बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव पर पूरे प्रदेश की नजर है। इसके परिणाम आगामी निकाय और लोकसभा चुनावों के साथ ही कई नेताओं के लिए लोकसभा का रुख भी तय करेंगे। भाजपा के लिए इस चुनाव में सहानुभूति फैक्टर और अब तक सत्ता पक्ष के द्वारा जीते जाते रहे उपचुनाव जहां राहत की खबर है, वहीं कांग्रेस का मजबूती से चुनाव मैदान में डटे रहना सत्तारूढ़ पार्टी के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। कांग्रेस बेशक ताल ठोक रही है और जीत का दावा कर रही है लेकिन विपक्ष में रहते हुए उपचुनाव में सीट जीतने की चुनौती उसके सामने है। भले ही इस समय सारे दिग्गज एक मंच पर नजर आ रहे हैं लेकिन चुनावी रणनीति और जनता के सामने वोटों के लिए एकजुटता दिखाना कांग्रेस के लिए काफी मुश्किल भरा काम हो सकता है। उधर बॉबी पवार की गिरफ्तारी से बेरोजगार युवाओं में पनपा आक्रोश किस करवट बैठेगा यह तो आने वाली 8 सितंबर को ही पता चलेगा। फिलहाल बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है
‘हमारे यहां किसी भी विधायक ने कोई काम नहीं किया है। पिछले पंद्रह बीस सालों से हम चंदन राम दास को ही जिताते रहे हैं लेकिन उन्होंने कभी भी हमारे गांव के लिए सड़क बनवाने की नहीं सोची। आज भी हम चार किलोमीटर की चढ़ाई करके अपने गांव पहुंचते हैं। गांव जाने के लिए हमें नदी पार करनी पड़ती है। कई बार बरसात में उफनती नदी को पार करने के दौरान हमारे गांव के लोगों की मौत तक हुई है। गांव के बच्चों के लिए कोई इंटर कॉलेज की व्यवस्था नहीं है। इंटर कॉलेज जाने के लिए कई किलोमीटर की पैदल दूरी नापनी पड़ती है। इस दौरान बच्चों को जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है। ऐसे में हमें मजबूरी में बच्चों की पढ़ाई रोक देनी पड़ती है। गांव में एक चिकित्सालय भी नहीं है। गर्भवती महिलाओं की प्रसुति कराने को उन्हें डोली में बैठाकर ले जाना पड़ता है। इस दौरान कई महिलाएं प्रसुति होने से पहले ही मौत के मुंह में चली जाती हैं।’
यह कहना है गरुड़ और ग्वालदम के बीच स्थित एक गांव पुछडी की महिला दुर्गा देवी का। वह कहती हैं कि ‘हमारा गांव विकास में इतना पिछड़ा हुआ है कि लोग गांव का नाम पुछडी से पिछड़ा गांव कहने लगे हैं। जब-जब कोई चुनाव आता है तब-तब नेताओं का गांव में आना होता है वह हमें हर बार विकास कार्य कराने का आश्वासन देते हैं और हम इस उम्मीद में उन्हें वोट दे देते हैं कि शायद इस बार हमारी सुनवाई हो जाए। लेकिन हम हर बार ठगे जाते हैं। इस बार भी हमें एक बार फिर यहीं झूठे वायदे और घोषणाओं का लॉलीपॉप दिया जा रहा है।’
बागेश्वर जिले का अंतिम गांव है सिरखेत। यह चमोली और बागेश्वर जिले का सीमावर्ती गांव है। सिरखेत के आस-पास बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र के कई गांव भी हैं। सिरखेत सहित पूरा क्षेत्र पिछले कई चुनावों से भाजपा का गढ़ रहा है। लेकिन इस बार यहां की फिजा बदली-बदली नजर आ रही है। सिरखेत और आस-पास के गांवों में भाजपा के कार्यकर्ताओं का रुझान अपनी तरफ करने में कांग्रेस को सफलता प्राप्त होती दिख रही है। यहां के सोबन सिंह कहते हैं कि ‘इस बार गांव के लोगों का परिवर्तन का मन है।’ जब उनसे पूछा गया कि चंदन राम दास के परिवार के प्रति सहानुभूति फैक्टर कितना काम कर रहा है तो उन्होंने कहा कि ‘इसमें दो राय नहीं कि उनके मन में दास परिवार के प्रति सहानुभूति है लेकिन सहानुभूति अकेले दास परिवार के साथ ही नहीं है, बल्कि बसंत कुमार के साथ भी है। बसंत मौत के मुंह से बचा है। वह कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। वह चंद दिनों का मेहमान है। ऐसे में उसे मौत के मुंह में जाने से बचाने की खातिर उसके लिए भी हमारे मन में सहानुभूति का भाव है।’
