2022 के विधानसभा चुनाव खासे रोचक साबित होने जा रहे हैं। एक तरफ हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस एग्रेसिव अंदाज में ‘डबल इंजन’ सरकार की विफलताओं को सामने रख जनता की नब्ज टटोलने में जुटी हुई है तो दूसरी तरफ नए सीएम के नेतृत्व में राज्य सरकार जनता के करीब पहुंचने का भगीरथी प्रयास करती नजर आ रही है। प्रदेश भाजपा के दिग्गजों की दावेदारी को नजरअंदाज कर भाजपा आलाकमान ने मात्र दो बार के विधायक रहे पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना एक जोखिम भरा दांव चला था। यह दांव अब सफल होता नजर आने लगा है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के चार बरस का कार्यकाल बेहद निराशाजनक था। इन चार बरसों के दौरान पैदा हुई जनता की नाराजगी को समाप्त करने के लिए धामी को बेहद कम समय मिला है। इसके बावजूद धामी ने धुआंधार बैटिंग कर माहौल को काफी हद तक भाजपा के पक्ष में लाने का काम कर दिखाया है
प्रसिद्ध अमेरिकी इतिहासकार और राजनीतिज्ञ हरबर्ट फिशर का एक कथन उत्तराखण्ड में भाजपा आलाकमान के एक फैसले पर खरा उतरता नजर आने लगा है। फिशर ने कहा था ‘All political decisions are taken under great pressure, if a treaty serves its turn for ten or twenty years, the wisdom of its framers is sufficiently confirmed’ (सभी राजनीतिक निर्णय भारी दबाव में लिए जाते हैं। यदि कोई निर्णय दस अथवा बीस बरस तक सार्थक रहता है तो उस निर्णय के निर्माताओं की दूर-दृष्टि प्रमाणित हो जाती है।) 2017 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का तिलिस्मी व्यक्तित्व और उत्तराखण्ड की दशा और दिशा को ‘डबल इंजन’ की सरकार सहारे बदलने के उनके वायदे पर आंख मूंद कर भरोसा कर राज्य की जनता ने प्रदेश में भाजपा को अभूतपूर्व जनादेश दे डाला। 70 सदस्यीय विधानसभा में विपक्ष मात्र 11 सीटों में सिमट कर रह गया। त्रिवेंद्र रावत सरकार लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के वायदों को धरातल में उतार पाने में सर्वथा विफल रही। चार बरस तक त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य के मुख्यमंत्री रहते समाज के हर वर्ग को अपनी कार्यशैली के चलते भाजपा से दूर करने का काम किया। विधानसभा नजदीक आते देख भाजपा हाईकमान एक्टिव मोड में आया। उसने ‘देर आए दुरुस्त आए’ की तर्ज पर यकायक ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटा राज्य की कमान पौड़ी से सांसद तीरथ सिंह रावत को सौंप दी। एक सज्जन राजनेता के तौर पर पहचाने जाने वाले तीरथ लेकिन न तो पार्टी नेतृत्व की अपेक्षाओं पर खरे उतर पाए और न ही जनता की। तब एकाएक सर्जिकल स्ट्राइक सरीखा निर्णय भाजपा नेतृत्व ने ले डाला। तीरथ सिंह रावत के स्थान पर एक युवा चेहरे को राज्य की बागडोर सौंप दी गई। मात्र दो बार के विधायक पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी ने भाजपा भीतर ही खासा आक्रोश पैदा करने का काम किया, लेकिन पार्टी आलाकमान का यह फैसला अब अपना सकारात्मक रंग दिखाता नजर आने लगा है।
चार जुलाई, 2021 को धामी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही कहा जाने लगा था कि पार्टी नेतृत्व का यह दांव एक ऐसा राजनीतिक जोखिम है जिसका खामियाजा 2022 के चुनाव में पार्टी को भुगतना पड़ेगा। धामी लेकिन अपने छह माह के कार्यकाल में जनता भीतर भाजपा, खासकर प्रदेश सरकार के खिलाफ पसर चुकी नाराजगी को काफी हद तक कम कर पाने में सफल होते दिखाई देने लगे हैं। स्मरण रहे 2011 में भी हालात ठीक वर्तमान समान थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की शासन शैली से जनता खासी परेशान थी। तब एक अंतरिम सर्वे भाजपा हाईकमान ने करवाया था। बताया जाता है कि उस सर्वे में डाॅ. निशंक के मुख्यमंत्री रहते चुनाव लड़े जाने पर भाजपा को मात्र 12 से 17 सीटें मिलने की बात कही गई थी। कहा यह भी जाता है कि इस सर्वे के चलते ही डाॅ ़ निशंक को चुनाव से मात्र 11 महीने पहले हटा कर मेजर जनरल (रिटायर्ड) भुवन चन्द्र खण्डूड़ी को वापस लाया गया था। खण्डूड़ी के नेतृत्व में
