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Uttarakhand

फिर चौतरफा हार की कगार पर कांग्रेस

उत्तराखण्ड में इस बार भाजपा पूरे जोश के साथ चुनावी मैदान में है। पार्टी का दावा है कि वह एक बार फिर प्रदेश में पांचों सीटों को जीतकर क्लीन स्वीप करेगी। दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए यह चुनाव कड़ी परीक्षा के तौर पर सामने आ रहा है। पार्टी के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती अपने उम्मीदवारों को सत्ता पक्ष के सामने मजबूती से चुनाव लड़ाना है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भाजपा के मुकाबले निराशा हावी है जिसका कारण पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का हाथ का साथ छोड़ना है

भाजपा लोकसभा चुनाव के लिए मजबूती से मैदान में डट गई है। अपने मजबूत संगठन और वरिष्ठ नेताओं की सक्रियता से पार्टी के चुनाव प्रचार में तेजी आ चुकी है जबकि दूसरी ओर कांग्रेस में एक के बाद एक नेताओं का पार्टी छोड़ना कार्यकर्ताओं में हताशा और निराशा का माहौल बना रहा है। कांग्रेस के कमजोर संगठन से पार्टी नेताओं का भाजपा में शामिल होना चुनावी सरगर्मियां पैदा कर रहा है। प्रदेश की पांचों सीटों पर कांग्रेस की चुनावी रणनीति भाजपा के मुकाबले कमजोर आंकी जाने लगी है।

प्रदेश के गढ़वाल क्षेत्र में तो कांग्रेस की हालत इस कदर हो चुकी है कि 2022 में 14 विधानसभाओं में एक मात्र बदरीनाथ सीट कांग्रेस के खाते में थी लेकिन वह भी अब कांग्रेस के हाथ से निकल चुकी है। महज तीन दिनों के भीतर ही कांग्रेस के आठ बड़े नेताओं द्वारा पार्टी को अलविदा करके भाजपा का दामन थामा गया। इनमें टिहरी लोकसभा की गंगोत्री सीट से कांग्रेस के पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण, पुरोला के पूर्व विधायक मालचंद, टिहरी सीट से 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे धन सिंह नेगी ने भी कांग्रेस छोड़ दी है।

पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट पर तो कांग्रेस के थोक के भाव में नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया। इनमें चौबट्टाखाल से केसर नेगी, लैंसडाउन से अनुकृति गुसाई, पौड़ी से नवल किशोर, यमकेश्वर से शैलेंद्र रावत शामिल हैं। इनमें कई ऐसे नेता भी रहे हैं जिनको तमाम विरोध के बावजूद कांग्रेस ने 2022 के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था लेकिन आज सभी कांग्रेस छोड़ चुके हैं। इनमें कई नेता तो भाजपा में शामिल हो गए हैं।

कांग्रेस के हालात इस कदर क्यों हुए हैं इसका आकलन करना कोई कठिन काम नहीं है। लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस वरिष्ठ नेताओं को आपसी रार छोड़कर जीत के लिए रणनीति अपनाकर प्रचार में जुट जाना था उसके विपरीत ऐसे समय में पार्टी नेताओं की आपसी सिर फुटौव्बल जारी है। कांग्रेस का चुनावी समीकरण शुरू से ही गड़बड़ा गया। जिन नेताओं को पार्टी का दिग्गज माना जाता था उनके द्वारा चुनाव लड़ने से हाथ खड़े होने के चलते ही पार्टी में टिकट आवंटन में देरी हुई है। जिन चेहरों पर पार्टी ने दांव खेला है उससे एक बात तो साफ हो गई है कि कांग्रेस ने कम से कम तीन सीटों पर भाजपा की चुनावी जीत की राह मजबूत कर दी है।

