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Uttarakhand

समाधान के अभाव में भटकने की मजबूरी

प्रदेश में सरकार बदली लेकिन अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त और आश्रित परिवारों की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। पूर्व में मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत ने अर्द्धसैनिक बलों की समस्याओं के समाधान के लिए अर्द्धसैनिक कल्याण परिषद् और निदेशालय निर्माण की कवायद शुरू की थी। रावत की सरकार के बाद प्रदेश में तीन मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनकी समस्याएं जस की तस है। बावजूद इसके कि मामला विधानसभा में भी उठाया जा चुका है

प्रदेश में अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्ति व आश्रित परिवार कई तरह की समस्याओं से दो चार हो रहे हैं। उनकी समस्याओं को सुनने व जानने की ऐसी कोई स्थाई व्यवस्था नहीं है, जिससे समस्याओं का समाधान समय पर हो सके और उन्हें छोटी-छोटी समस्याओं के लिए इधर-उधर भटकना ना पड़े। अब अर्द्धसैनिक बलों की तरफ से उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक सलाहकार कल्याण परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष लेफ्टिनेंट कर्नल सत्यपाल सिंह गुलेरिया ने मांग की है कि जब तक प्रदेश में अर्द्धसैनिक बलों का निदेशालय एवं उसके क्षेत्रीय कार्यालय नहीं खुल जाते तब तक प्रदेश के हर जिले में स्थित सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास बोर्ड में एक-एक अतिरिक्त लिपिक की तैनाती की जाए ताकि इन पूर्व सैनिकों को छोटी-छोटी समस्याओं के लिए न भटकना पड़े।

उल्लेखनीय है कि प्रदेश में अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत कर्मचारियों की समस्याओं को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने कार्यकाल में पैरामिलट्री फोर्सेज के निदेशालय का ढांचा स्वीकृत किया था। इसी के तहत अल्मोड़ा व कोटद्वार में क्षेत्रीय कार्यालय गठित होने थे। इसके लिए 2 करोड़ की धनराशि भी स्वीकृत की गई थी। लेकिन बाद में प्रदेश में सरकार बदल जाने के बाद से यह मामला आगे नहीं बढ़ पाया। हालांकि बीच में यह मुद्दा विधानसभा में उठा। विधायक प्रीतम सिंह पंवार ने कार्यस्थगन के दौरान यह मुद्दा उठाया था कि अर्द्धसैनिक बलों में राज्य के बड़ी संख्या में लोग हैं। वे लंबे समय से अर्द्धसैनिक कल्याण परिषद और पृथक निदेशालय के गठन की मांग कर रहे हैं। तब इसके जवाब में प्रदेश सरकार की तरफ से कहा गया था कि अर्द्धसैनिक राज्याधीन सेवाओं से नहीं जुड़े हैं। लिहाजा सरकार इस मामले में केंद्र से अनुरोध करेगी व एक प्रस्ताव भेजेगी। तब से लगातार यह मामला उठता रहा है लेकिन बावजूद इसके इस पर कोई कार्रवाही नहीं हो पाई है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने कार्यकाल में कुछ लाभ अर्द्धसैनिक बलों से जुड़े पूर्व सैनिकों को दिलाये थे, जिसमें अर्द्ध सैनिक बलों के लिए भर्ती पूर्व प्रशिक्षण, विभिन्न युद्धों व सीमांत झड़पों तथा आंतरिक सुरक्षा में शहीद हुए सैनिकों व अर्द्ध सैनिक बलों की विधवाओं/आश्रितों को एकमुश्त 10 लाख तक अनुग्रह अनुदान की व्यवस्था की गई थी, जिसका वर्तमान में वह लाभ उठा रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भी अभी अर्द्धसैनिक बलों के पूर्व सैनिकों के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

फोटो : देशबंधु पोर्टल से /सीमा पर तैनात अर्द्धसैनिक बल के जवान

प्रदेश में सेवानिवृत्त अर्द्धसैनिकों का कहना है कि अर्द्धसैनिक कल्याण बोर्ड एवं निदेशालय का गठन किया जाए। हर जिले में केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल कल्याण बोर्ड की स्थापना हो। केंद्रीय गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम के तहत प्रदेश से सभी जिलों में डिस्पेंशनरी खोली जाए, जिससे अर्ध सैनिक बलों के आश्रितों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिले। सेंट्रल पुलिस कैंटीन के सामान पर लगने वाले टैक्स (जीएसटी) को हटाया जाए। अर्द्धसैनिक बलों से जुड़े जवानों का कहना है कि सेना की तरह अर्द्ध सैनिक बलों की ड्यूटी एवं तकलीफें समान हैं। ऐसे में उन्हें पैरामिलिट्री सर्विस ‘पे’ का लाभ दिया जाना चाहिए। ‘पे’ कमीशन की विसंगतियों को लेकर भी इनमें नाराजगी है। इसके अलावा आश्रितों को भर्ती में छूट के साथ ही आवासीय सुविधा भी होनी चाहिए। अर्द्धसैनिक बलों से जुड़े पूर्व सैनिकों का कहना है कि सेवानिवृत एवं सेवारत सदस्यों के आश्रितों को योग्यतानुसार कोटा और भर्ती में छूट की मांग कर रहे हैं। इनका कहना है कि अर्द्धसैनिक सेवाकाल में बॉर्डर डयूटी, नक्सल एरिया, इंटरनल डयूटी देते हैं। इस दौरान कई जवान मारे जाते हैं, उन्हें शहीद का दर्जा मिलना चाहिए। इनका यह भी कहना है कि सभी अर्द्धसैनिक बलों के जवान सीमा पर तैनात रहते हैं, आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा भी उठाते हैं लेकिन उन्हें आर्मी के भूतपूर्व सैनिकों की तरह सुविधाएं नहीं दी जाती हैं। उन्हें उनकी तरह शराब का कोटा, मरणोपरांत सम्मान, मौत पर देयराशि मिलनी चाहिए। कई सैनिकों का कहना है कि उन्हें कैंटीन की सुविधा मिल तो रही है लेकिन उस तरह नहीं मिल रही है जैसे सेना के सेवानिवृत्त जवानों को मिलती है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में अर्द्धसैनिक बलों से जुड़ी संस्था कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स बेलफेयर एसोसिएशन ने केंद्रीय सरकार पर अर्द्धसैनिक बलों के प्रति भेदभाव का आरोप लगाते हुए यह ट्वीट किया था कि न कामदार, न नामदार, मैं हूं बिना पेंशन सरहदों का चौकीदार। सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी समस्याओं पर भी तब रोष जाहिर किया था। लेकिन तब से अब तक स्थितियों में कोई खास बदलाव नहीं आया है।

