मौजूदा समय में उत्तराखण्ड की नौकरशाही में बड़ा विरोधाभाष दिखाई दे रहा है। एक तरह से राज्य में नौकरशाहों के रिटायर्मेंट के बाद मनमाफिक पुनर्वास के चलते कई ऐसे नौकरशाही रहे हैं जो रिटायर्मेंट के अंतिम वर्षों में उत्तराखण्ड में आने के लिए जुगड़ा भिड़ाकर आने में सफल रहे हैं तो वहीं कई वरिष्ठ नौकरशाहों का प्रदेश से ही मोहभंग होने लगा है जिससे वे वीआरएस लेकर प्रदेश से विदा हो रहे हैं। वरिष्ठ आईएएस भुपेंद्र कौर औलख के द्वार वीआरएस लेकर विदा होने का मामला फिर से चर्चाओं में है। जिसमें सरकार उनके वीआरएस का मंजूर कर लिया है जिससे औलख के राज्य की सेवाओं से विदाई तय हो चुकी है।

1997 बैच की आईएएस भुपेंद्र कौर औलख द्वारा वीआएस लेने के मामले में राज्य की नौकरशाही में कई तरह के कयासों की चर्चाएं हो रही हंै। माना जा रहा है कि औलख यूएनडीपी में तैनाती पाने के लिए ही वीआरएस लिया है। चर्चा है कि केंद्र सरकार से अनुमति न मिलने के कारण औलख को वीआरएस लेने का निर्णय लेना पड़ा। लेकिन इसमें यह भी चर्चा है कि औलख की यूनओ में नियुक्ति का मामला तीन वर्ष पुराना है और इसके लिए अचानक वीआरएस लेने से और भी कयास लगाए जा रहे हैं।
भुपेंद्र कौर औलख के वीआरएस के मामले से राज्य की नौकरशाही में हुए हलचल की बात करें तो कई वरिष्ठ नौकरशाह वीआरएस ले चुके हैं। कुछ ही माह पूर्व राज्य के वरिष्ठ नौकरशाह डाॅक्टर राकेश कुमार को संयुक्त राष्ट्र में नई तैनाती के लिए वीआरएस मिल चुका है। बताया जाता है कि केंद्र सरकार द्वारा डाॅक्टर राकेश कुमार को अनुमति नहीं दी गई थी जिसके चलते उन्होंने वीआरएस लिया था।

डाॅक्टर राकेश कुमार एक लंबे समय के लिए केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर थे। इसी वर्ष उनको उत्तराखण्ड के लिए रीलीब किया गया तो उन्होंने उत्तराखण्ड आने के बाजाय वीआरएस लेकर संयुक्त राष्ट्र में नई नियुक्ति लेना बेहतर समझा।