बागेश्वर विधानसभा के मतदाताओं की उक्त मन की बातें इशारा कर रही हैं कि इस बार सत्ता पक्ष के लिए उपचुनाव जीतना इतना आसान नहीं है जितना पहले से होता आया है। उत्तराखण्ड गठन के बाद अब तक हुए 14 विधानसभा उप चुनावों में सत्ता पक्ष को 13 बार सफलता मिली है। महज एक बार उत्तराखण्ड क्रांति दल द्वारा उपचुनाव जीता गया है।
कुमाऊं मंडल की काशी के नाम से भी जाना जाने वाला बागेश्वर में फिलहाल चुनावी सरगर्मियां जोरों पर है। बागेश्वर नाथ की धरती पर सियासी रण की बिसात बिछ चुकी है। मुख्य पार्टी भाजपा से पार्वती दास और कांग्रेस से बसंत कुमार के अलावा उत्तराखण्ड क्रांति दल के अर्जुन देव और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के भगवत कोहली के साथ ही सपा से भगवती प्रसाद त्रिकोटी सहित कुल पांच उम्मीदवार चुनाव मैदान में अपनी-अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। बागेश्वर निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। अब से पहले इस विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता आया है लेकिन इस उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। दोनों ही पार्टियां पूरे दमखम के साथ मैदान में हैं। अन्य तीन उम्मीदवार सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते ही नजर आ रहे हैं। बागेश्वर में 1 लाख 18 हजार 225 मतदाता हैं। इनमें 60 हजार 45 पुरुष और 58 हजार 180 महिलाएं हैं। सर्विस मतदाताओं की संख्या 2 हजार 207 है जिनमें से महिला मतदाताओं की संख्या 57 है। उपचुनाव के लिए यहां 172 मतदान केंद्र और 188 मतदेय स्थल बनाए गए हैं।
बागेश्वर विधानसभा सीट की बात करें तो पहले विधानसभा चुनाव 2002 में कांग्रेस के राम प्रसाद टम्टा ने भाजपा के नारायण राम दास को हराया। 2002 में सिर्फ पहला चुनाव कांग्रेस ने जीता। कभी कांग्रेस के ही सिपाही रहें चंदन रामदास ने कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन कर ली थी। भाजपा से चंदनराम दास के चुनाव में उतरने के बाद से कांग्रेस दोबारा यहां चुनाव नहीं जीत पाई।
वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा में चंदन राम दास को भाजपा ने मैदान में उतारा। तब चंदन राम दास कांग्रेस के कैबिनेट मंत्री राम प्रसाद टम्टा को पटकनी देकर पहली बार विधानसभा में पहुंचे। 2012 के विधानसभा चुनावों में दास ने कांग्रेस के राम प्रसाद टम्टा को लगभग 9 हजार मतों के अंतर से हराया। दास ने 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के नए चेहरे बालकृष्ण को 14 हजार मतों के अंतर से पराजित किया। 2022 में चंदन ने कांग्रेस के फिर से नए चेहरे रंजीत दास को 12 हजार 141 मतों से हराया। इस तरह 2007 से लगातार चार बार इस सीट पर भाजपा के चंदन रामदास का दबदबा रहा।
