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Uttarakhand

कांग्रेस को तलाश, भाजपा को आस

लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है। प्रदेश की पांचों सीटों पर उम्मीदवारों की जोर-आजमाइश शुरू हो चुकी है। अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट पर फिलहाल भाजपा-कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भाजपा के पास तीसरी बार तुरूप का पत्ता सांसद अजय टम्टा के रूप में सामने है। जबकि काबीना मंत्री रेखा आर्या की टिकट की चर्चा भी आम है। रेखा की लोकसभा क्षेत्र में सक्रियता टम्टा के टिकट पर संकट बनती दिख रही है। लेकिन रेखा आर्या की दावेदारी में सबसे बड़ी बाधा उनके पति गिरधारी लाल शाहू उर्फ पप्पू बने हैं जो अपनी आपराधिक छवि और दबंगई के लिए अक्सर चर्चाओं में रहते हैं। टम्टा की मतदाताओं से दूरियां और विकास कार्यों में शिथिलता उनकी लोकप्रियता को थोड़ा कम करती है। हालांकि टम्टा के कार्यकाल में बहुत से विकास कार्य ऐसे भी हैं जिनसे स्थानीय जनता उनसे संतुष्ट भी दिख रही है। शायद यही वजह है कि भाजपा को इस सीट पर टम्टा की जीत की आस है। दूसरी तरफ टिकट के लिए कांग्रेस की तलाश प्रदीप टम्टा और यशपाल आर्या के इर्द-गिर्द सिमटी है। प्रदीप कांग्रेस की कमजोर कड़ी हैं तो यशपाल चुनावी मैदान में उतरने को तैयार नहीं हैं

सांस्कृतिक नगरी और उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली अल्मोड़ा और सोर घाटी के नाम से विख्यात पिथौरागढ़ के क्षेत्रों को सम्मिलित कर बना अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ संसदीय क्षेत्र चीन और नेपाल की सीमांत से सटा है। समग्र रूप से विशुद्ध दुरूह पहाड़ी क्षेत्रों से बनी इस लोकसभा की सीमाएं चमोली, पौड़ी, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर से जुड़ी हैं। अल्मोड़ा, बागेश्वर पिथौरागढ़ और चम्पावत जिलों से मिलकर बनी लोकसभा सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा है। 1952 से 1989 तक, अगर 1977 को छोड़ दें तो इस सीट पर कांग्रेस ने अपना वर्चस्व कायम रखा। कभी कांग्रेस का मजबूत रहे इस गढ़ पर आज पूरी तरह भाजपा ने अपना वर्चस्व बना लिया है। कांग्रेस इस क्षेत्र में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ ही भाजपा व कांग्रेस ने अपने मोर्चों को मजबूत करना शुरू कर दिया है टिकट पाने की जद्दोजहद भाजपा के अंदर ज्यादा होती नजर आ रही है जबकि कांग्रेस के सामने सीमित विकल्प हैं।

1952 के पहले आम चुनाव में अल्मोड़ा दो लोकसभा क्षेत्र में बंटा था आज जो मूल अल्मोड़ा लोकसभा सीट है वो पहले आम चुनाव में अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट (नार्थ ईस्ट) के नाम से जानी जाती थी तथा दूसरी नैनीताल डिस्ट्रिक्ट कम अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट (साउथ वेस्ट) कम बरेली डिस्ट्रक्ट (नार्थ) जो आज नैनीताल ऊधमसिंह नगर के रूप में जानी थी। 1952 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के देवीदत्त पंत ने सोस्लिस्ट पार्टी के पूर्णांनन्द उपाध्याय को हराया। 1957 में नए परिसीमन के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने हरगोविंद पंत को अपना उम्मीदवार बनाया उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पूर्णानन्द उपाध्याय को लगभग नौ हजार मतों के अंतर से हराया। हरगोविंद पंत के आकस्मिक निधन के चलते सितंबर 1957 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के बद्रीदत्त पांडे लोकसभा के लिए चुने गए। 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जंगबहादुर सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया। वो भारतीय जनसंघ के प्रताप सिंह को पराजित कर लोकसभा

पहुंचे। 1967 के चुनाव में जहां कांग्रेस की ओर से जंगबहादुर सिंह फिर से मैदान में थे वहीं भारतीय जनसंघ से गोविंद सिंह बिष्ट चुनाव मैदान में थे। बाजी इस बार फिर कांग्रेस के जंगबहादुर सिंह के पक्ष में रही।

