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उत्तराखण्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और संघ प्रमुख मोहन भागवत सहित तमाम बड़े नेताओं के ताबड़तोड़ दौरे राजनीतिक पंडितों को सोचने के लिए विवश कर रहे हैं। भाजपा एवं संघ के दिग्गज जिस तरह उत्तराखण्ड पर फोकस किए हुए हैं उसके राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। समझा जा रहा है कि मोदी या फिर अमित शाह जैसी कोई बड़ी हस्ती राज्य से लोकसभा चुनाव लड़ सकती है। इस बीच प्रधानमंत्री मोदी देहरादून और काॅर्बेट के भ्रमण पर पहुंचे। खराब मौसम के चलते वे बेशक रुद्रपुर नहीं पहुंच पाए, लेकिन रैली में जमा हुई भीड़ को टेलीफोन पर संबोधित करने से नहीं चूके
 उत्तराखण्ड में भाजपा सरकार के महज दो वर्षीय कार्यकाल के दौरान राज्य में भाजपा और संघ नेताओं के ताबड़तोड़ दौरों ने राजनीतिक गलियारों में तमाम चर्चाओं को जन्म दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में त्रिशक्ति सम्मेलन के बहाने राज्य का दौरा किया। शाह पार्टी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ बैठक में भी शामिल हुए। इसके तुरंत बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पांच दिनों तक देहरादून प्रवास पर रहे। इस प्रवास के दौरान भागवत ने राज्य के शिक्षा, सामाजिक, भाषा, सांस्कøतिक एवं सरोकार जगत के कई बुद्धिजीवियों और विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ विचार-विमर्श किया। उनके साथ बैठकें की। अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या है जो संघ के इतिहास में पहली बार कोई संघ प्रमुख इतने लंबे समय तक उत्तराखण्ड के प्रवास में रहे और प्रवास के पूरे दिनों में वैचारिक बैठकों का ही दौर चलता रहा। भागवत और अमित शाह के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखण्ड का दौरा किया। हालांकि मौसम खराब होने के कारण रुद्रपुर रैली में जमा लोगों को दूरभाष से ही संबोधित कर पाए। लेकिन उससे पहले वे पार्टी नेताओं के साथ जिम काॅर्बेट रामनगर और देहरादून का भ्रमण अवश्य कर गए।
पार्टी के अन्य बड़े नेता भी उत्तराखण्ड भ्रमण को आ रहे हैं। अभी 10 फरवरी को बिहार भाजपा इकाई के सबसे बड़े नेता सुशील मोदी भी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के एक कार्यक्रम में शिरकत करने आ चुके हैं। 21 फरवरी को भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री और कैबिनेट मंत्री उमा भारती भी उत्तराखण्ड में दौरा करने वाली हैं। भाजपा के सूत्रों की मानें तो आने वाले समय में लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले भाजपा के कई दिग्गज नेता उत्तराखण्ड में अपने दोैरे कर सकते हैं। इससे यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर भाजपा के लिए अचानक उत्तराखण्ड इतना महत्वपूर्ण क्यों हो चला है?
हालांकि भाजपा के इस तरह के दौरे कोई अनपेक्षित नहीं हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह देश के हर राज्य में ताबड़तोड़ दौरे करने में व्यस्त हैं। लेकिन उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य में जब प्रधानमंत्री और अमित शाह महज दो वर्ष में कई दौरे कर चुके हैं और संघ प्रमुख भी अपना दोैरा कर गए हैं, तो राजनीतिक गलियारों में कयास लगने स्वभाविक हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो भाजपा और संघ अपनी-अपनी योजनाओं के साथ 2014 से ही काम में जुट गए हंै जिसके चलते वे राज्य के दौरे कर रहे हैं।
माना जा रहा है कि भाजपा देश के हर राज्य की राजनीति के हिसाब से एक बड़ी रणनीति के तहत काम कर रही है। दूसरी तरफ भाजपा के समानांतर संघ भी उसके पीछे-पीछे   राज्य में भाजपा के लिए वैचारिक धरातल बनाने का काम कर रहा है।
