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Uttarakhand

सौन्दर्यीकरण के नाम पर एक और खेल

त्रिवेंद्र सिंह रावत राज में भ्रष्ट अधिकारियों के हौसले कुछ ज्यादा ही बुलंद हैं। अपने कारनामों पर पर्दा डालने के लिए वे मानवाधिकार आयोग तक को गुमराह कर देते हैं। जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को तो कुछ समझते ही नहीं। नतीजा यह है कि देहरादून शहर के सौंदर्यीकरण की योजना खुद बड़ा खेल होने की कहानी बयां कर रही है। भ्रष्टाचार को लेकर सवाल उठे, तो संबंधित विभाग एक-दूसरे के सिर ठीकरा फोड़ते रहे हैं। योजना की दुर्गति से स्थानीय लोगों की जान को खतरा हुआ तो मानवाधिकार आयोग ने मामले को गंभीरता से लिया। इस पर भी आयोग को गुमराह किया गया
शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए सरकार करोडों रुपये खर्च कर रही है। लेकिन विभागीय अधिकारी इसमें बड़ा खेल करने में जुटे हुए हैं। कुछ माह पूर्व ‘दि संडे पोस्ट’ ने करोडों की लागत से निर्मित राजपुर रोड सौंदर्यीकरण योजना में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था।  सत्ताधारी पार्टी भाजपा के दो विधायकांे ने योजना में सीधे-सीधे बड़ा भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग तक सरकार से की थी। लेकिन लगता है कि सरकार भ्रष्टाचार और घोटालेबाजों पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है जिसके चलते नए-नए कारनामे सामने आ रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इन मामलों में राज्य के मानवाधिकार आयोग तक को गुमराह करने का दुस्साहस विभागीय अधिकारी कर रहे हैं। सूचना अधिकार के तहत मामला सामने आया है जिसमें मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण यानी एमडीडीए ने मानावाधिकार आयोग को गुमराह करने के लिए झूठा जवाब देने से भी गुरेज नहीं किया है, जबकि इसके चलते जनहानि की पूरी आशंकाएं बनी हुई हैं।
देहरादून में राजपुर और चकराता रोड के सौंदर्यीकरण के लिए लाखांे की लागत के कास्ट आयरन के डेकोरेटिव पोल लगाए गए। इन पोलों में विद्युत संयोजन करने के बाद कास्ट आयरन के ढक्कनों को नहीं लगाया गया जिसके चलते बिजली की नंगी तारें बाहर लटक रही हैं। इससे कभी भी कोई बड़ी जनहानि हो सकती है। इसको देखते हुए देहरादून के समाज सेवी और देवभूमि जन सेवा समिति के राजेंद्र सिंह नेगी ने कई बार विभाग को शिकायत की, लेकिन हर बार उनकी शिकायतों को रद्दी की टोकरी में डाला जाता रहा। यहां तक कि नेगी को गुमराह करने के लिए एमडीडीए और नगर निगम दोनों ही एक-दूसरे के सिर सारा ठीकरा फोड़ने का काम करते रहे। आखिरकार थक-हार कर राजेंद्र सिंह नेगी ने सूचना के अधिकार के तहत इस योजना की पूरी जानकारी मांगी। इसमें पता चला कि योजना में कितनी खमियां रही हैं, लेकिन विभाग ने उन पर ध्यान नहीं दिया।
