जनता के सवालों को प्रमुखता से उठाती रही उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी ने राज्य की अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष का शंखनाद कर दिया है। लगता है कि पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में इसे अहम मुद्दा बनाएगी
एक समय उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के उद्देश्य से गठित ‘उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी’ लगातार जनहित एवं क्षेत्रीय अस्मिता के मुद्दों पर मुखर रही है। पार्टी के रुख से लगता है कि वह इन्हीं मुद्दों पर आगामी 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है। वह चुनाव में जल, जंगल और जमीन के सवालों को प्रमुखता से उठाने जा रही है।
अभी हाल में परिवर्तन पार्टी ने ‘खतरे में है उत्तराखण्डी अस्मिता’ विषय पर हल्द्वानी में बाकायदा एक संगोष्ठी का आयोजन भी किया। जिसमें राज्य आंदोलनकारियों, राजनेताओं, पत्रकारों, साहित्यकारों और तमाम अन्य क्षेत्रों के जाने- माने लोगों ने भागीदारी निभाई। संगोष्ठी में प्रदेश सरकार से मांग की गई है कि त्रिवेंद्र सरकार द्वारा कृषि भूमि की असीमित खरीद के लिए बनाए गए काले कानून को तत्काल निरस्त किया जाए। उत्तराखण्ड को पूर्वोत्तर राज्यों व देश के अन्य क्षेत्रों की तरह संविधान के अनुच्छेद 371 के अन्तर्गत संरक्षण हेतु केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने एवं पर्वतीय क्षेत्रों में बेनाप भूमि को ग्राम समाज को सौंपने की भी मांग उठाई गई। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता जाने माने पत्रकार व साहित्यकार नवीन जोशी ने कहा कि राज्य के राष्ट्रीय नेताओं के दबाव में उत्तराखण्डियों ने राज्य की सांस्कृतिक पहचान को देश व दुनिया में बखूबी स्थापित किया, पर वे पूर्वोत्तर राज्यों की तरह यहां की राजनीतिक अस्मिता की रक्षा करने में चूक गए। जिससे उत्तराखण्ड की यह दुर्दशा हुई है। राज्य की अस्मिता की रक्षा का सवाल अब खड़ा हो रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य बनने के बाद यहां प्राकृतिक संसाधनों, जल, जंगल जमीन की निर्मम लूट हुई है। जिसके कारण राज्य की अस्मिता की रक्षा एवं सशक्त भू-कानून बनने की मांग बहुत तेजी से उभर रही है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक बदलाव की कुंजी सत्ता है।
संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पी .सी .तिवारी ने कहा कि उत्तराखण्ड में रहने वाले सभी लोगों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे राज्य बनने के 21 वर्षों में सरकारों की जन विरोधी नीतियों के कारण तबाह हो चुके इस हिमालयी राज्य को बचाने के लिए एकजुटता से संघर्ष की योजना बनाए। तिवारी ने कहा कि नानीसार, डांडा कांडा, चितई व राज्य के तमाम क्षेत्रों में भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों, पूंजीपतियों व माफियाओं के गठजोड़ के चलते भू-माफियाओं की अराजकता चरम पर पहुंच गई है।
सामाजिक कार्यकर्ता ईश्वर दत्त जोशी ने कहा कि उत्तराखण्ड में राज करने वाली सरकार ने निर्धारित समय में भूमि का बंदोबस्त नहीं किया और पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि सिकुड़ रही है जिस कारण पलायन, विस्थापन, बेरोजगारी यहां की नियति बन गई है। कर्मचारी नेता चंद्रमणि भट्ट ने कहा कि उत्तराखण्ड के नेता लूट खसोट कर मालामाल हो रहे हैं। गोल्डन कार्ड के नाम पर कर्मचारी पेंशनरों की गारंटी कमाई की भी लूट की जा रही है, पर कोई सुनने वाला नहीं है। पहरू के संपादक डॉ ़ हयात सिंह रावत ने कहा कि जब गांव की कृषि ही नहीं बचेगी तो बोली भाषा और हमारी अस्मिता कैसे बचेगी। पैरा मिलिट्री (सेवानिवृत्त) संघ के मंडलीय अध्यक्ष मनोहर सिंह नेगी ने कहा कि सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। जिला बार एसोसियेशन के पूर्व अध्यक्ष महेश परिहार ने कहा कि उत्तराखण्डी अस्मिता को तार- तार करने की साजिशें शुरू से होती रही हैं जो अब असहनीय हो गई हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता गोविंद लाल वर्मा, जीवन चन्द्र, लोक वाहिनी के दयाकृष्ण कांडपाल, उपपा की केंद्रीय सचिव आनंदी वर्मा, सालम समिति के राजेन्द्र रावत, भारती पांडे, नारायण राम, हीरा देवी, सरिता मेहरा, चितई के दीवान सिंह, हिमांशु पांडे, गोविंद सिंह शिजवाली समेत अनेक लोगों ने संगोष्ठी में विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी में बाल प्रहरी के संपादक उदय किरौला, पुरातत्वविद् कौशल, वरिष्ठ रंगकर्मी नवीन बिष्ट, पूर्व प्राचार्या आनंदी मनराल, मो ़ शाकिब, ममता, मीना, प्रकाश चन्द्र, नीरा बिष्ट, हेम पांडे, जगदीश राम, गिरीश चंद्र, चंद्रा देवी, चंपा सुयाल, भावना मनकोटी, वंदना कोहली, नसरीन, मोहम्मद शाहिद, दीपांशु पांडे समेत बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। करीब साढ़े तीन घंटे चली संगोष्ठी में उत्तराखण्ड की जनता से राज्य की अस्मिता, जमीन की रक्षा के लिए एकजुट होकर भ्रष्ट सरकारों व प्राकृतिक संसाधनों की लूट करने वाले गिरोह से लोहा लेने की अपील की गई। संगोष्ठी में देश में तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 9 माह से संघर्ष कर रहे किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हुए 27 सितंबर को भारत बंद का समर्थन करने की घोषणा की गई।