उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में प्रदेश का पहला सेनिटरी पैड बैंक खुला है। इस बैंक से महिलाएं निःशुल्क सेनिटरी पैड ले जा रही हैं। बहुत से लोग यहां सेनिटरी पैड डोनेट भी करते हैं। इस पैड बैंक के खुलने की भी एक प्रेरणादायक कहानी है। जिसके असली नायक हैं सामाजिक चिंतक और अध्यापक कल्याण मनकोटी, जिन्होंने पैड बैंक खोलने के लिए आशीष पंत को प्रेरित किया। पंत ने एक गांव में जाकर जब परास्नातक का फाइनल प्रोजेक्ट तैयार किया तो अध्यापक मनकोटी की यह बात उनके मन-मस्तिष्क में बैठ गई कि आपकी रिसर्च तब तक अधूरी है जब तक कि वह कोई सामाजिक बदलाव न ला सके। पंत ने अपनी टीम वर्क के बल पर उन गांवों में सामाजिक बदलाव का शंखनाद कर दिया है जहां जागरूकता के अभाव में महिलाएं पुराने और गंदे कपड़ों का प्रयोग करके चाहे-अनचाहे ही बीमारियों की आगोश में जा रही हैं। कई शोध इस बात की पुष्टि पहले ही कर चुके हैं कि जब महिलाएं पुराने गंदे कपडे़ मासिक धर्म के दौरान प्रयोग में लाती हैं तो साथ में कई बीमारियों को अनजाने ही न्योता दे देती हैं। पंत की टीम अब महिलाओं, किशोरियों और छात्राओं को मासिक धर्म में पुराने गंदे कपड़े के प्रयोग न कर उन्हें सेनिटरी पैड इस्तेमाल करने को प्रेरित कर रही है
आशीष पंत एक छात्र हैं उन्होंने अल्मोड़ा विश्वविद्यालय से परास्नातक की है। जब वे परास्नातक का फाइनल प्रोजेक्ट कर रहे थे तो उन्होंने ‘मासिक धर्म और महिला स्वास्थ्य’ विषय पर रिसर्च की। इस रिसर्च को करने के लिए वे धौलाघाट के गुरना गांव गए। जहां उन्हें महिलाओं की दशा आज भी आदिवासी जैसी दिखाई दी। खासकर मासिक धर्म के समय प्रयोग किए जाने वाले उपायों पर। लेकिन इस रिसर्च के दौरान आशीष पंत को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि आज भी गांव की 50 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म के दौरान गंदे कपड़े के टुकड़े प्रयोग करती हैं। इससे महिलाओं में कई तरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं।
अज्ञानता और पैसे बचाने के चलते महिलाएं कई बार माहवारी के समय सेनेटरी नैपकिन का प्रयोग नहीं करतीं। वे इस समय कपड़े का प्रयोग करना ही बेहतर समझती हैं, क्योंकि ऐसा करना उनके लिए आसान होता है। हालांकि ऐसा करते समय वे अनजाने में ही सही अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही होती हैं। यही वजह है कि महिलाएं कई तरह के संक्रमण की भी जल्दी शिकार हो जाती हैं। योनि में खुजली, पीला गाढ़ा स्राव, कभी- कभी हरे रंग के पानी का स्राव भी उनकी परेशानी का सबब बन जाता है। इस तरह के संक्रमण के बार-बार होने से कई बार महिलाएं बांझपन जैसी बीमारियों की भी शिकार हो जाती हैं। एक सर्वे में तो इस वजह से सर्वाइकल कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी होना बताया गया है। टाटा मेमोरियल सेंटर और राष्ट्रीय प्रजनन स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान ने महाराष्ट्र में महिलाओं के सेनिटरी पैड को इकट्ठा किया था। इसके अनुसार भारत में ज्यादातर महिलाएं पीरियड्स के दौरान सेनिटरी पैड की जगह कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि कपड़े का इस्तेमाल करने से पहले ना तो कपड़े को धोती हैं, न ही धूप में सूखाती हैं। इस वजह से कपड़े में जीवाणु पैदा हो जाते हैं। इसी को दोबारा इस्तेमाल करना न जाने कितनी बीमारियों को न्योता देता है। वैज्ञानिकों ने सेनिटरी पैड में लगे खून के धब्बे से एचपीवी इंफेक्शन की जांच की, जिसमें कई महिलाओं में एचपीवी पॉजिटिव पाया गया था, जो कि सर्वाइकल कैंसर के मुख्य कारकों में एक है।
