भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा के मुकाबले परिवर्तन यात्रा शुरू कर कांग्रेस बदलाव की बयार तो लाना चाहती है, लेकिन नेताओं की आपसी कलह इसमें अब भी रोड़ा बनी हुई है। सत्ता परिवर्तन के लिए उत्साहित कार्यकर्ता अपने प्रयासों से भीड़ तो जुटा रहे हैं, लेकिन गुटीय राजनीति उनके हौसले तोड़ देती है। वे निराश हो जाते हैं कि पार्टी के दिग्गज एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को आमादा हैं। हालांकि अभी इंतजार करना होगा कि आखिर कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा कितनी कारगर हो पाती है, लेकिन फिलहाल इतना अवश्य है कि हरीश रावत आम कार्यकर्ताओं के बीच सर्वमान्य नेता के तौर पर स्वीकार किये जा रहे हैं
आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल रणनीतियां बनाने के साथ ही जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी जहां जन आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से जनता की नब्ज टटोल रही है, वहीं कांग्रेस पार्टी परिवर्तन यात्रा के माध्यम से भाजपा सरकार की कथित नाकामियों को उठाकर जनता से सत्ता परिवर्तन की अपील कर रही है। भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा जहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के विधानसभा क्षेत्र श्रीनगर से शुरू हुई, वहीं उसी दिन यानी 3 सितंबर को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की विधानसभा सीट खटीमा से शुरू हुई। दोनों राजनीतिक दल अपनी यात्राओं के माध्यम से जिस संदेश को जनता तक पहुंचाना चाह रहे हैं उसे जनता ने कितना सुना ये तो आने वाले वक्त में पता चलेगा, मगर फिलहाल अपने प्रथम चरण की परिवर्तन यात्रा के समापन तक पहुंचते -पहुंचते कांग्रेस की आपसी कलह जिस तरह जनता के सामने खुले रूप में आई उसने परिवर्तन यात्रा के मंतव्य और उद्देश्यों पर पानी तो फेरा ही, साथ ही आने वाले समय में इस बात पर भी संदेह पैदा कर दिया कि विधानसभा चुनाव तक धड़ों में बंटी कांग्रेस जनता के मध्य एक समग्र दल के रूप में जा पाएगी या फिर एक-दूसरे को निपटा देने की आत्मघाती रणनीति चुनाव में फिर से कांग्रेस का राजनीतिक वनवास तय कर देगी।
उत्तराखण्ड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भुवन कापड़ी के विधानसभा क्षेत्र से शुरू हुई परिवर्तन यात्रा प्रथम चरण में नैनीताल व ऊधमसिंह नगर जिलों के मैदानी विधानसभा क्षेत्रों से गुजरी। खटीमा से हुए शानदार आगाज की परतें रामनगर विधानसभा क्षेत्र तक पहुंचते-पहुंचते उधड़ गईं और गुटीय राजनीति को छिपाने के लिए लगाए गये पैबन्द खुल गए। जिस बात का अंदेशा शुरुआत से जाहिर किया जा रहा था कि कार्यकारी अध्यक्षों की परंपरा नये शक्ति केंद्रों को जन्म देगी वह आशंका सच साबित हुई। खटीमा से चली परिवर्तन यात्रा से कांग्रेस ने जो हासिल किया था वो रामनगर पहुंचते ही बेअसर साबित होता दिखाई दिया। यहां कांग्रेस का फिर वही गुटीय चेहरा साफ दिखाई दिया जिस गुटबाजी से परिवर्तन यात्रा में शामिल हर बड़ा नेता इंकार कर रहा था। खास बात यह है कि आपसी कलह की झलकियां उत्तराखण्ड के प्रभारी उन देवेंद्र यादव के सामने आई जो अपना कार्यभार संभालने के बाद से ही कांग्रेस के लिए सभी गुटों के बीच संतुलन साधने का प्रयास कर रहे हैं। अच्छी खासी भीड़ के साथ खटीमा से शुरू हुई परिवर्तन यात्रा में उत्तराखण्ड के प्रभारी देवेंद्र यादव, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष, गणेश गोदियाल, चुनाव अभियान संचालन समिति के अध्यक्ष हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, उप नेता प्रतिपक्ष करन माहरा, चारों कार्यकारी अध्यक्ष सहित सभी बड़े नेता शामिल रहे। परिवर्तन यात्रा का कारवां ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता गया विधानसभा चुनाव के दावेदारों द्वारा जुटाई गई भीड़ से परिवर्तन यात्रा में शामिल नेताओं का उत्साहित होना स्वाभाविक था। परंतु परिवर्तन यात्रा के लिए कार्यकर्ता जिस जोश के साथ उत्साहित थे वो नेताओं में परिलक्षित तो हो रहा था, लेकिन एक-दूसरे के प्रति नेताओं की भावभंगिमा स्पष्ट कर रही थी कि इन नेताओं ने एक-दूसरे को अभी दिल से स्वीकार नहीं किया है। पूरी परिवर्तन यात्रा में भीड़ तो जुटी, लेकिन ये भीड़ शायद स्पष्ट पैमाना नहीं थी कि ये कांग्रेस की नीतियों और नेताओं के समर्थन में जुटी थी या फिर अपने दावेदारों के समर्थन में जुटी थी। फिर वो खटीमा, नानकमत्ता, सितारगंज हो या फिर किच्छा, लालकुआं, हल्द्वानी, कालाढूंगी, रुद्रपुर सभी जगह नजारा एक सा था। लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में जहां हरेंद्र बोरा, हरीश चन्द्र दुर्गापाल अपने समर्थकों के साथ अलग-अलग दिखे वहीं हल्द्वानी में सुमित हृदयेश, ललित जोशी और दीपक बल्यूटिया ने अपने समर्थकों के साथ भीड़ जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे ही कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र में भोला दत्त भट्ट, महेश शर्मा ने भीड़ का जिम्मा उठाया तो रामनगर में रणजीत रावत और संजय नेगी अपने समर्थकों के साथ भीड़ जुटाते नजर आए। रामनगर में हालात तो मारपीट तक की नौबत तक पहुंच गये थे।