भाजपा इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर सत्ता दोबारा पाने के करीब पहुंच गई थी। यदि जनरल स्वयं चुनाव ना हारे होते तो शायद राज्य में दोबारा भाजपा की सरकार बन जाती। कुछ इसी तर्ज पर अब धामी के नेतृत्व में भाजपा दोबारा सत्ता पाने के लक्ष्य समीप पहुंचने का प्रयास करती नजर आ रही है। धामी ने अपने पूर्ववर्ती कई निर्णयों को पलट कर एंटी इन्कमबेन्सी फैक्टर को कम करने का काम कर दिखाया है। उदाहरण लंबे अर्से से त्रिवेंद्र रावत सरकार द्वारा गठित देवस्थानम् बोर्ड को लेकर आक्रोशित तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूक धारियों के आंदोलन का है। प्रदेश भर में त्रिवेंद्र रावत के इस फैसले का भारी विरोध हो रहा था। चारधाम के तीर्थ पुरोहितों ने तो पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को केदारधाम में प्रदर्शन करने तक से रोक दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक की केदारधाम यात्रा भारी तनावपूर्ण स्थितियों में हुई थी। पुष्कर सिंह धामी ने इस बोर्ड के अस्तित्व को समाप्त कर आंदोलनरत पुरोहित समाज को बड़ी राहत देने का काम किया है। उनके इस फैसले के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। इस आंदोलन के कारण चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जनपदों की 15 सीटों में भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता था। इस क्षेत्र के भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं को भी धामी सरकार के निर्णय से खासी राहत मिली है। धामी सरकार में नौकरशाहों की हनक में भी कमी आने की बात कही जा रही है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्रित्वकाल में तत्कालीन मुख्य सचिव ओम प्रकाश के साथ-साथ कुछेक नौकरशाह खासे पावरफुल हो चलेे थे। तत्कालीन सरकार में शािमल मंत्रियों के आदेशों को न मानने वाले ऐसे अफसरों की धामी ने आते ही छुट्टी करने का काम किया। ओम प्रकाश के स्थान पर केंद्र सरकार में तैनात एसएस सिंधु को मुख्य सचिव बनाने के साथ-साथ पिछली सरकार में
पावरफुल कहलाए जाने वाले अफसरों को साइड लाइन कर दिया गया है। सूत्रों की मानें तो ऐसे कई आईएएस अधिकारी अब केंद्र सरकार में नियुक्ति पाने की जोड़ जुगत में लगे हैं। हालांकि धामी पर भी कुछेक कथित रूप से ताकतवर कहलाए जाने वाले विवादित छवि के अफसरों को तरजीह देने का आरोप लगने लगे हैं। कुंभ मेले के दौरान कोरोना टेस्टिंग घोटाले के चलते विवादों में घिरे आईएएस दीपक रावत को कुमाऊं का कमिश्नर बनाया जाना, खनन विभाग की कमान आईएएस आर मीनाक्षी सुंदरम को दिए जाने और एक खासी भ्रष्ट छवि के अधिकारी को प्रोमोशन देकर खनन विभाग में तैनात करने के चलते धामी को पूर्व सीएम हरीश रावत ने ‘खनन प्रेमी’ मुख्यमंत्री का दर्जा दे दिया है।
चार जुलाई, 2021 को धामी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही कहा जाने लगा था कि पार्टी नेतृत्व का यह दांव एक ऐसा राजनीतिक जोखिम है जिसका खामियाजा 2022 के चुनाव में पार्टी को भुगतना पड़ेगा। लेकिन धामी अपने छह माह के कार्यकाल में जनता भीतर भाजपा, खासकर प्रदेश सरकार के खिलाफ पसर चुकी नाराजगी को काफी हद तक कम कर पाने में सफल होते दिखाई देने लगे हैं। स्मरण रहे 2011 में भी हालात ठीक वर्तमान समान थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की शासन शैली से जनता खासी परेशान थी। तब एक अंतरिम सर्वे भाजपा हाईकमान ने करवाया था। बताया जाता है कि उस सर्वे में डाॅ. निशंक के