इसी तरह वरिष्ठ आईएएस उमाकांत पंवार ने अचानक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सबको चैंका दिया था, जबकि उमाकांत पंवार की सेवानिवृत्ति में कई वर्ष शेष थे और शासन-सत्ता में उनकी पकड़ सबसे मजबूत मानी जाती रही है। प्रमुख सचिव गृह के पद पर तैनात रहे उमाकांत पंवार ने भी वीआरएस लिया लेकिन कुछ समय बाद राज्य सरकार उन्हें नया विभाग बनाकर तैेनाती भी दी, पंरतु पंवार ने फिर से वह भी छोड़ दिया। हालांकि मौजूदा सरकार ने फिर से उमाकांत का पुनर्वास करते हुए स्वास्थ्य सलाहकार के पद पर तेैनात कर दिया है।
अब भुपेंद्र कौर औलख के वीआरएस लेने के पीछे कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। खास तौर पर सोशल मीडिया में नौकरशाहों के राज्य की सेवाओं से मोहभंग होने के पीछे तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे हैं, जबकि आकर्षक पद और शासन की ताकत होने के बावजूद क्या कारण रहा कि नौकरशाह राज्य से अपना मोह नहीं रख पा रहे हैं। कई नौकरशाह सेवानिवृत्ति के बाद मनमाफिक पुनर्वास के चलते राज्य में आने को आतुर भी है। यही बड़ा सवाल है जो विरोधाभाष दिख रहा है।
आरटीआई एक्टिविस्ट चंद्रशेखर करगेती अपनी सोशल मीडिया वाॅल पर भुपेंद्र कौर औलख के वीआरएस लेने के मामले में नौकरशाह राजनीतिक और शासन के दबाब के बीच फंसने की बात कहकर इस मामले को शासन स्तर में बन रही व्यवस्था बता रहे हैं। बताते चलें कि चंद्रशेखर करगेती के ही प्रयायों के चलते बहुचर्चित करोड़ों के छात्रवृत्ति घोटाले का खुलासा हो पाया है। इस मामले में नौकरशाही पर भारी दबाब बनाए जाने की चर्चाएं भी सामने आ चुकी हैं।
भुपेंद्र कौर औलख के बारे में कहा जाता है कि इस घोटाले में उनके द्वारा सभी दबावों के बावजूद कार्यवाही करने का काम उन्होंने किया था जिसका परिणाम यह हुआ कि उनको विभाग से ही हटा दिया गया। इसके बाद औलख खासी नाराज रही और अपनी उपेक्षा, बेहतर काम करने के बावजूद विभाग से हटाए जाने से वे इतना विचलित हुई कि लंबे समय के लिए अवकाश पर चली गई। इस अवकाश को उनकी नाराजगी और शासन-सत्ता में अधिकारियों पर दबाव बनाने, चहेतों को मनमाफिक पोस्ट देने के तौर पर भी देखा गया।
अब राज्य की शासन व्यवस्था पर गंभीर सवाल खडे़ हो रहे हैं। पहले ही राज्य में अधिकारियों की भारी कमी बनी हुई है लेकिन बेहतर काम करने वाले नौकरशाहों के मोहभंग होने से आने वाले समय में राज्य के हालात खराब हो सकते हैं। माना जा रहा है कि अभी केवल भुपेंद्र कौर औलख का मामला सामने आया है लेकिन कई ऐसे नौकरशाह भी लाईन में हैं जिनका मोह राज्य की शासन व्यवस्था से भंग हो चुका है। एक आईपीएस अधिकारी के वीआरएस लेने के लिए आवेदन करने की चर्चाएं तो सामने आ चुकी है।
यह मामला कोई अचानक सामने आया हो ऐसा भी नहीं है। नोैकरशाही और सत्ता के गठजोड़ चलते कई बार नौकरशाहों के बीच विवाद और खटास के मामले सामने आ चुके हैं। कुछ ऐसे नौकरशाह हैं जिनको कई बड़े और अति महत्वपूर्ण विभाग दिए गए हैं तो कई ऐसे भी हंेै जो एक ही पद पर तैनात हैं। अगर दो से ज्याद विभाग हैं भी तो वह उतने महत्वपूर्ण नहीं है। विभाग के बंटवारे को लेकर आईएएस और पीसीएस अधिकारियों के बीच विवाद भी सामने आ चुका है।
माना जा रहा है कि शासन और सत्ता में जो जितना मजबूत और मेल-मिलाप वाला नौकरशाह होगा उसके लिए उतने ही रास्ते बनते जाते हंै, जबकि जो इनके साथ ताल नहीं बैठा पाता उसके लिए सीमित रास्ते रहते हैं।
यह कयास कुछ हद तक सही नजर आता है। जो अधिकारी प्रतिनियुक्ति से लौटकर प्रदेश में आता है उसकी राह में कांटे बोेये जाने की चर्चाएं भी खूब होती रही है। पूर्व में उत्तराखण्ड कैडर के आईएएस अजय जोशी ने प्रदेश में अपनी वापसी करवाई लेकिन उनको किसी पद का आवंटन तक नहीं किया गया, जबकि अजय जोशी वरिष्ठतम आईएएस अधिकारी थे। माना जा रहा था कि उनकी वरिष्ठता उनको मुख्य सचिव पद के लिए थी जो कि कई नौकरशाहों को नागवार गुजर रही थी। हार कर अजय जोशी वापस उत्तर प्रदेश चले गए और वहीं से सेवानिवृत्त हुए।
इसी तरह उत्तराखण्ड एक और आईएस अधिकारी सचिन कुर्वे भी लंबे समय के लिए उत्तराखण्ड से बाहर रहे लेकिन जब उनकी वापसी हुई तो उनको पोस्टिंग नहीं मिल पाई। आखिरकार कुर्वे अपनी तेैनाती उत्तराखण्ड से बाहर महाराष्ट्र में करवाने में सफल रहे।
अगर इसी तरह काम करने वाले नौकरशाहों का राज्य की सेवाओं से मोहभंग होता रहा तो प्रदेश की शासन व्यवस्था बिगड़ सकती है। भुपेंद्र कौर औलख द्वारा किस लिए वीआरएस लिया गया है यह तो शायद ही सामने आ पाए लेकिन इस मामले ने शासन व्यवस्था और नौकरशाही के बीच सुलग रहे कई मामलों को हवा देने का काम तो कर ही दिया है।