जागेश्वर विधानसभा सीट पर इस बार भी कांटे का मुकाबला होना तय है। राज्य बनने के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर लगातार कांग्रेस के कद्दावर नेता गोविंद सिंह कुंजवाल का कब्जा रहा है। 2017 के चुनाव में उन्हें हालांकि भाजपा ने कड़ी टक्कर दी लेकिन जीत कुंजवाल के खाते में ही आई। विकास की दृष्टि से जागेश्वर का रिकॉर्ड खासा इम्प्रेसिव है जिसका श्रेय स्थानीय जनता कुंजवाल को देती है। इस बार कुंजवाल के लिए एक बड़ी मुसीबत उनके पुराने साथी मोहन सिंह माहरा बन चुके हैं जिन्होंने कांग्रेस छोड़ भाजपा दामन थाम लिया है। आम आदमी पार्टी भी यहां तेजी से अपनी सक्रियता बढ़ा रही है लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस-भाजपा के बीच होता फिलहाल तक नजर आ रहा है
ये हर जगह दल क्रांति के हों, तब बेड़ा पार हो, दुश्मनों का नाश हो, अपना वतन गुलजार हो। चंद पंक्तियां 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ और ‘करो या मरो’ में उन आंदोलनकारियों की आवाज थी जो आजादी की लड़ाई में सालम क्षेत्र के लिए एक शानदार विरासत छोड़ गए हैं। 25 अगस्त 1942 को अंग्रेजों का प्रतिरोध करते हुए नरसिंह धानक और टीका सिंह कन्याल की शहादत उन रामसिंह धौनी की विरासत का एक अंग थी जिसने सालम क्षेत्र में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ अलख जगा दिया था। उसी विरासत के अंग थे रामसिंह आजाद, दुर्गादत्त पाण्डे, रेवाघट पाण्डे, प्रताप सिंह बोरा, डिकर सिंह धानक, उत्तम सिंह बिष्ट, केशर सिंह, मान सिंह मर्च राम और जमन सिंह सहित अनेक क्रांतिकारी जिन पर सालम क्षेत्र को आज भी गर्व है। यही विरासत आज जागेश्वर विधानसभा के शानदार अतीत की गवाही देती है।
उत्तराखण्ड राज्य का जागेश्वर विधानसभा क्षेत्र जागेश्वर धाम जैसे धार्मिक महत्व और सालम क्रांति का वो इलाका है जो हमेशा राजनीतिक रूप से जागरूक रहा है। राज्य बनने से पूर्व जागेश्वर विधानसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा (बारामंडल) विधानसभा क्षेत्र का ही एक अंग था। राज्य निर्माण के बाद अस्तित्व में आई जागेश्वर विधानसभा सीट पर 2002 से 2017 तक हुए विधानसभा चुनावों में अब तक कांग्रेस के गोविंद सिंह कुंजवाल ने अपनी ताकत को साबित किया है और वो लगातार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 2002 के पहले विधानसभा चुनावों में गोविंद सिंह कुंजवाल ने भारतीय जनता पार्टी के रघुनाथ सिंह चौहान को हराया था। हालांकि 2002 में रघुनाथ सिंह चौहान जागेश्वर के बजाय अल्मोड़ा विधानसभा सीट से लड़ने के इच्छुक थे लेकिन भाजपा की आंतरिक राजनीति के चलते उन्हें जागेश्वर से लड़ना पड़ा।
2007 के विधानसभा चुनाव में गोविंद सिंह कुंजवाल पुनः रघुनाथ सिंह चौहान को पराजित कर विधानसभा के लिए चुने गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सभी दावेदारों को दरकिनार कर प्रवासी बची सिंह नेगी को अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन वो भी गोविंद सिंह कुंजवाल के किले को ढहाने में सफल नहीं हुए। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के युवा प्रत्याशी सुभाष पाण्डे ने उनके सामने कड़ी चुनौती पेश की लेकिन अपने राजनीतिक अनुभवों के चलते कुंजवाल ने हारी हुई बाजी को अपने पक्ष में कर लिया और मोदी लहर को धता बताते हुए इस सीट पर पुनः कब्जा कर लिया।