बागेश्वर विधानसभा सीट पर शुरुआत में भाजपा ओवर कॉन्फिडेंस में दिख रही थी। यहां तक की प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने यह कह दिया था कि इस उप चुनाव को वह निर्विरोध जीत कर दिखाएंगे। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है भाजपा के लिए जीत की डगर कठिन होती दिखाई दे रही है। हालात यह हो गए हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को चुनाव मैदान में उतरने के लिए मिन्नत करनी पड़ी है। अपने गृह जनपद बागेश्वर में अब कोश्यारी गहन जनसंपर्क कर मतदाताओं को आकर्षित करने में जुटे हैं। संगठन मंत्री अजेय कुमार भी बागेश्वर में ही डेरा डाले हुए हैं।
बागेश्वर विधानसभा सीट पर भले ही भाजपा एक के बाद एक चुनावी जीत जंप करती रही हो, मगर कांग्रेस का भी यहां मजबूत जनाधार है। यहां पार्टी कैडर का लगभग 20 हजार वोट हैं जो पार्टी के कैंडिडेट को मिलता ही है। लेकिन हैरानी यह है कि जनाधार के बाद भी कांग्रेस बागेश्वर से चुनाव हार जाती है। इसके पीछे जो वजह बताई जा रही है वह यह है कि बागेश्वर में चुनाव के दौरान पार्टी एकजुट दिखाई नहीं देती है। हर बार की तरह इस बार भी कांग्रेस गुटबाजी में अलग-थलग नजर आ रही है। जिसका फायदा भाजपा को मिलने की उम्मीद है।
चंदन रामदास की लगातार चार बार जीत के पीछे उनका सौम्य और मृदुभाषी व्यवस्था रहा था। जिसकी बदौलत ही वह मतदाताओं के दिलों पर राज करते रहे। 2022 में उनका स्वास्थ्य खराब होने के चलते वह बहुत कम ही क्षेत्र में निकले थे इसके बाद भी वह चौथी बार जीत दर्ज कराने में सफल रहे थे। उन्हें धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। लेकिन लगातार खराब होते स्वास्थ्य के कारण चंदन रामदास की सक्रियता कम होने लगी और 26 अप्रैल को उनका निधन हो गया। भाजपा ने किसी तरह का जोखिम न लेते हुए चंदन राम दास की पत्नी पार्वती दास पर ही भरोसा जताया है। चुनाव के लिए भाजपा की तरफ से चंदनराम दास के परिजनों को मैदान में उतारने की तैयारी पहले से ही की जा चुकी थी। उपचुनाव में सहानुभूति फैक्टर को देखते हुए इस मुद्दे पर बहुत पहले से ही मंथन शुरू हो गया था। पार्वती दास एक गृहणी हैं और बेहद सादगी से रहने वाली महिला हैं। वे इंटर पास हैं। सादगी पूर्ण परिवेश में रहने वाली पार्वती दास क्षेत्र में साधारण महिला के रूप में जानी जाती हैं। जिसको देखते हुए भाजपा उनकी जीत पक्की मान कर चल रही है। हालांकि उनका अब तक कोई राजनीतिक जीवन नहीं रहा है।
भाजपा को प्रदेश में अतिक्रमण विरोधी अभियान, भर्ती घोटाले सहित भ्रष्टाचार के मामलों में तत्काल जांच और कार्रवाई, समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन जैसे मुददे और दिवंगत विधायक चंदन रामदास के प्रति सहानूभूति की लहर के बल पर चुनावी वैतरणी पार होने की पूरी उम्मीद है। तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने महिलाओं पर अत्याचार के साथ ही महंगाई और कई मुद्दों को जनता के सामने भाजपा के सामने चुनौती पेश कर दी है।इस संबंध में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष माहरा का कहना है कि लोग केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों से महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर भाजपा की चुप्पी, बेरोजगारों पर लाठीचार्ज, पलायन की समस्या, चिकित्सकों की कमी जैसे विभिन्न मुद्दों को लेकर बहुत नाराज हैं और भाजपा को सबक सिखाने को तैयार हैं। माहरा कहते हैं ‘बागेश्वर की जनता पढ़ी-लिखी है और मुददों को लेकर आक्रोशित है। बागेश्वर उपचुनाव में भाजपा को करारा जवाब मिलेगा।’