सूचना अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार देहरादून शहर के सौंदर्यीकरण के लिए राजपुर रोड तथा चकराता रोड पर कास्ट आयरन के स्ट्रीट पोल लगाए गए। इन पोलों से बिजली के कनेक्शन दिए गए, लेकिन उन सभी में कनेक्शन के डिब्बों में कास्ट आयरन के ढक्कन कंपनी ने नहीं लगाए। एमडीडीए ने भी इसका भौतिक निरीक्षण नहीं किया और कार्यदायी कंपनी को भुगतान कर दिया गया।
दरअसल, सारा मामला देहरादून नगर के सौंदर्यीकरण की येाजना को लेकर सामने आया है। वर्ष 2012 में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण ने चकराता रोड ओैर राजपुर रोड में  स्ट्रीट
लाइटों के लिए कास्ट आयरन के डेकोरेटिव पोल लगाए। स्ट्रीट लाइट के प्रति पोल की लागत 48 हजार ओैर एक लाइट की कीमत 12 हजार का खर्च कर नगर का सौंदर्यीकरण किया गया। इन पोलांे में बेहद खूबसूरत लाइटें लगाई गई। पोलांे में विजली के कनेक्शन दिए गए, लेकिन इन कनेक्शन देने के लिए बनाए गए स्विच बोर्डों को खुला ही छोड़ दिया गया, जबकि नियमानुसार सभी पोलों को बिजली के कनेक्शन के बाद स्विच बोर्ड को बंद करना जरूरी है। इसके बावजूद तकरीबन सभी पोलों को खुला ही छोड़ दिया गया। इसके चलते कभी भी करंट फेैल सकता है और मानव जीवन को खतरे में पड़ जाएगा।
एमडीडीए राजपुर रोड के सौंदर्यीकरण योजना में विद्युत पोलांे के कनेक्शन के लिए लगाए जाने वाले बोलार्ड तक में बड़ा घोटाला कर चुका है। राजपुर रोड में 116 विद्युत पोलों के लिए लगाए जाने वाले बोलार्ड में से महज तीन बोलार्ड बचे हुए हंै। इस मामले में भी एमडीडीए ने अपना पल्ला झाड़ने के लिए सभी बोलार्डों की चोरी होने की बात कही है। हैरानी इस बात की है कि इन स्ट्रीट लाइटों के विद्युत कनेक्शन के लिए बनाए गए बाॅक्स के कास्ट आयरन के ढक्कनों के भी चोरी होने की बात एमडीडीए कर रहा है, जबकि इसके लिए पुलिस में शिकायत किए जाने का एक भी पत्र एमडीडीए प्रस्तुत नहीं कर पाया है। साफ है कि अपने बचाव के लिए प्रधिकरण चोरी होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ रहा है।
गौर करने वाली बात यह है कि 2012 में लगाई गई इन स्ट्रीट लाइटों ने शायद ही कभी उजाला किया हो। जुलाई 2017 में
देहरादून नगर निगम को सौंपने के बाद कुछ स्ट्रीट लाइटें आरंभ हुई और अभी तक इन पर काम चल रहा है। नगर निगम को आधी-अधूरी योजना सौंपने के बाद एमडीडीए गहरी नींद में सो गया और धीरे-धीरे इन स्ट्रीट लाइटों के पोल या तो क्ष्तिग्रस्त होते चले गए या वे गायब होते चले गए।
राजेंद्र नेगी ने नगर निगम से सूचना मांगी तो जानकारी मिली कि क्षतिग्रस्त स्ट्रीट लाइट के पोलों की संख्या 4 है और गायब स्ट्रीट लाइट के पोलों की संख्या 10 है। 8 ऐसे पोल हंै जिनकी लाइटें पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी हंै। यही नहीं नगर निगम के भौतिक निरीक्षण में पाया गया है कि 96 ऐसे स्ट्रीट लाइट के पोल हंै जिनके विद्युत कनेक्शन के बाॅक्स के ढक्कन गायब हैं। इससे यह तो साफ हो गया है कि एमडीडीए ने आधी-अधूरी योजना को नगर निगम के ऊपर लादकर अपना पल्ला झाड़ने का काम किया है। यही नहीं अपने बचाव के लिए मानवाधिकार आयोग तक को गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
