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Uttarakhand

विज्ञान को अंग्रेजी में पढ़ाने की बाध्यता खत्म

 

 

‘दि संडे पोस्ट’ के तीन जुलाई के अंक में ‘अंग्रेजी अक्षर भैंस बराबर’ नामक शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया गया था। जिसमें बताया गया था कि उत्तराखण्ड की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की जद्दोजहद के बीच पांच वर्ष पूर्व त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के द्वारा एक आदेश जारी हुआ था, जो ज्यादातर शिक्षकों के लिए गले की फांस बन गया, तो वहीं छात्रों के लिए इस आदेश के तहत पढ़ाई करना भी किसी मुश्किल हालातों से सामना करने जैसा है। तब शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई  एनसीईआरटी पुस्तकों के माध्यम से होने का निर्देश था। लेकिन इसी आदेश में एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि कक्षा 6 से छात्रों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ाया जाएगा। कक्षा 6 से शुरू हुआ यह पाठ्यक्रम अब कक्षा 10 तक जा पंहुचा है जहां अंग्रेजी में विज्ञान विषय पढ़ाया जा रहा है। लेकिन इस पाठ्यक्रम के तहत न केवल छात्रों को बल्कि अध्यापकों को भी असहज होना पड़ रहा था। अंग्रेजी में विज्ञान विषय पढ़ाने के लिए शिक्षकों को कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया। इससे शिक्षकों के सामने ऊहापोह की स्थिति आ रही थी। वे सरकार से यह भी मना नहीं कर सकते हैं कि वे अंग्रेजी में विज्ञान नहीं पढ़ा सकते हैं तो दूसरी तरफ वे छात्रों को भी इस विषय में अंग्रेजी में निपुण करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे थे। राजकीय विद्यालयों में विगत वर्षों के विज्ञान को अंग्रेजी में पढ़ाने के अनुभव भी उत्साहवर्धक नहीं रहे। खास बात यह है कि इस विषय के छात्र ज्यादातर अनुत्तीर्ण हो रहे हैं जो सरकार के लिए चिंता का विषय है। अगले साल जब 10वीं की बोर्ड परीक्षा अंग्रेजी माध्यम से होगी तो स्वाभाविक है कि उनकी बोर्ड की परीक्षा का रिजल्ट पर भी इसका असर पड़ा सकता है जिससे शिक्षक और छात्र दोनों ही आशंकित थे।


यह आदेश तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के लिए तो सिर दर्द रहा ही वर्तमान धामी सरकार के लिए भी परेशानी का सबब बना हुआ था। परेशानी का सबब इसलिए कि सरकारी स्कूलों के जिन बच्चों को अंग्रेजी की वर्णमाला तक सही ढंग से नहीं आती हो उनके लिए एक ऐसा नियम बना दिया गया था जो उनके लिए ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ साबित हो रहा था। यह कक्षा 6 से विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाने का फरमान था। इस फरमान के आगे कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं था। अगर कोई इस मामले में विरोध करता है तो कहा जाता है कि सरकार नई नीति के तहत विद्यालयों का कायाकल्प करने में जुटी है और छात्रों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ रही है लेकिन रूढ़ीवादी लोग इसका विरोध कर रहे हैं। इसी के साथ सरकारी स्कूलों में अध्यापन कार्य करा रहे शिक्षकों के लिए भी सरकार का यह आदेश असमंजस में डाल रहा था क्योंकि शिक्षक भी इस नीति का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे थे।


पुष्कर सिंह धामी सरकार शिक्षा के सरलीकरण की तैयारी कर रही है। जिसके तहत नई शिक्षा नीति को लागू करने की तैयारी की जा रही है। उत्तराखण्ड की नई शिक्षा नीति के अनुसार गढ़वाल मंडल में गढ़वाली जबकि कुमाऊं मंडल में कुमाऊंनी भाषा का अध्ययन करने के लिए पाठ्यक्रम बनाए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि अगले सत्र से छात्र-छात्राओं को अपनी लोक भाषाओं का अध्ययन करने का मौका मिलेगा। इसके साथ ही उन्हें लुप्त होती ऐपण कला सीखने को भी मिलेगी। जिससे लोक भाषाओं और लोक कला को काफी बढ़ावा मिलेगा। इसे संरक्षित करने एवं एक शब्दकोश तैयार करने के लिए गांव-गांव में सर्वे कर शोध प्रोजेक्ट भी चलाया जाएगा। लेकिन इसके विपरीत आज से पांच साल पहले विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाए जाने के आदेश भी हुए जिसमें बहुत जल्दबाजी का निर्णय कहा गया। लोगों की मानें तो उस समय इस विषय पर लोगों की राय-मशविरा लेने के बाद और एक स्पष्ट नीति बनाने के बाद ही फैसला लिया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।


‘दि संडे पोस्ट’ ने जब यह समाचार प्रकाशित किया था प्रदेश के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत को इस बाबत बताया और साथ ही उनका वक्तव्य भी लिया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि यह मामला हमारे संज्ञान में आया है। इस पर विचार कर रहे हैं कि किस तरह से छात्रों की इस समस्या का समाधान किया जाए। बहुत जल्द ही इसका समाधान सामने आएगा। अपने वायदे के मुताबिक शिक्षा मंत्री ने इस मामले में आदेश कर दिए हैं। फिलहाल, उत्तराखण्ड सरकार के शिक्षा विभाग ने फेरबदल करते हुए बड़ा निर्णय लिया है। अब प्रदेश के राजकीय स्कूलों में कक्षा 6 से 12वीं तक के छात्र विज्ञान विषय की पढ़ाई हिंदी माध्यम में भी कर सकेंगे। गत 30 जुलाई को प्रदेश के शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने समस्त मुख्य शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी किया है कि विज्ञान अंग्रेजी और हिंदी दोनों माध्यम से पढ़ाया जाए।शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि प्रदेश में 23 अगस्त 2017 के एक आदेश के अनुसार कक्षा 3 से क्रमोत्तर रूप से अंग्रेजी माध्यम से विज्ञान विषय पढ़ाए जाने की व्यवस्था है। पता चला है कि विज्ञान विषय की अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई में कठिनाई हो रही है। इस मामले में निर्णय लिया गया है कि अब विज्ञान विषय को अंग्रेजी व हिंदी दोनों माध्यमों से पढ़ाया जाएगा।

 

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