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The Sunday Post Special Uttarakhand

‘मातृसदन को बदनाम करने के पीछे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत’

‘मातृसदन को बदनाम करने के पीछे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत’

मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद जी सरस्वती महाराज पिछले कई वर्षों से गंगा को अविरल और निर्मल बहने देने के लिए संघर्षरत हैं। वे दुखी हैं कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत खनन के सबसे बड़े पैरोकार हैं। मातृसदन को बदनाम करने की साजिश के पीछे भी वही हैं। स्वामी जी से शोभा अक्षर की विशेष बातचीतः

 

महाराज, नमामि गंगे परियोजना जब 2014 में आई तो उसका कुल बजट 20 हजार करोड़ रुपए निर्धारित था, लेकिन कुल बजट का आधा भी अभी गंगा की सफाई में खर्च नहीं हुआ। मातृ सदन कई वर्ष पहले 1997 में स्थापित हुआ, हम जानना चाहते हैं कि आपने गंगा की स्वच्छता के लिए लड़ाई कब से शुरू की?
गंगा मां से मेरा लगाव बहुत पहले से है, परंतु गंगा इस ढंग से अपमानित हो रही है, प्रदूषित हो रही है, गंगा की यह दुर्दशा होगी, यह मुझे हरिद्वार आकर पता चला। गंगा मां के लिए मैंने जितनी भी अभी तक लड़ाई लड़ी है वह मातृ सदन से ही शुरू हुई है।

महाराज जी, मातृ सदन के साधकों ने गंगा के लिए अपने प्राण त्याग दिए जिनमें गोकुलानंद जी, निगमानंद जी और प्रसिद्ध पर्यावरणविद प्रो. जीडी अग्रवाल भी शामिल हैं। इसके बाद भी लगातार मातृ सदन अपनी मांगों को लेकर अनशन कर रहा है। लेकिन सरकार से वह पहल नहीं हो रही जो आप अपेक्षा कर रहे हैं। आखिर क्यों?
आप जो कह रही हैं उसमें कोई संदेह की बात नहीं है। हम गंगा में हो रहे अवैध खनन को रुकवाने की मांग लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के पास भी गए थे, हमें कोई ठोस अश्वासन नहीं दिया गया। लेकिन अब जो जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत आए हैं, इनमें गंगा के प्रति कोई संवेदना नहीं है। गंगा के प्रति सिर्फ उमा भारती के मन में प्रेम था, नितिन गडकरी में भी गंगा के प्रति प्रेम नहीं है और शेखावत में तो सिर्फ दिखावे वाला प्रेम है। 10 सितंबर 2019 को मातृ सदन की शेखावत से वार्ता होती है तब वे हमारी सभी मांगों को स्वीकार करते हैं और मुझे आश्वासन दिया जाता है कि जिन चार डैम को आप बंद करवाना चाहते हैं वो भी बंद होंगे। 10 जनवरी 2020 को वे बाकी बात तो स्वीकार करते हैं, लेकिन चार डैम बंद करने की बात से मुकर जाते हैं। उनके सेक्रेटरी यूपी सिंह की भी उस मीटिंग में जो अभद्रता सामने आती है उसकी किसी सभ्य समाज से कल्पना नहीं की जा सकती है। सीएम के आदेश के बावजूद उन्होंने खनन को खोलने की कवायद शुरू कर दी तो मैं कैसे कह दूं कि वे गंगा भक्त हैं, साधु भक्त हैं। शेखावत ने अभी तक गंगा के लिए कुछ नहीं किया। जल तो साक्षात प्राण हैं। उन्होंने जल शक्ति के लिए सिर्फ दिखावा किया है।

महाराज जी, आपको अब न तो मुख्यमंत्री से कोई उम्मीद है, न जल शक्ति मंत्री से और न ही प्रशासन से तो अब मातृ सदन का अगला एक्शन प्लान क्या होगा?
देखिये, यहां हो रहे सारे मामले को मीडिया जानता है कि दबा दिया गया है। एक मात्र रास्ता है अब आत्म प्रकाश का। कहा गया है कि तपो ब्रह्मा यानी तप ही ब्रह्म है। इसलिए जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तो तपस्या ही एक मात्र रास्ता है जिसका सहारा हम ले रहे है।

गंगा की निर्मलता को बनाए रखने के लिए सरकारें कई योजनाएं लाती हैं, पर क्या कारण है कि मातृसदन की मांगों को लेकर सरकार अभी तक गंभीर नजर नहीं आ रही है?
कहने के लिए सब कहते हैं कि हम गंगा के प्रति समर्पित हैं। मोदी जी ने भी कहा कि उन्हें गंगा मां ने बुलाया है। देखिये, जब वाणी और कर्म का पथ एक दिशा में नहीं होता है तो वह दूषित हो जाता है। 2013 में जब सानंद जी (प्रो जीडी अग्रवाल) तपस्या कर रहे थे तो उन्हें सफलता मिली थी। राजनाथ सिंह ने उनको उस दौरान स्वयं चिट्ठी लिखकर आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार आएगी तो वो मातृ सदन की सारी मांगों को मान लेंगे। खुद पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी ने सानंद जी को वृंदावन बुलाकर उनका अनशन तुड़वाया था। सभी ने कहा था कि मोदी सरकार आने पर सभी मांगें बिना किसी देरी के मान ली जाएंगी, पर फिर सानंद जी किसी न किसी रणनीति के शिकार हुए।