2022 के विधानसभा चुनाव के नजदीक आते-आते राज्य के अन्य विधानसभा क्षेत्रों की ही तरह जागेश्वर विधानसभा क्षेत्र में भी चुनावी सरगर्मियां तेज हो चुकी है। हर राजनीतिक दल और उसके दावेदार पूरे दमखम के साथ चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमाने के लिए ताल ठोकने लगे हैं। कांग्रेस, भाजपा सहित उक्रांद, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी, आम आदमी पार्टी के दावेदार अपने-अपने स्तर पर क्षेत्र में सक्रिय हैं। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है तो पार्टी के अंदर फिलहाल ऐसा कोई विकल्प नहीं है जो गोविंद सिंह कुंजवाल के समक्ष चुनौती पेश कर सके। पूर्व मुख्यमंत्री और चुनाव अभियान समिति के संयोजक हरीश रावत के सबसे विश्वसनीय गोविंद सिंह कुंजवाल लगातार पांचवी बार विधानसभा चुनावों में मैदान में होंगे।
2002 में नारायण दत्त तिवारी सरकार में उद्यान मंत्री रहे गोविंद सिंह कुंजवाल, हरीश रावत और कांग्रेस के उन विश्वस्तों में हैं जिन पर कांग्रेस और हरीश रावत का भरोसा उनके कद को हमेशा ऊंचा रखता है। 2002 से जागेश्वर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे गोविंद सिंह कुंजवाल को क्षेत्र के विकास का श्रेय जाता है। 2016 में कांग्रेस में बगावत के बाद हरीश रावत सरकार को बचाने में विधानसभा अध्यक्ष के रूप में गोविंद सिंह कुंजवाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के दिग्गजों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। भाजपा गोविंद सिंह कुंजवाल को हराकर उनसे 2016 में अपनी मात का बदला लेना चाहती थी। बहरहाल भाजपा पर गोविंद सिंह कुंजवाल का राजनीतिक अनुभव भारी पड़ा।
जागेश्वर विधानसभा के विषय में गोविंद सिंह कुंजवाल का कहना है कि ‘भाजपा की सोच हमेशा विकास विरोधी रही है और जागेश्वर ही नहीं पूरे उत्तराखण्ड में विकास के जो ऊंचे मानदंड कांग्रेस ने स्थापित किए थे भाजपा ने उन्हें पूरी रह ध्वस्त कर दिया है। कुंजवाल का कहना है कि ‘मेरे विधानसभा क्षेत्र में जो विकास कार्य हुए हैं वो कांग्रेस की सरकारों में ही हुए, भाजपा ने तो हमारी सरकारों के समय स्वीकृत 80 सड़कों में से 20 स्वीकृत सड़कों पर भाजपा की सरकार में कोई कार्य नहीं हुआ। हमने तीन पॉलीटेक्निक खोले जो चालू हैं उनके भवन भी बनवा दिए थे। तीन डिग्री कॉलेज खोले जिनमें से दो के भवन हम बनवा के गए थे लेकिन एक डिग्री कॉलेज का भवन भाजपा सरकार नहीं बनवा सकी।
