[gtranslate]
Uttarakhand

भाजपा-शिवसेना के टूटे तार

भाजपा और शिवसेना आज राजनीतिक कटुता के ऐसे मोड़ पर हैं कि भविष्य में दोनों के साथ आने की संभावनाएं पूरी तरह खत्म हो चुकी हैं। हिंदुत्व के एजेंडे पर भी उनके एक होने की संभावनाएं नहीं बची

भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना दोनों पार्टियों को लेकर माना जाता रहा है कि आज के राजनीतिक हालात बेशक दोनों को अलग-अलग कर चुके हों, लेकिन देर-सबेर हिंदुत्व के मुद्दे पर ये दोनों दक्षिणपंथी पार्टियां एक साथ आ सकती हैं। लेकिन महाराष्ट्र के ताजा घटनाक्रम ने इन दोनों पार्टियों के बीच इस कदर खटास पैदा कर दी है कि भविष्य में इनके टूटे तारों के जुड़ने की जरा भी संभावनाएं दिख नहीं रही।

एक समय था जब शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे कहा करते थे कि केंद्र के लिहाज से भाजपा बड़े भाई की भूमिका में है, मगर महाराष्ट्र में शिवसेना बड़ा भाई है। हिंदुत्व के एजेंड़े पर दोनों पार्टियां महाराष्ट्र में मिलकर सरकार चलाती रही हैं तो केंद्र में शिवसेना भाजपा को समर्थन देती रही है। पिछले दिनों महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में अगर उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के सामने एक स्कार्पियो में विस्फोटक सामग्री न मिलती तो शायद दोनों के बीच इतनी कटुता न पैदा होती। मामला आगे बढ़ा तो आघाड़ी सरकार ने इसकी जांच एटीएस से करने के आदेश कर दिए। जांच का जिम्मा एक विवादास्पद पुलिस आॅफिसर को दे दिया गया। जिसका नाम सचिन वाझे है। सचिन वाझे एक तथाकथित एनकाउंटर के मामले में 16 साल तक नौकरी से निलंबित रहे थे। कुछ दिनों पहले ही उन्हें नौकरी पर दोबारा से लिया गया। उन्हें विस्फोटक सामग्री मिलने एवं अंबानी परिवार की सुरक्षा के मामले की जांच का इंचार्ज बना दिया गया।

एटीएस किसी नतीजे पर पहुंचती इससे पहले ही केंद्र सरकार ने मामला एनआईए को सौंप दिया। भाजपा और शिवसेना के बीच पहली तकरार यहीं से शुरू हुई। शिवसेना सरकार ने इसका विरोध किया और कहा कि इस मामले की जांच एटीएस कर रही थी तो एनआईए क्यों भेजी गई। शिवसेना ने भाजपा पर आरोप लगाया कि जांच को प्रभावित करने के लिए केंद्र ने एनआईए को महाराष्ट्र भेज दिया। दरअसल, भाजपा को महाराष्ट्र की एटीएस पर निष्पक्ष जांच का यकीन नहीं था। जिसके चलते एनआईए को इस प्रकरण की जांच के लिए भेजा गया। इससे पहले कि महाराष्ट्र एटीएस कोई खुलासा करती प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कई रहस्यों से पर्दा उठाने का दावा किया। जिसमें पहला पक्ष क्राइम ब्रांच के आॅफिसर और इस मामले की जांच कर रहे सचिन वाझे तथा मुख्य चश्मदीद गवाह मनसुख हीरेन (जिनकी बाद में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई) का आपसी संबंध उजागर करना। पूर्व मुख्यमंत्री ने दोनों की बातचीत के वह अंश भी सामने रख दिए जिसमें सचिन वाझे मनसुख हीरेन से यह कहते सुने गए कि वह सरेंडर कर दे। एक-दो दिन में उसकी बेल करवा देंगे। मनसुख हीरेन के सरेंडर करने से पहले ही उसकी सदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई।