मुख्यमंत्री रहते चुनाव लड़े जाने पर भाजपा को मात्र 12 से 17 सीटें मिलने की बात कही गई थी। कहा यह भी जाता है कि इस सर्वे के चलते ही डाॅ. निशंक को चुनाव से मात्र 11 महीने पहले हटा कर मेजर जनरल (रिटायर्ड) भुवन चन्द्र खण्डूड़ी को वापस लाया गया था। खण्डूड़ी के नेतृत्व में भाजपा इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर सत्ता दोबारा पाने के करीब पहुंच गई थी। यदि जनरल स्वयं चुनाव ना हारे होते तो शायद राज्य में दोबारा भाजपा की सरकार बन जाती। कुछ इसी तर्ज पर अब धामी के नेतृत्व में भाजपा दोबारा सत्ता पाने के लक्ष्य करीब पहुंचने का प्रयास करती नजर आ रही है। धामी ने अपने पूर्ववर्ती कई निर्णयों को पलट कर एन्टी इन्कमबेन्सी फैक्टर को कम करने का काम कर दिखाया है
धामी सरकार की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि राज्य गठन के बाद से ही उत्तर प्रदेश संग परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर चला आ रहा गतिरोध समाप्त करने की है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुष्कर सिंह धामी ने मिलकर ऐसे सभी लंबित परिसंपत्तियों का बंटवारा फाइनल कर दिया है। राज्य के चुनावों को लुभाने की नीयत से धामी सरकार ने 24 हजार पदों को भरे जाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। साथ ही धामी सरकार ने समूह ग, घ और ध स्तर के पदों में आयु सीमा बढ़ाने, यूपीएससी, एनडीए और सीडीएस की लिखित परीक्षा पास करने वाले युवाओं को इंटरव्यू की तैयारी के लिए 50 हजार की प्रोत्साहन राशि देने का एलान भी कर डाला है। अतिथि शिक्षकों का मानदेय 15 हजार प्रति माह से बढ़ाकर 25 हजार कर दिया गया है। धामी ने बतौर मुख्यमंत्री एक बड़ा निर्णय सरकारी मेडिकल काॅलेजों में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार द्वारा यकायक की गई फीस बढ़ोतरी को वापस करने का निर्णय लिया है। इस फीस वृद्धि का विरोध मेडिकल के छात्र कर रहे थे। उनके और उनके अभिभावकों के लिए यह बड़ी राहत देने वाला कदम है। एमबीबीएस के इन्र्टन्र्स को मिलने वाला मासिक स्टाइपेंड भी 7500 से बढ़ाकर धामी सरकार ने 17 हजार कर दिया है। स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए धामी ने ‘मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना’ शुरू की है जिसके अंतर्गत प्रति व्यापारियों को 50 हजार का तत्काल ऋण दिया जा रहा है। इसमें से 20 हजार की राशि को राज्य सरकार सब्सिडी के तौर पर दे रही है।
छात्रों के हितों को देखते हुए सरकार ने अनेक निर्णय लिए हैं जिसमें सरकारी स्कूलो में पढ़ने वाले हाई स्कूल और इंटर केे छात्रों को आॅनलाइन पढ़ाई के लिए टैबलेट दिए जाने और उच्च शिक्षा में टाॅप करने वाले छात्रों को कम्प्यूटर खरीद के लिए सीधे उनके खातों में धनराशि डाले जाने का निर्णय लिया है। कम्प्यूटर खरीद के मामले में भष्टाचार के आरोप लगने पर मुख्यमंत्री द्वारा सभी आशंकाओं को खत्म करने के लिए छात्रों के खातों में धनराशि डाले जाने का निर्णय एक तरह से भ्रष्टाचार को पैदा होने से पूर्व ही खत्म करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस पार्टी ने इस मामले में पहले ही भ्रष्टाचार की आशंका जताई थी जिस पर मुख्यमंत्री ने यह कदम उठाया है।
इसी तरह से धामी ने राज्य आंदोलनकारियांे के मर्म को छूने का काम राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर राज्य आंदोलनकरियों की पेंशन बढ़ाने का आदेश जारी कर दिया है। इसी तरह से आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के मानदेय में भी इजाफा किया है। इसके अलावा ‘महालक्ष्मी योजना’ का शुभारंभ किया गया है। ‘तीलू रौतेली’ और ‘आंगनबाड़ी कार्यकत्री पुरस्कार राशि’ को 51 हजार किया गया है। ‘नंदा देवी’, ‘गौरा देवी योजना’ से वंचित 33 हजार 216 बालिकाओं को लाभ देने के लिए 49 करोड़ 42 लाख की धनराशि अवमुक्त की गई है। केन्द्र सरकार द्वारा उनके कार्यकाल में करोड़ों की योजनाओं की स्वीकृति भी धामी के लिए एक बड़ी राहत लेकर आई है। हाल ही में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 15 हजार 626 करोड़ की नई योजनाओं का शिलान्यास किया गया है। चुनाव के समय में केंद्र सरकार द्वारा दी गई यह सौगात पुष्कर सिंह धामी और उनकी सरकार के लिए एक वरदान के तौर पर देखी जा रही है।