कांग्रेस ने टिहरी सीट पर पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला, पौड़ी गढ़वाल सीट पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और अल्मोड़ा सीट पर पूर्व राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा को उम्मीदवार बनाया है तो नैनीताल सीट पर प्रकाश जोशी और हरिद्वार सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पुत्र विरेंद्र रावत को टिकट दिया है। भाजपा ‘अबकी बार चार सौ पार’ के नारे के साथ चुनावी मैदान में है और कांग्रेस भाजपा को कड़ी चुनौती देने का दावा कर रही है जबकि स्वयं कांग्रेस भीतर ही इसको लेकर एक राय नहीं देखी जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत विगत् एक वर्ष से हरिद्वार सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, वे वंशवाद की चपेट में आ खुद रणछोड़दास बन अपने पुत्र को टिकट दिला कांग्रेस के कई नेताओं से नाराजगी मोल ले चुके हैं।

ऐसा नहीं है कि हरिद्वार सीट पर कांग्रेस के पास उम्मीदवारों की कमी थी। प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा के अलावा हरक सिंह रावत भी यहां से चुनाव लड़ने का दावा कर रहे थे। सूत्रों की मानें तो इसके अलावा खानपुर से निदर्लीय विधायक उमेश कुमार शर्मा को कांग्रेस से टिकट दिए जाने की भी बात हुई लेकिन इस पर हरीश रावत ने अपना विरोध जताकर इस संभावना को ही खत्म कर दिया। लेकिन हरीश रावत के एक राजनीतिक दांव चलते उम्मीदवार के चयन में कांग्रेस के पसीने छूट गए। राजनीतिक तौर पर हरीश रावत इस क्षेत्र में खासे जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। पूर्व में 2009 में हरीश रावत इस सीट से चुनाव जीतकर संसद पंहुचे थे। साथ ही उनकी हरिद्वार के हर मामले में सक्रियता भी रही है।

हरीश रावत अपने जनाधार का फायदा अपने पुत्र को कितना दिलवा पाएंगे यह तो चुनाव परिणामों के बाद ही पता चलेगा। माना जा रहा है कि अगर हरीश रावत स्वयं चुनाव लड़ते तो मुकाबला बेहद दिलचस्प और कांटे का बन सकता था। चर्चा है कि वह अपने पुत्र जिसका सक्रिय राजनीति से सरोकार नहीं रहा से भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत का मुकाबला किस प्रकार से करेंगे। कहा जा रहा है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ भाजपा का पूरा संगठन और वरिष्ठ नेताओं यहां तक कि पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे निशंक का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। इसके अलावा खानपुर विधायक उमेश कुमार के निदर्लीय चुनाव में खड़ा होने के बाद मामला त्रिकोणीय भी बताया जाने लगा है। बसपा ने भावना पाण्डे को हरिद्वार सीट से उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा की जिसके चलते बसपा के कैडर मतदाताओं में विरोध के स्वर उठने लगे थे। दो दिन के बाद ही भावना पाण्डे ने बसपा को अलविदा कह भाजपा का दामन थाम लिया।

टिहरी सीट पर लगातार तीन बार चुनाव जीतने वाली भाजपा की महारानी माला राजलक्ष्मी के मुकाबले कांग्रेस के जोत सिंह गुनसोला मैदान में हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रीतम सिंह टिहरी सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े हैं और तीन लाख से ज्यादा मतों से हार चुके हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि अगर टिहरी सीट से प्रीतम सिंह कांग्रेस के स्वाभाविक उम्मीदवार होते तो मुकाबला जोरदार होता लेकिन प्रीतम सिंह चुनाव लड़ने से पहले ही इनकार कर चुके थे। इस सीट से बेरोजगार महासंघ के बॉबी पंवार भी निदर्लीय चुनाव में खड़े हैं। इससे कांग्रेस के वोटों में सेंध लगने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।

पौड़ी सीट पर कांग्रेस के लिए खासा दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे मनीष खंडूड़ी ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया तो गणेश गोदियाल के उम्मीदवार घोषित होने के बाद बदरीनाथ सीट से विधायक राजेंद्र भंडारी भी कांग्रेस से विधायकी छोड़ भाजपा की गोेद में चले गए। जबकि राजेंद्र भंडारी गढ़वाल की 14 संसदीय सीटों में से बदनीनाथ से कांग्रेस के एकमात्र विधायक चुने गए थे।