पश्चिम बंगाल में भाजपा तृणमूल कांग्रेस से राजनीतिक लड़ाई लड़ रही है, तो संघ वामपंथ से वैचारिक लड़ाई के जरिए भाजपा के लिए राजनीतिक जमीन बनाने का काम कर रहा है। भाजपा के लिए आज भी पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा राजनीतिक विरोधी अगर कोई है तो वह केवल और केवल वामपंथ ही है। तृणमूल कांग्रेस तो एक तरह से सामान्य राजनीतिक विरोधी है जिससे लड़ने के लिए भाजपा का सांगठानिक स्ट्रक्चर ही मजबूत है। लेकिन भाजपा और संघ सामानंतर तैयारियों में जुटे हैं। इसी तरह से देश के हर प्रांतांे में भाजपा और संघ इसी तरह से काम कर रहा है।
अब सवाल यह है कि उत्तराखण्ड में भाजपा का राजनीतिक शत्रु केवल कांग्रेस पार्टी है जो अपने ही अंतद्र्वंदों के चलते मौजूदा हालात में कमजोर हो चली है। प्रदेश में कांग्रेस सांगठनिक तौर पर भी भाजपा से कमजोर ही दिखाई दे रही है। फिर संघ यहां किससे वैचारिक लड़ाई लड़ रहा है और क्यों भाजपा के लिए उस राजनीतिक जमीन को मजबूत कर रहा है जिस पर पहले ही भाजपा मजबूती से खड़ी है।
भाजपा सत्ता में आने के बाद कांग्रेस पर हर तरह से भारी पड़ रही है। चाहे वह थराली विधानसभा का उपचुनाव हो या स्थानीय निकाय चुनाव हो या सहकारी समितियों के चुनाव रहे हों तकरीबन हर चुनाव में भाजपा कांग्रेस को बुरी तरह से पछाड़ने में कामयाब रही है। यहां तक कि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को भाजपा में शामिल करवा कर चुनाव में जीत हासिल करके सरकार में मंत्री पदों पर भी बैठाया हुआ है। एक तरह से भाजपा कांग्रेस से
वैचारिक लड़ाई में भी जीत हासिल कर चुकी है।
राजनीतिक जानकारों के इस पर अलग-अलग मत हैं। कुछ का मानना है कि सीमांत प्रदेश होने के चलते संघ उत्तराखण्ड में सामानांतर काम कर रहा है और इसके लिए वह वैचारिक तौर पर अपने से हर क्षेत्र के लोगों को जोड़ने का काम कर रहा है, तो भाजपा इसके पीछे राजनीतिक तौर पर ग्राम स्तर से लेकर संसदीय स्तर तक अपने को मजबूत कर रही है। लेकिन इसके विपरीत कई राजनीतिक जानकार इसको लोकसभा चुनाव को लेकर की जा रही कवायद के तौर पर भी देख रहे हैं। माना जा रहा है कि भाजपा का कोई बड़ा नेता राज्य से चुनाव लड़ सकता है। जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम सबसे आगे है। पूर्व में भी इसी तरह की चर्चाएं सामने आई थी कि मोदी हरिद्वार संसदीय क्षेत्र से चुनाव में उतर सकते हैं। हालांकि इस चर्चा को न तो भाजपा ने कोई तवज्जो दी और न ही मीडिया में इस पर कोई विमर्श हो पाया। बावजूद इसके भाजपा के ही भीतर इस तरह के कयास उठने लगे हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के भी राज्य से चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं।
एक तीसरा पक्ष भी है जो कहीं न कहीं भाजपा की भीतरी राजनीति के चलते प्रदेश सरकार और संगठन को लेकर हो रही कवायद के तोैर पर सुनाई दे रहा है। इसके पीछे भी जो तर्क दिए जा रहे हैं उनको एकदम सिरे से नकारा नहीं जा सकता। प्रदेश भाजपा संगठन और सरकार के बीच अंतद्र्वंदों के चलते कई तरह की चर्चाएं प्रदेश की राजनीति में सुनने को मिलती रही हैं। नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं सबसे ज्यादा अगर किसी सरकार के कार्यकल में समाने आई हैं तो वह त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय में ही सुनाई दे रही हैं, जबकि सरकार गठन को करीब दो वर्ष ही हुए हैं। बावजूद इसके इस तरह की चर्चाएं खूब सुनाई दी हंै। यहां तक कि अगर मुख्यमंत्री या भाजपा नेताओं का दिल्ली दौरा भी हुआ तो उसके पीछे अचानक कई तरह के कयासों से राजनीतिक गलियारे गूंजने लगे। हालांकि अमित शाह ने त्रिशक्ति सम्मेलन में मुख्यमंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट की तारीफों के पुल बांधने में कोई कमी नहीं की। एक तरह से अमितशाह ने राज्य में भाजपा का नया प्रयोग किए जाने के कयासों पर पूरी तरह से लगाम लगाने का काम किया है। बावजूद इसके कयासों में कोई कमी नहीं आई है।
