चकराता विधानसभा सीट पर पिछले साठ बरसों से कांग्रेस नेता स्व. गुलाब सिंह के परिवार का वर्चस्व रहा है। राज्य गठन के बाद उनके पुत्र प्रीतम सिंह लगातार यहां से विधायक बनते रहे हैं। विकास के नाम पर लेकिन वे जन अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए हैं जिसका खामियाजा उनके लगातार घट रहे जनाधार से साफ नजर आता है। इस बार इस सीट पर उन्हें भाजपा के नेता मुन्ना सिंह चौहान की पत्नी मधु चौहान से कड़ी टक्कर मिलती नजर आ रही है
महाभारत के अनुसार पांडवों ने जिस एकचक्रा नगरी में अपना अज्ञातवास का समय गुजारा था, वही आज का चकराता कहलाता है। इसी दुर्गम और दुरूह पहाड़ी भूभाग में आज भी पांडवों के निशान मिलने का दावा किया जाता है जिसमें शामिल है लाक्षागृह की घटना का गवाह लाखामंडल। इसे बैकाटखाई भी कहा जाता है। इसी बैकाटखाई में अज्ञातवास के समाप्त होने पर अर्जुन और कौरवों के बीच प्रसिद्ध विराट युद्ध होने की मान्यता है। इसके अलावा एक स्थानीय मत यह भी है कि चकराता में कभी चकोर पक्षियों का एक विशाल झुंड निवास करता था जिसके कारण स्थानीय बोली में इसे चकोरता कहा जाता था जो कि बाद में चकरौता और फिर चकराता हो गया।
यह क्षेत्र जौनसार बाबर के नाम से ज्यादा विख्यात रहा है। माना जाता है कि सिंकदर के आक्रमण के दौरान इस क्षेत्र में युनानियों जिन्हें भारत में यवन कहा जाता है, का आगमन हुआ और बसावट हुई। यवनों के कारण ही इस भूभाग को यौवनसार कहा जाने लगा जो कि कालांतर बदलकर यौनसार और फिर आम बोलचाल में जौनसार बन गया। इसी जौनसार के नाम से इसे जनजाति क्षेत्र बना दिया गया। महाभारत के पौराणिक स्थलों और मौर्य काल के प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों के लिए यह क्षेत्र प्रसिद्ध है। सम्राट अशोक के प्रसिद्ध कालसी शिलालेख इसी चकराता विधानसभा के कालसी क्षेत्र में है। पूर्व में यह पूरा भूभाग हिमाचल की सिरमौर रियासत का एक हिस्सा था जिसे गढ़वाल रियासत ने अपने अधीन कर लिया था। 1814 में गढ़वाल अंग्रेज युद्ध के बाद यह क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना दिया गया।
देश की आजादी के बाद 1951 में चकराता नाम से विधानसभा का गठन किया गया। तब देहरादून जिले में सिर्फ तीन विधानसभाएं चकराता, मसूरी औेर देहरादून ही थी। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद चकराता विधानसभा क्षेत्र के दो हिस्से कर विकास नगर और सहसपुर विधानसभा क्षेत्रों का गठन किया गया। वर्तमान में चकराता के नाम से ही जौनसार क्षेत्र को पहचान मिली हुई है और इसी नाम से विधानसभा सीट प्रचलित है।
तकरीबन ढाई लाख की आबादी और सवा लाख मतदाताओं वाली चकराता विधानसभा सीट स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही अस्तित्व में रही है। चकराता, कालसी और त्यूनी तीन विकास खंडों और तहसील क्षेत्रों में चकराता विधानसभा क्षेत्र फैली हुई है। कालसी को छोड़कर समस्त विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से पर्वतीय है। आबादी की बसावट भी इस क्षेत्र में बिखरी हुई है। पहाड़ी क्षेत्र होने से अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही दुर्गम माना जाता रहा है। जौनसारी जनजाति का क्षेत्र होने के चलते इस सीट को शुरू से ही सुरक्षित सीट की श्रेणी में रखा गया है।