चर्चा है कि राजेंद्र भंडारी पौड़ी सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन कांग्रेस ने गणेश गोदियाल को ही टिकट देकर भंडारी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। लेकिन सूत्रों की मानें तो इसके पीछे का कारण राजेंद्र भंडारी की पत्नी रजनी भंडारी जो कि चमोली जिला पंचायत अध्यक्ष भी हैं, के भ्रष्टाचार के कई मामलों की जांच भी चल रही है। जिस पर कार्रवाई होने का डर भंडारी को भाजपा में ले आया। राज्य सरकार रजनी भंडारी के खिलाफ कार्यवाही के लिए हर प्रकार से प्रयास करती रही है। पूर्व में भाजपा रजनी भंडारी को जिला पंचायत अध्यक्ष पद से अविश्वास प्रस्ताव के जरिए भी हटाने में कामयाब रही लेकिन हाईकोर्ट से उनकी बहाली होने के बाद भंडारी दम्पत्ति और भाजपा के बीच रार बहुत बढ़ गई थी। इस मामले में रजनी भंडारी के खिलाफ बड़ी कार्यवाही होना तय माना जा रहा था। चर्चा है कि लोकसभा चुनाव के बाद सरकार इस मामले में बड़ा कदम उठा सकती थी। सूत्रों की मानें तो बदरीनाथ सीट पर उपचुनाव में भाजपा राजेंद्र भंडारी को उम्मीदवार के तौर पर टिकट दे सकती है।

लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस वरिष्ठ नेताओं को आपसी रार छोड़कर जीत के लिए रणनीति अपनाकर प्रचार में जुट जाना था उसके विपरीत ऐसे समय में पार्टी नेताओं की आपसी सिर फुटौव्बल जारी है। कांग्रेस का चुनावी समीकरण शुरू से ही गड़बड़ा गया। जिन नेताओं को पार्टी का दिग्गज माना जाता था उनके द्वारा चुनाव लड़ने से हाथ खड़े होने के चलते ही पार्टी में टिकट आवंटन में देरी हुई है। जिन चेहरों पर पार्टी ने दांव खेला है उससे एक बात तो साफ हो गई है कि कांग्रेस ने कम से कम तीन सीटों पर भाजपा की चुनावी जीत की राह मजबूत कर दी है। भाजपा ‘अबकी बार चार सौ पार’ के नारे के साथ चुनावी मैदान में है और कांग्रेस भाजपा को कड़ी चुनौती देने का दावा कर रही है जबकि स्वयं कांग्रेस भीतर ही इसको लेकर एक राय नहीं देखी जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत विगत् एक वर्ष से हरिद्वार सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, वे वंशवाद की चपेट में आ खुद रणछोड़दास बन अपने पुत्र को टिकट दिला कांग्रेस के कई नेताओं से नाराजगी मोल ले चुके हैं

नैनीताल सीट पर भी कांग्रेस ने चौंकाते हुए दो बार 2012 और 2017 में विधायक का चुनाव हारने वाले प्रकाश जोशी को अपना उम्मीदवार बनाया है। जबकि पूर्व सांसद महेंद्र पाल को टिकट दिए जाने की पूरी संभावना जताई जा रही थी। स्वयं कांग्रेस के कई नेता दबे स्वर में मान रहे हैं कि जो व्यक्ति विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाया हो वह नैनीताल जैसी 14 विधानसभाओं में किस तरह से जीत पाएगा। राजनीतिक तौर पर प्रकाश जोशी का अपना कोई व्यक्तिगत जनाधार नहीं होने का भी प्रभाव चुनाव में पड़ सकता है। कांग्रेस का कमजोर और जनाधारविहीन उम्मीदवार के होने से भाजपा के अजय भट्ट को वॉक आउट मिलता दिख रहा है। पहले अजय भट्ट के लिए कहा जा रहा था कि उनके लिए नैनीताल सीट पर चुनाव जीतना कठिन हो सकता है लेकिन अब उन्हें चुनावी फायदा मिलता दिखाई दे रहा है।

