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गुरविन्दर सिंह चड्ढा अस्पतालों में घूमते-फिरते थे कि कहीं किसी गरीब और असहाय इलाज को मोहताज तो नहीं। उसे हर संभव मदद पहुंचाते थे, लेकिन जब अपनी बारी आई तो कुछ नहीं कर सके। उन्हें न सिर्फ समाज सेवा के लिए याद किया जाएगा, बल्कि एक अच्छे आरटीआई एक्टिविस्ट और आंदोलनकारी का असमय चलें जाना भी समाज को बेहद खल रहा है

 

हल्द्वानी के अस्पतालों में अक्सर वह मिल जाते थे। उनकी पहचान यह थी कि वह सरदार थे। उनके दिल में उन गरीबों-मजलूमो के लिए दर्द था जो पैसे के अभाव में दम तोड़ जाते थे। ना केवल ऐसे मरीजों को पहाड़ से हल्द्वानी सुशीला तिवारी अस्पताल में लाते बल्कि मरीज के लिए डॉक्टर तक से लड़ जाते थे। कभी-कभी यह मरीजों के साथ तीमारदारी करते भी दिखते थे। पहाड़ के एक दो नहीं, बल्कि सैकड़ों ऐसे मरीज आज उनकी सेवा से सही होकर जीवनदान पा चुके हैं। सच तो यह है कि वह उत्तराखंड के ऐसे सरदार थे, जिनके दिल में पहाड़ बसता था। इलाज के लिए तरसते जरूरतमंदों को मदद पहुंचाना ही उनका मिशन बन गया था। दुर्घटनाओं और लाइलाज बीमारियों से गुजरने वाले ऐसे मरीजों को इस सरदार ने सरकार से आर्थिक मदद दिलवाई तो सोशल मीडिया पर बकायदा मुहिम चलाई। जिसके लिए भी वह आगे आए वह सही सलामत होकर ही निकला। कभी- कभी वह बड़े वर्ग के लिए भी मुसीबत बन जाते थे। हजारों आरटीआई डालकर उन्होंने प्रशासन और सत्तापक्ष से कई बार झगड़ा मोल ले लिया था। उनकी आरटीआई एक बम धमाके की तरह सामने आती थी। जिसमें पत्रकारों को खबर मिल जाती थी तो नेताओं को सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का मुद्दा। कई घपले और घोटाले उनकी आरटीआई से उजागर हुए। मौका मिलता तो वह आंदोलन पर भी बैठ जाते। धरना-प्रदर्शन करने लगते। मंगल पड़ाव में क्रोकरी की दुकान करने वाले यह सरदार किसी भी पीड़ित के लिए 24 घंटे अपने दरवाजे खुले रखते थे। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि ऐसी सख्शियत अब हमारे बीच नहीं रही।

नरेशराम जी निवासी ग्राम चोखा, पोस्ट देवलथल, जिला पिथौरागड़ जिनकी पत्नी सुनीता देवी को महिला संबंधित बहुत अधिक दिक्कत हो रही है जिसकी कि तुरंत सर्जरी होनी जरूरी है। भयंकर उठती पीड़ा चलने -फिरने उठने लेटने में भी परेशानी हो रही है। दो महीने से पिथौरागढ़ महिला चिकित्सालय में ईलाज चलता आ रहा है। अब उनके द्वारा हल्द्वानी महिला चिकित्सालय रेफर किया गया है। जहां से उन्होंने राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया गया है ।