हमनें तीन तहसीलें खोली। दो तहसील के भवन कांग्रेस सरकार के समय बन चुके थे, मगर तीसरी के लिए उस समय जगह नहीं मिली अब तीसरी के लिए जगह मिली मगर भाजपा सरकार भवन नहीं बनवा पाई। 100 करोड़ के आस-पास पंपिंग योजनाएं बनाई जो आज खस्ताहाल पड़ी हैं। बिजली के तीन सब स्टेशन खोले, 3 गैस गोदाम खोले, हर गांव में बिजली-पानी पहुंचाई। सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है जिसके समाधान के लिए हमने हरिप्रसाद टमटा के नाम पर एक संस्थान स्वीकृत किया था जो 100 करोड़ की परियोजना थी जिससे 10 हजार बेरोजगारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता लेकिन भाजपा सरकार ने उसे भी रोक दिया। हमारी सरकार आने पर हमारी प्राथमिकता बेरोजगारी को दूर करने का प्रयास होगा।’ लेकिन इस बार गोविंद सिंह कुंजवाल को अपने एक विश्वसनीय सहयोगी एवं अल्मोड़ा के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन सिंह महरा के प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा।
कभी हरीश रावत एवं गोविंद सिंह कुंजवाल के खास रहे मोहन सिंह महरा आज भाजपा में है और गोविंद सिंह कुंजवाल ही नहीं पूरे अल्मोड़ा जनपद में कांग्रेस को हराने का संकल्प लिए हुए हैं।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी का प्रश्न है उसमें दावेदारों की एक अच्छी-खासी संख्या है। पिछले विधानसभा चुनाव में गोविंद सिंह कुंजवाल से बहुत कम मतों के अंतरों से पराजित सुभाष पाण्डे इस बार प्रबल दावेदारों में हैं। पिछले पांच वर्षों में पूरी विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय सुभाष पाण्डे 2012 के विधानसभा चुनाव उत्तराखण्ड क्रांति दल से लड़कर नौ हजार से अधिक वोट लाए थे जो कि उक्रांद का वोट कम सुभाष पाण्डे का व्यक्तिगत वोट ज्यादा था। 2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड में उक्रांद के जीते प्रत्याशी प्रीतम सिंह पंवार के बाद सुभाष पाण्डे उक्रांद के दूसरे नंबर पर मत पाने वाले प्रत्याशी थे। कुमाऊं विश्वविद्यालय अल्मोड़ा परिसर के छात्र संघ में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष रह चुके सुभाष पाण्डे युवाओं में लोकप्रिय हैं और भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित सदस्य हैं। इस बार भी उनकी दावेदारी सशक्त है।
भारतीय जनता पार्टी के एक अन्य दावेदार रमेश बहुगुणा हैं। 34 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रमेश बहुगुणा इस समय अल्मोड़ा-बागेश्वर क्षेत्र से राज्य सहकारी बैंक के निदेशक हैं। उत्तर प्रदेश के समय में दो बार लमगड़ा विकास खण्ड के भाजपा अध्यक्ष, दो बार अल्मोड़ा जिले के जिला महामंत्री और दो बार अल्मोड़ा जिले के भाजपा जिलाध्यक्ष रह चुके रमेश बहुगुणा इस बार जागेश्वर विधानसभा से भाजपा से पूरी मजबूती से दावेदारी के मूड में हैं। उनके पक्ष में एक बात है कि लमगड़ा विकास खण्ड से वो भाजपा के एक मात्र दावेदार हैं बाकी भाजपा के दावेदार धौला देवी विकास खण्ड से आते हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि भाजपा को अपने प्रतिबद्ध कार्यकर्ता को ही विधानसभा प्रत्याशी बनाना चाहिए। कभी प्रवासी, कभी उक्रांद या कांग्रेस से आए लोगों को टिकट मिलने पर भाजपा के कैडर वोट में बिखराव आ जाता जिसका खामियाजा पराजय के रूप में दिखाई देता है।