कांग्रेस ने इस बार बसंत कुमार को मैदान में उतारकर भाजपा के लिए कड़ी चुनौती पेश कर दी है। प्रदेश के इतिहास में यह पहली बार है जब उपचुनाव में सत्ता पक्ष के लिए विपक्षी पार्टी का कोई नेता कड़ी टक्कर देता हुआ दिखाई दे रहा है। बसंत कुमार का यह तीसरा विधानसभा चुनाव है। सबसे पहले वह 2017 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। तब उन्हें 6 हजार मत प्राप्त हुए थे। इसके बाद 2022 का चुनाव व आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लड़े थे। तब उन्हें 16 हजार मत प्राप्त हुए थे। ऐसे में जब आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ नेताओं की जमानत जब्त हो गई थी तब बसंत कुमार का अपने दम पर 16 हजार वोट लाना उनके राजनीतिक कद को बढा गया था। बसंत कुमार धनबली नेता कहे जाते हैं। उनकी रीमा और कांडा में खड़िया खान है।
2022 के विधानसभा चुनाव में उनको लेकर यह चर्चा चली कि उन्होंने इस चुनाव पर करोड़ों रुपया बहाया। एक तो आर्थिक स्थिति से मजबूत होना और दूसरा बसंत कुमार के पास इतने मतों का समर्थन होना ही कांग्रेस का पार्टी में लाना और टिकट दिलाना एक मुख्य कारण रहा। कांग्रेस ने बसंत पर दाव खेलने के लिए अपने 2022 के प्रत्याशी रहे रंजीत दास को भी इग्नोर कर दिया था। फिलहाल कांग्रेस द्वारा अपने पूर्व प्रत्याशी रंजीत दास को मिले 20 हजार वोटों और आम आदमी के टिकट पर चुनाव लड़कर बसंत कुमार को मिले 16 हजार मतों के आंकड़े को आगे रख जीत का दावा किया जा रहा है। मंडल से राकेश समाजसेवी भूपेश खेतवाल के अनुसार बसंत कुमार का सबसे ज्यादा वोट बागेश्वर शहर और मंडलसेरा में है। जहां से वह 10 हजार वोट ले चुके हैं। जबकि गरुड़ का इलाका भाजपा का गढ माना जाता है। हालांकि इस बार कांग्रेस ने इस गढ़ में सेंध लगाई है। कांग्रेस के पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण गरुड़ क्षेत्र में अपनी पार्टी के प्रत्याशी की बढ़त बनाने में जमीनी प्रयास कर रहे हैं। खेतवाल की मानें तो पिछले विधानसभा चुनाव में बसंत कुमार को गरुड़ में 6 हजार मत मिले थे जबकि कांग्रेस को 10 हजार वोट मिले थे। वे आगे यह भी कहते हैं कि बसंत कुमार को कांग्रेस में लाने का श्रेय खटीमा के विधायक भुवन कापड़ी को जाता है।
सियासी पंडितों का कहना है कि इस चुनाव को मौजूदा सरकार किसी भी कीमत पर जीतना चाहेगी। इसके लिए सरकार साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग करने से पीछे नहीं हटेगी। भाजपा जानती है अगर कांग्रेस बागेश्वर उपचुनाव जीतती है तो लोकसभा चुनाव में भी इससे कांग्रेस को मदद मिलेगी। साथ ही ये चुनावी जीत कांग्रेस के मॉरल को उठाने का काम करेगी, जो भाजपा बिल्कुल भी नहीं चाहेगी। कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति के तहत भाजपा ने कांग्रेस के कई नेताओं को अपनी ओर कर पार्टी में सेंध लगा दी है। कांग्रेस ने जब तक अपना कैंडिडेट घोषित भी नहीं किया था तब ही भाजपा ने साल 2022 में कांग्रेस के टिकट से बागेश्वर सीट पर चुनाव लड़े रंजीत दास को अपने खेमे में शामिल कर सियासी बढ़त बना ली थी। रंजीत दास विधानसभा और निकाय चुनाव लड़ चुके हैं। वह एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इनके पिता गोपाल दास न केवल उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखण्ड में चार बार विधायक रहे हैं, बल्कि मंत्री भी रहे थे। हालांकि कांग्रेस ने भी पिछले दिनों भाजपा में गए कांडा के पूर्व विधायक उमेद सिंह माजिला की पार्टी में घर वापसी करा ली है।
