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Uttarakhand

महाराज की राजनीति पर संकट के बादल

धर्मगुरु और राजनेता की दोहरी भूमिका निभाने वाले सतपाल महाराज से चौबट्टाखाल विधानसभा क्षेत्र की जनता खासी नाखुश है। उनके द्वारा किए गए विकास के वायदे धरातल पर दूर-दूर तक नजर नहीं आते हैं। हालांकि इस सीट पर इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी जोर-आजमाइश करती नजर आ रही है। मुख्य मुकाबला लेकिन भाजपा बनाम कांग्रेस की रहना हाल-फिलहाल तक दिखाई पड़ रहा है

गढ़वाल मंडल की चौबट्टाखाल विधानसभा सीट प्रदेश की हॉट सीटों में से एक है। वर्तमान में यहां से पर्यटन और लोक निर्माण मंत्री सतपाल महाराज विधायक हैं। इनके पहले सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके तीरथ सिंह रावत विधायक रह चुके हैं। भाजपा-कांग्रेस, दोनों दलों के कद्दावर नेता इस सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं लेकिन इन नेताओं ने कभी अपने क्षेत्र में विकास को अहमियत नहीं दी जिसके चलते क्षेत्र की जनता आज भी सड़क, पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों से महरूम है। वर्तमान विधायक एवं कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने चुनाव के दौरान कई बड़े वादे किए थे। सिर्फ उनके वादों को ही क्षेत्र में खंगालें तो अभी तक जमीन पर कोई उतरता दिखाई नहीं दे रहा है। इससे क्षेत्र की जनता अपने विधायक से बेहद नाराज हैं। आगामी चुनाव में मतदाताओं की नाराजगी उनकी जीत-हार को कितना प्रभावित करती है, यह देखना कम दिलचस्प नहीं होगा।

यह सीट सतपाल महाराज की परंपरागत सीट मानी जाती है। हालांकि साल 2012 में इस सीट से भाजपा के वर्तमान सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री रहे तीरथ सिंह रावत चुनाव जीते थे। उसके पहले पहले और दूसरे विधानसभा चुनाव के दौरान यह सीट बीरोखाल के नाम से जानी जाती थी। दोनों चुनाव सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत ने जीती थीं। इस सीट से वर्तमान में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज विधायक हैं। यानि चार चुनाव में से तीन बार यहां महाराज के परिवार का कब्जा रहा है। कांग्रेस से बगावत करके बीजेपी में शामिल हुए सतपाल का चौबट्टाखाल गृह क्षेत्र भी है। शायद इसीलिए पिछले चुनाव में भाजपा ने अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं सीटिंग विधायक तीरथ सिंह रावत का टिकट काटकर महाराज को टिकट दिया गया। पिछले चुनाव में इस सीट पर 16 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। भाजपा के उम्मीदवार सतपाल महाराज जीते और विधायक बने। उन्हें कुल 20921 वोट मिले। वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार राजपाल सिंह बिष्ट कुल 13567 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। 7354 मतों से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। तीसरे और चोथे नंबर पर निर्दलीय रहे।

2012 में इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार तीरथ सिंह जीते थे। उन्हें कुल 14741 वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार राजपाल सिंह बिष्ट कुल 12,777 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। उन्हें 1964 मतों से हार का मुंह देखना पड़ा। तीसरे नंबर पर निर्दलीय यशपाल बेनाम और चौथे नंबर बसपा के राजेश कंडारी रहे थे। यह क्षेत्र साल 2008 के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन आदेश से अस्तित्व में आया। परिसीमन होने से पहले ये सीट बीरोखाल विधानसभा थी। पूर्व में 2002 और 2007 में बीरोखाल विधानसभा से दो बार कांग्रेस के टिकट पर उनकी पत्नी अमृता रावत विधानसभा का चुनाव जीत चुकी हैं। पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में पहली बार मैदान में उतरे सतपाल महाराज ने गांव-गांव तक बुनियादी सुविधाओं की पहुंच बनाने का वादा किया था। वे न केवल चुनाव जीते बल्कि भाजपा की सरकार बनने पर पर्यटन जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय के मंत्री बने। उनके पर्यटन मंत्री बनने पर क्षेत्र के लोगों का उत्साह दोगुना हो गया। इसके कारण भी थे, क्योंकि सतपाल महाराज ने क्षेत्र में कई ऐसे वायदे किए थे जो पर्यटन विभाग से जुड़ा हुआ था। इसलिए लोगों को लगा कि वे अपने किए गए वादों को जल्द ही जमीन पर उतारेंगे। उनका कार्यकाल खत्म होने को है। बहुत जल्द चुनाव की घोषणा होने वाली है। लेकिन उनके वादे पूरे नहीं हुए। मसलन, सतपुली में झील बनाने का वायदा किया गया था। यह झील पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण होती। यही नहीं झील बनने के बाद इसे पौड़ी के पर्यटन सर्किट से भी जोड़ने का वायदा भी किया गया था। लेकिन सतपुली में झील नहीं बनी। स्थानीय लोगों को उम्मीद था कि झील के बनने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। राज्य के अलावा देश भर के लोग यहां आएंगे। इससे इस क्षेत्र का और विकास होगा।

