाव लड़ने के कारण चंपावत में मामला त्रिकोणीय हो गया है।
हालांकि यहां कांग्रेस के प्रत्याशी हेमेश खर्कवाल की स्थिति दिनों दिन मजबूत होती दिखाई दे रही है। लोग खर्कवाल के कार्यकाल में हुए विकास कार्य को भी याद कर रहे हैं। राजेंद्र माहराना कहते हैं कि हेमेश खर्कवाल ने शिक्षा के क्षेत्र में जो अभूतपूर्व काम किया वह भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी नहीं कर पाए। वह कहते हैं कि गहतोड़ी भाजपा के सिर्फ फंडिंग लीडर बनकर रह गए हैं। वह विधानसभा चुनाव में लोहाघाट के पार्टी प्रत्याशी पूरन फर्त्याल के साथ ही पड़ोसी सीट खटीमा के पुष्कर सिंह धामी को फंडिंग कर रहे हैं। जिसके आधार पर ही उनका टिकट भाजपा ने किया है।
लोहाघाट में खुशाल का जलवा
2017 के विधानसभा चुनाव में लोहाघाट सीट पर महज 800 वोटों से चुनाव हारे कांग्रेस प्रत्याशी खुशाल सिंह अधिकारी इस बार भाजपा प्रत्याशी पूरन सिंह फर्त्याल पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं। इसका कारण कांग्रेस के प्रशांत वर्मा का खुशाल के साथ आ जाना है। प्रशांत वर्मा कांग्रेस से टिकट के प्रबल दावेदार थे। वह पिछले 5 सालों से लोहाघाट क्षेत्र में जनता के बीच जा रहे थे। लेकिन कांग्रेस ने प्रशांत की बजाए खुशाल सिंह अधिकारी पर दांव लगाया है। इससे प्रशांत वर्मा नाराज हो गए थे। लेकिन जल्दी ही कांग्रेस ने उन्हें मना कर खुशाल के पाले में ला खड़ा किया है। वहीं दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी पूरन फर्त्याल के लिए उन्हीं की पार्टी के जिला अध्यक्ष रहे हिमेश कलखुड़िया परेशानी का सबब बन गए हैं। हिमेश कलखुड़िया ने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव ताल ठोंक दी है। जबकि यहां से आम आदमी के पार्टी के राजेश बिष्ट भी चुनावी मैदान में हैं। पूर्व में जौलजीबी-टनकपुर हाइवे के निर्माण को लेकर भाजपा के विधायक पूरन फर्त्याल अपने ही पार्टी के खिलाफ हो गए थे। जौलजीबी-टनकपुर का निर्माण का ठेका खुशाल अधिकारी को दिया गया था। तब पूरन फर्त्याल ने अपनी ही पार्टी पर कांग्रेस नेता को शह देने के आरोप लगाए थे। इसके चलते भाजपा ने पूरन फर्त्याल पर कारण बताओ नोटिस तक दिया था। लोहाघाट की राजनीति का पाटी ब्लॉक महत्वपूर्ण कड़ी है। अकेले पाटी ब्लॉक में ही 40 प्रतिशत मतदाता है। आम आदमी पार्टी के राजेश बिष्ट और भाजपा के बागी उम्मीदवार कलखुडिया इसी क्षेत्र से हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा और कांग्रेस का जो भी प्रत्याशी पाटी ब्लॉक में मजबूती से चुनाव लड़ जाएगा जीत उसी की तय हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि पूर्व राज्यसभा सांसद और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे महेंद्र सिंह माहरा इस बार अपने विधानसभा क्षेत्र लोहाघाट की बजाए चंपावत से टिकट मांग रहे थे। लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। महेंद्र सिंह माहरा का लोहाघाट विधानसभा क्षेत्र में भी खासा राजनीतिक वर्चस्व है। लोहाघाट से ही वह पूर्व में विधायक रह चुके हैं। वह खुशाल सिंह अधिकारी के समर्थक नहीं बताए जा रहे हैं। हालांकि महेंद्र सिंह माहरा अधिकारी का विरोध भी नहीं कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के इशारे पर वह अंडर ग्राउंड हो गए हैं। हालांकि चर्चाओं का दौर महेंद्र सिंह माहरा की चुप्पी को लेकर है कि उनकी चुप्पी क्या राजनीतिक गुल खिलाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा।