भाजपा में एक नया नाम उभर कर आया है गौरव पाण्डे का। दिल्ली की छात्र राजनीति से निकले गौरव पाण्डे दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध सत्यवती कॉलेज में छात्रसंघ पदाधिकारी रह चुके हैं तथा दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से छात्रसंघ का चुनाव लड़ चुके हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से भाजपा की राजनीति में आए गौरव पाण्डे युवा मोर्चा से जुड़े हैं और जम्मू-कश्मीर में युवा मोर्चा के प्रभारी रह चुके हैं।
जिला पंचायत चुनावों के वक्त भाजपा में शामिल हुए पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन सिंह महरा कभी कांग्रेस के मजबूत स्तम्भ हुआ करते थे। हरीश रावत के करीबी लोगों में शुमार मोहन सिंह महरा आज कांग्रेस, खासकर गोविंद सिंह कुंजवाल से काफी खफा हैं। उनकी पत्नी पार्वती महरा भी जिला पंचायत की अध्यक्ष रह चुकी हैं। मोहन सिंह महरा का कहना है कि अपनी दावेदारी पार्टी फोरम में मजबूती से रखेंगे। उनका कहना है कि इस बार उनका उद्देश्य कुंजवाल को हराना है। हमने उन्हें उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखण्ड में विधायक बनवाया लेकिन उनके राजनीतिक व्यवहार ने हमें बगावत के लिए मजबूर किया। आज हम भाजपा में हैं, हमारी दावेदारी पुश्ता है। अगर मोहन सिंह महरा कांग्रेस में होते तो शायद कांग्रेस से अगले प्रत्याशी हो सकते थे।
भारतीय जनता पार्टी से नरेंद्र सिंह बिष्ट भी भाजपा से दावेदारों की दौड़ में हैं। नरेंद्र सिंह बिष्ट के भाई की पत्नी धौला देवी ब्लॉक की ब्लॉक प्रमुख है।
भारतीय जनता पार्टी को 1992 से जुड़े उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता पूरन सिंह बिष्ट भी भाजपा से दावेदारों में हैं। चुनाव प्रबंधन समिति के सहप्रमुख पूरन सिंह बिष्ट उत्तराखण्ड हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के एक बार अध्यक्ष और दो बार उपाध्यक्ष रह चुके हैं। दो बार भाजपा की निधि प्रकोष्ठ के प्रदेश सहसंयोजक रहे पूरन सिंह बिष्ट इस बार समर्पित कार्यकर्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में है।
आम आदमी पार्टी भी जागेश्वर विधानसभा क्षेत्र में अपने कदम जमाने की कोशिश कर रही है। 2002 में निर्दलीय और 2012 और 2017 में बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़ चुके तारा दत्त पाण्डेय इस बार आम आदमी पार्टी से दावेदार हैं। पंचायत स्तर से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले तारा दत्त पांडे दो बार क्षेत्र पंचायत के सदस्य रह चुके हैं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के कार्यों को उत्तराखण्ड में भी धतराल में उतारने के दावे के साथ तारा दत्त आम आदमी पार्टी से जुड़कर उत्तराखण्ड के बेरोजगारों की समस्या चुनाव में मुख्य मुद्दा मानते हैं।
जहां तक अन्य पार्टियों का प्रश्न है तो दलितों मतों पर दावा करने वाली बहुजन समाज पार्टी का जनाधार समय के साथ घटा है। उत्तराखण्ड क्रांति दल और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी में अभी प्रत्याशियों को लेकर किसी का नाम चर्चा में नहीं है। इस बार जागेश्वर विधानसभा क्षेत्र में जोर आजमाइश भाजपा और कांग्रेस के बीच होने की संभावना है। उभरती आम आदमी पार्टी का यहां पर खास वजूद नहीं है। क्षेत्रीय समीकरण की बात करें तो दो ब्लॉक लमगड़ा और धौलछीना इस विधानसभा में आते हैं।