माना जा रहा है कि प्रदेश सरकार के कामकाज को लेकर जिस तरह से तमाम तरह की बातंे समाने आई हंै उससे भाजपा आलाकमान भी खासा चिंतित है। मौजूदा भाजपा सरकार के समय जो हालात दिखाई दे रहे हैं ठीक इसी तरह के हालात पूर्ववर्ती भाजपा की निशंक सरकार के दौरान भी देखने को मिल चुके हैं। तत्कालीन समय में भी भाजपा आलाकमान के दौरे अचानक प्रदेश में बड़े पैमाने पर हुए थे। तब मीडिया भाजपा नेताओं के सामने एक ही सवाल उठाता रहा है कि क्या राज्य में नेतृत्व परिवर्तन होगा। हालांकि उस समय तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और हर भाजपा नेता का जबाब ‘नहीं’ में होता था। जबकि कुछ ही माह के बाद निंशक को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था।
माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान राज्य सरकार के कामकाज से भी खासा चिंतित है। केंद्र सरकार की अरबों की बड़ी-बड़ी योजनाएं प्रदेश में चल रही हैं, लेकिन हर योजना में कोई न कोई अड़चन सामने आ रही है। कभी वह पर्यावरण को लेकर है या कभी वह किसी अन्य कारणों से अटक रही है। आॅल वेदर रोड का मामला भी इसी तरह से चर्चाओं रहा है। एनजीटी के नियमों के चलते आॅल वेदर रोड में कई तरह की अड़चनें सामने आ चुकी हैं। लेकिन इसके लिए राज्य सरकार द्वारा मजबूत पैरवी में कमी भी एक बड़ी वजह बनी हुई है।
भाजपा सरकार के एक बड़े मंत्री आॅफ द रिकाॅर्ड मानते हैं कि केंद्र सरकार प्रदेश में जिस तरह से बड़ी-बड़ी योजनाओं की सौगातें दे रही है उसके विपरीत राज्य सरकार इससे उतना फायदा नहीं ले पा रही है जितना लेना चाहिए। मंत्री के अनुसार सड़क निर्माण के मामले में प्रदेश सरकार केंद्र सरकार को कोई मजबूत और बड़ा प्रस्ताव देने में ही कमजोर साबित हो रही है जबकि केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी राज्य को बहुत कुछ देना चाहते हैं। लेकिन राज्य सरकार की कमजोर सोच के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है।
यह बात कितना सही है इसे तो कहा नहीं जा सकता क्योंकि राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री द्वारा यह आॅफ द रिकाॅर्ड कही गई है। लेकिन जिस तरह से अन्य प्रदेशों में सड़कों और हाईवे की कई नई बड़ी-बड़ी योजनाएं और वर्षों से लटकी योजनाओं को केंद्र सरकार ने हरी झंडी दी है उससे इतना तो साफ है कि राज्य के मंत्री की बात में कुछ तो सच्चाई है।
इसके अलावा प्रधानमंत्री कौशल विकास मिशन योजना को लेकर भी प्रदेश सरकार पर कई सवाल खड़े हो चुके हैं। स्वयं मंत्री हरक सिंह रावत इस योजना में हो रहे गोलमाल को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर चुके हैं। जबकि यह योजना केंद्र सरकार द्वारा बेरोजगारों के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि बताई जा रही है। बावजूद इसके इस योजना से प्रदेश के कितने बेरोजगार युवकों को लाभ मिला है, इसका कोई आंकड़ा तक उपलब्ध नहीं है।
आयुष्मान भारत योजना की तरह अटल आयुष्मान योजना राज्य सरकार ने आरंभ की है। अभी यह योजना धरातल पर उतरी है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई तरह के आरोप लग रहे हैं। गोल्डन कार्ड होने के बावजूद रोगी को उपचार नहीं मिलने से साफ है कि सरकार की योजना भले ही बहुत बड़ी और अति महत्वपूर्ण हो, लेकिन उसका क्रियान्वयन सही तरीके से राज्य में नहीं हो पा रहा है।