कपकोट में मुकाबला कांटे का
कपकोट में इस बार भाजपा ने पूर्व कैबिनेट मंत्री बलवंत सिंह भौर्याल का टिकट काटकर भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी रहे सुरेश गढ़िया को दिया है। सुरेश गढ़िया मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के भी प्रिय हैं। भाजपा से टिकट न मिलने पर पूर्व विधायक रहे शेर सिंह गढ़िया चुनाव लड़ने की ताल ठोंक बैठे थे। लेकिन 29 जनवरी के दिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कपकोट पहुंचकर शेर सिंह गढ़िया को मना लिया।
29 जनवरी से पहले तक कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व विधायक ललित फर्सवाण की स्थिति अच्छी आंकी जा रही थी। लेकिन शेर सिंह गढ़िया के सरेंडर करने के साथ ही ललित फर्सवाण के लिए जीत की राह आसान नहीं रही।
फर्सवाण के लिए उनकी ही पार्टी के कई नेता मुश्किल खड़ी करते दिख रहे हैं। इनमें प्रताप कठायत पहले नंबर पर हैं। पूर्व जयेष्ठ प्रमुख रहे कठायत वर्ष 2012 में कपकोट से कांग्रेस के प्रबल दावेदार थे। लेकिन तब कांग्रेस ने गरुड़ निवासी ललित फर्सवाण को टिकट दे दिया। इस बार फिर कठायत मजबूत दावेदारी कर रहे थे। लेकिन कांग्रेस ने एक बार फिर फर्सवाण पर दाव लगा दिया। बहरहाल, प्रताप कठायत ने कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन कर ली है। यह कांग्रेस को बड़ा झटका है। इसी के साथ ही कांग्रेस को दूसरा बड़ा झटका दिनेश गढ़िया के रूप में सामने आया है। दिनेश गढ़िया रीमा ब्लॉक के पार्टी अध्यक्ष थे। वह भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए हैं। ललित फर्सवाण का व्यवहार कुशल होना और सीधे लोगों तक पहुंच होना उनका प्लस प्वाइंट बना हुआ है।
जबकि भाजपा प्रत्याशी सुरेश गढ़िया जनता के बीच रहने की बजाए पार्टी संगठन में सक्रिय रहे हैं। क्षेत्र में खनन एक मुख्य व्यवसाय है। खड़िया खनन लॉबी का झुकाव भाजपा की तरफ दिखाई दे रहा है। खनन लॉबी कपकोट विधानसभा को
आर्थिक के साथ ही वोटों के रूप से प्रभावित करती है। कहा भी जाता है कि खड़िया खनन लॉबी जिसके साथ होती है वह चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करता है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है।
यहां भूपेश उपाध्याय आम आदमी पार्टी के टिकट पर जनता के बीच हैं। भूपेश उपाध्याय 2017 में भी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। भूपेश उपाध्याय 2017 में भाजपा के टिकट पर दावेदार थे। लेकिन पार्टी ने उनको टिकट न देकर बलवंत सिंह भोर्याल को अपना प्रत्याशी बनाया था। तब भूपेश उपाध्याय भाजपा छोड़ बसपा में शामिल हो गए थे। बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर भूपेश उपाध्याय 7000 वोट पा गए थे। इस बार के चुनाव में कहा जा रहा है कि भूपेश उपाध्याय 7000 से अधिक वोट लेकर आएंगे। इसका कारण यह है कि पिछले 5 साल से भूपेश उपाध्याय जनता के बीच डोर टू डोर जा रहे हैं। हालांकि कहा यह जा रहा है कि भूपेश उपाध्याय को जो वोट जाएंगे वह ज्यादातर भाजपा का होगा। लेकिन भाजपा के साथ ही कांग्रेस की भी वोट भूपेश उपाध्याय अपनी ओर आकर्षित करते दिखाई दे रहे हैं। भूपेश उपाध्याय की मजबूत स्थिति ने मुकाबले को त्रिकोणीय स्थिति में ला दिया है।