महाराज जी, मातृ सदन ने अभी तक इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या कोई कानूनी कार्यवाही की है, इन सबके दौरान आपको हरिद्वार प्रशासन से कोई सहायता मिली है?
असल बात यह है कि पूर्व में जब हमने आंदोलन किए तो यहां कुछ ईमानदार अफसर भी थे। मैं धन्यवाद देता हूं कल्याण सिंह को जिन्होंने पूरी दृढ़ इच्छा से यह ख्याल रखा कि यहां ईमानदार अफसर ही नियुक्त हों। मैं उनसे कभी मिला नहीं हूं, पर उस दौरान उनके कार्यों से यह लगा कि उन्होंने यह समझ लिया था कि मातृ सदन सच में गंगा मां के लिए समर्पित है और उसी के लिए ही आंदोलनरत है। उस समय जिस अवैध खनन माफिया के खिलाफ हमने आवाज उठाई उन्होंने उस पर रोक भी लगाई। उसके बाद उत्तराखंड बना तो भ्रष्ट अधिकारियों की बहुतायत है। इन भ्रष्टाचारियों की नजर गंगा में अवैध खनन कर अपार सम्पत्ति जमा करने पर है। ये लोग सिर्फ यहां पर दमन की ही नीति अपना रहे हैं।

हम अपने पाठकों के लिए यह जानकारी जरूर चाहेंगे कि गंगा की अविरलता के लिए मातृ सदन जिन मांगों को लेकर संघर्षरत है, वे क्या-क्या हैं? कृपया संक्षिप्त में बताएं?
वैसे तो गंगा को लेकर बहुत सी मांगे हैं, पर यहां मैं मुख्य -मुख्य मांगों को बताना चाहूंगा। पहला यह कि गंगा अपनी पूर्व अवस्था में बहे उसके लिए गंगा पर प्रस्तावित और निर्माणाधीन सभी बांधों को निरस्त किया जाए। दूसरा यह कि जो बांध बने हैं उनमें मानक के अनुसार फ्लो किया जाए। तीसरा यह है कि गंगा में खनन को पूरी तरह से बंद किया जाए। चौथी मांग यह है कि एक गंगा भक्त ट्रस्ट बने जो अपने आप में एक ऑटोनोमस बॉडी हो। इन्हीं चार मांगों को लेकर सानन्द जी भी अनशन पर बैठे थे और बाद में आत्मबोधानंद भी इन्हीं मांगों को लेकर जब बैठे तो इन लोगों ने सारी मांगों को लिखित और मौखिक रूप से माना। जिसका मेरे पास प्रमाण भी है, पर क्योंकि अब यहां एक भ्रष्ट तंत्र व्याप्त है तो उसमें सभी लिप्त हो चुके हैं। इसलिए फिर से साध्वी पद्मावती अनशन पर बैठी हैं। आत्मबोधानंद अनशन पर हैं। हमने 30 जनवरी को साध्वी पद्मावती के साथ हुए दुर्व्यवहार की भी निष्पक्ष जांच की मांग की है।

दीपक रावत ईमानदार नहीं, बल्कि एक नोटोरियस ऑफिसर हैं। जिस खनन को एनजीटी ने आदेश देकर बंद कर रखा था दीपक रावत ने एक दूसरी संस्था जो एनजीटी के संज्ञान में नहीं थी, उसे खनन की स्वीकृति दी। मैंने तो यह भी सुना कि उन्होंने 30 करोड़ रुपये लेकर उस संस्था को खनन खोलने की अनुमति दी तो मैं कैसे कह दूं कि दीपक रावत ईमानदार हैं। गंगाद्रोही महामूर्ख मनीष कुमार जो दीपक रावत का साथी है उसने भ्रष्ट अट्टिकारियों की मदद से मातृ सदन को बदनाम करने का प्रयास किया

साध्वी पद्मावती जिनकी आयु अभी 23 वर्ष है, वे लगभग दो माह से अनशन पर हैं। उनकी हालत नाजुक है। उनके साथ 30 जनवरी 2020 को क्या हुआ जिसकी निष्पक्ष जांच की आप मांग कर रहे हैं?
देखिए, अपनी बात पहले यहां से करूंगा कि इन सब साजिश के तहत कोई और नहीं खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जिम्मेदार हैं। मैं खुलकर उनके बारे में कहता हूं कि वे खनन के सबसे बड़े पैरोकार खुद हैं। विश्व में यह इतिहास होगा कि स्वयं मुख्यमंत्री खनन करवाने के लिए ऑफिस के चक्कर लगा रहे हैं। हमारे पास अनुमति है जिस पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगी है और उसमें कहा गया है कि कुंभ क्षेत्र में रायवाला तक कहीं भी खनन नहीं होगा, लेकिन इसके बावजूद मुख्यमंत्री खुद भ्रष्ट अधिकारियों को नहीं रोकते।

