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Uttarakhand

रोजगार के नाम पर छलावा

बेरोजगारी का घोड़ा/भाग-दो

राज्य सरकार बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार देने के दावे करती रही। कोरोनाकाल में लौटे प्रवासियों को भी बड़े-बड़े सपने दिखाए गए, लेकिन जमीनी हकीकत शून्य है

राज्य सरकार के रोजगार संबंधित दावों की पोल राज्य के सबसे बड़े औद्योगिक जिले ऊधमसिंह नगर के आंकड़े खोल देते हैं। ऊधमसिंह नगर में 3 हजार प्रवासियों ने ‘होप पोर्टल’ ;ूूूण्ीवचमनाण्हवअण्पदद्ध में अपना पंजीकरण करवाया है जिसमें महज 11 लोगों को ही सिडकुल के कारखानों और उद्योगों में नौकरी मिल पाई है। स्वरोजगार में 28 लोगों को मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में ऋण प्राप्त हुआ है। सांस्कøतिक नगरी से विख्यात अल्मोड़ा जिले में कुल 61 हजार पंजीकत बेरोजगारों में से महज 465 लोगों को ही रोजगार मिल पाया है। चम्पावत जिले में होप पोर्टल में 1209 लोगों ने अपना पंजीकरण करवाया है जिसमें सिर्फ 92 लोगों को ही रोजगार मिल पाया है। वैसे चम्पावत जैसे छोटे से जिले में 25771 पंजीकøत बेरोजगार हैं और रोजगार केवल 92 लोगों का ही दिया जा सका है। इसी तरह से बागेश्वर जिले में होप पोर्टल में 978 लोगांे ने अपना पंजीकरण करवाया था जिसमें कुल 251 लोगां को हीरोजगार मुहैया हो पाया है।

सरोवर नगरी नैनीताल जिले में पंजीकत बेरोजगारों की संख्या 46910 हो चुकी है, लेकिन सेवायोजन विभाग के पास कितनांे को रोजगार मिला, इसका कोई आंकड़ा नहीं है। इसी तरह से पिथौरागढ़ जिले के भी हालात हंै। यहां भी होप पोर्टल पर 1150 लोगों ने अपना पंजीकरण करवाया है जिसमें 750 ने प्रशिक्षण और 400 लोगों ने रोजगार के लिए पंजीकरण करवाया था, परंतु अभी तक न तो किसी को प्रशिक्षण ही मिल पाया है औेर न ही रोजगार मिल पाया है। गढ़वाल मंडल का सबसे बड़ा औद्योगिक और रोजगार का केंद्र समझे जाने वाले हरिद्वार जिले में कोरोनाकाल के बाद 10200 बेरोजगारों ने अपना पंजीकरण करवाया है जिसमें अभी तक किसी को भी रोजगार नहीं मिल पाया है। देहरादून जिले में करोनाकाल के अप्रैल 2020 के बाद 6500 लोगों ने अपना पंजीकरण करवाया है जिसमें महज 143 लोगों को रोजगार मिल पाया है जिसमें रोजगार मेले के तहत 38 और निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा 105 लोगों को रोजगार मिला है। यह हाल देहरादून के हैं जहां पूरा सरकारी अमला और शासन का मजबूत तंत्र विराजमान है।

आपदा और सरकारी सिस्टम से बदहाल रहे उत्तरकाशी जिले के युवाओं के सपनों को भी निराशा ही मिली है। जिले में कुल 48828 बेरोजगार पंजीकøत हैं। कोरोना महामारी के चलते बड़ी तादात में प्रवासी जिले में लौटे हैं और कोरोना के समय पिछले वर्ष 2020 में 6469 बेरोजगारों ने अपना पंजीकरण करवाया है। जिसमें एक को भी नौकरी नहीं मिली है। इस जिले में रोजगार मेलों का भी आयोजन नहीं हो पाया है।