चकराता विधानसभा क्षेत्र दुर्गम तो रहा ही है, साथ ही इस क्षेत्र में विकास के नाम पर भी दुर्गमता ही रही है। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सड़क जेैसे अति महत्वपूर्ण विकास के बिंदुआंे की बात करें तो चकराता इन सबसे जूझ रहा है। हैरानी इस बात की है कि विधायक प्रीतम सिंह राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक बीस वर्षों से इस क्षेत्र का लगातार प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जबकि अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय में भी वे इस क्षेत्र के विधायक रहे हैं। यहां तक कि उनके पिता गुलाब सिंह एक लम्बे समय तक इस क्षेत्र के विधायक रहे हैं। बावजूद इसके क्षेत्र में विकास के लिए जनता के हाथ हमेशा से निराशा ही लगी है।
सबसे पहले सड़क मार्गों के हालतों की बात करें तो इस क्षेत्र में एक सबसे बड़ी सड़क विकासनगर-चकराता त्यूनी मोटरमार्ग है जो उत्तराखण्ड को हिमाचल प्रदेश से जोड़ता है, इस मोटर मार्ग के चकराता से त्यूनी के हिस्से का चौेड़ीकरण का काम आज तक पूरा नहीं हो पाया है। चकाराता मार्ग पर वाहन दुर्घटनाएं लगातार होती रही हैं। हाल ही में बायला के समीप एक वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने से 13 लोगों की दर्दनाक मौत हो चुकी है।
तीन वर्ष पूर्व चकराता क्षेत्र में हुए बस हादसे के बाद तत्कालीन परिवहन मंत्री यशपाल आर्य द्वारा रोडवेज डिपो बनाए जाने की घोषणा की गई लेकिन आज स्वयं परिवहन मंत्री ही सरकार से त्याग पत्र दे चुके हैं और डिपो की घोषणा सिर्फ घोषणा ही बन कर रह गई है। हैरत की बात यह है कि इस घोषणा के बाद भी परिवहन विभाग के पास डिपो बनाए जाने का कोई प्रस्ताव तक नहीं है। सूत्रों की मानें तो इस क्षेत्र में स्थानीय वाहन चालकों ओैर मालिकों के हित इस कदर जुड़े हैं कि भाजपा-कांग्रेस समेत कोई भी राजनीतिक दल इनकी अनदेखी करने से बचते रहते हैं।
इसी तरह से मीनस वाया अटाल मोटर मार्ग के भी हालत खराब बने हुए हैं। यह मार्ग बनाया तो गया हैे लेकिन इसकी हालत इस कदर खस्ता हेै कि इस पर वाहन चलाना बेहद कठिन है। स्थानीय नागरिकों को इस मार्ग के बजाय हिमाचल प्रदेश के पुल का उपयोग करना पड़ रहा है जिसमें उन्हें टोल टेैक्स देना पड़ रहा है।
मांगरी कंकनोई मोटर मार्ग तो प्रदेश की मशीनरी पर गम्भीर सवाल खड़े करने के लिए सबसे बड़ा प्रमाण बन चुका है। इस मोटर मार्ग को उत्तरकाशी जिले के डामटा तक जोड़ा गया है लेकिन इस मोटर मार्ग में दो स्थानों पर पुल नहीं होने से इसकी उपयोगिता खत्म हो चली है। इन दोनों पुलों के न होने से यह मार्ग डामटा तक नहीं जुड़ पाया है। इसको लेकर दोउ कंकनोई गाम के सैकड़ों निवासियों द्वारा बड़ा आंदोलन करते हुए, ‘जब तक पुलों का निर्माण नहीं होगा तब तक क्षेत्रवासी चुनाव का बहिष्कार करते रहेंगे’ का ऐलान कर दिया गया है। इस मोटर मार्ग के निर्माण में मुआवजे के नाम पर भी बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं। वास्तविक भूमि धारकों को मुआवजे के नाम पर ठगने का गम्भीर आरोप लग रहे हैं।