प्रदेश में चार वर्ष पूर्व तमाम सर्वेक्षण त्रिवेंद्र रावत सरकार की लोकप्रियता में भारी गिरावट दिखा रहे थे। ‘दि संडे पोस्ट’ के एक सर्वे में भी त्रिवेंद्र रावत राज्य के सबसे अलोकप्रिय मुख्यमंत्री के तौर पर देखे गए जबकि धामी के मात्र छह माह के कार्यकाल में उनकी लोकप्रियता में बड़ा इजाफा देखा जा रहा है। कुमाऊं और गढ़वाल के अलावा तराई क्षेत्र में भी धामी अपनी लोकप्रियता में बढ़ोतरी करते देखे जा रहे हैं। हालांकि अभी तक कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत से धामी इन सर्वेक्षणों में पीछे चल रहे हैं लेकिन गैप धीरे- धीरे कम होता नजर आ रहा है। हालांकि यह भी एक सच हेै कि जनता में सरकार के प्रति भारी नाराजगी अभी भी भाजपा के लिए संकट बनी हुई है। पिछले साढ़े चार वर्ष सरकार के कार्यकाल में संघ और भाजपा के द्वारा कराये गये सभी सर्वेक्षणों में यह सामने आ चुका है। लेकिन धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद जनता में सरकार के प्रति नाराजगी काफी हद तक कम होती देखी जा रही है। सबसे ज्यादा चैंकाने वाली बात यह हेै कि धामी के प्रति जनता का रूझान पाॅजिटिव है तो वही अनेक सत्ताधारी भाजपा विधायको के प्रति नाराजगी बरकरार है। ‘दि संडे पोस्ट’ के द्वारा चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के दौरान यह साफ तोैर पर सामने आया हैे कि मतदाता अपने विधायकों से बेहद नाराज हैं। मतदाता कह रहे हैं कि अगर भाजपा फिर से टिकट देती है तो वे नोटा का विकल्प अपनाएंगे।
प्रदेश में चार वर्ष पूर्व तमाम सर्वेक्षण त्रिवेंद्र रावत सरकार की लोकप्रियता में भारी गिरावट दिखा रहे थे। ‘दि संडे पोस्ट’ के एक सर्वे में भी त्रिवेंद्र रावत राज्य के सबसे अलोकप्रिय मुख्यमंत्री के तौर पर देखे गए जबकि धामी के मात्र छह माह के कार्यकाल में उनकी लोकप्रियता में बड़ा इजाफा देखा जा रहा है। कुमाऊं और गढ़वाल के अलावा तराई क्षेत्र में भी धामी अपनी लोकप्रियता में बढ़ोतरी करते देखे जा रहे है। हालांकि अभी तक कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत से धामी इन सर्वेक्षणों में पीछे चल रहे हैं लेकिन गैप धीरे-धीरे कम होता नजर आ रहा है। धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद जनता में सरकार के प्रति नाराजगी काफी हद तक कम होती देखी जा रही है। सबसे ज्यादा चैंकाने वाली बात यह है कि धामी के प्रति जनता का रूझान पाॅजिटिव है तो वही अनेक सत्ताधारी भाजपा विधायकों के प्रति नाराजगी बरकरार है। ‘दि संडे पोस्ट’ के द्वारा चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के दौरान यह साफ तौर पर सामने आया है कि मतदाता अपने विधायकों से बेहद नाराज हैं। मतदाता कह रहे हैं कि अगर भाजपा फिर से टिकट देती है तो वे नोटा का विकल्प अपनाएंगे
सूत्रों की मानें तो भाजपा संगठन भी इस बात को स्वीकार कर चुका है जिसके चलते यह माना जा रहा है कि भाजपा अपने मौजूदा पचास प्रतिशत विधायकों के टिकट काट कर नए चेहरों को चुनाव में उतार सकती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि धामी की ताजपोशी के बाद एन्टी इन्कमबेन्सी फैक्टर में कमी आई है। 2011 की तरह एक बार फिर से भाजपा चुनावी रण में मुकाबले के लिए पहले की बनिस्पत ज्यादा बेहतर स्थिति में पहुंच चुकी है।