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Uttarakhand

यशपाल के आने से कांग्रेस की बम-बम

तराई की बाजपुर सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है। यहां से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत कैबिनेट मंत्री बने यशपाल आर्या ने चुनाव से पहले पार्टी छोड़ कांग्रेस का दामन थाम राज्य के दलित मतदाताओं को कांग्रेस से पुनः जोड़ डाला है। आर्या द्वारा कराए गए विकास कार्यों से जनता खुश है लेकिन यहां से कांग्रेस का टिकट पक्का मान चल रही सुनीता टम्टा बाजवा के बगावती तेवर आर्या के लिए खतरे की घंटी समान हैं। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेश कुमार का चुनावी समर में उतरना लगभग तय है तो आम आदमी पार्टी भी यहां अपना उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है

ऊधमसिंह नगर जिले की बाजपुर विधानसभा सीट वीआईपी सीटों में शुमार है। बाजपुर का नाम राजा बाज बहादुर के नाम पर पड़ा था। बताते हैं कि राजा बाज बहादुर कभी यहां शिकार करने आया करते थे। यही नहीं इस विधानसभा सीट के बारे में कहा जाता है कि देश में राम मंदिर आंदोलन हो या फिर मोदी लहर, यहां हर सियासी घटना का असर देखने को मिलता है। बाजपुर, उत्तराखण्ड की उन महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों में है जिसे प्रदेश की राजनीति का गढ़ कहा जाता है।

फिलहाल इस गढ़ पर तीसरी बार काबिज होने के लिए प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्या भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। कहा जा रहा था कि भाजपा में रहते हुए उनके लिए यह सीट जीतना संभव नहीं था। कारण यह है कि पूरे ऊधमसिंह नगर जिले में किसान मतदाता बड़ी तादाद में है। किसानों में इस बार केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन कृषि बिल को लेकर भाजपा से नाराजगी है। यह नाराजगी भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर रही है। इसके चलते ही पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने घर वापसी कर ली है। आर्या ने कांग्रेस में आते ही सबसे पहले बयान दिया कि वह कहीं और से चुनाव नहीं लड़ने वाले हैं, उनका विधानसभा क्षेत्र बाजपुर ही रहेगा। दरअसल, यशपाल आर्या को लेकर यह चर्चा जोरों पर थी कि वह बाजपुर के बजाए हल्द्वानी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस की 2017 में कैंडिडेट रही सुनीता टम्टा बाजवा के लिए मुश्किल पैदा हो गई है। सुनीता टम्टा बाजवा आज भी कांग्रेस के कैंडिडेट के रूप में जनता के बीच जा रही हैं। यही नहीं बल्कि वह न्याय यात्रा भी निकाल रही हैं। इस ‘न्याय यात्रा’ के जरिए वह बाजपुर विधानसभा क्षेत्र में जाकर अपने साथ न्याय की गुहार लगाते देखी जा रही है।

2007 में जब भाजपा 1 सीट से बहुमत का आंकड़ा छू पाने में विफल रही थी, तब बाजपुर सीट की वजह से ही उत्तराखण्ड में उनकी सरकार काबिज हुई थी और भुवन चंद्र खंडूरी मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए थे। सरकार बनाने के लिए भाजपा और कांग्रेस को मात्र एक सीट की जरूरत थी और बाजपुर सीट जीत कर भाजपा ने सरकार बनाई थी। तब यहां भाजपा के अरविंद पांडे ने कांग्रेस की कंडिडेट शर्मा को हराकर भुवन चंद्र खंडूरी सरकार के बनने का रास्ता प्रशस्त किया था। बाजपुर विधानसभा का क्षेत्र पहले काशीपुर विधानसभा सीट के अंतर्गत था। लेकिन फरवरी वर्ष 2002 में परिसीमन के बाद काशीपुर विधानसभा से बाजपुर विधानसभा को अलग कर दिया गया। इससे पहले बाजपुर, काशीपुर और जसपुर तहसीलें एक ही विधानसभा काशीपुर में थीं। बाद में जसपुर, काशीपुर और बाजपुर अलग-अलग विधानसभा सीटें बन गईं। भाजपा की वर्तमान सरकार में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे पहली बार 2002 में बाजपुर विधानसभा के विधायक चुने गए थे। उस समय कांग्रेस के नेता महेंद्र जीत सिंह राणा को हार का मुंह देखना पड़ा था। उसके बाद 2007 में भी भाजपा ने इस सीट से जीत हासिल की और कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित जनक राज शर्मा की पत्नी को हार का मुंह देखना पड़ा। 2002 और 2007 का विधानसभा चुनाव बाजपुर से जीतने के बाद अरविंद पांडे गदरपुर विधानसभा में चले गए 2012 का विधानसभा चुनाव होने से पहले यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई थी तब यहां से यशपाल आर्या कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। यशपाल आर्या यहां से लगातार दो बार विधायक चुने गए।

