भारतीय समाज में जातियों को लेकर भेदभाव एक कलंक है। हर रोज इसके उदाहरण सामने आते रहते हैं। जबकि सामाजिक व्यवस्था में सभी जातियों का अपना महत्व है। अनुसूचित जातियों को शिल्पकार भी कहते हैं। जिसका अर्थ है कि आज भी वे हस्तशिल्प के काम जैसे लोहारी, काष्ठकला, सिलाई, बुनाई, खेती का काम आदि करते हैं जो सभी वर्गों को लाभ पहुंचा रहे हैं। उनमें खून-पसीने वैसे ही हैं जैसे सभी जातियों में हैं। ऐसे में फिर क्यों समाज के इस महत्वपूर्ण अंग के साथ भेदभाव किया जा रहा है?
- सुरेश भाई
भारतीय समाज पर जातियों में भेदभाव एक कलंक है। हर रोज इसके उदाहरण सामने आते रहते हैं। चिंता तब और बढ़ जाती है जब उच्च वर्ग की मानसिकता पाले हुए ऊंचे से ऊंचे पदों पर बैठे लोग भी जातीय भेदभाव की घटनाओं के विषय पर कुछ भी नहीं बोलते हैं और न ही प्रभावित समाज के बीच जाकर सामाजिक समरसता का संदेश देते हैं। जिसके फलस्वरूप शासन-प्रशासन की कार्यवाही भी आगे नहीं बढ़ पाती है।
इसी प्रकार मई 2024 में जाति भेद उत्पीड़न की एक घटना उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में बद्रीनाथ के पास जोशीमठ तहसील के अंतर्गत सुभाई चांचडी गांव के अनुसूचित जाति के लोगों की है। जहां अनुसूचित जाति के व्यक्ति द्वारा ढोल नहीं बजाने पर 3 मई को 5000 रुपए का जुर्माना उससे वसूला गया था। गांव के कुल 10 अनुसूचित जाति के परिवारों में से पुष्कर लाल नामक व्यक्ति की तबियत इतनी खराब थी कि वह गांव के बैसाखी मेले में ढोल बजाने नहीं जा सका था। ऐसी स्थिति में तो गांव के लगभग उच्च वर्ग के परिवारों की भी जिम्मेदारी बनती थी कि जब वह ढोल बजाने नहीं पहुंचा तो उसके घर जाते और उसका इलाज कराने में मदद करते। लेकिन ऐसी कोई सहानुभूति समाज के निम्न वर्ग को नसीब नहीं हो पाती है। जबकि यहां पर लगभग उच्च वर्ग के 100 परिवार निवास करते हैं। लेकिन गांव के सवर्ण परिवार इतने नाराज हो गए कि उन्होंने पंचायत बुलाकर जुर्माने की राशि वसूल करने के साथ-साथ यह भी धमकी दी कि यदि वे निर्देशों का पालन नहीं करेंगे तो उन्हें जल, जंगल, जमीन, परिवहन आदि ग्रामीण संसाधनों से बहिष्कृत किया जाएगा। जिसके साथ ही उच्चवर्ग द्वारा यह आदेश भी दिया गया कि उन्हें राशन की दुकानों से सामान भी नहीं खरीदने दिया जाएगा और उनके लिए जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल करके गांव से बेदखल करने का प्रस्ताव भी पास किया गया। बाद में अनुसूचित जाति की महिलाएं अपने जंगल में घास, लकड़ी लेने भी नहीं जा सकी। लोगों ने इस भय के बाद न्यायालय की शरण ली है। पुलिस ने एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत 28 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज भी किया है। प्रभावितों के अनुसार जांच भी की गई। जुलाई के तीसरे सप्ताह पुलिस के जवान भी अचानक गांव में पहुंचे जिसमें दोषी व्यक्तियों की गिरफ्तारी तो नहीं हुई है। लेकिन अनुसूचित जाति के परिवारों में व्याप्त डर के माहौल को समाप्त करने के लिए गांव में पुलिस की तैनाती की गई है। इस सम्बंध में सूत्रों से जानकारी मिलती है कि अपराधिक धाराओं को हटा देने के कारण सजा नहीं मिल रही है। जिससे आक्रोषित होकर भारतीय