बागेश्वर में चंदनराम को बढ़त
बागेश्वर में जिस तरह से हालात बन रहे हैं उससे लगता है कि भाजपा प्रत्याशी चंदन राम दास चौका लगा सकते हैं। पिछले 3 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बागेश्वर में चंदन राम दास के प्रति इस बार एंटी इन्कमबैंसी थी। इससे लग रहा था कि वह इस बार मुकाबला में वह मात खा सकते हैं। लेकिन कांग्रेस की आपसी फूट में चंदन राम दास का चेहरा खिला हुआ है। कांग्रेस ने यहां से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के निजी सचिव रहे रंजीत दास को टिकट दिया है। जिसका कांग्रेस के नेताओं ने ही विरोध किया। पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ चुके बाल कृष्ण ने बगावत कर दी। बाल कृष्ण पिछले विधानसभा चुनाव में 20 हजार के लगभग वोट ले आए थे। वह इस बार निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर कर कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ रहे हैं।
कांग्रेस के ही सज्जन लाल टम्टा टिकट न मिलने पर पार्टी से नाराज हो तीन दिन पहले ही भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं। इसके साथ ही भैरवनाथ भी कांग्रेस के बागी उम्मीदवार है। भैरवनाथ को 6 माह पहले ही राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा कांग्रेस में लेकर आए थे। प्रदीप टम्टा, भैरव नाथ के लिए बागेश्वर से टिकट की पैरवी कर रहे थे। लेकिन रंजीत दास के सामने उनके पसंदीदा नेता की नहीं चली। बहरहाल, भैरवनाथ कांग्रेस से बगावत कर आजाद उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरकर भाजपा को फायदा पहुंचाते हुए दिख रहें हैं। कांग्रेस के दो बागी उम्मीदवारों के चुनावी मैदान में उतर जाने के बाद चंदन रामदास की चुनावी राह बेहद आसान नजर आने लगी है। आम आदमी पार्टी ने यहां से पार्टी के महासचिव बसंत कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया है। ताजा हालातों को देखें तो बसंत कुमार चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की और बढ़ते नजर आ रहे हैं।
द्वाराहाट में मदन बिष्ट आगे
द्वाराहाट में इस बार मामला त्रिकोणीय दिखाई दे रहा है। सबसे मजबूत स्थिति में पूर्व विधायक मदन सिंह बिष्ट बताए जा रहे हैं। भाजपा के उम्मीदवार अनिल साही मदन सिंह बिष्ट के मुकाबले राजनीतिक परिपक्वता के मामले में कमजोर दिखाई देते हैं। लोगों की माने तो भाजपा के मुकाबले इस बार कांग्रेस प्रत्याशी का चुनावी मैनेजमेंट दमदार है। भाजपा और कांग्रेस के साथ ही मुकाबले में उत्तराखण्ड क्रांति दल के प्रत्याशी पुष्पेश त्रिपाठी भी पीछे नहीं हैं। यहां से यूकेडी के पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी को इस बार दो ठाकुरों के बीच एक ब्राह्मण होने का फायदा मिल रहा है। यही नहीं बल्कि कुमाऊं में अगर यूकेडी कहीं मजबूती से चुनाव लड़ती दिखाई दे रही है तो वह द्वाराहाट है। भाजपा के पूर्व विधायक महेश नेगी का सेक्स स्कैंडल में नाम आने के बाद टिकट कट गया था। हालांकि कुछ दिनों पूर्व ही उत्तराखण्ड पुलिस ने नेगी को क्लीन चिट दे दी थी। तब