1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने नरेंद्र सिंह बिष्ट को प्रत्याशी बनाया इस बार उनके सामने भारतीय जनसंघ से शोबन सिंह जीना मैदान में थे। नरेंद्र सिंह बिष्ट लोकसभा के लिए चुने गए। आपातकाल के बाद हुए 1977 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े डॉ ़ मुरली मनोहर जोशी लोकसभा पहुंचे। 1980 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर मुरली मनोहर जोशी फिर से मैदान में थे लेकिन इस बार कांग्रेस के हरीश रावत ने उन्हें पराजित किया। 1984, 1989 के लोकसभा चुनाव में जीत हरीश रावत के नाम रही। 1989 का लोकसभा चुनाव हरीश रावत के लिए संकट ला सकता था अगर भाजपा और उत्तराखण्ड क्रांति दल के बीच समझौता हो जाता। उस वक्त उक्रांद अपनी लोकप्रियता के शीर्ष पर थी। उस चुनाव में हरीश रावत ने उक्रांद के काशी सिंह ऐरी को दस हजार मतों के अंतर से हराया था जबकि 80 हजार के करीब वोट लाकर भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी तीसरे स्थान पर रहे थे। 1991 में राम लहर के चलते अल्मोड़ा लोकसभा सीट का परिदृश्य बिल्कुल बदल गया और भाजपा ने कांग्रेस के इस सीट पर चले आ रहे वर्चस्व को खत्म कर दिया। 1991 के बाद सिर्फ 2009 में कांग्रेस यहां से जीत पाई है। 1991 में भाजपा के जीवन शर्मा जो उक्रांद छोड़कर भाजपा में आए थे ने हरीश रावत को पराजित किया। 1996 से 1998, 1999, 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बची सिंह रावत की जीत ने हरीश रावत को हरिद्वार पलायन के लिए मजबूर कर दिया। अल्मोड़ा सीट आरक्षित हो जाने के बाद 2009 में कांग्रेस के प्रदीप टम्टा और 2014, 2019 के चुनावों में भाजपा के अजय टम्टा सांसद बने।

2024 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल विकल्पहीनता का शिकार हैं। इन दोनों ही पार्टियों में इक्का-दुक्का चेहरे ही नजर आते हैं। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है तो इसमें वर्तमान सांसद अजय टम्टा और उत्तराखण्ड सरकार में कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या ही दो चेहरे हैं जो 2024 की रेस में नजर आते हैं। अजय टम्टा पर जहां संघ व भाजपा के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी का वरदहस्त है तो रेखा आर्या पर पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का आशीर्वाद है। भले ही भगत सिंह कोश्यारी सक्रिय राजनीति से अलग हो गए हों लेकिन भाजपा की राजनीति पर आज भी उनका अच्छा खासा दखल है। वर्तमान सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे अजय टम्टा को इस बार टिकट पाने के लिए खासी जद्दोजहद करनी पड़ सकती है। मोदी लहर में 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखण्ड की पांचों सीट जीतने वाली भाजपा एक बार फिर मोदी लहर के भरोसे है। भाजपा के पांचों सांसद अपनी छवि और उपलब्धियों पर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं हैं।

कमोबेश यही हाल अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट का भी है। यहां अजय टम्टा का अपनी व्यक्तिगत छवि पर जीत पाना आसान नहीं होगा। ‘मोदी इफेक्ट’ या कहें मोदी लहर पर सवार होकर लोकसभा में पहुंचने की इच्छा ने रेखा आर्या को भी सक्रिय किया हुआ है। पूरे अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ लोकसभा क्षेत्र में रेखा आर्या का सघन भ्रमण अजय टम्टा के लिए खतरे की घंटी है। छोटी ही उम्र में अल्मोड़ा जिला पंचायत के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष रहे अजय टम्टा अपने दस साल के कार्यकाल में जनता से खुद को जोड़ पाने में पीछे रह गए। भाजपा की राजनीति में बची सिंह रावत के शिष्य के तौर पर माने जाने वाले अजय टम्टा बची सिंह रावत की उस खूबी को नहीं आत्मसात कर पाए जिसने बची सिंह रावत को 1996 से 2009 तक सांसद बनाए रखा। वो खूबी थी जनता व कार्यकर्ता से सीधा संपर्क। शायद आज यही कारण है कि इस बार अजय टम्टा को स्थानीय लोगों के साथ पार्टी के अंदर से विरोध का सामना करना पड़ सकता है। खासकर सुदूर क्षेत्रों में उनकी अनुपस्थिति ने उनके विरोधियों को मौका उपलब्ध कराया है।

