कांग्रेस चुनाव संचालन समिति के उपाध्यक्ष और प्रदेश कांग्रेस सदस्यता समिति के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह भंडारी ने सोशल मीडिया में एक पोस्ट डालते हुए कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर कांगेस का डाटा चोरी करवाने और कांग्रेस को ‘लैपटॉप संगठन’ में तब्दील करने के आरोप लगाते हुए समूची चुनावी रणनीति पर ही गंभीर आरोप लगा डाले हैं। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं में इस बात को लेकर भी नाराजगी साफ तौर पर देखी जा रही है कि 2017 से ज्यादा सीटें आने के बाद और वोट प्रतिशत बढ़ने के बाद भी प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को ही चुनाव में हार का जिम्मेदार मान उनसे त्याग पत्र ले लिया गया है। जबकि हार की जिम्मेदारी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी को भी लेनी चाहिए
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार से प्रदेश संगठन पर कार्यकर्ता सवाल उठाने लगे हैं। चार वर्ष तक प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रीतम सिंह के बजाय गणेश गोदियाल पर हार का ठीकरा फोड़ने से कांग्रेस के भीतर घमासान शुरू हो चुका है। साथ ही जीवन में सिर्फ दो चुनाव जीतने वाले प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को अभी तक प्रभारी पद पर बनाए रखने से हाईकमान पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इसके अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी अब कांग्रेस नेताओं के निशाने पर आ चुके हैं।
कांग्रेस चुनाव संचालन समिति के उपाध्यक्ष और प्रदेश कांग्रेस सदस्यता समिति के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह भंडारी ने सोशल मीडिया में एक पोस्ट डालते हुए कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर कांगेस का डाटा चोरी करवाने और कांग्रेस को ‘लैपटॉप संगठन’ में तब्दील करने के आरोप लगाते हुए समूची चुनावी रणनीति पर ही गंभीर आरोप लगा डाले हैं। भंडारी ने कांग्रेस की लगातार हार के पीछे के कारणांे को बताते हुए लिखा है कि ‘2012 में भी प्रशांत किशोर ने तत्कालीन संगठन के प्रयासांे से बनाया हुआ पांच लाख कार्यकर्ताओं का डाटा उनके हवाले करने को मजबूर किया और प्रदेश संगठन को घर बैठा दिया गया। 2022 में भी ठीक वैसा ही किया गया जिसमें एक बड़ी भूमिका प्रभारी देवेंद्र यादव की है।’
राजेंद्र सिंह भंडारी की पोस्ट से कई सवाल खड़े होने लाजिमी हैं। 2015 से सितंबर 2016 तक कांग्रेस द्वारा गांव, शहर, मुहल्ला आदि में अनेक कांग्रेस कमेटियां जिसमें गांव, बूथ, शहर, वार्ड, बाजार, ब्लॉक तथा जिला कमेटियां शामिल थी, का गठन किया गया था। इन कमेटियों में पदाधिकारियों के साथ-साथ तकरीबन 5 लाख सदस्यों का एक भारी-भरकम डाटा बनाया गया था जिसमें सभी के नाम-पते और टेलीफोन नंबर दर्ज किए गए थे। 2017 में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस में प्रशांत किशोर को लाया गया और पूरे कांग्रेस संगठन से चुनाव का काम प्रशांत किशोर के हवाले कर दिया गया। संगठन द्वारा दो वर्ष की मेहनत से एकत्र किया गया डाटा टीम पीके को दिए जाने के आदेश जारी दिल्ली से किए गए जिस पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और प्रशांत किशोर के बीच खासा विवाद भी हुआ था। तब किशोर उपाध्याय की एक नहीं चली और समस्त डाटा प्रशांत किशोर को साैंप दिया गया। भंडारी प्रशांत किशोर पर गंभीर आरोप लगाते हुए लिखते हैं कि ‘प्रशांत ने वह डाटा भाजपा को करोड़ों में बेच दिया जिसका प्रभाव कांग्रेस के चुनाव पर पड़ा और कांग्रेस महज 11 सीटांे पर सिमट गई।’ 