उम्मीद जताई जा रही थी कि भाजपा उनको दोबारा से प्रत्याशी बना सकती है। लेकिन इसी बीच द्वाराहाट में महेश नेगी के खिलाफ पोस्टर लगने के बाद भाजपा को लगने लगा था कि सेक्स स्कैंडल के इस मामले को कांग्रेस पूरे प्रदेश में चुनावी मुद्दा बना सकती है। इसके चलते ही महेश नेगी का टिकट काटा गया। फिलहाल, भाजपा प्रत्याशी के सामने निर्दलीय दावेदारी करने वाले पार्टी के नेता ब्लॉक प्रमुख पति कैलाश भट्ट अपना नामांकन वापस ले चुके हैं। इससे भाजपा प्रत्याशी अनिल साही को राहत मिलती दिखाई दे रही है। भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी दोनों ही बग्वालीपोखर के हैं।
बग्वालीपोखर के मतदाता इस बार मदन सिंह बिष्ट और अनिल शाही के बीच बंटते हुए दिखाई दे रहे हैं जबकि द्वाराहाट शहर में यूकेडी प्रत्याशी पुष्पेश त्रिपाठी की स्थिति मजबूत दिख रही है। बात मासी और चौखुटिया की करें तो यहां कांग्रेस का मतदाता ज्यादा दिखाई दे रहा है। चौखुटिया की पूर्व ब्लॉक प्रमुख मीना कांडपाल और उनके पति पप्पू कांडपाल भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। इसका भी फायदा मदन सिंह बिष्ट को मिलता दिखाई दे रहा है।
द्वाराहाट में चर्चा है कि भाजपा प्रत्याशी अनिल साही द्वारा पूर्व में जिला पंचायत का चुनाव न लड़ने के पीछे क्या कारण थे। लोग इसको लेकर तरह-तरह की बात कर रहे हैं। हालांकि तब जिला पंचायत का चुनाव न लड़ने का कारण अनिल साही द्वारा वोटर लिस्ट में नाम न होना बताया गया था। द्वाराहाट के पूर्व विधायक महेश नेगी फिलहाल दिल्ली में है। वह अपनी बीमार पत्नी का इलाज करा रहे हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि भाजपा प्रत्याशी अनिल साही और पूर्व विधायक महेश नेगी में 36 का आंकड़ा रहा है।
रानीखेत में मुरझाया-सा कमल
रानीखेत विधानसभा सीट कभी पूर्व विधायक और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे तथा वर्तमान में नैनीताल के सांसद अजय भट्ट की सीट कही जाती थी। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के ही नेता प्रमोद नैनवाल द्वारा टिकट न मिलने पर बगावत कर चुनाव लड़ने की वजह से भट्ट विधानसभा नहीं पहुंच पाए। कहा जाता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में अगर भट्ट रानीखेत से चुनाव जीत जाते तो उनका सीएम बनने का सपना भी पूरा हो जाता। लेकिन इस सपने को धराशाही करने वाले प्रमोद नैनवाल ने भाजपा से टिकट लेकर सबको चौंका दिया है। अजय भट्ट पहले से ही प्रमोद नैनवाल का विरोध करते रहे हैं। वह नहीं चाहते थे कि नैनवाल का टिकट रानीखेत से हो। इसके बावजूद भी टिकट नैनवाल का होना भट्ट को चुनौती देना कहा जा रहा है।
ऐसे में रानीखेत विधानसभा के भाजपाई दो गुटों में विभाजित दिखाई दे रहें हैं। एक प्रमोद नैनवाल का तो दूसरा अजय भट्ट का गुट है। अजय भट्ट का गुट फिलहाल नैनवाल के साथ दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी करण माहरा की स्थिति मजबूत बनती दिखाई दे रही है। भाजपा की अपेक्षा कांग्रेस में गुटबाजी भी नहीं है। इसका फायदा भी महारा को मिल रहा है। महारा का प्लस प्वाइंट यह भी है कि उनसे नाराज होकर आम आदमी पार्टी में गए अतुल जोशी भी उनके साथ वापस आ गए हैं। इसी के साथ ही भाजपा के कई असंतुष्ट नेता उनके संपर्क में बताए जा रहे हैं। भाजपा के यह असंतुष्ट नेता किसी भी कीमत पर नैनवाल का रानीखेत विधानसभा सीट पर कब्जा नहीं देखना चाहते हैं।