मानवाधिकार एसोसिएशन, उत्तराखण्ड एससी-एसटी महासभा, पर्वतीय शिल्पकार कल्याण सभा के नेता पुष्कर बैछवान और दिलीप चंद्र आर्य ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और राज्यपाल को पत्र भेजें। जिसके बाद उत्तराखण्ड अनुसूचित जाति आयोग ने ढोल न बजाने पर जुर्माना लगाने के मामले को गम्भीरता से लिया है। आयोग की सदस्य भागीरथी कुंजवाल भी मौके पहुंचीं। यहां अनुसूचित जाति के प्रभावित लोगों द्वारा जिला मुख्यालय तक जुलूस प्रदर्शन और सभाएं की जा रही हैं। इसके बावजूद भी उनकी मांग अभी तक अनसुनी है।
इसी तरह की एक और शर्मनाक घटना चम्पावत जिले में घटित हुई है जहां अनुसूचित जनजाति की महिला प्रधान विनीता को तहसीलदार व ग्राम पंचायत अधिकारी ने राहत सामग्री बांटने के लिए बुलाया था लेकिन प्रधान के साथ सवर्ण लोगों ने अभद्रता करते हुए सरेआम बेइज्जत किया है। महिला ग्राम प्रधान के लिए जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल किया और धक्का-मुक्की करके जान से मारने की भी धमकी दी है। लेकिन इस पर भी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सुभाई गांव के दलित शिल्पकार परिवारों को सामाजिक बहिष्कार और दंड के विषय पर कहा है कि यह निर्णय हमारी मानसिकता पर सवाल खड़ा करती है। उन्होंने अपील की है कि वे अपने इस निर्णय को वापस ले लें। जिसका उन पर कोई प्रभाव नहीं दिखाई दिया। क्षेत्र के सामाजिक संगठन भी इस पर मौन हैं। अगस्त 2024 के तीसरे सप्ताह उत्तराखण्ड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने सुभाई गांव की घटना पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने दलित समाज के साथ इस तरह के अन्यायपूर्ण व्यवहार की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित किया और इस घटना की न्यायिक जांच की मांग की।
इसी जनपद की दूसरी घटना है कि यहां वर्ष 2022 में देवीधुरा के टेलर मास्टर रामलाल को मकान मालिक ने अपने लड़के की शादी में बुलाया था। शादी में सामूहिक भोज में खाना खाते समय दबंगों ने उसकी इतनी पिटाई की थी कि उसने इलाज के दौरान डॉ. सुशीला तिवारी मेडिकल हॉस्पिटल हल्द्वानी में दम तोड़ दिया था। इसके बावजूद भी उसके हत्यारों की आज तक कोई गिरफ्तारी नहीं की गई। जबकि मृतक रमेश लाल का परिवार भुखमरी की जिंदगी काट रहा है।
उत्तर प्रदेश में खतौली क्षेत्र के गांव मढकरीमपुर में भी 15 जुलाई को दलित वर्ग के दूल्हे के साथ मारपीट करके उसे घोड़ी से उतार दिया गया था। इसी दौरान की एक और घटना है, अनुसूचित जाति के कांवड़ियों को हिसार में खरड़ अलीपुर के शिव मंदिर में जलाभिषेक करने से रोका गया। यहां पर लगभग दो दर्जन अनुसूचित जाति के कांवड़िये मंदिर में सवर्णों की उपस्थिति में प्रवेश नहीं कर सके। अतः ध्यान रहे कि सामाजिक व्यवस्था में सभी जातियों का अपना महत्व है। अनुसूचित जातियों को शिल्पकार भी कहते हैं। जिसका अर्थ है कि आज भी वे हस्तशिल्प के काम जैसे लोहारी, काष्ठकला, सिलाई, बुनाई, खेती का काम आदि करते हैं जो सभी वर्गों को लाभ पहुंचा रहे हैं। उनमें खून-पसीने वैसे ही हैं जैसे सभी जातियों में हैं। फिर क्यों समाज के इस महत्वपूर्ण अंग के साथ भेदभाव किया जा रहा है?