भाजपा से ही जुड़े एक पदाधिकारी का कहना है कि क्षेत्र में विकास कार्यों की कमी नहीं है लेकिन सांसद जनता से मिलने का प्रयास तो करें, जनता का सामना करने से कतराना

अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज

उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। शायद जनता के आक्रोश से बचने के लिए वो सिर्फ बड़े नेताओं के कार्यक्रमों में ही दिखाई देते हैं। स्याल्दे क्षेत्र के एक भाजपा पदाधिकारी का कहना है कि ज्यादा क्या अपेक्षा करें हमारे क्षेत्र में एक केंद्रीय विद्यालय की स्वीकृति की बात चली थी। सांसद जी ने केंद्रीय विद्यालय के नाम पर सांसद निधि की धनराशि उपलब्ध कराई लेकिन उसकी भी बंदरबांट हो गई। केंद्रीय विद्यालय का आज भी कहीं अस्तित्व नहीं है। कहा जाता है कि सड़कें किसी भी क्षेत्र के लिए जीवन रेखा की तरह होती हैं लेकिन खस्ताहाल सड़कें कथित विकास की कहानी खुद ही बयां करती हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं की हालत और भी बुरी है। ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने वाली इस योजना में सड़कों का काम मध्यम गति से चल रहा है। क्षतिग्रस्त सड़कों के चलते होने वाले हादसे खस्ताहाल सड़कों के हाल बयां करते हैं। 2014 के बाद से एक बड़ा वादा हर चुनाव में मुद्दा रहता है वह है। टनकपुर- बागेश्वर रेल लाइन का मुद्दा। अभी तक इस परियोजना की बात सर्वे से आगे नहीं बढ़ पाई है। यह परियोजना अजय टम्टा के संसदीय क्षेत्र को प्रभावित करती है।

स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। सभी महत्वपूर्ण अस्पताल चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टॉफ का अभाव साफ नजर आता है। बेस चिकित्सालय सिर्फ रेफरल सेंटर मात्र बनकर रह गए हैं। ऋषिकेश एम्स के विस्तारित पारिसर की घोषणा से उम्मीद जगी थी कि इसे किसी पहाड़ी क्षेत्र में स्थापित किया जाएगा जो शायद अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ में ही कहीं स्थापित हो सकता था। पहाड़ के लोगों को अच्छी चिकित्सा के लिए हल्द्वानी या बड़े शहरों की ओर रुख नहीं करना पड़ता लेकिन सांसद की उदासीनता के चलते ये एम्स भी ऊधमसिंह नगर के किच्छा में चला गया। हवाई सेवाओं की प्रगति इस संसदीय क्षेत्र में शून्य नजर आती है। पिथौरागढ़ की नैनी-सैनी हवाई पट्टी अभी भी निरंतर हवाई सेवा के संचालित होने के इंतजार में है। इस सीमांत संसदीय क्षेत्र में निरंतर पलायन एक बड़ी चुनौती है लेकिन स्थानीय स्तर पर रोजगार के संसाधनों के लिए सांसद की पहल कहीं नजर नहीं आती।

ऐसा नहीं है कि स्थानीय जनता अपने जनप्रतिनिधि से नाराज है, बल्कि अल्मोड़ा के वाशिंदे सांसद अजय टम्टा की कार्यप्रणाली से संतुष्ट भी हैं। विनोद भट्ट की मानें तो टम्टा ने पर्यटन की दृष्टि से कई अच्छे काम भी किए हैं जिनमें स्वदेश दर्शन योजना मुख्य है। इस योजना के तहत हैरीटेज सर्किट कटारमल-जागेश्वर- बैजनाथ-देवीधुरा स्वीकृत किया गया है जिससे तीर्थाटन में बढ़ोतरी होना तय है। चौखुटिया निवासी पवन तिवारी कहते हैं कि अजय टम्टा के कार्यकाल में सबसे बेहतर काम सड़कों का हुआ है। इसके तहत क्वारब से चौखुटिया, अल्मोड़ा से उदियारी बैंडतथा अल्मोड़ा से पनार की सड़कें मुख्य रूप से शामल हैं। साथ ही तिवारी यह भी कहते हैं कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में अल्मोड़ा का मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य वर्षों तक पूरा नहीं हुआ था लेकिन भाजपा सांसद अजय टम्टा के प्रयासों से यह कॉलेज न केवल सुचारू हुआ, बल्कि इस कॉलेज मं एमबीबीएस के छात्रों का दूसरा बैच भी प्रारंभ हो चुका है।