स्वास्थ्य व्यवस्था के भी हालात पूरे विधानसभा क्षेत्र का इस कदर खराब हेैं कि किसी भी अस्पताल में आज तक आकस्मिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं बन पाए हैं, जबकि इस क्षेत्र में हर वर्ष वाहन दुर्घटना होती रहती है। वैसे इस क्षेत्र में कालसी, सहिया, अटाल, चकराता और त्यूनी में भव्य और बड़ी-बड़ी इमारतों के साथ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनाए गए हैं लेकिन इन सभी जगहों पर एक्सरे मशीन तक नहीं हैं। ट्रॉमा संेटर के नाम पर केवल रेफर सेंटर चलाए जा रहे हैं। मामूली दुर्घटना में भी इलाज के नाम पर केवल रेफर करने के आलावा कोई उपचार नहीं मिल पाता है। चकराता में ऑपरेशन थियेटर तक नहीं हैं। स्टाफ और चिकित्सकों की भारी कमी बनी हुई है। केवल फार्मासिस्टों के भरोसे ही स्वास्थ्य सेवाएं चलाई जा रही है।
विगत वर्ष त्यूनी में ही अस्पताल में सुविधा न होने के चलते एक गर्भवती महिला ने त्यूनी पुल में ही बच्चे को जन्म दिया था जिसकी खूब चर्चा भी हुई लेकिन चर्चा होने के अलावा हालातों में कोई बदलाव आज भी नहीं आया है। यही हालात कमोवेश प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र औेर एएनएम केंद्रों के भी हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंदांे में जहां तक चिकित्सकों की जगह फार्मासिस्टों से काम लिया जा रहा है तो वहीं एक एएनएम के भरोसे चार-चार केंद्र चल रहे हैं।
शिक्षा और उच्च शिक्षा के हालात भी इस क्षेत्र में कोई बेहतरी लाए हों ऐसा नहीं दिखाई देता। रोजगार परख शिक्षा के नाम पर जितना बड़ा खिलवाड़ चकराता विधानसभा क्षेत्र में देखा जा रहा है शायद उतना किसी अन्य क्षेत्र में देखने को नहीं मिलता हो। ग्वासापुर लाखामंडल में आईटीआई का भवन तो है लेकिन इसमें कोर्स ही नहीं चल रहे हैं। त्यूनी के आईआईआई में भी केवल फिटर का ही कोर्स चलाया जा रहा है। कवांसी में एक पॉलिटेक्निक भवन तो बनाया गया है लेकिन इसके हालात अन्य सभी पॉलिटेक्निक के जैसे ही बदहाल बने हुए हैं। विगत वर्ष इस पॉलिटेक्निक में अध्ययनरत छात्रों को सहसपुर के नजदीक दूसरे पॉलिटेक्निक में स्थानांतरित किए जाने की प्रक्रिया तक आरम्भ कर दी गई थी जिसका स्थानीय निवासियों ने भारी विरोध किया और आंदोलन की धमकी तक दे डाली जिसके चलते स्थानांतरण की प्रक्रिया रोक दी गई। साहिया के पॉलिटेक्निक के हालात भी कवांसी पॉलिटेक्निक के ही जैसे बने हुए हैं। यहां ट्रेड और स्टाफ की कमी लगतार बनी हुई है।
रोजगार के नाम पर चकराता वासियों को केवल सरकारी नौकरियों में जनजाति आरक्षण का लाभ मिलता रहा है। इस समूचे क्षेत्र के 350 ग्राम सभाओं ओैर तकरीबन 150 मजरे और तोक गांवों में एक भी उद्योग और कुटीर उद्योग ऐसा नहीं हैे जिसमें किसी को रोजगार मिल पाया हो। कालसी, सहिया, चकराता और त्यूनी ही इस क्षेत्र के चार ग्रामीण कस्बे हैं जो यहां के कास्तकारों और व्यापारियों की आमदनी को बाजार के तौर पर पूर्व से चले आ रहे हैं। आजादी के बाद यहां के कई क्षेत्रों में नगर पंचायतों का गठन हुआ है, वहीं चकराता में एक भी नगर पंचायत नहीं है। महज चकराता केैंट क्षेत्र ही एक प्रशासनिक व्यवस्था के आधार पर चल रहा है। इन क्षेत्रों को आज तक उद्योगों से नहीं जोड़ा गया है। इसके चलते खेती, बागवानी, पशुपालन के अलावा वाहन चालान ही इस क्षेत्र का सबसे बड़ा रोजगार का माध्यम है।