अब बात करता हूं 30 जनवरी 2020 की रात के लगभग 10ः50 का समय है, अचानक आश्रम के अंदर धारा 144 लगा दी जाती है। और एक योगिनी जो अभी मात्र 23 वर्ष की ब्रह्मचारिणी है उसके कमरे का दरवाजा जबर्दस्ती तोड़ा जाता है। वो न जाने किस अवस्था में लेटी थी। उसी अवस्था में मर्द पुलिस 11 बजे उसके कमरे में जबरन घुस जाते हैं। उसके बाद महिला पुलिस भी आती है। वह बहुत ही बुरी तरह साध्वी पद्मावती को घसीटते हुए अपने साथ गाड़ी में बैठाकर ले जाती हैं। उसे रात भर टार्चर किया जाता है। उसके साथ रेप करने की चेष्टा की जाती है। एक षड्यंत्र के तहत अगली सुबह उस पर दो महीने की प्रेग्नेंट होने का आरोप लगा दिया जाता है। जिस पर साध्वी पद्मावती कहती हैं कि अगर भगवान भी आकर इस बात को कहेंगे तो मैं यह बात नहीं मानूंगी। जब यह सब बवाल होता है तो हमें भी यह पता चलता है। मीडिया बुलाया जाता है। जांच में कुछ भी ऐसा नहीं आता है। हमें अस्पताल के डॉक्टर द्वारा कहा जाता है कि साध्वी पद्मावती को एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज यहां संभव नहीं है, हमें दूसरे डॉक्टर के पास बाहर ले जाकर इलाज कराना होगा और वो डॉक्टर कौन होगा यह हम बताएंगे। तो आपको मैं बता दूं कि इतना बड़ा षड्यंत्र हमारे साथ खेला गया। यह पूरी तरह साध्वी पद्मावती को बदनाम करने को साजिश थी। मातृ सदन को बदनाम करने की साजिश थी। इतने बड़े आंदोलन को रोकने को साजिश थी। साध्वी पद्मावती ने अपना फोन रिकॉर्ड पर रखा था इसलिए इन सब साजिशों का हमारे पास ऑन रिकार्ड भी है और गवाह भी है।

महाराज जी, हरिद्वार के पूर्व जिलाधिकारी दीपक रावत की सोशल मीडिया पर एक ईमानदार और एक्शन हीरो आईएस अफसर के रूप में छवि बनी हुई है, लेकिन जनवरी 2018 में आपने हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी और वर्तमान कुम्भ मेलाधिकारी दीपक रावत के खिलाफ कोर्ट में मानहानि का एक केस फाइल किया।क्या है पूरा मामला?
दीपक रावत ईमानदार नहीं, बल्कि एक नोटोरियस ऑफिसर हैं। अगर ईमानदार होते तो उनके मामले की जांच कर रही कमेटी को अपना काम निष्पक्षता से करने देते। देखिए मैं पूरा मामला आपको विस्तार से बताता हूं। बात 25 दिसंबर 2017 की है उस दिन मदन मोहन मालवीय की जयंती पर इनको एक पुरस्कार ग्रहण करना था। हमने आरटीआई के तहत यह पूछा था कि क्या उन्होंने यह पुरस्कार स्वीकार करने की अनुमति सरकार से ली थी? जांच में आया कि अनुमति नहीं ली गयी थी। उसके बावजूद वो गए। और तो और जिस खनन को एनजीटी ने आदेश देकर बंद कर रखा था दीपक रावत ने एक दूसरी संस्था जो एनजीटी के संज्ञान में नहीं थी, उसे खनन की स्वीकृति दी। मैंने तो यह भी सुना कि उन्होंने 30 करोड़ रुपये लेकर उस संस्था को खनन खोलने की अनुमति दी तो मैं कैसे कह दूं कि दीपक रावत ईमानदार हैं। गंगा द्रोही महामूर्ख मनीष कुमार जो दीपक रावत का साथी है उसने भ्रष्ट अधिकारियों की मदद से मातृ सदन को बदनाम करने का प्रयास किया।

खैर, उसके पहले इन्होंने अनशन कर रहे आत्मबोधानंद से अपने इशारे पर पुलिस द्वारा बर्बरता करवाई, उसे जूतों से रगड़ कर मारा गया, लाठियों से पीटा गया। उसकी स्थिति इतनी खराब हो गयी कि जब आत्मबोधानंद आश्रम आया तो उसके शरीर पर यातनाओं के ढेरों प्रमाण थे। हमारे पास आत्मबोधानंद के आश्रम से जाने और आने की, दोनों दिनों की तस्वीर है। दीपक रावत के कहने पर पूरी तरह से अनैतिक व्यवहार किया गया।

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