हालांकि भाजपा से ही एक असंतुष्ट नेता दीपक करगेती ने निर्दलीय टिकट भर दिया है। जबकि आम आदमी पार्टी ने भिकियासैंण के नंदन सिंह बिष्ट को टिकट दिया है। लोगों की मानें तो नैनवाल रानीखेत और ताड़ीखेत ब्लॉक में कमजोर तो भतरोज खान और भिकियासैंण में मजबूत स्थिति में हैं। फिलहाल भाजपा प्रत्याशी क्षेत्रवाद के सहारे भी चुनावी नैया पार लगाना चाहते हैं। वह भतरोजखान और भिकियासैंण के बेटे को चुनाव जिताने का नारा देकर इस क्षेत्र के मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर रहे हैं। यही नहीं बल्कि प्रमोद नैनवाल के समर्थक ब्राह्मणवाद का मुद्दा भी बनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं। ब्राह्मणवाद के जरिए प्रमोद नैनवाल के लिए वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जा रही है। नैनवाल की बनिस्पत सीटिंग विधायक करण माहरा की साफ-सुथरी छवि और किसी भी प्रकार के विवादों से दूर रहने वाले नेता की है।
रणजीत के लिए आसान नहीं सल्ट
सल्ट में पिछले 15 सालों से कांग्रेस वनवास झेल रही थी। इस बार रणजीत रावत के मैदान में आने से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल दिख रहा हैं। कांग्रेस के टिकट पर पिछले दो विधानसभा चुनाव अध्यापिका गंगा पंचोली लड़ चुकी है। 2017 के विधानसभा चुनाव में गंगा पंचोली को भाजपा के सुरेंद्र सिंह जीना ने करीब 3000 मतों से पराजित किया था। कोरोना से सुरेंद्र सिंह जीना की मौत होने के बाद 7 माह पूर्व सल्ट के उपचुनाव हुए। जिसमें सुरेंद्र सिंह जीना के भाई महेश जीना ने एक बार फिर कांग्रेस की प्रत्याशी गंगा पंचोली को हराया था। इस बार हार का आंकड़ा 4700 वोटों का रहा।
इतने मतों से कांग्रेस प्रत्याशी के हारने का कारण सहानुभूति लहर और कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत और उनके बेटे ब्लाक प्रमुख विक्रम रावत का न्यूट्रल रहना बताया गया। कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत पिछले 5 साल से अधिकतर रामनगर की जनता के बीच रहे। फिलहाल वह सल्ट से कांग्रेस के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं। सल्ट सीट को कांग्रेस के लिए जितना आसान समझा जा रहा था वह इतनी आसान भी नहीं दिखाई दे रही है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस विधानसभा क्षेत्र में 5 मंडल है। जिसमें दो मंडल स्याल्दे और मनीला में भाजपा के मतदाता ज्यादा दिखाई दिए हैं। जबकि देघाट से ऊपर चितौली और लाल नगरी में भाजपा के कट्टर समर्थक देखें जा रहे हैं। चित्रकूट मंडल में भाजपा और कांग्रेस का मिला-जुला असर देखने को मिल रहा है। सल्ट मंडल और मछोड में कांग्रेस प्रत्याशी रणजीत रावत की स्थिति मजबूत है।