सरकारी मशीनरी और जनप्रतिनिधि इस क्षेत्र के प्रति उदासीन रहे हैं इसका सबसे बड़ा प्रमाण चकराता से दो किमी दूर नवीन चकराता योजना के तौर पर माना जा सकता है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय में तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष रहे रामशरण नौटियाल के लगातार प्रयासों के बाद प्रदेश सरकार ने शहरी विकास विभाग द्वारा नया चकराता नगर बसाए जाने का प्रस्ताव पास किया और इसके मानकों के लिए सर्वेक्षण आरम्भ किया गया। सर्वे में नए चकराता को सर्वाधिक अंक भी मिले जिसके बाद प्रदेश सरकार ने इसके लिए कार्यवाही शुरू की। वर्ष 1997 में तत्कालीन गढ़वाल आयुक्त डीएम बोहरा ने इस नए चकराता नगर के निर्माण का शिलान्यास किया जिसमंे रामशरण नौटियाल भी शामिल थे। लेकिन शिलान्यास के बाद इस पर काम नहीं हो पाया। नए चकराता की फाइल सरकारी मशीनरी में ही दबी रही और इस बीच पृथक राज्य उत्तराखण्ड वजूद में आ गया तो नया चकराता को हर कोई भूल गया।
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद उम्मीद जगी कि नया चकराता नगर के निर्माण का प्रस्ताव प्रदेश में फिर से आएगा लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया। राज्य बनने के बीस वर्ष बीत जाने के बावजूद इसका कोई प्रस्ताव तक राज्य सरकार के पास नहीं है। हैरानी इस बात की है कि विधायक प्रीतम सिंह जो कि इन वर्षों में दो बार सरकारांे में कैबिनेट मंत्री तक रहे लेकिन उन्होंने भी जनता की वर्षों पुरानी मांग पर कोई आवाज तक नहीं उठाई।
चकराता सीट लम्बे समय तक कंाग्रेस के कब्जे में रही है। 1974 में पछवादून को चकराता से अलग कर नई विधानसभा सीट बनी तो कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय गुलाब सिंह चौहान इस सीट से पहली बार चुनाव जीतकर विधायक बने। गुलाब सिंह चौहान का इस क्षेत्र की राजनीति में किस कदर बोलबाला रहा है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि आज भी स्वर्गीय गुलाब सिंह चौहान परिवार का पंचायत, ब्लॉक और विधानसभा स्तर की राजनीति में दबदबा बना हुआ है।
गुलाब सिंह चौहान के पुत्र प्रीतम सिंह चौहान अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही इस सीट पर अपना कब्जा बनाए हुए हैं। राज्य बनने के बाद लगातार चार बार प्रीतम सिंह चुनाव जीत चुके हैं। यही नहीं प्रीतम सिंह के छोटे भाई चमन सिंह भी जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत चुनाव में अपना दमखम दिखा चुके हैं। चकराता के त्यूनी क्षेत्र में प्रीतम का अपना एक बड़ा जनाधार है। इसके चलते वे क्षेत्र की राजनीति में लंबे समय तक मजबूती से पकड़ बनाए रखने में कामयाब रहे हैं। इसके अलावा चकराता और कुछ कालसी विकास खंड के ग्रामीण इलाकों में भी प्रीतम सिंह का अपना व्यक्तिगत वोट बैंंक है।
चकराता के दूसरे चौहान नेता के तौर पर मुन्ना सिंह चोैहान को माना जाता है। मुन्ना सिंह इस क्षेत्र की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनाने में सफल रहे हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय में जब समाजवादी पार्टी के खिलाफ खास तौर पर उत्तराखण्ड क्षेत्र की जनता में भारी नाराजगी ओैर नफरत का माहौल बना हुआ था तब 1991 के चुननाव में मुन्ना सिंह चौहान
समाजवादी पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव जीतकर उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचे थे। तत्कालीन समय में उत्तराखण्ड से महज 17 सीटें थी जिनमें सपा के खाते में केवल एक ही सीट आई जिसका श्रेय मुन्ना सिंह चौहान को ही दिया जाता है। हालांकि मुन्ना सिंह चौहान फिर कभी चकराता सीट से चुनाव नहीं जीत पाए। जबकि राज्य बनने के बाद पहले चुनाव में मुन्ना सिंह अपनी उत्तराखण्ड जनवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे और 27 फीसदी से ज्यादा मत हासिल करके दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के प्रीतम सिंह तकरीबन 50 फीसदी मत पाकर चुनाव जीते थे।