2012 में वह जहां कांग्रेस से जीत कर विधायक बने थे तो 2017 में वह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर विधायक बने। यशपाल आर्य ने छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस पार्टी के साथ रहे। लेकिन 2017 में उत्तराखण्ड में सबसे बड़ा घोटाला सामने आया जो ऊधमसिंह नगर जिले में हुआ था। यह घोटाला एनएच 74 भूमि मुआवजा घोटाला के नाम से जाना गया। यह घोटाला लगभग 500 करोड़ रुपये का हुआ था। उस वक्त यशपाल आर्य हरीश रावत सरकार में राजस्व मंत्री थे। आर्य भी तब इस घोटाले के आरोप के घेरे में रहे। इस मामले में अधिकारियों पर गाज गिरी। जिसमें दर्जनों अधिकारी और कर्मचारी जेल गए थे। एनएच 74 मामले में खुद को घिरता देख यशपाल आर्य ने अपना पाला बदला और कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। इसके बाद भाजपा ने उन्हें 2017 में बाजपुर विधानसभा का प्रत्याशी घोषित किया।

तब भाजपा के टिकट पर सुनीता टम्टा बाजवा तैयारी कर रही थी। सुनीता टम्टा बाजवा का भाजपा में टिकट कट गया तो वह कांग्रेस में चली गई। पिछले महीने जब कांग्रेस की परिवर्तन रैली चल रही थी तब बाजपुर के मंच से पार्टी के कई बड़े नेताओं ने घोषणा की थी कि उनकी पार्टी की उम्मीदवार सुनीता टम्टा बाजवा ही होगी। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने मंच से इसे दोहराया था। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं। फिलहाल, यशपाल आर्य के कांग्रेस में घर वापसी के बाद उनका टिकट बाजपुर से तय माना जा रहा है। ऐसे में सुनीता टम्टा बाजवा के लिए एक बार फिर राजनीतिक ऊहापोह की स्थिति आ गई है। ऐसे में अगर सुनीता टम्टा बाजवा फिर से पार्टी बदलने को मजबूर हो सकती है। चर्चा है कि सुनीता टम्टा बाजवा आम आदमी पार्टी में जा 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बन सकती हैं। हालांकि जिस तरह से सुनीता टम्टा बाजवा के पति जगतार सिंह बाजवा बाजपुर में किसान आंदोलन को धार दी है उससे उनका भाजपा में घर वापसी संभव नहीं है। अगर वह भाजपा में जाते भी है तो उनसे किसान वर्ग नाराज हो सकता है। ऐसे में बाजवा परिवार के लिए आम आदमी पार्टी का रास्ता सुगम लग रहा है।

भाजपा के टिकट पर यहां से राजेश कुमार का लड़ना फिलहाल तय है। राजेश कुमार भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हैं। पिछले दिनों वह जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिले तो बाजपुर से चुनाव लड़ने का आशीर्वाद भी ले आए। भाजपा के पास राजेश कुमार के अलावा और कोई आज जनाधार वाला कैंडिडेट है भी नहीं। आम आदमी पार्टी का यहां से अभी कोई नेता मजबूत पैरवी करता नजर नहीं आ रहा है। उम्मीदवारों में इंद्रजीत सिंह अपनी पत्नी के लिए टिकट पाने की जुगत में लगे हुए हैं। इंद्रजीत सिंह का कोई खास राजनीतिक जनाधार नहीं है। जगतार सिंह बाजवा की तरह ही उनकी पत्नी भी अनुसूचित जाति की है जिसके चलते वह अपनी पत्नी के लिए आम आदमी पार्टी से टिकट मांग रहे हैं। जातीय समीकरण के लिहाज से देंखे तो सबसे बाजपुर में सबसे ज्यादा आबादी सिख मतदाताओं की है। इसके बाद बुक्सा जनजाति समुदाय के लोग भी यहां हैं। इस विधानसभा में करीब 25 प्रतिशत एससी, 9 प्रतिशत बुक्सा, करीब 10 प्रतिशत सिख, 8 प्रतिशत ब्राह्मण, 2 प्रतिशत राजपूत, 22 प्रतिशत मुस्लिम, करीब 8 प्रतिशत ओबीसी, 5 प्रतिशत पंजाबी, 5 प्रतिशत ठाकुर, 6 प्रतिशत बनिया और 3 प्रतिशत अन्य जातियों के मतदाता हैं।