संभवतः इसी के चलते केंद्र सरकार का फोकस उत्तराखण्ड में बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हांे या अमित शाह या फिर संघ प्रमुख सभी के उत्तराखण्ड में ताबड़तोड़ दौरे महज राजनीतिक दौरे ही नहीं हैं। इसके पीछे भाजपा संगठन और सरकार के भीतर कामकाज को भी एक वजह माना जा रहा है। भले ही इसके पीछे कोई भी करण बताया जा रहा हो या कयास लगाए जा रहे हों। कहीं न कहीं भाजपा के भीतर खासी हलचल है जो आने वाले समय में और तेजी से देखने को मिलेगी।
उत्तराखण्ड में भाजपा सरकार के महज दो वर्षीय कार्यकाल के दौरान राज्य में भाजपा और संघ नेताओं के ताबड़तोड़ दौरों ने राजनीतिक गलियारों में तमाम चर्चाओं को जन्म दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में त्रिशक्ति सम्मेलन के बहाने राज्य का दौरा किया। शाह पार्टी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ बैठक में भी शामिल हुए। इसके तुरंत बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पांच दिनों तक देहरादून प्रवास पर रहे। इस प्रवास के दौरान भागवत ने राज्य के शिक्षा, सामाजिक, भाषा, सांस्कøतिक एवं सरोकार जगत के कई बुद्धिजीवियों और विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ विचार-विमर्श किया। उनके साथ बैठकें की। अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या है जो संघ के इतिहास में पहली बार कोई संघ प्रमुख इतने लंबे समय तक उत्तराखण्ड के प्रवास में रहे और प्रवास के पूरे दिनों में वैचारिक बैठकों का ही दौर चलता रहा। भागवत और अमित शाह के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखण्ड का दौरा किया। हालांकि मौसम खराब होने के कारण रुद्रपुर रैली में जमा लोगों को दूरभाष से ही संबोधित कर पाए। लेकिन उससे पहले वे पार्टी नेताओं के साथ जिम काॅर्बेट रामनगर और देहरादून का भ्रमण अवश्य कर गए।
पार्टी के अन्य बड़े नेता भी उत्तराखण्ड भ्रमण को आ रहे हैं। अभी 10 फरवरी को बिहार भाजपा इकाई के सबसे बड़े नेता सुशील मोदी भी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के एक कार्यक्रम में शिरकत करने आ चुके हैं। 21 फरवरी को भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री और कैबिनेट मंत्री उमा भारती भी उत्तराखण्ड में दौरा करने वाली हैं। भाजपा के सूत्रों की मानें तो आने वाले समय में लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले भाजपा के कई दिग्गज नेता उत्तराखण्ड में अपने दोैरे कर सकते हैं। इससे यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर भाजपा के लिए अचानक उत्तराखण्ड इतना महत्वपूर्ण क्यों हो चला है?
हालांकि भाजपा के इस तरह के दौरे कोई अनपेक्षित नहीं हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह देश के हर राज्य में ताबड़तोड़ दौरे करने में व्यस्त हैं। लेकिन उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य में जब प्रधानमंत्री और अमित शाह महज दो वर्ष में कई दौरे कर चुके हैं और संघ प्रमुख भी अपना दोैरा कर गए हैं, तो राजनीतिक गलियारों में कयास लगने स्वभाविक हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो भाजपा और संघ अपनी-अपनी योजनाओं के साथ 2014 से ही काम में जुट गए हंै जिसके चलते वे राज्य के दौरे कर रहे हैं।
माना जा रहा है कि भाजपा देश के हर राज्य की राजनीति के हिसाब से एक बड़ी रणनीति के तहत काम कर रही है। दूसरी तरफ भाजपा के समानांतर संघ भी उसके पीछे-पीछे   राज्य में भाजपा के लिए वैचारिक धरातल बनाने का काम कर रहा है।
पश्चिम बंगाल में भाजपा तृणमूल कांग्रेस से राजनीतिक लड़ाई लड़ रही है, तो संघ वामपंथ से वैचारिक लड़ाई के जरिए भाजपा के लिए राजनीतिक जमीन बनाने का काम कर रहा है। भाजपा के लिए आज भी पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा राजनीतिक विरोधी अगर कोई है तो वह केवल और केवल वामपंथ ही है। तृणमूल कांग्रेस तो एक तरह से सामान्य राजनीतिक विरोधी है जिससे लड़ने के लिए भाजपा का सांगठानिक स्ट्रक्चर ही मजबूत है। लेकिन भाजपा और संघ सामानंतर तैयारियों में जुटे हैं। इसी तरह से देश के हर प्रांतांे में भाजपा और संघ इसी तरह से काम कर रहा है।