परिवर्तन यात्रा की समाप्ति के बाद हरीश रावत की फेसबुक पर जो पोस्ट आई है। वो कांग्रेस के अंदर चल रहे अंतर्विरोध को ही सामने लाती हैं हरीश रावत का ये कहना है कि मुझे लगता है कि मेरे कुछ दोस्त मुझे बंधन युक्त रखना चाहते हैं। पिच जटिल है यदि मैं खुटुर-खुटुर तरीके से खेलूंगा तो हमारे प्रतिद्वंद्वियों के पास जो सकारात्मक चीजें हैं, उनके चलते पार्टी की स्पष्ट जीत कठिन हो जाएगी और यदि मैं अपने ढंग से खेलता हूं जो मेरा स्वाभाविक खेल है, तो मैं हालात बदल सकता हूं और पूरे तरीके से अपने प्रतिद्वंद्वियों को डिफेंसिव बना सकता हूं। अगर हमारी जैसी बड़ी पार्टी में इतनी स्वतंत्रता किसी को दी जाएगी इस पर मेरे मन में स्वयं संदेह है, अभी मैं प्रथम चरण की यात्रा का और गहराई से विश्लेषण करूंगा और दूसरे चरण की समाप्ति के बाद मुझे कहां खड़ा रहना चाहिए इस पर मैं अवश्य कुछ सोचूंगा। इसको मैं सार्वजनिक चर्चा के लिए अपनी फेसबुक पेज में इसलिए डाल दे रहा हूं क्योंकि मैं अपने राज्य की राजनीतिक चर्चाओं और राजनीतिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण कारक हूं और मैं नहीं चाहता कि चाहे मेरी पार्टी हो, मेरी पार्टी का नेतृत्व हो या राजनीतिक पंडित हों, उनके सामने मेरा कोई आकस्मिक निर्णय आए बजाए इसके मैं अपनी मनोस्थिति को उनके साथ बांट ले रहा हूं।
हरीश रावत का ये लिखा जाना यूं आकस्मिक नहीं है वह भी परिवर्तन यात्रा के प्रथम चरण की समाप्ति के बाद। हरीश रावत का यह कथन शायद परिवर्तन यात्रा के दौरान किए गए आकलन का परिणाम है। परिवर्तन यात्रा का प्रथम चरण कई बातों को स्पष्ट कर गया। पहला ये कि कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति की कलह शायद ही समाप्त हो भले ही कांग्रेस को इसका कितना ही खामियाजा भुगतना पड़े। खासकर हरीश रावत को रोकने के लिए इस लॉबी को किसी हद तक जाना पड़े। परिवर्तन यात्रा में हरीश रावत को जिस प्रकार समर्थन मिला उससे लगता है कि कांग्रेस के अन्य नेता भले ही कहते फिरें कि चुनाव में हरीश रावत चेहरा नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं ने हरीश रावत को चुनाव का चेहरा स्वीकार कर लिया है। कांग्रेस के एक पूर्व महासचिव का कहना है कि हरीश रावत उत्तराखण्ड में सर्वमान्य नेता हैं। जो लोग कुमाऊं गढ़वाल की बात कर चेहरे की बात करना चाहते हैं उनको अपनी काबिलियत पर भरोसा नहीं है। खटीमा से लेकर रुद्रपुर तक परिवर्तन यात्रा के दौरान हरीश रावत को लोगों ने गंभीरता से सुना और हरीश रावत के पक्ष में लगे नारों ने उनके साथ चल रहे उन लोगों को असहज किया जो उन्हें चेहरा घोषित करने के खिलाफ थे।
लेकिन इसके बावजूद इस परिवर्तन यात्रा के बीच कांग्रेस के भीतर से जो कुछ बातें छनकर सामने आ रही हैं, शायद वो पार्टी के लिए ज्यादा घातक हैं। हरीश रावत विरोधी गुट के कुछ नेता हरीश रावत की कीमत पर पार्टी की वापसी के लिए 2027 तक का इंतजार करने के लिए तैयार हैं, लेकिन 2022 में हरीश रावत किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं हैं। गढ़वाल क्षेत्र से पूर्व विधायक रहे एक नेता का कहना है कि परिवर्तन यात्रा के जरिए पार्टी एकता का बड़ा संदेश देकर भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर सकती है। जो लोग हरीश रावत को रोकने के प्रयास में पार्टी की वापसी के लिए 2027 तक इंतजार को तैयार हैं, कार्यकर्ता और जनता उन्हें 2022 के चुनाव में ही निपटा देंगे। जो 2017 में पार्टी की हार के लिए जिम्मेदार थे वो फिर से आज वैसी ही परिस्थितियां पैदा कर रहे हैं। परिवर्तन यात्रा का प्रथम चरण समाप्त होने के बाद हरिद्वार में दूसरा चरण शुरू होगा उसमें कांग्रेस खुद को कैसे जनता के सामने लेकर जाती है, देखना होगा। यहां भी कांग्रेस बिखरे नेताओं के साथ परिवर्तन के नारे को लेकर जनता के बीच जाती है या फिर नेता अपने व्यवहार में परिवर्तन कर कांग्रेस का एक चेहरा सामने लेकर जाते हैं। फिलहाल परिवर्तन यात्रा के प्रथम चरण में हरीश रावत कार्यकर्ताओं के सामने सर्वमान्य नेता बनकर उभरे हैं।