पिथौरागढ़ जनपद के बलुवाकोट निवासी सुरेंद्र सिंह बिष्ट भी अपने सांसद के कार्यों से खुश नजर आए। बिष्ट के अनुसार उनका क्षेत्र क्योंकि सीमांत क्षेत्र है। अजय टम्टा के सांसद बनने से पूर्व यहां मोबाइल फोन की सुविधा का उपयोगत तक नहीं किया जा सकता था, क्योंकि मोबाइल के टावर ही नहीं लगे थे। तब मजबूरन नेपाल के सिम प्रयोग में लाकर लोग अंतरराष्ट्रीय कॉल करते थे। लेकिन टम्टा ने हमारे क्षेत्र में नेटवर्क की समस्या का समाधान कराया। सीमांत क्षेत्र में चार दर्जन से अधिक मोबाइल टावर लगवाकर फोन सुविधा सुलभ कराई। इसी के साथ सांसद ने कैलाश मानसरोवर मोटर मार्ग धारचूला से घटियाबगड़ लिपुलेख (चीन बॉर्डर) निर्माण कराकर यात्रा सुगम कराई है। पहले जहां इस यात्रा को करने में 6 से 7 दिन लग जाते थे वहीं अब मोटर मार्ग के जरिए यह यात्रा 6 घंटे में पूरी की जा सकती है। तिब्बत-चीन सीमा पर मुनस्यारी से मिलम मोटर मार्ग के निर्माण का कार्य भी तेजी से किया जा रहा है। जल्द ही यहां भी गाड़ियों से जाया जा सकेगा। यह मार्ग सामरिक दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण माना जाता है।

बताया जाता है कि अजय टम्टा के प्रति भाजपा के वर्ग में नाराजगी 2019 में भी थी। उस वक्त पार्टी का एक वर्ग उनको प्रत्याशी बनाए जाने पर नाराज था मगर अंत में भाजपा के केंद्रीय संगठन के एक पदाधिकारी द्वारा सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ध्यान में रख चुनाव प्रचार में उतरने की बात कहने पर वो तबका चुनाव प्रचार में उतरा। इस बार चुनौती शायद उससे कहीं अधिक ज्यादा है। बताया जाता है कि 2019 के चुनाव में रेखा आर्या अपने लोकसभा टिकट के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थीं। उनके समर्थकों की मानें तो 2019 में रेखा आर्या का टिकट पक्का हो चुका था लेकिन एन वक्त पर राष्ट्रीय संगठन के एक पदाधिकारी के हस्तक्षेप से अजय टम्टा टिकट पा गए। चर्चा है कि इस बार भी टिकट की आस रेखा आर्या नहीं छोड़ना चाहती।

अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ संसदीय क्षेत्र में उनका सघन भ्रमण आकरण नहीं है। भले ही वो सार्वजनिक रूप से पार्टी के निर्णय को सर्वोपरि मानने की बात कहे लेकिन उन्होंने अपनी गोटी बिठानी शुरू कर दी है। महिला आरक्षण बिल के पास होने के बाद उनका दावा और भी पुख्ता हो गया है लेकिन उनके पति गिरधारी लाल साहू उर्फ पप्पू की आपराधिक छवि जरूर उनके आड़े आ सकती है। उनके मंत्रालय के कामों से गिरधारी लाल साहू के कथित हस्तक्षेप की चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में अक्सर गूंजती रहती हैं। शायद यही रेखा आर्या का नकारात्मक पहलू है। चर्चा है कि भारतीय जनता पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए शायद अजय टम्टा और रेखा आर्या में से ही किसी एक पर दांव लगाने की तैयारी कर रही है। लोगों की मानें तो रेखा आर्या की बनिस्पत अजय टम्टा का सौम्य और मिलनसार व्यक्तित्व होने से उनका पलड़ा भारी है।

जहां तक कांग्रेस में उम्मीदवारों का सवाल है उसके सामने बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है। अभी तक पूर्व सांसद रहे प्रदीप टम्टा ही दावेदार दिखाई पड़ते हैं। ये अजीब विडंबना है कि कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रही अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट मजबूत प्रत्याशी की तलाश के लिए जूझ रही है। कभी आंदोलनकारी रहे प्रदीप टम्टा भले ही अकादमिक सांसद रहें हों लेकिन मोदी लहर के सामने वो कांग्रेस के लिए कमजोर कड़ी साबित हुए हैं। 2014 और 2019 के चुनावों में वो कुछ खास नहीं कर पाए। वो भले ही हरीश रावत खेमे से आते हों लेकिन राजनीतिक चातुर्य और जनता से जुड़ने की कला हरीश रावत से नहीं सीख पाएं।