एमडीडीए को लाखों की लागत से बनी योजना की दुर्गति पर जब राजेंद्र सिंह नेगी द्वारा शिकायतंे की गई तो एमडीडीए प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। इस पर नेगी ने इस पूरे मामले को
मानवाधिकार आयोग के समक्ष रखा ओैर स्ट्रीट लाइट की बदहाली से मानव जीवन से बड़ा खिलवाड़ करने का आरोप लगाते हुए वाद दाखिल किया।
6 नवंबर 2017 को राजेंद्र सिंह नेगी ने मानवाधिकार आयोग में शिकायत दाखिल की जिसमें नेगी ने पूरे प्रकरण में गंभीर
लापरवाही बरतने की बात लिखते हुए नंगी तारों से होने वाली जनहानि की आशंका को प्रमुखता से लिखा। उत्तराखण्ड
मानवाधिकार आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लिया। आयोग में दर्ज वाद संख्या 1675 2017 के तहत 19 मार्च 2018 नगर निगम तथा एमडीडीए को सुनवाई के लिए आदेश पत्र जारी किया गया। जिसमें उनका पक्ष मांगा गया।
मानवाधिकार आयोग द्वारा मामले को संज्ञान में लेने की खबर से एमडीडीए के अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए और अपने बचाव के लिए मानवाधिकार आयोग को अपना पक्ष पत्रांक संख्या 3944/ 2017-18 दिनंाक 7 फरवरी के माध्यम से दिया। इसमें आयोग को दी गई जानकारी के अनुसार सभी क्षतिग्रस्त पोलों को ठीक करवाए जाने ओैर सभी स्ट्रीट लाइट के पोल की बिजली के कनेक्शन के लिए कास्ट आयरन के ढक्कनों को लगाकर ठीक करने की बात कही गई। मानवाधिकार आयोग को भेजा गया एमडीडीए का पक्ष पूरी तरह झूठा साबित हुआ है। न तो एमडीडीए द्वारा स्ट्रीट लाइट के पोलों को सही किया गया है और न ही कास्ट आयरन के ढक्कनों को लगाया गया है।
हैरानी की बात यह है कि 7 फरवरी 2018 को दिए गए शपथ पत्र में एमडीडीए सभी स्ट्रीट लाइट  के पोलों को ठीक करवाने की बात कर रहा है, लेकिन आज तक एक भी पोल सही नहीं किया गया है। इसका खुलासा स्वयं नगर निगम के लाइनमैन द्वारा सूचना में दी गईं जानकारी से साफ हो गया है कि आज भी
क्षतिग्रस्त स्ट्रीट लाइट के पोलों की संख्या 4 है ओैर गायब स्ट्रीट लाइट के पोलों की संख्या 10 है। 8 ऐसे पोल हैं जिनकी लाइटें पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है। यही नहीं नगर निगम के भौतिक निरीक्षण में पाया गया है कि 96 ऐसे स्ट्रीट लाइट के पोल हंै जिनके विद्युत कनेक्शन के बाॅक्स के ढक्कन गायब हैं। इससे यह साफ हो गया है कि एमडीडीए ने मानवाधिकार आयोग को झूठा पत्र देकर गुमराह किया है।
एमडीडीए के खेल की जानकारी राजेंद्र सिंह नेगी को मिली तो उन्होंने फिर से मानवाधिकार आयोग को शिकायत की कि एमडीडीए ने कोई कार्यवाही नहीं की।  इस पर आयोग ने फिर से वाद संख्या 1675 के तहत एमडीडीए को नेाटिस जारी करते हुए मामले की सुनवाई 25 अप्रैल 2019 को तय की। वर्तमान में सुनवाई चल रही है और अब देखना है कि मानवाधिकार आयोग को गुमराह करने के कारनामे पर आयोग क्या कार्यवाही करता है। नगर निगम अब इन स्ट्रीट लाइट के पोलों के रखरखाव के लिए टेंडर निकाल चुका है। चर्चा है कि अब नगर निगम इन सभी के मरम्मत और रखरखाव के लिए मोटी धनराशि खर्च करने वाला है, जबकि इसकी पूरी जिम्मेदारी एमडीडीए की है।