2007 में मुन्ना सिंह चौहान भाजपा में शामिल होकर अपना राजनीतिक भविष्य तलाशने के लिए विकासनगर सीट से दांव आजमाया जिसमें वे सफल रहे। 2008 में भाजपा से मोह भंग होने के बाद भाजपा और विधायकी से त्यागपत्र देकर बसपा में शामिल हुए ओैर 2009 का लोकसभा चुनाव लड़े जिसमें तकरीबन 70 हजार मत पाकर बुरी तरह से चुनाव हार गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में मुन्न्ना सिंह चौहान एक बार फिर से चकराता सीट से अपनी उत्तराखण्ड जनवादी पार्टी से कांग्रेस के प्रीतम सिंह को टक्कर देने के लिए मैदान में उतरे थे लेकिन 6054 वोटों के बड़े अंतर से चुनाव हार गए।
मुन्ना सिंह का जनाधार सबसे ज्यादा कालसी विकास खंड ओैर चकराता के कई ग्रामीण इलाकों में है। कालसी को मुन्ना का गढ़ माना जाता है। पूर्व में मुन्ना सिंह को सबसे ज्यादा मत कालसी ब्लॉक से ही मिले थे। जबकि त्यूनी क्षेत्र में सबसे कम वोट मिले थे। इसके अलावा लाखामंडल क्षेत्र में भी मुन्ना सिंह चौहान का एक बड़ा वोट बैंक बताया जाता है। इन्हीं इलाकों से मुन्ना सिंह चोैहान और उनकी धर्म पत्नी मधु चौहान को भरपूर वोट मिलते रहे हैं।
चौहान परिवार में तीसरी बड़ी नेता के तौर पर वर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष मधु चौहान हैं। विगत कई वर्षों से चकराता की राजनीति में मधु चौहान अपने आप को मजबूत नेता के रूप में स्थापित कर चुकी हैं। निशंक सरकार के समय में जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी मधु चौहान निश्ंाक सरकार द्वारा अविश्वास प्रस्ताव के चलते पद से हटाई गई लेकिन हाईकोर्ट से बहाली के बाद वे पूरे दमखम से अपनी वापसी करने में सफल रही।
2007 के विधानसभा चुनाव में मधु चौहान निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चकराता से चुनाव लड़ी और 18763 मत पाकर दूसरे स्थान पर रही। 2017 के चुनाव में फिर से भाजपा के टिकट पर मधु चोैहान मैदान मंे उतरी और लगभग 47 प्रतिशत मत पाकर दूसरे स्थान पर आई। इस चुनाव में प्रीतम सिंह ने भले ही बाजी मारी हो लेकिन हार-जीत का अंतर महज 1500 वोटों का ही रहा है। इसके चलते चकराता में प्रीतम सिंह के मुकाबले मधु चौहान को ही सबसे मजबूत नेता माना जाता है।
चकराता में चौथे बड़े नेता रामशरण नौटियाल हैं। 1995 में जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके नौटियाल को आज विख्यात सिने गायक जुबिन नौटियाल के पिता के नाम से भी जाना जाने लगा है। रामशरण नौटियाल 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में विकासनगर सीट से निर्दलीय उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़े थे और पांचवें स्थान पर आए थे। भाजपा में जोैनसार क्षेत्र के बड़े नेता के तौर पर वे पहचाने जाते हैं।
नौटियाल का भी अपना एक बड़ा जनाधार है। कालसी और चकराता के अलावा लाखामंडल क्षेत्र में नौटियाल इस क्षेत्र के एक बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर वे अपनी पहचान बना चुके हैं। 2022 के चुनाव में भाजपा के दूसरे बड़े दावेदारों में नौटियाल को माना जा रहा है। एक तरह से इस क्षेत्र में चौहान परिवारों की राजनीति के बीच सबसे बड़ी दीवार अगर कोई मानी जाती है तो वह रामशरण नौटियाल को ही माना जाता है।