सतपुली देश की राजधानी दिल्ली से भी काफी नजदीक है। दिल्ली के लोग वीकेंड पर पहाड़ी इलाकों में घूमने जाते रहते हैं। अभी तक राजधानीवासी मसूरी, नैनीताल या शिमला जाना ज्यादा पसंद करते हैं। जबकि सतपुली, पौड़ी, लैंसडाउन इन सब हिल स्टेशनों से ज्यादा नजदीक है। इसलिए लोगों को लग रहा था कि यदि सतपुली और उसके आस-पास के अन्य पर्यटन, एवं ऐतिहासिक स्थलों का विकास होगा तो इस क्षेत्र का कलाकल्प हो जाएगा। अब ऐसा न होने से लोगों में सतपाल महाराज के खिलाफ नाराजगी है। सूत्र बताते हैं कि कण्वाश्रम प्रोजेक्ट के तहत सतपुली में नयार नदी पर झील बनाने का प्रस्ताव दिया गया है। इस प्रोजेक्ट के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक से 15 करोड़ के करीब धनराशि मंजूर की गई है। सतपुली झील का प्रस्ताव अभी पर्यटन विभाग के पास पड़ा हुआ है। इस झील के अलावा क्षेत्र के दो धार्मिक स्थलों में रोपवे निर्माण का वादा किया गया था। इसमें पोखड़ा ब्लॉक के अंतर्गत जलपाड़ी-दीवा का डांडा और जयहरीखाल क्षेत्र में कीर्तिखाल-भैरवगढ़ी रोपवे बनाना था। इन दोनों मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं को कई किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।

पोखड़ा ब्लॉक में जलपाड़ी-दीवा का डांडा मंदिर जाने के लिए अभी 7 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है। उसी तरह भैरवगढ़ी भी खूबसूरत स्थान है। यहां भैरवनाथ का मंदिर है। यहां पहुंचने के लिए लोगों को ढाई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इन मंदिरों का प्रचार-प्रसार होने पर देश के अलग-अलग हिस्सों से भी श्रद्धालु यहां आ सकते हैं लेकिन इन दोनों रोपवे का प्रस्ताव पर्यटन विकास निदेशालय स्तर पर अटका पड़ा है। अभी तक इसका क्रियान्वयन नहीं हुआ है। इस तरह सतपाल महाराज ने चुनाव के दौरान बीरोखाल ब्लॉक के स्यूषी में भी एक झील विकसित करने का वायदा किया था। इस झील पर भी कोई काम नहीं हुआ है। महाराज ने कहा था कि क्षेत्र के दर्शनीय स्थल को पर्यटकों के लिए, धार्मिक स्थलों को तीर्थ यात्रा के साथ जोड़कर विकसित किया जाएगा। देश-दुनिया से आने वाले लोग हमारे क्षेत्रों में आएं। महाराज अपने किए वादों को भी पूरा नहीं कर पाए।

महाराज लोक निर्माण विभाग के भी मंत्री हैं। फिर भी इनके क्षेत्र में कई गांवों तक सड़क नहीं पहुंच पाई है जिससे ग्रामीण रोज 4 से 5 किमी पैदल सफर करने को मजबूर हैं। कई गांवों को सड़क का तोहफा देने का चुनावी वादा इन्होंने किया था। वह चुनावी वादे भी अभी तक धरातल पर नहीं पहुंच पाए हैं। विधानसभा क्षेत्र के द्वारीखाल ब्लॉक के संदणियां, गींठीपाख, धौड़, गड़िगांव सहित आसपास के गांव आज भी सड़क सुविधा से नहीं जुड़ पाए है। ग्रामीण कई बार जिला प्रशासन, स्थानीय जनप्रतिनिधि, विधायक, मंत्री से गुहार लगा चुके हैं। इनके गुहार का कोई सुखद नतीजा अभी तक नहीं निकला है। इन ग्रामीणों की मांग आज भी पूरी नहीं हो पाई है। महाराज की अपनी विधानसभा क्षेत्र के प्रति इस उदासीनता के चलते राज्य आंदोलनकारियों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। स्थानीय ग्रामीणों एवं राज्य निर्माण आंदोलनकारियों का कहना है कि सरकार जनता के साथ इसी तरह छलावा करेगी तो जनांदोलन के साथ ही आमरण अनशन किया जाएगा।