पिछला विधानसभा उपचुनाव भाजपा के प्रत्याशी महेश जीना सहानुभूति लहर के कारण जीत गए थे। यही नहीं बल्कि तब कहा गया कि उनके दिवंगत भाई पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के जितने समर्थक और सिपहसालार थे उन्होंने महेश जीना को मन से चुनाव लड़ाया। लेकिन विधायक बन जाने के बाद महेश जीना के उग्र स्वभाव के कारण वह अब उनसे दूर होते नजर आने लगे हैं। गोपाल सिंह जीना कहते हैं कि सुरेंद्र सिंह जीना की एक खासियत यह थी कि वह सौम्य व्यवहार के थे। जबकि महेश जीना इसके बिल्कुल उलट दिखाई देते हैं। इस तरह से कहा जा सकता है कि वह सियासी खेल में अभी तक परिपक्व नहीं हो पाए है। भाजपा नेता गिरीश कोटनाला के साथ महेश नेगी द्वारा मारपीट प्रकरण ने उनकी छवि को एक उदंड नेता के रूप में विख्यात किया है। सुरेंद्र सिंह जीना की राजनीतिक विरासत को महेश जीना संभाल नहीं पा रहे हैं।
मेहरा बंधु महेश्वर सिंह और दिनेश मेहरा इस चुनाव में जीना के साथ नहीं दिखाई दे रहे हैं। दिनेश मेहरा भाजपा से 2017 में टिकट के प्रबल दावेदार थे। बाद में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा। सल्ट विधानसभा में मेहरा बंधु भाजपा के सक्रिय नेताओं में गिने जाते हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस की पूर्व प्रत्याशी रही गंगा पंचोली भी इस चुनाव में कहीं नहीं दिखाई दे रही है। उनके समर्थक भी चुनाव से दूरी बनाए हुए हैं। यहां से उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके पूर्व जिला पंचायत सदस्य नारायण सिंह रावत उपचुनाव में गंगा पंचोली के साथ कांग्रेस में आ गए थे। गंगा पंचोली के चुनाव में उन्होंने सक्रियता दिखाई। लेकिन इस समय वह अपने घर पर ही नजर आ रहे हैं। खुद गंगा पंचोली चुनाव प्रचार में जाने की बजाए अपने स्कूल जाकर अध्यापन में व्यस्त हैं। वह कहती हैं कि न ही मैं कांग्रेस छोड़ रही हूं और न ही उन लोगों का विरोध करूंगी जिन्होंने मेरा विरोध किया था। मैं तो आजकल अपने स्कूल जाकर बच्चों को पढ़ा रही हूं। यहां यूकेडी के राकेश नाथ तीसरे नंबर पर आने की दौड़ में हैं। वह माजिला से है और मछोड़ में भी उनका असर देखा जा रहा है। आम आदमी पार्टी ने डिफेंस से रिटायर सुरेश बिष्ट पर दांव लगाया है।
रामनगर में श्वेता की दमदार इन्ट्री
रामनगर की चुनावी बिसात में इस बार कांग्रेस के दो गुट आमने-सामने दिखाई दे रहे हैं। हालांकि सुलह के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लालकुआं और पार्टी के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष रणजीत रावत सल्ट से चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन रामनगर के लोगों की नजर में सिर्फ चेहरे बदले हैं चरित्र वही है। मतलब यह है कि संजय नेगी बेशक कांग्रेस छोड़कर आजाद उम्मीदवार के रूप में है लेकिन जनता की नजर में वह अभी भी हरीश रावत के दूत ही हैं। जबकि कांग्रेस के अधिकतर प्रत्याशी जिन्हें पार्टी ने कालाढूंगी से पलायन कर रामनगर चुनाव के मैदान में उतारा वह महेंद्र पाल सिंह रणजीत रावत के सहारे अपनी चुनावी नैया को पार लगाने की कोशिश में है। उनके पोस्टर में रणजीत रावत के बड़े से फोटो लगा होना भी यहां चर्चा का विषय बना हुआ है।