2009 में चुनाव जीतने के बाद उनका जुड़ाव अपने क्षेत्र के मतदाताओं से कम ही रहा। एक नाम जो चर्चा में उभर रहा है वो है यशपाल आर्या। लेकिन यशपाल आर्या प्रदीप टम्टा की दावेदारी के सामने स्वयं को खड़ा करने के लिए तैयार नहीं है। पार्टी सूत्र बताते हैं यशपाल आर्या को अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट से चुनाव लड़ाने के लिए पार्टी का एक वर्ग समर्थन कर रहा है लेकिन यशपाल आर्या बहुत सावधानी से आगे बढ़ना चाहते हैं। 2022 के विधानसभा चुनावों ने यशपाल आर्या और प्रदीप टम्टा के बीच की दूरियों को कम किया है और दोनों एक-दूसरे के करीब आए हैं। इस सद्भाव को यशपाल आर्या एक टिकट के लिए खत्म नहीं करना चाहते। अब देखना होगा की कांग्रेस आने वाले समय में क्या रणनीति अपनाती है। हालांकि काशीपुर में हुए कांग्रेस के एक सम्मेलन में यशपाल आर्या ने लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार किया है। कुल मिलाकर अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ संसदीय सीट पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच होना तो तय है मगर इन पार्टियों के चेहरे कौन होंगे ये समय ही बताएगा।

  • टम्टा के कार्यकाल की उपलब्धियां
    स्वदेश दर्शन योजना में हैरीटेज सर्किट की स्थापना। कटारमल, जागेश्वर, बैजनाथ और देवधुरा आदि धार्मिक स्थलों को इस योजना से जोड़ना।
    राष्ट्रीय राजमार्गों के सुधारीकरण और डामरीकरण का विकास कार्य।
    अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज को सुचारू कराना, एमबीबीएस के छात्रों का क्षितिज सत्र शुरू।
    सीमांत पिथौरागढ़ में नेटवर्क की समस्या का समाधान कराना। चार दर्जन से अधिक नए मोबाइल टावरों की स्थापना।
    कैलाश मानसरोवर मार्ग का निर्माण, 7 दिन की यात्रा को 6 घंटे में पूरी कराना।
    तिब्बत-चीन बॉर्डर पर मुनस्यारी से मिलम मोटर मार्ग का निर्माण कार्य शुरू। यहां भी पहुंचा जा सकेगा मोटर मार्ग से।
    चंपावत और बागेश्वर कॉलेज को कैम्पस का दर्जा दिलाना।
    टनकपुर से पिथौरागढ़ ऑल वेदर रोड का निर्माण कराकर सफर किया आसान।

 

बात अपनी-अपनी
मैं पिछले डेढ़-दो साल से परमानेंट अपनी लोकसभा क्षेत्र में ही हंू और जनता के बीच रहकर उनके उत्थान के लिए सक्रिय हूं। मेरा दावा है कि पहले जहां हम यहां से 95 हजार से जीते थे इस बार 4 लाख मतों से विजयी होंगे। प्रधानमंत्री जी ने पिथौरागढ़ में आकर क्षेत्र की जो बाकी बची विकास योजनाएं हैं उनके लिए 4200 करोड़ रुपए दिए हैं। इससे मेरी लोकसभा क्षेत्र की सभी सड़कें डबल लेन की हो जाएंगी। टनकपुर- बागेश्वर रेल परियोजना को प्रधानमंत्री जी ने अपनी नवरत्न घोषणा में शामिल किया है। इस योजना का मैं सर्वे पूरा करा चुका हूं। जल्द ही इसके कार्य का शुभारंभ हो जाएगा। अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज कम्पलीट है और पिथौरागढ़ में कुछ ही दिनों बाद मेडिकल कॉलेज का निर्माण शुरू करा दिया जाएगा।
अजय टम्टा, सांसद अल्मोड़ा-पिथौरागढ़

चुनाव किसे लड़ना है और किसे टिकट मिलना है यह तो पार्टी ही तय करेगी। फिलहाल मैं कांग्रेस की मजबूती के लिए क्षेत्र में घूम रहा हूं। यह मेरा कर्तव्य भी है। प्रधानमंत्री मोदी का पिथौरागढ़ में दौरा हवाई था। भाजपा को जनता के दुख-दर्द से कोई वास्ता नहीं है, वह केवल घोषणाबाजी में विश्वास करती है जबकि हमारी पार्टी जमीनी काम करने में विश्वास करती है।
प्रदीप टम्टा, पूर्व सांसद

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