जहां मेरे द्वारा डॉक्टर अरुण जोशी जी से उक्त के ईलाज तुरन्त सर्जरी हेतु निवेदन किया जाता रहा। उनका कहना है कि वर्तमान में कोविड के कारणों से सर्जरी बंद है।
गरीब निर्धन परिवार को सज्जन लाल मेमोरियल सोसाइटी द्वारा हल्द्वानी मेरे पास ईलाज को भेजा था ये संस्था पिथौरागड़ क्षेत्र में बहुत अच्छे कार्य करती आ रही है। नरेशराम जी की आर्थिक स्थिति प्राइवेट ईलाज वहन करने की नहीं है। बहुत हताश और परेशान थे दोनों। उनको वायदा किया और मेरे प्रयास रंग लाये। अब मिलेगा ईलाज होगी पीड़ा कि परेशानी से मुक्ति सहयोग के लिए जिला प्रशासन, स्वास्थ्य, सहित डॉक्टर अरुण जोशी का आभार। कल एडमिट होने की सहमति मिल गयी है।
दुखियों की पीड़ा को समझने और उनके दुख-दर्द दूर करने के लिए जिंदगी भर समाजसेवा का बीडा उठाते रहे हल्द्वानी निवासी गुरविंदर सिंह चड्ढा की फेसबुक पर यह अंतिम पोस्ट हैं। 27 अक्टूबर को उन्होंने इस पोस्ट के जरिए न केवल अपने इंसानियत होने के फर्ज को निभाया बल्कि जब तक पिथौरागढ़ का यह परिवार अस्पताल से ठीक होकर घर नहीं पहुंच गए तब तक वह उनसे दूर नहीं हुए। सैकड़ों गरीब मरीजों को बीमारी के चलते अपने प्रयासों से मौत के मुंह से खीच लाने वाले गुरविंदर सिंह चड्ढा स्वयं जिंदगी की जंग हार गया। 4 नवंबर की सुबह उन्होंने हल्द्वानी के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली।

गुरविंदर सिंह चड्ढा का मन था ही ऐसा कि है मजलूमों-गरीबों के दर्द से उनके दुख से वह दूर जा ही नहीं सकते थे। शायद कोई दिन बचता था जब वह हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में नहीं जाते थे। यहां जाकर वह हर उस मरीज का हाल जानते थे जो स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से घिरा होता था। इसके चलते ही पहाड़ से दूरदराज के लोग जब अपना इलाज कराने हल्द्वानी आते तो वह सबसे पहले गुरविंदर सिंह चड्ढा जी के पास जाते। यहां जाकर बताते कि उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं है। तब आर्थिक के अलावा हर तरह की सहायता करने रुके लिए गुरविंदर चड्ढा आगे आते। ऐसा हजारों पीड़ितों की दुआएं उनके साथ थी। इन्हीं दुआओं की बदौलत वह हल्द्वानी ही नहीं पूरे उत्तराखंड में इंसानियत के सबसे बड़े धनी व्यक्ति थे।

बताया जा रहा है कि 3 नवंबर की शाम को गुरविंदर सिंह चड्ढा ने अपनी पत्नी रेनू का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाया। शाम को पूरे परिवार ने डिनर करने के लिए बाहर का प्रोग्राम बनाया था। जहां से डिनर करने के बाद जब वह वापस लौटने लगे तो उनको खांसी होने लगी। रात ढलती ढलते उनको बहुत ज्यादा खांसी होने लगी। करीब 2 बजे उन्हें अस्पताल ले जाएगा। जहां उनको सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। बताया गया कि इस दौरान गुरविंदर सिंह चड्ढा का शरीर का ऑक्सीजन लेवल काफी कम हो गया था। अस्पताल पहुंचने के कुछ देर बाद ही उनकी मृत्यु हो गई।

आरटीआई के माध्यम से महत्वपूर्ण जानकारी लेकर कई घोटालों और घपलों को सामने लाने वाले गुरविंदर सिंह चड्ढा आए दिन मीडिया की सुर्खियों में रहते थे। वह अपनी आरटीआई में उन मामलों को उजागर करते जिनमें सरकार बड़े घपले कर चुकी है या कर रही होती है। आरटीआई के हर बिंदु से वह इस कदर वाकिफ थे कि अगर कोई अधिकारी उन्हें जानकारी देने से बचते थे तो वह इसको लेकर उच्चाधिकारियों तक अपील कर देते थे। ऐसा कोई महीना जाता होगा जब वह अपनी आरटीआई को लेकर सूचना आयोग में अपील दायर नहीं करते थे। कई मामलों में उन्होंने अधिकारियों को सूचना न देने पर सूचना आयोग से दंडित कराया। इसके चलते ही सभी विभागीय अधिकारी उनकी आरटीआई पर त्वरित जानकारी देने की कोशिश करते थे। प्रदेश में जहां आरटीआई को लोगों में अवैध उगाही का धंधा बना रखा है लेकिन गुरविंदर सिंह चड्ढा इस मामले में बिल्कुल पाक – साफ रहे। वह आरटीआई में जानकारी लेते ही अपने विश्वस्त पत्रकारों से बात करते और उसके बाद सारे सबूतों को उनके हवाले कर देते थे। वह सोशल मीडिया में भी मामले को उठाते और मीडिया के जरिए भी सरकार तक मामले को पहुंचाते थे। जिसके चलते उनकी आरटीआई पर कई मामले में कार्यवाही हुई।