अब चूंकि चुनाव का मौसम फिर आ गया है। नेतागण क्षेत्र में घूमने लगे हैं। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं की भी रैलियां शुरू हो गई है। भाजपा-कांग्रेस इन रैलियों के माध्यम से प्रचार अभियान में जोरशोर से जुटी हुई है। फिर से घोषणाएं और वादा किया जाने लगा है। लेकिन अभी तक इन घोषणाओं और वादों से ठगे जा रहे मतदाता में अपने जनप्रतिनिधियों के प्रति गुस्सा है। क्षेत्र के कई लोगों ने स्पष्ट रूप से कहा कि हम लोग आजादी के बाद से ठगे जा रहे हैं। अलग राज्य बनने के बाद एक आशा जगी थी। हमें उम्मीद थी कि सत्ता की कुर्सी पर पहाड़ का बेटा बैठेगा। उसे हमारे सभी दर्द का अहसास होगा। वह हमारी समस्याओं को दूर करेगा लेकिन हम लोगों को इन्होंने भी ठगा ही है। इस बार भाजपा की ओर से सतपाल महाराज ही एक मात्र दावेदार हैं। उन्हें टिकट तभी नहीं मिलेगा, जब वे खुद चुनाव लड़ने से मना कर दें। ऐसे सतपाल महाराज कई बार बयान दे चुके हैं कि वे चौबट्टाखाल से ही चुनाव लड़ेंगे। क्षेत्र में यह भी चर्चा हो रही है कि महाराज यहां से अपने बेटे को टिकट दिलाना चाह रहे हैं।

कांग्रेस की ओर से टिकट की दावेदारी कर रहे पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष केशर सिंह नेगी कहते हैं कि ‘सिर्फ चौबट्टाखाल ही नहीं, पूरे पहाड़ी क्षेत्रों में बेरोजगारी, महंगाई और पलायन से स्थिति दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। सरकार इस पर प्रभावी तरीके से रोकथाम करने में नाकाम रही है। भाजपा सरकार सिर्फ घोषणाएं करने में लगी है। पिछले चुनाव में भी भाजपा उम्मीदवार सतपाल महाराज ने लोगों से झूठे वादे किए। हमारे विधायक का कार्यकाल पूरी तरह से
निराशाजनक रहा है। हालात ऐसे कि सरकार बनने के बाद मंत्री और विधायक ग्रामीण क्षेत्रों में आए ही नहीं। सतपाल महाराज भी इनमें से हैं। अब विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही फिर से गांवों में जाकर भोली-भाली जनता को ठग रहे हैं। लेकिन मुझे लगता है कि आमजन का भरोसा अब भाजपा सरकार से उठ चुका है। भाजपा चौबट्टाखाल सीट को अपनी झोली में पुनः करने में सफल होती है या नहीं यह तो आने वाले समय में स्पष्ट हो पाएगा। लेकिन भाजपा के लिए इस सीट को बरकरार रखना आसान नहीं है।’

वहीं कांग्रेस की ओर से टिकट के कई दावेदार हैं। सबसे प्रबल दावेदार पिछले चुनाव के प्रत्याशी राजपाल बिष्ट हैं। वे क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन दिनों वे कार्यकर्ताओं के साथ क्षेत्र में घूम रहे हैं। हालांकि उनके खिलाफ एक सबसे बड़ा मुद्दा है, वह यह है कि वे लगातार दो बार चुनाव हार चुके हैं। इस बार कांग्रेस की ओर से कहा जा रहा है कि दो चुनाव हारने वाले को टिकट नहीं दिया जाएगा। ऐसे में यदि पार्टी इस फॉर्मूले पर टिकट बांटती है तो राजपाल बिष्ट का टिकट मुश्किल में पड़ सकता है। बिष्ट को राहुल ब्रिगेड का नेता कहा जाता है। दोनों बार इन्हें राहुल गांधी के कहने पर ही टिकट मिला था। इसलिए अभी उन्हें टिकट दिए जाने को लेकर कुछ भी कंफर्म नहीं है।