वहीं दूसरी तरफ अर्द्धसैनिक बलों में कार्यरत जवानों की स्थितियां भी ठीक नहीं है। गृह विभाग से संबंधित एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार देश के 6 अर्द्धसैनिक बलों के लगभग 50,100 कर्मियों ने पिछले पांच साल में नौकरी छोड़ी हैं। इसमें बीएसफ, सीआरपीएफ व आईटीबीपी के मुकाबले असम राइफल्स व केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा में नौकरी छोड़ने वालों की संख्या कहीं अधिक है, जो काफी चिंताजनक तस्वीर पेश करती है। कई कारणों से पिछले पांच सालों में 50 हजार से अधिक जवानों ने यहां नौकरियां छोड़ी हैं। उल्लेखनीय है कि पूरे देश में अर्द्धसैनिक बलों की संख्या 10 लाख से अधिक है। इसको देखते हुए संसदीय समिति ने कुछ सिफारिशें की थी जिसे अभी पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका है। संसदीय समिति की सिफारिशों के अनुसार जवानों की तैनाती में रोटेशन का पालन किया जाना चाहिए। जिससे जवान ज्यादा समय तक कठोर पोस्टिंग में नहीं रहे। नौकरी छोड़ने वाले जवानों के मुख्य कारणों की तलाश भी की जानी चाहिए। काम करने की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार के लिए तत्काल उपाय किए जाने चाहिए। लेकिन पूर्व सैनिकों का कहना है कि तमाम रिपोर्ट एवं सिफारिशों के बाद भी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आ पा रहा है। नौकरी छोड़ने के अलावा जवानों की आत्महत्या भी एक बड़ा मसला बन रहा है। इसमें निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। एक आंकड़े के अनुसार वर्ष 2018 से 2022 तक 654 जवानों की आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। हालांकि आत्महत्या रोकने के लिए गृह मंत्रालय ने एक टास्क फोर्स गठित किया हुआ है। इसके अलावा जवानों के तनाव कम करने के लिए योग व मनोवैज्ञानिक परामर्श देने संबधी कई कदम उठाये जाने की बात भी कही जाती रही है।

नौकरी छोड़ने व आत्महत्या करने के मुख्य कारण
तमाम रिपोर्टो व सिफारिशों पर अमल न होना, समय पर पदोन्नति नहीं मिलना, निचले पदों पर पदोन्नति अपेक्षा के अनुरूप नहीं होना, लंबे समय तक कठोर तैनाती, रोटेशन नीति का पालन नहीं होना, करियर की चिंता, स्वास्थ्य की वजह, कई पारिवारिक कारणों के चलते सैनिक तनाव में रहते हैं जो उन्हें नौकरी छोड़ने व आत्महत्या करने के लिए विवश करते हैं।
ये हैं अर्द्धसैनिक बल : भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, राष्ट्रीय राइफल्स, भारतीय तटरक्षक, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, सशस्त्र सीमा बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड।

वर्तमान में प्रदेश के अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत कर्मचारियों व इनके आश्रितों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके लिए जरूरी है कि फिलहाल प्रदेश के सभी जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय में अलग से एक लिपिक की नियुक्ति की जाए जो इनकी समस्याओं को देखे और इन्हें सही परामर्श दे ताकि इन्हें इधर- उधर न भटकना पड़े। इसके अलावा निदेशालय व क्षेत्रीय कार्यालयों के निर्माण का काम शीघ्रताशीघ्र हो। इन पूर्व सैनिकों की कई जायज मांगें हैं, उन पर विचार किया जाना जरूरी है। अर्द्धसैनिक बलों के पूर्व कर्मचारियों का जो हक बनता है, वह उन्हें मिलना चाहिए।
ले. कर्नल, एस.पी.गुलेरिया, पूर्व उपाध्यक्ष, उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक सलाहकार परिषद्

 

हमारे कार्यकाल में अर्द्धसैनिक बलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। चाहे वह सीआरपीएफ, बीएसएफ या फिर सीआईएसएफ हो। इनकी तथा इनके परिवारों की समस्याएं सैनिकों से थोड़ी अलग होती है। वो तो समस्याओं का फेस करते ही हैं, साथ ही उनके परिवार भी इनसे दो-चार होते हैं। उनका समाधान करने के लिए ही हमारी सरकार ने एक संगठित मंच अर्द्धसैनिक कल्याण परिषद् बनाई थी जिसके लिए हमने दो करोड़ रुपए भी जारी किए थे। तब हमने निदेशालय बनाने और अधिकारी भी तैनात करने का जीओ जारी किया था। लेकिन हमें पता चला है कि वर्तमान सरकार ने उन सभी परियोजनाओं को डंप कर दिया है।
सरकार का यह कदम जनहित विरोधी है।
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड

 

 

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