अल्मोड़ा सीट पर कांग्रेस ने एक बार फिर से प्रदीप टम्टा पर ही दांव खेला है। जबकि इस क्षेत्र में कांग्रेस के कई अन्य नेता भी दावेदार थे। इनमें बसंत कुमार का नाम सबसे ऊपर माना जा रहा था। लेकिन इस सीट पर कांग्रेस ने टम्टा के सामने टम्टा का फार्मूला अपनाया। प्रदीप टम्टा 2009 में लोकसभा से चुनाव जीत चुके हैं और 2016 में कांग्रेस से राज्यसभा सांसद भी रहे हैं। पूर्व में सोमेश्वर के विधायक भी रह चुके हैं। इसके चलते कांग्रेस ने भाजपा के अजय टम्टा के खिलाफ प्रदीप टम्टा को मैदान में उतारा है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो अल्मोड़ा सीट पर कांग्रेस की स्थिति कुछ बेहतर है और चुनावी मुकाबले में कांग्रेस भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है। इसका एक कारण यह माना जा रहा है कि अजय टम्टा से क्षेत्र के मतदाताओं में खासा रोष है। स्वयं भाजपा भीतर इस सीट पर उम्मीदवार को बदलने की चर्चा थी लेकिन सभी कयासों को दरकिनार करते हुए अजय टम्टा को ही फिर से तीसरी बार उम्मीदवार बनाया गया है।

जिस कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबले के लिए जीत की रणनीति और राजनीति के साथ उतारना था आज उसी कंाग्रेस की नीति पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। जबकि प्रदेश में कांग्रेस का आज भी जनाधार बना हुआ है। राज्य बनने के बाद इन 24 वर्षों में प्रदेश की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस ही चुनाव की मुख्य धुरी रही हैं। राज्य बनने के बाद 5 विधानसभा चुनाव तो 4 लोकसभा चुनाव हुए हैं जिनमें कांग्रेस और भाजपा की सरकारें रही। पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज एक सीट के साथ 38.31 प्रतिशत मत मिले थे तो वहीं भाजपा को तीन सीट मिलने के साथ 40.98 प्रतिशत मत मिले थे जो कि कांग्रेस से महज 2.67 प्रतिशत ही ज्यादा रहा। इसी तरह 2009 में भाजपा की खंडूड़ी सरकार होने के बावजूद कांग्रेस को पांच सीटों के साथ ही 36.11 प्रतिशत वोट हासिल हुए जबकि भाजपा को 2004 के मुकाबले लगभग 13 फीसदी वोटों का भारी नुकसान हुआ।

2014 के लोकसभा चुनाव में देश में मोदी की जबर्दस्त लहर रही और प्रदेश में भाजपा ने पांचों सीटों पर जीत हासिल कर पहली बार लगभग 56 प्रतिशत वोट हासिल किए। लेकिन इस चुनाव में भी कांग्रेस के खाते में भले ही एक सीट नहीं आ पाई हो उसका वोट प्रतिशत 34.40 प्रतिशत रहा जो कि 2009 के मुकाबले महज दो प्रतिशत ही कम रहा। मोदी लहर होने के बावूजद कांग्रेस पार्टी पर मतदाताओं ने अपना भरोसा नहीं खोया।

2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से मोदी लहर का असर देश में देखने को मिला और भाजपा ने फिर से लगातार दूसरी बार क्लीन स्वीप करते हुए प्रदेश की पांचों सीटों पर बड़ी जीत हासिल की। राजनीतिक जानकार इसे मोदी लहर का असर तो बताते हैं लेकिन साथ ही कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और उनके नेताओं की कार्यशैली एवं चुनावी रणनीति को समझने में नाकामी को ही हार का कारण बताते हैं। आज कांग्रेस की जो भी हालत हो रही है उसके लिए एक स्वर में कहा जाए कि इसके लिए कांग्रेस के बड़े नेताओं और पार्टी आलाकमान की ही कमजोरी है तो गलत नहीं होगा।

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