उत्तराखण्ड के जंगलों में लगी आग से बेचैन होकर अल्मोड़ा के चनौला गांव के शंकर सिंह बिष्ट और उनके साथी प्रमोद बिष्ट साथ मिलकर पदयात्राएं कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण को अपना जीवन लक्ष्य बना चुके इन युवाओं ने अपने गांव से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक पदयात्रा के जरिए जनजागरण की मुहिम शुरू की है
‘द्वाराहाट इलाके के गांव और क्षेत्र के लगभग 70 प्रतिशत से अधिक जल स्रोत सूख गए हैं। स्थानीय प्रजातियों का लगातार विलुप्तीकरण हो रहा है। नदियों का जल स्तर गिरता जा रहा है और वायु की गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है। तापमान बढ़ रहा है। हमारे गांव में बारिस होनी चाहिए थी और बर्फ पडनी चाहिए थी उस समय जंगल धू-धू करके चल रहे थे। वह दृश्य दिल में आघात कर गया। बड़ी पीड़ा हुई। तब दूसरे दिन से ही मैं उन जंगलों को बुझाने निकल पड़ा। उस दौरान बहुत अधिक जंगलों की आग बुझाने का प्रयास किया। फिर लोग जुड़ने शुरू हो गए। लोगों को साथ लेकर जंगलों की आग बुझाने चले जाते। लेकिन फिर भी जंगलों की आग बढ़ती ही जा रही थी। यह ग्लोबल वार्मिंग का एक कारण बनता जा रहा है। इसके चलते ही पर्यावरण संदेश यात्रा निकलने का बीड़ा उठाया। पैदल ही दिल्ली तक यात्रा निकालने और जन जागरण करने का प्लान बनाया और निकल पड़े।’
यह कहना है अल्मोड़ा जिले के चनौला गांव निवासी शंकर सिंह बिष्ट का। बिष्ट उत्तराखण्ड में अपनी पैदल यात्रा को लेकर चर्चाओं में हैं। वह बदलते पर्यावरण और उसके दुष्प्रभावों से लोगों को अवगत करा रहे हैं। उन्होंने जब पैदल यात्रा शुरू कि तो वेंटिलेटर को मुंह पर लगाकर लोगों को आने वाली भयावह स्थिति से जागरूक कराया। अपने एक साथी को लेकर पैदल ही गावों से गुजरते और लोगों को पर्यावरण के प्रति सचेत करते हुए पहले देहरादून पहुंचे और वहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिले। उन्हें इस जवलंत समस्या से रूबरू कराया। उनसे मिलने के बाद दिल्ली के लिए निकल पड़े। राष्ट्रपति भवन भी पहुंचे। वह कहते हैं कि ‘2022 का फायर सीजन शुरू हो गया है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए। कैसे इन जंगलों को बचाने का प्रयास किया जाए। मैंने कई वन विभाग के कर्मियों से भी संपर्क साधने की कोशिश की कि आप लोग आओ और ग्रामीणों को मिलकर जागरूक करते हैं। कुछ कैंपेनिंग चलाते हैं और इन जंगलों को बचाने का प्रयास करते हैं। लेकिन वहां से भी बेहतर परिणाम नहीं मिले। फिर मन में आया कि एक ऐसी पैदल जन जागृति यात्रा करनी चाहिए जिसको लोग देखे, सुने और उसके बारे में पढ़ें तथा फिर जलते जंगलों को कहीं बचाने का प्रयास करें।
फिर क्या था एक बार मन में विचार आया और शंकर बिष्ट ने ठान लिया कि अपने गांव जनौला से लेकर नई दिल्ली राष्ट्रपति भवन तक की पैदल यात्रा करेंगे। 1 अप्रैल 2022 को शंकर अपने साथी प्रमोद बिष्ट संग इस यात्रा पर निकल पड़े। अपने गांव से तहसील क्षेत्र चौखुटिया अल्मोड़ा से गढ़वाल स्थित मेहलचौरी, गैरसैंण, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग, ऋषिकेश, श्रीनगर, देहरादून, रुड़की, मेरठ और गाजियाबाद होते हुए दोनों पदयात्री दिल्ली तक पहुंचे। इस दौरान बहुत अनुभवी लोग मिले। बहुत कुछ सीखने को मिला। इस यात्रा में बिष्ट की मुलाकात मुख्यमंत्री से भी हुई। देव जगत सिंह जंगली, कल्याण सिंह रावत तथा बहुत से ऐसे अन्य लोग भी मिले जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। दोनों पदयात्री केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से भी मिले और उन्हें ज्ञापन सौंपा। प्रधानमंत्री कार्यालय में भी ज्ञापन देकर आए।
राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी को भी इस फैलते आग और धधकते जंगलों एवं चीड़ के पेड़ों को लेकर समस्या के बारे में अवगत कराया। बिष्ट कहते हैं कि ‘वाकई आज जिस प्रकार से हिमालय क्षेत्र धधक रहा है उसको लेकर सभी चिंतित हैं। सभी का कहना था कि अगर इसका समाधान नहीं निकाला गया तो बहुत जल्द यह हमारी सभ्यता और संस्कृति का विनाश कर देगा।’ शंकर सिंह बिष्ट की मानें तो हर साल लगभग 5 से 10000 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो जाते हैं। उन जंगलों में करोड़ों वनस्पतियां, पेड़ पौधे, जीव जंतु आदि जलकर भस्म हो जाते हैं जो कि हमारी प्रकृति संतुलन के लिए बहुत ही बड़ा योगदान देते हैं। अगर हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित रखना है और उनके भविष्य को उज्जवल बनाना है तो हमें सबसे पहले उनकी प्राथमिक आवश्यकता जल और हवा के संरक्षण पर ध्यान देना होगा।’
इससे पहले शंकर सिंह बिष्ट जल संरक्षण के लिए भी काम कर चुके हैं। वह बताते हैं कि ‘मैंने भूमि का जल स्तर को रिचार्ज करने के लिए चाल-खाल घंटियां बनाना शुरू किया। जिनको मैं अब तक लगभग ढाई सौ से ऊपर बना चुका हूं। वहीं बरसात के मौसम में मैंने पांच हजार के लगभग पेड़ लगाए हैं। विद्यालयों में जाकर बच्चों से संपर्क कर वहां नर्सरी की मुहिम की शुरुआत की। इस मिशन के तहत विद्यार्थियों को विद्यालय में ही खुद एक पौधा तैयार करने की योजना बनाई गई है। इस दौरान मुझे डॉक्टर कपिल गौड़ से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। उनका सहयोग लगातार बना रहने लगा। फिर ऐसे ही अन्य कुछ लोग साथ आए। जो पहले से ही इस तरह के कार्य कर रहे थे। उनके साथ मिलकर इस क्षेत्र में बहुत कार्य किया। भोपाल सिंह भंडारी और मोहन शर्मा जैसे अनुभवी लोगों का सहयोग निरंतर मिल रहा है। आगे भी यह मिशन जारी रहेगा।’