बाजपुर के विकास कार्यों की बात करें तो जनता अपने जनप्रतिनिधि से काफी हद तक संतुष्ट दिखाई देती है। बाजपुर के हरबीर सिंह कहते हैं कि 2002 के बाद जब विधानसभा बनी तो लोगों को लगा कि अब विकास कार्य होगा। पहले अरविंद पांडे विधायक बने। लेकिन तब कांग्रेस की सरकार बनी तो वह 5 साल तक कहते रहे कि विपक्ष की सरकार है तो उन्हें काम नहीं करने दे रही है। उसके बाद जब उनकी पार्टी की सरकार बनी तो वह विकास कार्यों के नाम पर जनता को सिर्फ आश्वस्त ही करते रहे। पिछले 10 सालों में जबसे यशपाल आर्य यहां से विधायक बने तब से विकास कार्य तेज गति से हुए हैं। यशपाल आर्य के पहले 5 साल में करीब 16 सौ करोड़ की सड़कें बनी थी। डिग्री कॉलेज में पढ़ाई शुरू हुई थी। कॉलेज में कई विषय लाए गए। हर गांव में बारात घर बनाए गए। अल्पसंख्यकों के कब्रिस्तानांे की चारदीवारी कराई गई। पेयजल योजनाएं बनाई गई।

आईटीआई बनाया गया। जबकि दूसरे कार्यकाल में बस अड्डा बना तो गेस्ट हाउस भी बनाए गए। महुआ खेड़ा गंज में महिला आईटीआई बनी तो बुक्सा जनजाति का सामुदायिक हॉल भी बनाया गया। 100 एकड़ जमीन पर एकलव्य विद्यालय का निर्माण शुरू कराया गया। देवड़ा का पुल बना तो चकरपुर और सुल्तानपुर पट्टी में पॉलिटेक्निक कॉलेज बनाए गए। क्षेत्र की जनता यशपाल आर्य के विकास कार्यों से बहुत खुश हैं। हरबीर सिंह कहते हैं कि एक बार फिर यहां की जनता यशपाल आर्य को विधायक बनते देखना चाहती है।

कुल मिलाकर यह बात स्पष्ट तौर पर उभरती है कि यशपाल आर्या का भाजपा छोड़ कांग्रेस में वापसी करना सत्तारूढ़ दल के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन चुका है। आर्या की घर वापसी के चलते पूरे तराई इलाके में कांग्रेस को मजबूती तो मिली है लेकिन बाजपुर सीट पर कांग्रेस को भीतरघात का खतरा भी बढ़ रहा है। सुनीता टम्टा बाजवा के बगावती तेवर यशपाल आर्या और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी समान है।

मैं बाल्य काल से ही संघ का स्वयं सेवक रहा हूं। पिछले 35 साल से संघ की शाखा पर जाता रहा हूं। 2002 में मैं डिग्री कॉलेज बाजपुर का अध्यक्ष बना। उसके बाद से ही सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में सक्रिय हंू। विद्यार्थी परिषद का प्रमुख, नगर अध्यक्ष युवा मोर्चा का जिला महामंत्री रहा। जब 2012 में मैं युवा मोर्चा का जिला महामंत्री था तब भाजपा ने मुझे विधानसभा का प्रत्याशी बनाया था। उस समय मैंने कांग्रेस के प्रत्याशी यशपाल आर्य के सामने चुनाव लड़कर 23,383 वोट पाए थे। इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में मुझे विधानसभा संयोजक बनाया गया। तब मेरे विधानसभा से भाजपा के सांसद प्रत्याशी भगत सिंह कोश्यारी को 14,000 वोटों से जीत मिली थी। 2017 में मेरा पार्टी से टिकट तय था, लेकिन ऐन वक्त पर कांग्रेस छोड़ यशपाल आर्य भाजपा में आ गए जिससे मेरा टिकट कट गया।

2017 के विधानसभा चुनाव में मैं विट्टाानसभा संयोजक रहा। तब वोटिंग मशीन में नाम बेशक यशपाल आर्य का ही था लेकिन पूरा चुनाव मैंने ही लड़ा था। 2018 में मुझे एससी मोर्चा भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। इसी साल तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुझे समाज कल्याण योजनाएं एवं अनुश्रवण समिति का अध्यक्ष बनाकर राज्य मंत्री का दर्जा दिया। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में मुझे पश्चिम बंगाल के वर्धमान पूर्व लोकसभा का प्रत्याशी बनाया गया। पश्चिम बंगाल में ही 2021 के विधानसभा चुनाव में मुर्शीदाबाद जिले का प्रभारी बनाया गया जिसमें 9 विधानसभाओं का प्रभारी रहा। यहां हमारी पार्टी ने 2 सीटें जीती। 23 जून को मुझे पार्टी में प्रदेश प्रवक्ता बनाया गया है। फिलहाल मैं 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर रहा हूं। यशपाल आर्य जहां से आए थे वहीं चले गए। उनके जाने से भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह पुत्र मोह में पार्टियां बदलते रहते हैं। एक कांग्रेस की कैंडिडेट सुनीता टम्टा बाजवा है जिनके पति जगतार सिंह बाजवा कभी जिस पार्टी के नेता का सिर काट कर लाने वाले को इनाम देने की बात करते थे लेकिन बाद में उन्होंने माफी मांग कर कांग्रेस से टिकट ले लिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में उत्तराखण्ड में 2022 में फिर से हमारी सरकार बनेगी।
राजेश कुमार, प्रवक्ता, भाजपा उत्तराखण्ड