चंदन रामदास से हारने वाले रंजीत दास पिछली बार 20 हजार वोट लेकर आए थे। रंजीत दास को यह भान पहले से ही हो चुका था कि कांग्रेस इस बार उन्हें टिकट देने वाली नहीं है। इसका एहसास होते ही वह कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए। हालांकि रंजीतराम दास को यह भी अच्छी तरह मालूम था कि भाजपा इस बार उन्हें टिकट न देकर चंदन रामदास के परिवार को ही देगी लेकिन बावजूद इसके रंजीत दास का भाजपा में जाना कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि रंजीत दास 2027 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट की उम्मीद में कांग्रेस से अलविदा कह गए। रंजीत दास को प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का खास माना जाता है। जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने रंजीत दास को अपना ओएसडी बनाया था। बागेश्वर में फिलहाल चर्चा है कि अगर हरीश रावत चाहते तो रंजीत दास कांग्रेस छोड़ भाजपा में नहीं जा पाते।
भाजपा ने कांग्रेस की दूसरी विकेट नगर पालिका के अध्यक्ष सुरेश खेतवाल के रूप में ली। सुरेश खेतवाल नगर पालिका क्षेत्र में खासा दम रखते हैं। वह ठेकेदार भी हैं। उनकी पत्नी रेखा खेतवाल ब्लॉक प्रमुख के पद पर रही है। सुरेश खेतवाल को भाजपा के पाले में लाने में बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव प्रभारी प्रदेश के कैबिनेट मंत्री और सितारगंज के विधायक सौरभ बहुगुणा का हाथ बताया जाता है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि खेतवाल पर कांग्रेस छोड़ने के लिए भाजपा ने प्रेशर पॉलिटिक्स का प्रयोग किया था। इसके पीछे उनके ठेकों की जांच करने की बात कही जा रही है। इसके साथ ही यह भी चर्चा है कि सुरेश खेतवाल ने भाजपा में आने से पहले अपनी शर्त रखी है जिसमें आगामी निकाय चुनाव में वह अपनी पत्नी का नगर पालिका बागेश्वर से पार्टी का टिकट चाहते हैं।
दूसरा वह भाजपा से आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के भी इच्छुक बताए जा रहे हैं। रंजीत दास और सुरेश खेतवाल के अलावा भाजपा ने कांग्रेस को एक और झटका देते हुए पूर्व कैबिनेट मंत्री और खटीमा से विधायक रहे सुरेश आर्य को भी पार्टी में शामिल करवाना रहा है। वर्ष 1984 से लेकर 1989 तक सुरेश आर्य विधायक रहे हैं। उसके बाद 1996 से लेकर 2002 तक वह दूसरी बार विधायक रहे। उत्तराखण्ड की पहली गठित सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। कांग्रेस के बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल करने के बाद भाजपा ग्राउंड पर भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इसके चलते ही वह चुनाव लड़ रहे सभी पार्टियों से प्रचार में आगे निकल गई है। वहीं चुनाव प्रचार में कांग्रेस भाजपा से कमतर नजर आ रही है।