कांग्रेस के गोविंद सिंह कुजंवाल और भाजपा के रमेश बहुगुणा लमगड़ा विकास खण्ड से आते है जबकि भाजपा के अन्य दावेदार और आम आदमी पार्टी के दावेदार धौलछीना ब्लॉक से आते हैं। ये चुनाव इस दृष्टि से भी दिलचस्प होगा कि हरीश रावत के गुट के माने जाने वाले गोविंद सिंह कुंजवाल और मोहन सिंह माहरा विपरीत खेमों में खड़े नजर आयेंगे। वहीं भाजपा के अंदर बाहरी और कैडर का अंर्तद्वंद्व चुनाव की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होगा। भाजपा में पार्टी के कैडर से व्यक्ति को टिकट की मांग जोर पकड़ रही है जिससे निपटना सुभाष पाण्डे के लिए चुनौती होगा। लेकिन कुंजवाल को बहुत कम अंतर से हारने वाले सुभाष पाण्डे को नजरअंदाज कर पाना भाजपा के लिए भी आसान नहीं होगा।
वहीं गौरव पाण्डे का दावा युवा पीढ़ी के अनुसार बनता तो है लेकिन उनकी जागेश्वर विधानसभा क्षेत्र में सक्रियता और प्रवासी का ठप्पा उनके लिए कठिनाई पैदा कर सकता है। 2012 के चुनावों में प्रवासी बची सिंह नेगी को क्षेत्र की जनता ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में नकार दिया था। जहां तक मोहन सिंह माहरा का प्रश्न है भाजपा के लिए वो एक तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं। भाजपा का कैडर उन्हें कितनास्वीकार करेगा ये देखने वाली बात होगी। रमेश बहुगुणा और पूरन सिंह बिष्ट पुराने नेता होने के नाते पार्टी में टिकट के मजबूत दावेदार है। भाजपा की जो संस्कृति है उसमें विरोध के कोई मायने नहीं है इस लिए इन दावेदारों में जो भी आलाकमान की पसंद होगा उसके आगे अन्य दावेदारों के सामने कोई अन्य विकल्प नहीं बचेगा।
मेरी आम आदमी पार्टी से दावेदारी है। इस समय उत्तराखण्ड में बेरोजगारी, बिजली- पानी जैसे गंभीर मुद्दे हैं जिन पर हम चुनावों में फोकस करेंगे। हम उत्तराखण्ड में दिल्ली जैसी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
तारादत्त पाण्डे, आम आदमी पार्टी
भाजपा से इस बार मेरी मजबूत दावेदारी है। 1992 से भाजपा से जुड़ा हूं। क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के मुझे चुनाव लड़ने के अनुरोध आ रहे हैं। इस बार भाजपा को अगर जागेश्वर सीट जीतनी है तो अपने पुराने और मूल कैडर से जुड़े कार्यकर्ता पर विश्वास करना होगा।
पूरन सिंह बिष्ट, सह प्रमुख चुनाव प्रबंधन समिति भाजपा
वर्ष 2017 में मैं बहुत कम मतों के अंतर से हार गया था। जनता ने मुझे अपना भरपूर समर्थन दिया था लेकिन मेरे विरोधी द्वारा चुनाव जीतने के लिए आर्थिक सहायता का लालच देकर जनता को भ्रमित कर दिया। मैं हारने के बाद भी पिछले साढ़े चार सालों से क्षेत्र में सक्रिय हूं। जनता इस बार मेरे साथ हैं मेरी मजबूत दावेदारी है। पार्टी का फैसला जो होगा मान्य होगा।
सुभाष पाण्डे, भाजपा नेता