देखा जाए तो चकराता सीट पर चौहान परिवार के तीन नेताओं प्रीतम सिंह, मुन्ना सिंह और मधु चौहान के बीच ही राजनीति की धुरी बनी हुई है। कांग्रेस के प्रीतम भले ही लगातार चार बार चकराता से चुनाव जीत रहे हों लेकिन उनके जीत का अंतर भी लगातार घटता रहा है। जहां 2002 के चुनाव में जीत का अंतर 8 हजार था, वही 2007 में वह घटकर तीन हजार से भी कम का रह गया। 2012 में भी प्रीतम सिंह ने मुन्ना सिंह चौहान को साढ़े छह हजार मतों से हराया तो 2017 के चुनाव में मधु चौहान को महज 1543 मतों से ही हरा पाए।
इससे यह भी स्पष्ट है कि प्रीतम सिंह का जनाधार विगत बीस वर्षों से कम होता जा रहा है, जबकि मुन्ना सिंह परिवार का जनाधार बढ़ता जा रहा है। चुनाव में भले ही हार हुई हो लेकिन हार का अंतर लगातार कम होना साफ करता है कि प्रीतम सिंह के लिए 2022 का चुनाव बड़ी चुनौती है। बसपा भी इस क्षेत्र में व्यक्तिगत राजनीति से ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी है। 2002 के चुनाव में बसपा के दौलत कंुवर ही एक मात्र ऐसे नेता रहे हैं जो 2017 के चुनाव में 2 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर पाए। अन्यथा 2007 और 2012 में बसपा के उम्मीदवार 12 सौ वोटों तक सिमट कर रह गए। जिसके चलते इस सीट पर किसी अन्य राजनीेतिक दलों की कोई खास अहमियत नहीं रही है। हालांकि दलित नेता के तौर पर दौलत कुंवर जरूर सुर्खियों में रहे हैं लेकिन चुनाव में कोई खास ताकत नहीं दिखा पाए हैं।
चुनाव में मिली करारी हार के बाद दौलत कुंवर बसपा को छोड़कर अपना एक अलग मंच बना चुके हैं जो इस क्षेत्र में सामाजिक कार्य और दलित वर्ग के हितों के लिए काम कर रहे हैं। इसके चलते विगत कुछ वर्षों से खासतौर पर दलित वर्ग में दौलत कुंवर का जनाधार बढ़ा है। पूर्व में दलितों के मंदिर में प्रवेश को लेकर उनके साथ मारपीट की घटना सामने आई थी जिसको लेकर दौलत कुंवर ने जौनसार के दलितों के साथ एक बड़ा आंदोलन भी किया था। इस आंदोलन से दौलत कुंवर को नई पहचान मिली और वे क्षेत्र में एक दलित नेता के तौर पर पहचाने जाते हैं।
दौलत कुंवर 2022 के चुनावी मैदान में उतरते हैं या नहीं यह तो अभी स्पष्ट नहीं है। दोैलत कुंवर का कहना हेै कि उनका क्षेत्र और जनाधार चकराता, विकासनगर ओैर सहसपुर तीनों ही क्षेत्र है इसलिए वे अगर 2022 का चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के तौेर पर चकराता से ही चुनाव लड़ेंगे।
2022 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस में उम्मीदवारी को लेकर कोई संशय नहीं है और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ही कांग्रेस के एकमात्र उम्मीदवार बताए जा रहे हैं तो वहीं भाजपा में उम्मीदवारी को लेकर खासी माथा-पच्ची की बात सामने आ रही है। भाजपा के सूत्रों की मानें तो पार्टी 2022 के चनाव में उम्मीदवार को लेकर रणनीति बनाने में लगी हुई है। पार्टी के लिए चकराता सीट पर जीत हासिल करना हमेशा से ही एक सपना रहा है। मधु चौहान ही एक मात्र भाजपा की ऐसी उम्मीदवार रही है जो कि सबसे अधिक वोट पा सकी है, जबकि पूर्व में भाजपा के सभी उम्मीदवार पांच हजार तक का ही आंकड़ा छू पाए हैं। इसके चलते भाजपा की मजबूरी मुन्ना सिंह चौहान और मधु चौहान है। इनके बगैर चकराता में भाजपा को जीत हासिल करना एक तरह से असंभव ही प्रतीत होता है।