अब सवाल यह है कि उत्तराखण्ड में भाजपा का राजनीतिक शत्रु केवल कांग्रेस पार्टी है जो अपने ही अंतद्र्वंदों के चलते मौजूदा हालात में कमजोर हो चली है। प्रदेश में कांग्रेस सांगठनिक तौर पर भी भाजपा से कमजोर ही दिखाई दे रही है। फिर संघ यहां किससे वैचारिक लड़ाई लड़ रहा है और क्यों भाजपा के लिए उस राजनीतिक जमीन को मजबूत कर रहा है जिस पर पहले ही भाजपा मजबूती से खड़ी है।
भाजपा सत्ता में आने के बाद कांग्रेस पर हर तरह से भारी पड़ रही है। चाहे वह थराली विधानसभा का उपचुनाव हो या स्थानीय निकाय चुनाव हो या सहकारी समितियों के चुनाव रहे हों तकरीबन हर चुनाव में भाजपा कांग्रेस को बुरी तरह से पछाड़ने में कामयाब रही है। यहां तक कि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को भाजपा में शामिल करवा कर चुनाव में जीत हासिल करके सरकार में मंत्री पदों पर भी बैठाया हुआ है। एक तरह से भाजपा कांग्रेस से वैचारिक लड़ाई में भी जीत हासिल कर चुकी है।
राजनीतिक जानकारों के इस पर अलग-अलग मत हैं। कुछ का मानना है कि सीमांत प्रदेश होने के चलते संघ उत्तराखण्ड में सामानांतर काम कर रहा है और इसके लिए वह वैचारिक तौर पर अपने से हर क्षेत्र के लोगों को जोड़ने का काम कर रहा है, तो भाजपा इसके पीछे राजनीतिक तौर पर ग्राम स्तर से लेकर संसदीय स्तर तक अपने को मजबूत कर रही है। लेकिन इसके विपरीत कई राजनीतिक जानकार इसको लोकसभा चुनाव को लेकर की जा रही कवायद के तौर पर भी देख रहे हैं। माना जा रहा है कि भाजपा का कोई बड़ा नेता राज्य से चुनाव लड़ सकता है। जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम सबसे आगे है। पूर्व में भी इसी तरह की चर्चाएं सामने आई थी कि मोदी हरिद्वार संसदीय क्षेत्र से चुनाव में उतर सकते हैं। हालांकि इस चर्चा को न तो भाजपा ने कोई तवज्जो दी और न ही मीडिया में इस पर कोई विमर्श हो पाया। बावजूद इसके भाजपा के ही भीतर इस तरह के कयास उठने लगे हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के भी राज्य से चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं।
एक तीसरा पक्ष भी है जो कहीं न कहीं भाजपा की भीतरी राजनीति के चलते प्रदेश सरकार और संगठन को लेकर हो रही कवायद के तोैर पर सुनाई दे रहा है। इसके पीछे भी जो तर्क दिए जा रहे हैं उनको एकदम सिरे से नकारा नहीं जा सकता। प्रदेश भाजपा संगठन और सरकार के बीच अंतद्र्वंदों के चलते कई तरह की चर्चाएं प्रदेश की राजनीति में सुनने को मिलती रही हैं। नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं सबसे ज्यादा अगर किसी सरकार के कार्यकल में समाने आई हैं तो वह त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय में ही सुनाई दे रही हैं, जबकि सरकार गठन को करीब दो वर्ष ही हुए हैं। बावजूद इसके इस तरह की चर्चाएं खूब सुनाई दी हंै। यहां तक कि अगर मुख्यमंत्री या भाजपा नेताओं का दिल्ली दौरा भी हुआ तो उसके पीछे अचानक कई तरह के कयासों से राजनीतिक गलियारे गूंजने लगे। हालांकि अमित शाह ने त्रिशक्ति सम्मेलन में मुख्यमंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट की तारीफों के पुल बांधने में कोई कमी नहीं की। एक तरह से अमितशाह ने राज्य में भाजपा का नया प्रयोग किए जाने के कयासों पर पूरी तरह से लगाम लगाने का काम किया है। बावजूद इसके कयासों में कोई कमी नहीं आई है।