हरीश रावत के समर्थक कांग्रेसी दुविधा में दिखाई दे रहे हैं। वह कह रहे हैं कि अपने पर्चे और पोस्टर अलग बनवा रहे हैं। जिनमें रणजीत रावत की जगह हरीश रावत का बड़ा फोटो लगाया जाएगा। महेंद्र पाल पर कांग्रेसी आरोप लगा रहे हैं कि उनकी नजर में सिर्फ रणजीत रावत ही सब कुछ है। महिला कांग्रेस की जिलाध्यक्ष आशा बिष्ट के अनुसार उन्हें पार्टी प्रत्याशी द्वारा चुनाव प्रचार में उतरने तक के लिए नहीं कहा गया। आशा बिष्ट सहित अधिकतर कांग्रेसी लालकुआं में हरीश रावत के चुनाव प्रचार में सक्रिय हैं। रामनगर की जनता कांग्रेस प्रत्याशी को पैराशूट प्रत्याशी कह रही है। कानिया निवासी हरेंद्र के अनुसार कांग्रेस की यह पक्की सीट थी। लेकिन यह सीट उनके हाथ से उस दिन निकल गई जिस दिन टिकट परिवर्तन किए गए। फिलहाल कांग्रेस ही कांग्रेस को काटती नजर आ रही है। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी दीवान सिंह बिष्ट मजबूत बनकर उभर रहे हैं। यहां रणजीत रावत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। उन्होंने इस सीट को कांग्रेस की झोली में डालने का दावा किया है।
निर्दलीय प्रत्याशी श्वेता मासीवाल को यहां महिलाओं में बहुत पसंद किया जा रहा है। स्थानीय निवासी कविता बिष्ट कहती है कि रामनगर में पहली बार कोई बोल्ड लेडी चुनाव में उतरी है जो जनता के जमीनी मुद्दों को बेबाकी से उठा रही है। लखनपुर शहरी क्षेत्र जहां पहले मोदी-मोदी होता दिखाई देता था इस बार वहां श्वेता मासीवाल का खासा असर देखने को मिल रहा है। इसके अलावा वन ग्रामों में भी श्वेता मासीवाल की जनसेवा को सराहना मिल रही है। वनग्रामों में श्वेता मासीवाल की सराहना इसलिए भी हो रही है कि उन्होंने उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी से प्रत्याशी बने 82 साल के चिंताराम को प्रचार के लिए अपनी गाड़ी दी है। चिंताराम वन ग्रामों में लोगों की लड़ाई लड़ते रहे हैं। फिलहाल, प्रचार में श्वेता फिलहाल सबसे आगे नजर आ रही है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यहां यह नजर आती है कि जो लोग चर्चा कर रहे हैं कि आजाद उम्मीदवार संजय नेगी कांग्रेस की वोटों को काट रहे हैं वह सत्य प्रतीत नहीं हो रहा है। इसका उदाहरण कानियां क्षेत्र और सावल्दे साथ ही हिम्मतपुर डोटियाल, सिमलखाल और ढेला आदि ऐसे क्षेत्र है जहां अब तक भाजपा का गढ़ बताया जाता रहा है। लेकिन फिलहाल यहां निर्दलीय उम्मीदवार संजय नेगी बढ़त बनाए हुए हैं। इसके अलावा मालधन क्षेत्र पिछली बार भाजपा का गढ़ रहा लेकिन इस बार यहां भाजपा की लहर नहीं दिखाई दे रही है। आरटीओ साइट, शक्तिनगर, जोगीपुरा, पूछड़ी आदि क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी दीवान सिंह बिष्ट का असर ज्यादा देखने को मिल रहा है। मजे की बात यह है कि पूछड़ी क्षेत्र के मुस्लिमों में भी दीवान सिंह बिष्ट लोकप्रिय दिखाई दिए हैं। बहुजन समाज पार्टी के हेमचंद्र भट्ट के साथ ही आम आदमी पार्टी के शिशुपाल रावत भी मैदान में है। शिशुपाल पीरूमदारा के गढ़वाली मतदाताओं पर अच्छी पकड़ बनाए हुए हैं। हालांकि यहां भाजपा का असर भी देखने को मिल रहा है। पंपापुरी में भी भाजपा प्रत्याशी दीवान सिंह बिष्ट आगे दिखाई दे रहे हैं। जबकि बसपा प्रत्याशी हेमचंद्र भट्ट को उम्मीद है कि उन्हें दलितों के साथ ही अल्पसंख्यक वोट भी मिलेंगे।
कांग्रेस नेता आयुष अग्रवाल की माने तो वन ग्रामों में इस बार उनकी पार्टी यशपाल आर्या के प्रयासों से मतदाताओं पर मजबूत पकड़ बनाएगी। यहां पहले चुनाव में लोगों ने भाजपा को वोट दिया था तब भाजपा प्रत्याशी ने वनग्रामो के वोटों के ठेकेदारों से कहा था कि उन्हें 50-50 लाख के काम दिलाएंगे। लेकिन वह उन्हें कोई काम नहीं दिला पाए। इसके चलते सभी ठेकेदार भाजपा से फिलहाल नाराज नजर आ रहे हैं। गौरतलब है कि दलित बाहुल्य 24 वन ग्रामों में कुल 18000 वोट हैं। यह वोट और 20 हजार अल्पसंख्यक वोट मिला कर चुनावों में रामनगर की राजनीतिक दिशा तय करने का काम करती है।