सुर्खियों में रहा 2007 का बाजपुर चुनाव

वर्ष 2007 का विधानसभा चुनाव बाजपुर के बाशिंदे अभी भी नहीं भूले हैें। तब एक ऐसा हादसा हुआ था जिसको याद करते हुए अभी भी लोगों की आंखें नम हो जाती है। उस समय भाजपा के विधायक अरविंद पांडे के सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता जनकराज शर्मा चुनाव लड़ रहे थे। वह एक चुनावी सभा से लौट रहे थे तभी एक दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। जनकराज शर्मा की मौत ने लोगों को स्तब्ध कर दिया। तब बाजपुर के निवासियों को जनकराज शर्मा के चुनाव जीतने पर पूरा यकीन था। इस हादसे के बाद विधानसभा चुनाव के साथ बाजपुर का चुनाव नहीं हो सका था। हालांकि पूरे प्रदेश का चुनाव परिणाम सामने आ चुका था। लेकिन भाजपा के पास बहुमत के लिए एक विधायक की कमी थी। इसके बाद हुए उपचुनाव में जनक राज शर्मा की पत्नी कैलाश रानी को कांग्रेस ने कैंडिडेट बनाया था। तिलक राज शर्मा की पत्नी कैलाश रानी के साथ सहानुभूति थी। सहानुभूति लहर में कैलाश रानी के जीतने के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन जब परिणाम आए तो लोगों को एक बारगी विश्वास ही नहीं हुआ। लोगों की अपेक्षाओं के विपरीत उप चुनाव में जीत अरविंद पांडे की हुई लेकिन जनक राज शर्मा के भाई और कांग्रेस नेता अविनाश शर्मा कहते हैं कि ‘उस समय भाजपा ने रात के अंधेरे में गन्ना सोसाइटी में रखे मतपत्र बदलवा दिए थे। रात को 4 से 5 घंटे तक मत पेटियां बदलने का यह खेल खेला गया। मत पेटियां बदलवाने वाले तत्कालीन एसडीएम के के निराला थे। तब हमसे ऊधमसिंह नगर जिला अधिकारी ने कहा था कि आप हारे नहीं बल्कि हराए गए हैं। बाद में उप जिलाधिकारी को इतनी आत्मग्लानि हुई कि वह उत्तराखण्ड छोड़कर उत्तर प्रदेश चले गए।’

हमारी ‘न्याय यात्रा’ चल रही है। हम सौ से ज्यादा गांवों में जाकर न्याय मांग चुके हैं। आगे भी न्याय मांगते रहेंगे। कांग्रेस पार्टी ने हमें हजारों लोगों की भीड़ में मंच से आश्वासन दिया है कि हमें ही वह विधानसभा का उम्मीदवार बनाएंगे। पार्टी के उन बड़े नेताओं पर ही विश्वास करके हम विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पूरी तैयारी कर चुके हैं। कांग्रेस के सभी नेताओं ने हमसे कहा कि वह टिकट की चिंता ना करें। क्षेत्र में जाकर तैयारी करें। तैयारी तो हम पिछले 5 साल से कर रहे हैं। जनता के बीच जा रहे हैं। चुनाव लड़ना तो हमारा तय है।
सुनीता टम्टा बाजवा, कांग्रेस नेत्री

 

हमने कोई चुनाव नहीं लड़ा लेकिन हम सामाजिक आंदोलन में अग्रणी रहे हैं। मेरे पति कांग्रेस पृष्ठभूमि से जुड़े रहें हैं। मैं और मेरे पति दोनों अन्ना आंदोलन में सक्रिय भूमिका में रहे। आप का गठन हुआ तो हम आम आदमी पार्टी में जुड़ गए। आज हम पार्टी की नीतियों को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। हमें उम्मीद है कि पार्टी हमें ही अपना उम्मीदवार बनाएगी। बाजपुर में बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए हमारा प्रयास रहेगा। जनता के यह मूल अधिकार हैं। इन्हें दिलाना हमारा फर्ज ही नहीं, बल्कि कर्तव्य है। बाजपुर का पिछले 20 सालों में कोई विकास नहीं हुआ। यहां भाजपा और कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता प्रतिनिधि बनते रहे, लेकिन काम के नाम पर राजनीति करते रहे।
संतोष आर्या, आम आदमी पार्टी

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