माना जा रहा है कि प्रदेश सरकार के कामकाज को लेकर जिस तरह से तमाम तरह की बातंे समाने आई हंै उससे भाजपा आलाकमान भी खासा चिंतित है। मौजूदा भाजपा सरकार के समय जो हालात दिखाई दे रहे हैं ठीक इसी तरह के हालात पूर्ववर्ती भाजपा की निशंक सरकार के दौरान भी देखने को मिल चुके हैं। तत्कालीन समय में भी भाजपा आलाकमान के दौरे अचानक प्रदेश में बड़े पैमाने पर हुए थे। तब मीडिया भाजपा नेताओं के सामने एक ही सवाल उठाता रहा है कि क्या राज्य में नेतृत्व परिवर्तन होगा। हालांकि उस समय तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और हर भाजपा नेता का जबाब ‘नहीं’ में होता था। जबकि कुछ ही माह के बाद निंशक को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था।
माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान राज्य सरकार के कामकाज से भी खासा चिंतित है। केंद्र सरकार की अरबों की बड़ी-बड़ी योजनाएं प्रदेश में चल रही हैं, लेकिन हर योजना में कोई न कोई अड़चन सामने आ रही है। कभी वह पर्यावरण को लेकर है या कभी वह किसी अन्य कारणों से अटक रही है। आॅल वेदर रोड का मामला भी इसी तरह से चर्चाओं रहा है। एनजीटी के नियमों के चलते आॅल वेदर रोड में कई तरह की अड़चनें सामने आ चुकी हैं। लेकिन इसके लिए राज्य सरकार द्वारा मजबूत पैरवी में कमी भी एक बड़ी वजह बनी हुई है।
भाजपा सरकार के एक बड़े मंत्री आॅफ द रिकाॅर्ड मानते हैं कि केंद्र सरकार प्रदेश में जिस तरह से बड़ी-बड़ी योजनाओं की सौगातें दे रही है उसके विपरीत राज्य सरकार इससे उतना फायदा नहीं ले पा रही है जितना लेना चाहिए। मंत्री के अनुसार सड़क निर्माण के मामले में प्रदेश सरकार केंद्र सरकार को कोई मजबूत और बड़ा प्रस्ताव देने में ही कमजोर साबित हो रही है जबकि केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी राज्य को बहुत कुछ देना चाहते हैं। लेकिन राज्य सरकार की कमजोर सोच के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है।
यह बात कितना सही है इसे तो कहा नहीं जा सकता क्योंकि राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री द्वारा यह आॅफ द रिकाॅर्ड कही गई है। लेकिन जिस तरह से अन्य प्रदेशों में सड़कों और हाईवे की कई नई बड़ी-बड़ी योजनाएं और वर्षों से लटकी योजनाओं को केंद्र सरकार ने हरी झंडी दी है उससे इतना तो साफ है कि राज्य के मंत्री की बात में कुछ तो सच्चाई है।
इसके अलावा प्रधानमंत्री कौशल विकास मिशन योजना को लेकर भी प्रदेश सरकार पर कई सवाल खड़े हो चुके हैं। स्वयं मंत्री हरक सिंह रावत इस योजना में हो रहे गोलमाल को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर चुके हैं। जबकि यह योजना केंद्र सरकार द्वारा बेरोजगारों के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि बताई जा रही है। बावजूद इसके इस योजना से प्रदेश के कितने बेरोजगार युवकों को लाभ मिला है, इसका कोई आंकड़ा तक उपलब्ध नहीं है।
आयुष्मान भारत योजना की तरह अटल आयुष्मान योजना राज्य सरकार ने आरंभ की है। अभी यह योजना धरातल पर उतरी है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई तरह के आरोप लग रहे हैं। गोल्डन कार्ड होने के बावजूद रोगी को उपचार नहीं मिलने से साफ है कि सरकार की योजना भले ही बहुत बड़ी और अति महत्वपूर्ण हो, लेकिन उसका क्रियान्वयन सही तरीके से राज्य में नहीं हो पा रहा है।
संभवतः इसी के चलते केंद्र सरकार का फोकस उत्तराखण्ड में बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हांे या अमित शाह या फिर संघ प्रमुख सभी के उत्तराखण्ड में ताबड़तोड़ दौरे महज राजनीतिक दौरे ही नहीं हैं। इसके पीछे भाजपा संगठन और सरकार के भीतर कामकाज को भी एक वजह माना जा रहा है। भले ही इसके पीछे कोई भी करण बताया जा रहा हो या कयास लगाए जा रहे हों। कहीं न कहीं भाजपा के भीतर खासी हलचल है जो आने वाले समय में और तेजी से देखने को मिलेगी।

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