काशीपुर में मुकाबला त्रिकोणीय
काशीपुर में कांग्रेस और भाजपा के दोनों छत्रप अपनी अगली पीढ़ी के लिए चिंतित नजर आ रहे हैं। यहां से चार बार के विधायक रहे हरभजन सिंह चीमा भाजपा से अपने पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा को तो कांग्रेस के पूर्व विधायक और नैनीताल के सांसद रहे केसी सिंह बाबा अपने पुत्र नरेश चंद्र को अपनी राजनीतिक विरासत के मालिकाना हक तो दे चुके हैं, लेकिन जनता अपना जनप्रतिनिधि बनाने का हक उन्हें देगी या नहीं यह देखना यहां के चुनाव में दिलचस्प होगा। फिलहाल, काशीपुर की राजनीति में आम आदमी पार्टी से दीपक बाली ने अपनी मजबूत स्थिति दिखाकर चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। हरभजन सिंह चीमा के पुत्र और भाजपा प्रत्याशी त्रिलोक सिंह चीमा राजनीति में एकदम नौसिखिए खिलाड़ी साबित हो रहे हैं। उनका चुनाव प्रचार का तरीका यह है कि वह मतदाताओं से जब मिलते हैं तो सिर्फ पर्चा उनके हाथ में थमा कर आगे बढ़ जाते हैं। जनता कह रही है कि जिस नेता के पास हमारे लिए बोलने के लिए दो शब्द भी नहीं कहे जा रहे वह विधानसभा में उनकी क्या आवाज उठाएंगे।
चीमा के साथ भाजपा संगठन कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। खासकर नगर निगम की मेयर ऊषा चौधरी और पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष राम मेहरोत्रा, पूर्व सांसद बलराज पासी के साथ ही खिलेंद्र चौधरी पार्टी के मुख्य चेहरे चीमा के चुनाव से नदारद नजर आ रहे हैं। ऐसा ही कुछ हाल पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा के पुत्र कांग्रेस प्रत्याशी नरेश चंद्र का है। कांग्रेस के अधिकतर नेताओं का मोह इस बार पार्टी प्रत्याशी की बजाय आप के कैंडिडेट दीपक बाली की तरफ दिखाई दे रहा है। भाजपा का ही एक गुट चीमा को कमजोर करने के लिए अपनी ही पार्टी के नेता गगन कांबोज को बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा रहा है। मतलब यह है कि भीतरघात भाजपा और कांग्रेस दोनों में है।
इस बार काशीपुर में सबसे अधिक चर्चा धन बल की है। यहां की जनता कह रही है कि अब तक गरीब बस्तियों में पैसा बांट कर मतदाताओं को लुभाते आए हरभजन सिंह चीमा को इस मामले में पहली बार आप प्रत्याशी दीपक बाली टक्कर देंगे। फिलहाल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की नजर यहां के महत्वपूर्ण वोट बैंक अल्पसंख्यकों पर टिकी हुई है। दोनों ही अल्पसंख्यकों में सेंध लगाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। कहा जा रहा है कि जिसने भी अल्पसंख्यकों का विश्वास हासिल कर लिया वहीं भाजपा प्रत्याशी की टक्कर में आ जाएगा। भाजपा प्रत्याशी हरभजन सिंह चीमा यहां से इसलिए जीते रहे हैं कि उनकी कंपनियों में ही करीब 15,000 वर्कर काम करते हैं। इन वर्करों के बल पर ही चीमा करीब 30000 वोट पाकर मजबूत होते हैं। भाजपा ने भी चीमा पर पांचवीं बार दांव इसी समीकरण को देखते हुए लगाया है। चीमा पर यह भी आरोप लगते हैं कि वह धनबल पर काशीपुर के चुनाव का रुख अपनी ओर मोड़ लेते हैं।