भाजपा पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि वह प्रशासन के माध्यम से लोगों पर दवाब बना रही है। चाहे वह गोमती पुल के पास भीम कुमार का मामला हो या सीसीएन न्यूज चैनल के सुरेश पांडे का अथवा मंडलसेरा एकता संगठन के व्हाट्सएप ग्रुप का, सभी जगह प्रशासन सरकार के लिए काम करता नजर आ रहा है। लोगों का कहना है कि सभी पर प्रशासन नोटिस देकर दबाव बनाने की रणनीति बना रहा है। उक्त सभी लोगों को कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करने वाला बताया जा रहा है। पत्रकारों पर भी नियंत्रण की बातें सामने आ रही है जिसमें एक अधिकारी का वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वह एक पत्रकार को बागेश्वर से बाहर का बताकर बागेश्वर में रिपोर्टिंग करने का अधिकारी नहीं मान रही है। जबकि एक मजेदार वाकया यह भी सामने आया है कि पत्रकारों के पास बाकायदा प्रशासन ने एक पत्र भिजवाया है जिसमें कहा गया है कि वह जिस भी प्रत्याशी या पार्टी या समर्थक की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाए तो सबसे पहले उनसे यह पूछे कि क्या आपके पास प्रशासन का प्रेस कॉन्फ्रेंस करने का स्वीकृति पत्र है। इस पर पत्रकारों में भी उहापोह की स्थिति बनी हुई है। ‘अमर उजाला’ के पत्रकार शंकर पांडेय के अनुसार वे समझ नहीं पा रहे हैं कि प्रशासन अपने पत्र के जरिए पत्रकारिता पर पहरा लगा दिया है या नए नियम-कानून बना रहा है?
क्या गुल खिलाएगी बॉबी की गिरफ्तारी?
24 अगस्त को बागेश्वर स्थित बागनाथ मंदिर में उत्तराखण्ड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पवार की गिरफ्तारी ने सियासी पारे को बढ़ाने का काम किया। पवार की गिरफ्तारी से सत्तारूढ़ पार्टी की घेराबंदी करने का विपक्ष को मौका मिल गया। इसी के साथ ही भाजपा को बेरोजगारों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि विधानसभा उपचुनाव ने बॉबी पवार की गिरफ्तारी में भाजपा का असली चेहरा सामने ला दिया है। बॉबी पवार शांतिपूर्ण तरीके से बागनाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचे थे लेकिन एक षड्यंत्र के तहत बजरंग दल के एक नेता विजय परिहार उर्फ जादू ने ‘बेरोजगार संगठन जिंदाबाद’ के नारे लगाकर मामले को विवादास्पद बना दिया। नारेबाजी करते हुए उसकी वीडियो वायरल हो गई। जिसमें वह साफ दिखाई दे रहा है। गले में गमछा डाले हुए विजय परिहार उर्फ ‘जादू’ बॉबी पवार के समर्थकों के लिए भाजपा को घेरने का बड़ा हथियार हाथ लग गया है। पुलिस ने बॉबी पवार और चार अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया। स्थानीय पुलिस ने बॉबी पवार को कई धाराओं में
आरोपी ठहराकर जेल भेजा था लेकिन उसी दिन शाम को उसे न्यायालय के आदेश पर बिना शर्त रिहा कर दिया गया। कुछ लोगों का कहना है कि बॉबी पवार की यह गिरफ्तारी कांग्रेस प्रत्याशी के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। इसके पीछे का कारण बताते हुए बागेश्वर निवासी रमेश राम कहते हैं कि बागेश्वर में बेरोजगार युवकों की तादाद 5000 से 6000 के करीब है। ये सभी युवक बॉबी पवार से जुड़े हुए हैं जो उनकी गिरफ्तारी से आक्रोश में हैं। आगामी चुनाव में भाजपा के खिलाफ मतदान करके ये युवक भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं।