कांग्रेस की ओर से टिकट के दूसरे प्रबल दावेदार प्रदेश उपाध्यक्ष केशर सिंह नेगी हैं। नेगी की खूबी यह है कि वे सरल स्वभाव के हैं। वे क्षेत्र की जनता के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं के साथ-साथ वे जनता से सीधे सम्पर्क रखते हैं। नेगी भाषणबाजी से दूर रहते हैं। आम जनता का दुख तकलीफ सुनना, उनकी सहायता करना बखूबी जानते हैं। नेगी पूर्व में पौड़ी ब्लॉक प्रमुख के अलावा जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे लंबे समय से क्षेत्र की जनता के बीच मौजूद हैं। इनके अलावा जसपाल सिंह रावत, कविंद्र ईष्टवाल भी दावेदारों की सूची में शामिल हैं। जसपाल सिंह एकेश्वर ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं। वहीं कविंद्र ईष्टवाल पिछले चुनाव में निर्दलीय मैदान में खड़े थे। आम आदमी पार्टी की ओर से भी कई दावेदार हैं। इनमें दिगमोहन नेगी सबसे आगे बताए जाते हैं।

कांग्रेस प्रभारी ने चौबट्टाखाल विधानसभा के एकेश्वर में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी की बैठक में कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोल चुके हैं। उस बैठक में चौबट्टाखाल विधानसभा के सभी दावेदार भी शामिल रहे। इसके अलावा पौड़ी, बीरोखाल और पोखड़ा ब्लॉकों में भी उम्मीदवारों की सूची तैयार करने को लेकर बैठक हो चुकी है। विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस प्रभारी लक्ष्मण सिंह रावत ब्लॉक कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोल चुके हैं। अब उनके द्वारा दी गई रिपोर्ट पर हाईकमान द्वारा निर्णय लिया जाना है। आम आदमी पार्टी भी इस बार यहां अपनी सक्रियता बढ़ाती नजर आ रही है। हालांकि पार्टी का क्षेत्र में कुछ खास जनाधार न होने के चलते मुख्य मुकाबला कांग्रेस बनाम भाजपा रहना तय है।

उत्तराखण्ड विशुद्ध पहाड़ी राज्य की कल्पना के साथ बना था। जहां स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं का कोई अभाव नहीं होगा। लेकिन हुआ इसके विपरीत। प्रदेश में हमारी सरकार बनेगी। हम शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक का दिल्ली मॉडल यहां लागू करेंगे। वर्तमान विधायक ने झूठी विकास पुस्तक छपवाई है। जो काम जिला पंचायत ने किए हैं, वे भी उन्होंने अपने नाम दिखा रखा है।
दिग्मोहन नेगी, नेता, आम आदमी पार्टी

 

मैं लंबे समय से क्षेत्र की जनता के हर सुख-दुख में साथ खड़ा रहा हूं। टिकट का निर्णय तो हमारे आलाकमान करते हैं। पार्टी के सामने मैंने चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। अब निर्णय पार्टी को लेना है। जहां तक वर्तमान विधायक के कार्यों का सवाल है, लोग उनसे नाराज हैं। भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों से परेशान होकर इस विधानसभा क्षेत्र के कई लोग कांग्रेस में शामिल हुए हैं। आमजन का भरोसा अब भाजपा सरकार से उठ चुका है। आगामी विधानसभा चुनाव में इसका लाभ कांग्रेस पार्टी को जरूर मिलेगा।
केशर सिंह नेगी, प्रदेश उपाध्यक्ष, कांग्रेस

 

मैं 2003 में एकेश्वर ब्लॉक प्रमुख रहा हूं। जब जनता मुझे चाहती है तभी तो उन्होंने मुझे प्रमुख बनाया। इन पांच सालों में कोई काम नहीं हुआ। भाजपा वालों ने कहा था कि गड्ढा मुक्त सड़क बनाएंगे। बने हुए सड़क जब गड्ढा मुक्त नहीं हुए तो गांव-गांव सड़क पहुंचाने के बारे में सोचना ही बेवकूफी है। सड़कों का यह हाल तब है जब यहां के स्थानीय विधायक लोक निर्माण विभाग के मंत्री हैं। जब उनके क्षेत्र में सड़क नहीं बने तो पूरे प्रदेश में कितना बना होगा।
जसपाल सिंह रावत, कांग्रेस प्रत्याशी

 

 

मैं 2010 से लगातार जनता के बीच हूं। दो चुनाव मैं यहां से लड़ चुका हूं। 2014 में जिला पंचायत और 2017 में निर्दलीय विधानसभा। इस बार चुनाव में बेरोजगारी, स्वास्थ्य सुविधाओं के बुरे हाल, सड़क, स्कूल की समस्या और जंगली जानवरों से सुरक्षा के मुद्दे रहेंगे। आए दिन उत्तराखण्ड के ग्रमीण क्षेत्रों में जंगली जानवरों के हमले होते रहते हैं। उससे बचाव के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है।
कविन्द्र ईष्टवाल, कांग्रेस नेता

 

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