इन सब कारणों के चलते छात्र आशीष पंत ने अपने साथियों के साथ मिलकर अल्मोड़ा में एक पैड बैंक खोला हैं। अल्मोड़ा के मिलन चौक के पास स्थित खम्पा मार्केट में सोच संस्था के ऑफिस में पैड बैंक खुला है, जरूरतमंद लड़कियां और महिलाएं यहां से सेनेटरी पैड मुफ्त में ले जा सकती हैं। सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक यह बैंक खुलता है। इस पैड बैंक में कई युवा छात्र- छात्राएं वॉलियंटर के रूप में कार्यरत हैं। जिनमें सोच संस्था के अध्यक्ष आशीष पंत के साथ ही राहुल जोशी, कल्पना, हिमांशी, दीपाली, प्रियंका, विधि शामिल हैं जो महिलाओं और किशोरियों को मासिक धर्म के चक्र में होने वाली समस्याओं से भी दूर करने के मूल मंत्र देती हैं। एक छात्रा दीपिका पुनेठा भी हैं जो योग के माध्यम से मासिक धर्म के चक्र में आई कमियों को दूर करने के उपाय बताती हैं। उक्त सभी इस अनोखे बैंक का काम संभालने के साथ ही गावों और स्कूलों में कैंप लगाकर महिलाओं और लड़कियों में जागरूकता करती हैं। ये सभी छात्र- छात्राएं गांव और शहर के आस-पास घरों में जाकर महिलाओं और किशोरियों को जागरूक करने के साथ ही उन्हें मुफ्त में सैनेटरी पैड देते हैं और इसके इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करते हैं।

अल्मोड़ा में पैड बैंक खोलने और गावों में जागरूकता अभियान चलाने की प्रेरणा कहा से मिली? इसके जवाब में इसी अभियान का एक हिस्सा राहुल जोशी बताते हैं कि एक दिन आशीष पंत को अध्यापक कल्याण मनकोटी मिले, उन्होंने पंत जी को बताया कि जब तक आपकी रिसर्च से समाज में बदलाव न आए तब तक आपकी रिसर्च का कोई फायदा नहीं। इस बात को चरितार्थ करते हुए ही पैड बैंक की गत एक मार्च को अल्मोड़ा में स्थापना की गई। हालांकि इससे पहले दिसंबर 2022 को एक गैर सरकारी संगठन सोच (सोसायटी फॉर अपॉर्चुनिटी क्रिएशन एंड कम्युनिटी हेल्थ केयर) की स्थापना कर इसके बैनर तले महिलाओं और छात्राओं में सेनेटरी पैड के प्रति जागरूकता लाने की शुरुआत की जा चुकी थी। पिछले तीन साल से इस अभियान में जुटे लोग हर महीने न केवल जागरूकता कैंप लगाते हैं बल्कि अब तक 50 हजार महिलाओं को निःशुल्क पैड वितरण भी कर चुके हैं। 14 फरवरी को दुनिया के अधिकतर लोग जहां वैलेंटाइन डे मनाते हैं, वहीं अल्मोड़ा में इस दिन को ‘पैड डे’ के रूप में मनाया जाता है। राहुल जोशी ने ‘पहाड़ एक्सप्रेस’ नाम से एक यू-ट्यूब चैनल भी बनाया हुआ है। जिसमें उन्होंने आशीष पंत के महिलाओं पर किए गए रिसर्च पर एक 25 मिनट की शॉर्ट फिल्म भी बनाई है। जिसमें वह फिल्म के माध्यम से महिलाओं को सेनिटरी पैड के लिए उत्साहित करते हैं और साथ ही समाज में बदलाव लाने के लिए संदेश देते नजर आते हैं।