संबंधित विभागों से नहीं मिल पा रहा पक्ष
‘दि संडे पोस्ट’ ने जब सौंदर्यीकरण योजना को लेकर संबंधित विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों और मानवाधिकार आयोग से पक्ष जानना चाहा तो कहीं से भी बात नहीं हो पाई। किसी ने टालने वाला रवैया अपनाया तो किसी ने फोन रिसीव नहीं किया। किसी का फोन अउट आॅफ रीच रहा।
‘दि संडे पोस्ट’ द्वारा पूछे जाने पर मानवाधिकार आयोग के सक्षम अधिकारी का कहना है कि मानवाधिकार आयोग किसी भी प्रकरण में मीडिया या अन्य संस्थानांे को किसी तरह का कोई बयान नहीं देता। आयोग द्वारा जारी किए गए आदेश या
नोटिस पर संबंधित व्यक्ति या संस्था ही बयान दे सकती है। आयोग का जवाब केवल उसका आदेश होता है।
नगर आयुक्त नगर निगम देहरादून विनय शंकर पाण्डे के मोबाइल नंबर 7409489237 पर दो दिनों से लगातार काॅल जाती रही। मोबाइल पर संदेश और व्हाटसएप संदेश भी भेजा गया, लेकिन पाण्डे जी ने न तो किसी संदेश का जबाब दिया और न ही फोन उठाया। विनय श्ंाकर पाण्डे जी पूर्व में भी बयान देने से परहेज करते रहे हैं। राजपुर रोड सौंदर्यीकरण योजना के समाचार पर भी चार दिनों तक लगातार मैसेज पर मैजेस और काॅल किया गया तो तब जाकर उन्होंने संक्षिप्त जबाब दिया था।
एमडीडीए के वर्तमान सचिव गिरीश गुणवंत के मोबाइल नंबर 9410929675 पर कई बार काॅल की गई है, लेकिन बात नहीं हो पा रही है। यह नंबर आउट आॅफ रीच बता रहा है। सचिव महोदय की सहायक सुषमा अरोड़ा से फोन पर बात होने पर ज्ञात हुआ है कि गुणवंत जी का फोन खराब है और वे देहरादून से बाहर हैं। जब वे आएंगे तो ही बात हो पाएगी। इसके अलावा एमडीडीए के पूर्व सचिव पीसी दुमका मोबाइल नंबर 9927817771 जिनके कार्यकाल में  उत्तराखण्ड मानवाधिकार आयोग को गुमराह करने के लिए झूठा जबाब दिए जाने का मामला था, वे भी दो दिन से लगातार फोन करने और संदेश भेजे जाने के बावजूद बात नहीं कर रहे हैं। संबंधित समाचार के मामले में पीसी दुमका जी की ही भूमिका रही है।
बात अपनी-अपनी
एमडीडीए में भ्रष्टाचार इस कदर पनप चुका है कि आज वह मानावधिकार आयोग तक को गुमराह कर रहा है कि उसके द्वारा सभी स्ट्रीट लाइटांे और पोलों को ठीक करवा दिया गया है, जबकि आज भी स्थिति जस की तस ही बनी हुई है। मानवाधिकार आयोग भी एमडीडीए पर कठोर कार्यवाही करने से बच रहा है, जबकि आज भी सभी स्ट्रीट लाइटांे के पोलों में बिजली की नंगी तारंे लटक रही हंै। उनमें ढक्कन गायब हो चुके हैं। 2012 में लगाए गए इन स्ट्रीट लाइटों के पोलों में लाइट तक नहीं जली है। जनता के पैसों से लाखों रुपये की लागत से ये स्ट्रीट लाइटें लगाई गई हैं। एमडीडीए अपनी कमी को छुपाने के लिए ढक्कनांे को चोरी होने की बात कर रहा है। लेकिन चोरी की एक भी शिकायत पुलिस में नहीं की है। इससे साफ हो जाता है कि एमडीडीए प्रशासन पूरी तरह से घोटाले मंे डूबा हुआ है।
राजेंद्र सिंह नेगी, अध्यक्ष देवभूमि जन सेवा समिति

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