गौरतलब है कि बॉबी पवार ने पूर्व मंत्री चंदन रामदास की पुत्री की नियुक्ति का मुद्दा उठाकर पहले ही भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रखी है। फिलहाल के विधानसभा उपचुनाव में यह मुद्दा भी जोर-शोर से उठाया जा रहा है। इस बाबत भूपेंद्र कोरंगा आरोप लगाते हुए कहते हैं कि उत्तराखण्ड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड द्वारा चिकित्सा अधिकारी (आयुर्वेद और यूनानी) जिसका ग्रेड पे 5400 है, इस भर्ती पर भी बड़े स्तर का भ्रष्टाचार हुआ है। लिखित परीक्षा में 70-80 प्रतिशत अंक लाने के बाबजूद सैकड़ों अभियर्थियों का चयन नहीं किया है, जबकि पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय चंदन राम दास की पुत्री के मात्र 13.25 अंक एवं कुछ अन्य अभियर्थियों के 4-6 अंक लाने पर भी अंतिम चयन किया गया है। जबकि उपयुक्त विभाग खुद मुख्यमंत्री धामी के पास है। जिससे यह साफ है कि मुख्यमंत्री धामी सीधे तौर पर इस भ्रष्टाचार में शामिल हैं।
तय होगा करण का कद
करण माहरा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश में यह दूसरा उपचुनाव है। पहला उपचुनाव चंपावत का था जहां कांग्रेस पर आरोप लगे थे कि उम्मीदवार निर्मला गहतोड़ी का किसी ने साथ नहीं दिया और अकेला छोड़ दिया गया था। देखा जाए तो कांग्रेस के लिए वह उपचुनाव लड़ना एक औपचारिकता थी क्योंकि जब खुद मुख्यमंत्री चुनाव मैदान में हो तो वहां हार जीत का निर्णय नामांकन के साथ ही हो जाता है। उत्तराखण्ड के इतिहास में अपवाद छोड़ दें तो कोई भी मुख्यमंत्री उपचुनाव नहीं हारा है। इस लिहाज से चंपावत और बागेश्वर की तुलना नहीं की जा सकती। बागेश्वर सुरक्षित सीट है और कांग्रेस के पास दलित चेहरों की वैसे भी कोई कमी नहीं है। पार्टी के पास पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा जैसे जमीनी नेता है जिनका गृह जनपद भी बागेश्वर ही है। करीब तीन साल पहले सल्ट उपचुनाव जो सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के कारण हुआ था, वहां तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस एकजुटता नहीं दिखा पाई थी। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तो उस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी महेश जीना को वॉकओवर देने तक की बात कह दी थी, जो पार्टी के भीतर कलह का कारण बनी थी। कई नेता आज भी यदा-कदा रावत के जीना को वॉकओवर बयान पर सियासी तीर चलाने से नहीं चूकते हैं।
फिलहाल बागेश्वर की बात करें तो इस समय पूरा परिदृश्य बदला हुआ नजर आ रहा है। कांग्रेस के सभी 40 स्टार प्रचारक नेता भी जान से जुड़े हुए हैं। इनमें हरीश रावत की रैलियों में सबसे ज्यादा भीड़ जुटती दिखाई दे रही है। वैसे भी बागेश्वर के लोग हरीश रावत के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रखते हैं। प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव भी इस चुनाव में काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं।
जबकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रहे हैं। अगर यह चुनाव पार्टी हार जाती है तो माना जाएगा कि उनके नेतृत्व में पार्टी अपना जनाधार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई। ऐसे में माहरा के खिलाफ संगठन को कमजोर करने के आरोप लगाकर पार्टी नेता उनकी मुखालफत कर सकते हैं। अगर कांग्रेस यह उपचुनाव जीतती है तो करण का कद बढ़ाना तय है। इसके बावजूद खांचों में बंटी कांग्रेस चुनाव के मोर्चे पर एक रह सकेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि कांग्रेस पर आरोप लगते आ रहे हैं कि वह बागेश्वर विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में एकजुट दिखाई देती है लेकिन जब चुनावी मौसम जोरों पर होता है तो पार्टी के नेता अलग-थलग नजर आते हैं। इस लिहाज से बागेश्वर का उपचुनाव कांग्रेस के लिए बेहद दिलचस्प हो गया है। करण माहरा इस चुनाव को जीतने के लिए कड़ी मेहनत करते नजर आ रहे हैं।