2022 में भी डाटा के दुरुपयोग पर भंडारी प्रभारी देवेंद्र यादव पर आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना हेै कि देवेंद्र यादव ने कांग्रेस को लैपटॉप में तब्दील करके प्रदेश संगठन की भूमिका को पूरी तरह से नगण्य कर दिया। यही नहीं उनका आरोप है कि देवेंद्र यादव द्वारा प्रत्येक विधानसभा से 5-6 उन नेताओं के जो कि चुनाव लड़ना चाहते थे, उनके बायोडेटा मांगे, साथ ही प्रत्येक आवेदनकर्ता से प्रत्येक बूथ कमेटी की लिस्ट और अन्य संगठनों के नाम और उनके टेलीफोन नंबर मांगे गए जिनकी संख्या एक हजार से दो हजार तक बताई गई है। यानी 70 विधानसभाओं से इस प्रकार की लिस्ट अनिवार्य तौर पर आवेदन के साथ जमा करने का आदेश दिया गया।
इस पर भी कांग्रेस में खासा हंगामा हुआ लेकिन प्रभारी के दबाव चलते सभी को आवेदन के साथ सूचियां भी जमा करनी पड़ी। कांग्रेस के नेताओं का मानना हेै कि जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला उन्होंने अपने लोगांे को चुनाव में काम करने से मना कर दिया। राजेंद्र भंडारी का कहना हेै कि इसका सबसे बुरा प्रभाव कांग्रेस के उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार और उनकी रणनीति पर पड़ा। भंडारी आशंका जता रहे हेैं कि जिस तरह से 2012 में कांग्रेस के डाटा का दुरुपयोग करवाया गया उसी तरह से 2022 में भी किया गया हो तो कोई बड़ी बात रही है। राजेंद्र भंडारी के आरोपों में कितना दम है यह तो कांग्रेस पार्टी ही जाने लेकिन जिस तरह से प्रभारी देवेंद्र यादव को लेकर कांग्रेस में नाराजगी बनी हुई है इसका असर चुनाव से पहले भी सामने आ चुका है। हरीश रावत देवेंद्र यादव की कार्यशैली और संगठन से इतर काम करने को लेकर पहले भी अपनी नाराजगी कांग्रेस हाईकमान तक पहुंचा चुके थे। हालांकि इस मामले में कांग्रेस आलाकमान ने सभी को मना लिया था लेकिन चुनाव में करारी हार के बाद फिर से प्रभारी पर गंभीर आरोप लगने से यह साफ हो गया है कि कांग्रेस में चुनावी रणनीति को लेकर जो खामियां पहले ही जताई जा रही थी वह हल्की नहीं थी।
हार के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल से इस्तीफा मांग लिया गया लेकिन प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव आज भी अपने पद पर बने हुए हैं, जबकि यादव अपने जीवनकाल में केवल दो चुनाव ही जीते हैं। इसमें भी पहला उपचुनाव वह दिल्ली की समयपुर बादली विधानसभा सीट से लड़े थे। इस सीट पर यादव के पिता विधायक थे जिनकी मृत्यु के बाद उपचुनाव हुए। 2015 में फिर से कांग्रेस पार्टी ने देवेंद्र यादव को समयपुर बादली सीट से उम्मीदवार बनाया। इस बार यादव चुनाव तो जीते लेकिन कांग्रेस दिल्ली में महज 8 सीटांे पर सिमट गई। तब कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर सरकार बनवाई थी। 2016 में फिर से दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस का सूपड़ा इस कदर साफ हुआ कि एक भी सीट नहीं जीत पाई। इसके अलावा 2016 के बाद देवेंद्र यादव ने 2020 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन वे हार गए। इसके बाद ही उन्हें उत्तराखण्ड का प्रभारी बनाया गया लेकिन इसका पार्टी को फायदा नहीं हुआ और कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा।