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यूं तो बहुत घोटाले हुए हैं। लेकिन उनको उजागर करने का जज्बा बहुत कम लोगों में है। ऐसे में गुरविंदर सिंह चड्ढा ने बड़ा दिल दिखाया और प्रदेश भर में विभिन्न नगर पालिकाओं और नगर निगम में गरीबों को सर छुपाने हेतु 4387 आवास घोटाले को उन्होंने उजागर किया। आरटीआई के माध्यम से सारी सूचनाएं ली और आईएचएसडीपी योजना के अंतर्गत इस घोटाले को सामने लाए। इस घोटाले में आवास बनाने के लिए एक अरब 38 करोड़ 94 लाख 84 हजार का टेंडर जारी हुए थे। यूपी कॉरपोरेशन लिमिटेड को इसका ठेका दे दिया गया था। लेकिन बिना आवास बनाए ही इस कंपनी को सरकार ने 57 करोड 19 लाख 95 हजार की राशि पहले ही दे दी थी। इसके बाद कंपनी ने आधे अधूरे आवास बनाकर बडा घोटाला कर डाला था।

पिछले दिनों कोरोना काल में उन्होंने हल्द्वानी नगर निगम की पोल खोल कर रख दी। आरटीआई के माध्यम से उन्हें पता चला कि नगर निगम कोरोना काल में भी घोटाला करने से बाज नहीं आ रहा है। जो मास्क 90 पैसे का था उसे नगर निगम ने 17 रुपए में खरीदा। इस तरह कोरोना काल में नगर निगम हल्द्वानी ने 33 लाख का घोटाला कर डाला। जिसे गुरविंदर सिंह चड्ढा ने अपनी आरटीआई के माध्यम से उजागर किया। बाद में कांग्रेस नेता सुमित हृदेश ने इस मामले पर नगर निगम की जमकर घेराबंदी की।

गुरविंदर सिंह चड्ढा ने अपनी आरटीआई से प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को नहीं बख्शा। उन्होंने आरटीआई में अब तक के सभी मुख्यमंत्रियों की घोषणाएं जो पूरी हुई और जो अधूरी रही पर जानकारी मांगी। जिसमें चौंकाने वाली जानकारी यह मिली कि अभी तक के प्रदेश में सभी आठ मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं में से 50 प्रतिशत घोषणाएं पूरी ही नहीं हुई। वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी उन्हें मुख्यमंत्रियों में शामिल हैं। चड्ढा की आरटीआई से जो मामला सामने आया उसमें मजेदार बात यह रही कि प्रदेश के सभी मुख्यमंत्रियों की 1730 ऐसी घोषणाएं थी जिनका कोई अता पता ही नहीं था।

वर्ष 2012 में उत्तराखण्ड की लोक गायिका कबूतरी देवी के इलाज में चड्ढा का सराहनीय योगदान रहा। उन्होंने कबूतरी देवी के इलाज में लोगों को आर्थिक सहायता देने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। यही नहीं, बल्कि तत्कालीन सरकार से आर्थिक सहायता दिलवाकर कबूतरी देवी का इलाज कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कोरोना काल में जब स्कूल बंद हो चुके थे तब बच्चों का पढ़ाई का एकमात्र जरिया ऑनलाइन था। ऐसे में गरीब बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई करना बेहद मुश्किल संभव हो रहा था । क्योंकि उनके पास एंड्रायड फोन नहीं थे। ऐसे में गुरविंदर सिंह चड्ढा ने एक नया प्रयोग किया। चड्ढा ने इस दौरान गरीब बच्चों को निशुल्क एंड्रायड फोन बांटे। इस तरह उन्होंने कोरोना काल में दर्जनों गरीब बच्चों के भविष्य को उज्जवल किया।

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