मेरी दावेदारी में कोई संदेह नहीं है। 32 साल से भाजपा से जुड़ा हूं। भाजपा जिलाध्यक्ष, दो बार जिला महामंत्री और दो बार लमगड़ा ब्लॉक से अध्यक्ष रहा हूं। लमगड़ा विकासखण्ड से भाजपा में एक मात्र दावेदार हूं। गोविंद सिंह कुंजवाल को कोई हरा सकता है तो वो मैं ही हूं। पार्टी को चाहिए कि पार्टी के पुराने निष्ठावान को टिकट दे जिससे पार्टी की जीत सुनिश्चित हो सके।
रमेश बहुगुणा, सदस्य प्रदेश कार्यकारिणी, भाजपा
भारतीय जनता पार्टी जिस प्रकार युवा नेतृत्व को आगे बढ़ा रहा है उसके अनुसार मैं भी दावेदारी कर रहा हूं। पूरे क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय हूं बाकी तो पार्टी को तय करना है।
गौरव पाण्डे, युवा भाजपा नेता
भारतीय जनता पार्टी से इस बार मेरी मजबूत दावेदारी है। भाजपा का कार्यकर्ता होने के नाते मेरा भी अधिकार है पार्टी में दावेदारी पेश करने का। बाकी पार्टी नेतृत्व का जो निर्णय होगा वो मुझे मंजूर होगा। मुझे टिकट या मिले न मिले, मेरा इस चुनाव में एक मात्र लक्ष्य गोविंद सिंह कुंजवाल को हराना है। आज तक हम उन्हें जिताते रहे अब उनको हराने के लिए काम करेंगे। विधानसभा अध्यक्ष के रूप में उन्होंने हरीश रावत की सरकार बचाई। उसका अहसान है हरीश रावत पर। इसलिए हरीश रावत उन्हें ही एकमात्र नेता मानते हैं। जिला अध्यक्ष विवाद में हमें हरीश रावत से बड़ी उम्मीदें थी लेकिन हरीश रावत ने हमारे साथ न्याय नहीं करवाया। गोविंद सिंह कुंजवाल तो पीताम्बर पाण्डे को भी जिलाध्यक्ष नहीं चाहते थे। वो बिट्टू कर्नाटक के पक्ष में थे लेकिन उनकी जिद ने कांग्रेस का नुकसान कर दिया। मैं जागेश्वर ही क्यों पूरे अल्मोड़ा जिले में कांग्रेस को हराने के लिए काम करूंगा। मेरे कांग्रेस में जाने की अफवाहें कांग्रेस के लोग फैला रहे हैं जो बिल्कुल गलत है। भाजपा चुनाव के समय मुझे जिम्मेदारी देगी उसको निष्ठा से निभाऊंगा। मैंने अपनी लाइन तय कर ली है इससे हटने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
मोहन सिंह माहरा, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष अल्मोड़ा
जागेश्वर विधानसभा में अब तक जो भी विकास कार्य हुए हैं वो सिर्फ कांग्रेस की सरकारों में हुए हैं। भाजपा के शासनकाल में नए विकास कार्यों का एक पत्थर नहीं लगा। जो कुछ कार्य हुआ भी है वह मेरे द्वारा स्वीकृत करवाई गई विकास योजनाओं का है। हमने कांग्रेेस सरकार के समय नए डिग्री कॉलेज, तहसीलें खोली जिनके भवन हम बनवा गए थे। जो बच गए थे उन्हें भाजपा की सरकार पूरा नहीं कर पाई। मेरे द्वारा 100 करोड़ की पम्पिंग योजना बनाई गई जो भाजपा सरकार की बदइंतजामी का शिकार हो गई। आप नया कुछ नहीं कर पा रहे तो कम से कम उसको तो सुचारू रखिए जिसे हमने बनाया है। भाजपा की सोच कभी विकासवादी नहीं रही। जहां तक मोहन सिंह माहरा जी का प्रश्न तो जब व्यक्ति विकास या जनहित में पार्टी छोड़ता है तो जनता उसे सम्मान देती है। लेकिन खुद के हित एवं पद न मिलने के चलते कोई पार्टी छोड़ता है तो उसे जनता नकार देती है, ऐसा ही मामला मोहन सिंह माहरा का है। वो कोई जनहित में नहीं अपने निजी हितों की पूर्ति के चलते भाजपा में गए हैं। सही गलत का फैसला जनता पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
गोविंद सिंह कुंजवाल, विधायक जागेश्वर