कांग्रेस की चुनावी रणनीति किस कदर लचर रही इसका सबसे बड़ा प्रमाण देहरादून जिले में देखा जा सकता है। देहरादून जिले में प्रदेश की समूचा कांग्रेस का तानाबना है और बड़े-बड़े दिग्गज नेता देहरादून को ही अपनी कर्मभूमि बनाए हुए हैं। उपाध्यक्ष, महामंत्री, प्रवक्ता से लेकर जिला और ब्लॉक कमेटियों के नेताओं का जमघट देहरादून में ही जमा रहता है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह भले ही चकराता सीट से चुनाव लड़ते रहे हों लेकिन उनकी भी कर्मभूमि देहरादून ही रही है। बावजूद इसके दून की 10 में से महज एक सीट चकराता में ही कांग्रेस की लाज बच पाई है, जबकि अन्य सीटांे पर कांग्रेस 3 हजार से लेकर 30 हजार के बड़े अंतर से चुनाव हारी है।
कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं में इस बात को लेकर भी नाराजगी साफ तौर पर देखी जा रही है कि 2017 से ज्यादा सीटें और वोट प्रतिशत बढ़ने के बाद भी प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को ही चुनाव में हार का जिम्मेदार मान उनसे त्याग पत्र ले लिया गया है। जबकि चार वर्ष तक प्रीतम सिंह ही प्रदेश अध्यक्ष के पद पर थे और गोदियाल को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद प्रीतम सिंह नेता प्रतिपक्ष बनाए गए। हार की जिम्मेदारी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी को भी लेनी चाहिए। गोदियाल महज दो माह पूर्व ही प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे। वे अपनी नई कार्यकारिणी तक नहीं बना पाए और पूरा दारोमदार प्रीतम सिंह द्वारा बनाई गई टीम में ही रहा। कांग्रेस में शुरू हो चुके घमासान के बीच हरीश रावत भी उतर चुके हैं। वे भी सोशल मीडिया में अपनी और उनकी पुत्री अनुपमा रावत को हरवाने वाले नेताओं का बगैर नाम लिए हुए चेतावनी तक दे चुके हैं। साथ ही चुनाव के दौरान मुस्लिम यूनिवर्सिटी खोले जाने को लेकर अपने ही कांग्रेसियांे पर हमलावर हैं। हरीश रावत के इस तरह से खुलकर अपना विरोध जताने के बाद कई कांग्रेसी नेता भी सवाल खडे़ करने लगे हैं, कम से कम राजेंद्र भंडारी ने इसकी शुरुआत कर ही दी है।
मैंने अपनी पोस्ट में कुछ ऐसा नहीं लिखा है जो सत्य न हो। पांच साल तक कांग्रेस जिस चुनावी रणनीति पर काम कर रही थी उसे अचानक से बदल कर प्रदेश संगठन की भूमिका को कम कर दिया गया। पहले कांग्रेस का झंडा-डंडा उठाने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं की पार्टी होती थी, आज लैपटॉप पार्टी बना दी गई है। प्रभारी जी की भूमिका पर पहले भी सवाल उठाए जाते रहे हैं, लेकिन उनको सुना ही नहीं गया। प्रभारी का काम होता है सभी को साथ लेकर चलना और चुनाव में जीत कैसे हो इस पर काम करना लेकिन यहां तो उल्टा ही हुआ है। सभी को साथ लेकर चलने से ही परहेज किया जाता रहा है। एक समूह विशेष और गुट विशेष को ही साथ लेकर काम करने को तरजीह दी गई इसी कारण आज कांग्रेस लगातार चुनाव हार रही है। आज हमारा बूथ स्तर तक का कार्यकता कहां है? क्या कर रहा है यह किसी को नहीं पता। बाकी का क्या भूमिका रही है यह समीक्षा करने की बात है।
राजेंद्र सिंह भंडारी-कांग्रेस चुनाव संचालन समिति के उपाध्यक्ष