एशिया का सबसे बड़ा बांध की पहचान रखने वाला टिहरी जिला भी रोजगार देने में नाकाम ही रहा है। जिले में 74468 पंजीकøत बेरोजगार हो चुके हैं। वर्ष 2020 में 8 हजार लोगों ने अपना पंजीकरण करवाया, लेकिन एक को भी रोजगार नहीं मिल पाया है। जिले में कोरोना महामारी के चलते रोजगार मेले का भी आयोजन नहीं हो पाया है। भगवान केदारनाथ की भूमि रुद्रप्रयाग जिले में जिस तरह से आपदाएं आई हैं उसी तरह से बेरोजगारों की आपदाआंे का कोई निस्तारण सरकार नहीं कर पा रही है। कोरोना महामारी के चलते जिले में 29 हजार से भी ज्यादा प्रवासी अपने-अपने गांवों को लौटे थे जिनमें 3347 लोगांे ने जिला सेवायोजन और 2756 लोगों ने होप पोर्टल में अपना पंजीकरण करवाया हुआ है। होप पोर्टल प्रवासियों के लिए बनाया गया है, लेकिन किसी को भी अभी तक रोजगार मुहैया नहीं हो पाया है। इतना जरूर है कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में 1500 आवेदन आए थे जिसमें 350 आवेदनांे को स्वीकøति मिल चुकी है और केवल 38 को ही बैंक ऋण मिला है।

प्रदेश की राजनीति को हमेशा से प्रभावित करने वाले पौड़ी जिले में हालात बेहद दिलचस्प हैें। राज्य स्थापना के बाद इस जिले में अभी तक 29 हजार 572 बेरोजगार अपना पंजीकरण करवा चुके हैं। लेकिन सेवायोजन विभाग इन बीस वर्षों में एक भी पंजीकøत को सरकारी नौकरी नहीं दिलवा पाया है। इतना जरूर है कि सरकारी रोजगार मेले के तहत 832 युवाओं को प्राइवेट कंपनियों में नौकरी मिली है। भगवान बदरी नारायण की भूमि और प्राकøतिक आपदा की गोद में बैठे चमोली जिले में भी पंजीकøत बेरोजगारों की संख्या 43 हजार 103 तक हो चुकी है। लेकिन चाहे उत्तराखण्ड के पंजीकøत बेरोजगार हों या कोरोना के चलते लौटे प्रवासी जिन्होंने अपना पंजीकरण करवाया हुआ हो, किसी को भी नौकरी नहीं मिल पाई है। बेरोजगरों के लिए थोड़ा-सा सुखद यह है कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में 245 प्रवासियों का चयन स्वरोजगार के लिए हो चुका है। लेकिन इनको कब तक रोजगार मिल पाएगा या कितनों को मिल चुका है, यह जानकारी किसी के पास नहीं है।

ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार बेरोजगारों के लिए कोई योजना नहीं चला रही है। लेकिन इन योजनाओं को सही तरीके से जन-जन तक पहुंचाने में सरकारी सिस्टम लारपरवाह बना हुआ है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, मुख्यमंत्री सोलर योजना जैसी तमाम योजनाएं प्रदेश में चल रही हंै। बेरोजगारों के कौशल को विकसित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कौशल विकास मिशन राज्य में चल रहा है। लेकिन इन योजनाओं के क्रियान्वयन में हमेशा से ही विवाद और घपले सामने आते रहे हंै। ‘दि संडे पोस्ट’ प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में हुए बड़े भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का खुलासा पहले ही कर चुका है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में भी कई मामले सामने आ चुके हैं। मुख्यमंत्री सोलर योजना में तो स्वयं मुख्यमंत्री ने उत्तरकाशी के एक आवेदक जिससे लाखांे की घूस मांगी जा रही थी कि शिकायत पर कड़ी कार्यवाही तक की है।

सरकार बेरोजगारों के साथ शुरू से ही छल कर रही है। मुख्यमंत्री कहते हैं कि उनकी सरकार ने चार साल में 7 लाख लोगों को रोजगार दे दिया है। हजारों लघु उद्योग बंद हो चुके हैं। लगातार उद्योग बर्बादी के कगार पर हैं, तो अब प्राइवेट सेक्टर में भी रोजगार नहीं है। मुख्यमंत्री कैसे यह दावा कर रहे हैं कि चार साल में उनकी सरकार ने 7 लाख लोगों को रोजगार दिया है। सरकारी नौकरियों के 60 हजार पद रिक्त हैं और चार साल में सरकार ने 62 पदों का उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग में अध्याचन भेजा है। आउटसोर्स के माध्यम से भ्रष्टाचार और नौकरियां बेचने का काम हो रहा है। सरकार रोजगार देने में पूरी तरह से फेल है और सरकार का चार साल का कार्यकाल हर मामले में शून्य है।
रघुनाथ सिंह नेगी, जनसंघर्ष मोर्चा

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