मधु चौहान को उम्मीदवार बनाए जाने पर भी भाजपा में एक मत नहीं है। रामशरण नौटियाल की दावेदारी से भी भाजपा में खासी हलचल मची हुई है। भाजपा में तीन तरह से हालात सामने आ रहे हैं। जिनमें एक गुट मुन्ना सिंह चौहान को चकराता सीट से उम्मीदवार बनाए जाने का पक्षधर है तो दूसरा गुट मधु चौहान को ही उम्मीदवार बनाए जाने के पक्ष में है तो तीसरा रामशरण नौटियाल के पक्ष में है।
माना जा रहा हैे कि भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री कुलदीप कुमार विकासनगर से एक बार फिर चुनाव लड़कर सक्रिय राजनीति में आना चाहते हेैं जिसके चलते मुन्ना सिंह चौहान को चकराता सीट से चुनाव लड़वाने की चर्चा है। फिलहाल भाजपा ने अभी तक कोई संकेत नहीं दिए हैं इसलिए माना जा रहा है कि 2022 के चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार मधु चौहान ही होंगी। लेकिन रामशरण नौटियाल की दावेदारी से भाजपा में उम्मीदवारी को लेकर मामला आसान नहीं होने वाला। मधु चौहान पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में चकराता में कई विकास कार्य करवा कर अपना दमखम दिखा चुकी हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष होने के चलते भी मधु चौहान के लिए भाजपा का टिकट पाना आसान दिखाई दे रहा है। ‘दि संडे पोस्ट’ के एक हालिया सर्वे में भी चकराता सीट पर भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर सामने आई है।
लोकतंत्र है और हर एक को टिकट मांगने का अधिकार है। चकराता से कई लोग टिकट मांग रहे हैं। मैं भी चकराता सीट से 2022 के चुनाव के लिए भाजपा से टिकट की दावेदारी कर रहा हूं। पार्टी किसे टिकट देगी यह तो पार्टी ही डिसाइड करेगी।
राम शरण नौटियाल, भाजपा नेता
पूरे चकराता विधानसभा क्षेत्र में विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतें तो बनाई गई हैं लेकिन इसका कोई लाभ क्षेत्र की जनता को नहीं मिल पा रहा है। एक तरह से यह भव्य इमारतें केवल ठेकेदारों और राजनीतिक हितों को साधने के लिए ही निर्मित हुई हैं। करोड़ों की सरकारी धनराशि इमारतों के निर्माण में लगाई गई है, जबकि इनमें स्टाफ और कर्मचारियों की कमी लगातार बनी हुई है।
कुलदीप चौहान, पत्रकार
मैं बसपा को चुनाव के बाद ही छोड़ चुका हूं। फिलहाल तो मैं समाज हित के लिए काम कर रहा हूं। पिछले पांच सालों से मैं जनता के बीच हूं। जनता की समस्याओं को उठाने और उसके निराकरण के लिए लड़ाई लड़ रहा हूं। 2022 का चुनाव मैं लडूंगा या नहीं यह अभी नहीं कह सकता। मेरा क्षेत्र चकराता, विकासनगर और सहसपुर तीनों ही विधानसभा में है। मेरे समर्थक और कार्यकर्ता भी इन्हीं तीनों क्षेत्रों में हैं। जहां से मेरी जनता कहेगी मैं वहां से चुनाव में जाऊंगा।
दौलत कंुवर, सामाजिक कार्यकर्ता
साठ सालों से एक ही व्यक्ति और उनके परिवार का विधायक इस क्षेत्र में रहा है। लेकिन इस अति दुर्गम क्षेत्र में विकास के काम जितना हमारी भाजपा सरकार ने करवाए हैं उतना आज तक नहीं हुए हैं। जब भी भाजपा की सरकार प्रदेश में आई है तभी चकराता विधानसभा क्षेत्र में काम हुए हैं। हम जनता से विकास का वादा करते हैं और उसे पूरा करते हैं। हम अपने काम और जनता के विश्वास पर ही चुनाव में जा रहे हैं। हमारी सरकार और मैंने जितने काम इस क्षेत्र में करवाए हैं उनके आधार पर जनता के बीच जाएंगे। 2022 के चुनाव में भाजपा की जीत निश्चित है।
मधु चौहान, जिला पंचायत अध्यक्ष, भाजपा नेत्री