‘सोच’ संस्था की सक्रिय कार्यकर्ता दीपिका पुनेठा की मानें तो पहाड़ में ज्यादातर लड़कियों को माहवारी आने से पहले इस प्रक्रिया के बारे में पता ही नहीं होता क्योंकि इस बारे में बात करना अच्छा नहीं माना जाता। यही वजह है कि कठिनता से भरे इन चार-पांच दिनों में उनकी बुनियादी जरूरत को पूरा करने पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। कल्पना की मानें तो जब वह कैंपेनिंग के दौरान गांव या फिर स्कूल में गईं तो पीरियड्स का नाम सुनकर छात्राएं और महिलाएं अपना सिर झुका ले रही थीं। सबसे ज्यादा दिक्कत ग्रामीण परिवेश में रहने वाली किशोरियों के साथ होती है। वह बताती हैं कि हम लोग स्कूलों और ग्रामीण इलाकों में माहवारी के दौरान स्वच्छता के प्रति किशोरियों- महिलाओं को जागरूक कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य सेनिटरी पैड के बारे में समाज में फैली झिझक को मिटाना और उन्हें मुफ्त में पैड मुहैया कराना है।
‘सोच’ संस्था की एक और कार्यकर्ता हिमांशी ने बताया कि हम लोग ग्रामीण इलाकों में रहने वाली गरीब और बीमारियां झेल रही महिलाओं को तलाश कर उन्हें सेनेटरी पैड बांटने का काम करते हैं। हम लोग स्कूलों में भी जाते हैं, क्योंकि वहां एक साथ बहुत-सी बच्चियां मिल जाती हैं। बच्चियों को समझाना बहुत आसान होता है। जब हमलोग गांव में गए तो पता चला कि बहुत से ग्रामीण इलाकों की महिलाएं सेनेटरी पैड के बारे में जानती ही नहीं थीं। वहां महिलाएं पीरियड के वक्त सिर्फ कपड़ा ही इस्तेमाल करती थीं। हम चाहते हैं कि महिलाओं में पीरियड से संबंधित बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़े। हमारे इस काम से बहुत-सी महिलाएं बेहद खुश हैं।
मासिक धर्म में मेरी माताजी खुद कपड़े प्रयोग करती थीं। उनको सरवाइकल कैंसर हुआ था। वह शायद कपड़े प्रयोग करने की वजह से ही हुआ था। आज हम 50 हजार से ज्यादा सेनेटरी पैड वितरित कर चुके हैं। कपड़े को त्यागकर सेनेटरी पैड प्रयोग करने के लिए हम महिलाओं और किशोरियों में जागरूकता करने के साथ ही मेंसटूवल कप के बारे में भी जानकारी दे रहे हैं। यह कप केवल 250 रुपए का आता है जो 10 साल तक मासिक धर्म में प्रयोग किया जाता है। लेकिन हमारे देश की महज 0.3 प्रतिशत महिलाएं ही इसका इस्तेमाल करती है।
आशीष पंत, अध्यक्ष ‘सोच’ संस्था
हमने जब बाड़ेछीना में पहला कैंप लगाया तो महिलाओं को मासिक धर्म के कपड़े के प्रयोग से होने वाली बीमारियों के बारे में पता ही नहीं था। एक बच्ची ने बताया कि उसने अपने फर्स्ट पीरियड में न्यूज पेपर प्रयोग किया था। जबकि दूसरी बच्ची ने बताया था कि उसकी मां ने उसे सेनेटरी पैड की बजाय कपड़ा प्रयोग में लाने को कहा था। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा था कि अगर वह दुकान से सेनेटरी पैड लाएगी तो लोगों को पता चल जाएगा कि उसको पीरियड शुरू हो गए हैं।
प्रियंका सैलाल, वॉलिंटियर ‘सोच’ संस्था
शोधार्थी आशीष पंत अपने शोध के विषय ‘माहवारी और स्वच्छता’ को लेकर मुझसे विमर्श कर रहे थे तो मैंने उन्हें बताया कि यह शोध तभी कारगर होगा जब इस शोध से महिलाओं के जीवन में बदलाव आयेगा। इस शोध के विषय को हकीकत में बदलने के लिए सीबीसी (कैपेसिटी बिल्डिंग सेंटर) अल्मोड़ा में एक व्यापक विमर्श हुआ और आशीष पंत और पूरी टीम बदलाव के इस विचार को हकीकत में बदलने की कार्ययोजना पर गंभीरता से कार्य करने लगी परिणामस्वरूप सेनिटरी पैड बैंक के रूप में आशीष का शोध महिलाओं के जीवन में बदलाव ला रहा है। मैं आशीष पंत और पूरी टीम को बदलाव के इन सामूहिक प्रयासों के लिए हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं देता हूं।
कल्याण मनकोटी, अध्यापक अल्मोड़ा