लोकसभा का ‘लिटमस टेस्ट’
बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव कई लिहाज से मुख्य पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। वह इसलिए कि जहां पार्टी जीतने के लिए पूरे दमखम के साथ मैदान में है तो वहीं दोनों पार्टियों के कुछ नेता ऐसे भी हैं जो इस चुनाव के जरिए लोकसभा टिकट पाने का ख्वाब देख रहे हैं। अगर सत्तारूढ़ भाजपा की बात करें तो यहां पार्टी के दो नेताओं में अपना वर्चस्व दिखाने की होड़ मची हुई है। अल्मोड़ा पिथौरागढ़ के वर्तमान सांसद अजय टम्टा जहां हैट्रिक बनाने की तैयारी कर रहे हैं और तीसरी बार पार्टी से टिकट पाने की उम्मीद लगाए हुए हैं तो वही धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री और सोमेश्वर से विधायक रेखा आर्य भी अल्मोड़ा पिथौरागढ़ संसदीय सीट पर नजर लगाए हुए है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा भी है कि पार्टी कुछ दिनों बाद होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में रेखा आर्य का पत्ता साफ हो सकता है। रेखा आर्य को मंत्रालय से हटाकर अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इसके मद्देनजर ही रेखा आर्य उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी की जीत के लिए पूरा जोर लगा रही है। अगर पार्टी प्रत्याशी जीतता है तो रेखा आर्य का भी अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट से टिकट पक्का माना जा रहा है।
जबकि दूसरी तरफ अजय टम्टा ने भी अपनी पार्टी की प्रत्याशी पार्वती दास को विजय दिलाने के लिए रणनीति बनाई हुई है और दिन रात एक किए हुए हैं। क्योंकि बागेश्वर जनपद अजय टम्टा का गृह जनपद भी है ऐसे में प्रत्याशी की जीत का दारोमदार उनके कंधों पर है। जिसे वह पूरी शिद्दत के साथ निभाते हुए दिख रहे हैं। ऐसे में वह पार्टी आलाकमान के समक्ष यह संदेश देने में भी कामयाब हो जाएंगे कि उनकी रणनीतिक कौशलता के चलते ही पार्टी प्रत्याशी की जीत संभव हो पाई। अगर वह यह संदेश देने में कामयाब होते हैं तो एक बार फिर पार्टी उन पर अल्मोड़ा पिथौरागढ़ संसदीय सीट पर दाव लगाने को तैयार हो सकती है। इसके अलावा अब तक विधानसभा चुनाव लड़ते रहे यशपाल आर्य भी अल्मोड़ा पिथौरागढ़ सीट से कांग्रेस का प्रत्याशी बनने का ख्वाब संजोए हुए हैं।
बताया जा रहा है कि यशपाल आर्य को सबसे ज्यादा चिंता अपने पुत्र संजीव आर्य की है। संजीव 2017 में भाजपा के टिकट पर नैनीताल से विधानसभा चुनाव जीते थे लेकिन 2022 में वह कांग्रेस से भाजपा में गई सरिता आर्या से परास्त हो चुके हैं। फिलहाल अगर कांग्रेस यशपाल आर्य को अल्मोड़ा पिथौरागढ़ से लोकसभा का प्रत्याशी बनाती है और वह जीत दर्ज कराने में सफल हो जाते हैं तो उनकी विधानसभा सीट बाजपुर खाली होगी। ऐसे में वह अपने पुत्र संजीव आर्य को बाजपुर से चुनाव लड़ाने की उम्मीद पाले हुए हैं। फिलहाल यह चुनाव ऐसे भाजपा और कांग्रेस के कई नेताओं की उम्मीद पर खरा उतर सकता है तो उनकी उम्मीदों पर पानी भी फेर सकता है।