इसके बाद एक के बाद एक नए खुलासे होते चले गए। महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारी सचिन वाझे की मृतक मनसुख से संलिप्ता के मामले पर शिवसेना सरकार घिरती चली गई। बाद में इस मामले में मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह को हटा दिया गया। इसके बाद लड़ाई सड़कों पर आ गई। परमवीर सिंह ने एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर सचिन वाझे के जरिए 100 करोड रुपए अकेले मुंबई शहर से वसूली के आरोप लगाए। परमवीर सिंह का यह पत्र सामने आते ही महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया। शिवसेना अपने गृह मंत्री अनिल देशमुख को लेकर सवालों के घेरे में आ गई। यहां तक कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भी कहा कि वह इस मसले को गंभीरता से लेंगे, हालांकि बाद मंे उनके सुर बदल गए। जिससे पवार भी विपक्ष के निशाने पर आ गए। मुंबई के पूर्व कमिश्नर परमजीत सिंह के पत्र में लिखी बातों को लेकर भाजपा ने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। भाजपा ने अघाडी सरकार को ‘वसूली सरकार’ कहते हुए गृह मंत्री का इस्तीफा मांग लिया । इसी के साथ ही इस मामले की जांच सीबीआई से कराने के लिए पूर्व कमिश्नर परमजीत सिंह न्यायालय में चले गए। इसके बाद शिवसेना ने गुजरात के पूर्व आईपीएस आॅफिसर संजीव भट्ट के बहाने मोदी पर वार शुरू किया है।

शिवसेना की दलील है कि जब महाराष्ट्र में एक आईपीएस के पत्र पर राज्य के गृह मंत्री दोषी ठहराए जा सकते हैं तो फिर गुजरात में भी पूर्व में एक आईपीएस संजीव भट्ट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराया था। अगर महाराष्ट्र में एक आईपीएस के कहने से राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख दोषी हैं, तो फिर गुजरात के आईपीएस संजीव भट्ट के कहे अनुसार प्रधानमंत्री मोदी भी दोषी मान लिये जाने चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी पर हमला कर शिवसेना ने साफ कर दिया है कि भविष्य में अब भाजपा के साथ चलने की कोई संभावनाएं नहीं हैं। दोनों के तार टूट चुके हैं।

कौन हैं संजीव भट्ट 
संजीव भट्ट 1999 से 2002 तक गुजरात की राज्य खुफिया ब्यूरो में खुफिया उपायुक्त के पद पर कार्यरत थे। तब प्रदेश के आंतरिक मामले उनके ही अधीन थे। उस दौरान संजीव भट्ट प्रदेश के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिय आइपीएस आॅफिसर हुआ करते थे। साल 2011 में संजीव भट्ट को 2002 के दंगों की जांच कर रहे जस्टिस नानावटी और जस्टिस मेहता कमीशन के सामने एक गवाह के रूप में बुलाया गया था। जहां उन्होंने सनसनीखेज खुलासा किया था। संजीव भट्ट ने मार्च 2011 में हलफनामा दायर कर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर गंभीर आरोप लगाए थे। गोधरा कांड के बाद 27 फरवरी 2002 की शाम मुख्यमंत्री के आवास पर हुई एक सुरक्षा बैठक में वह मौजूद थे। इसमें मोदी ने पुलिस अधिकारियों से कहा था कि हिंदुओं को अपना गुस्सा उतारने का मौका दिया जाना चाहिए। इस हलफनामे में उन्होंने यह भी कहा था कि गुजरात में वर्ष 2002 में हुए दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) पर उन्हें भरोसा नहीं है।

गुजरात हाई कोर्ट को दिए एक दूसरे हलफनामे में संजीव भट्ट ने दावा किया था कि 2003 के जेल सुपरिटेंडेंट रहते हुए उनके हाथ ऐसे सबूत लगे थे जिनका इशारा इस बात की तरफ था कि पंड्या की हत्या के पीछे गुजरात के सीनियर नेता और पुलिस अफसर थे। भट्ट का यह भी कहना था कि जब उन्होंने यह सबूत गुजरात के गृह मंत्रालय को भेजे तो अमित शाह ने उन्हें फोन करके सबूत नष्ट करने को कहा था। संजीव भट्ट ने गुजरात में कथित फर्जी मुठभेड़ों में अमित शाह का हाथ होने की बात कही थी। लेकिन यह आरोप अदालत में सिद्ध नहीं हुए थे। इसके बाद सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने के आरोप में वर्ष 2011 में संजीव भट्ट को निलंबित किया गया। 30 सितंबर 2011 को उनको घर से गिरफ्तार किया गया। यह गिरफ्तारी उनके मातहत काम कर रहे एक कांस्टेबल केडी पंत की ओर से दर्ज पुलिस रिपोर्ट के आधार पर की गई।

जिसमें भट्ट पर आरोप लगाए गए कि उन्होंने दबाव डालकर मोदी के खिलाफ हलफनामा दायर करवाया। 19 अगस्त 2015 में एक सेक्स वीडियो को लेकर भट्ट को पहले गुजरात सरकार ने कारण बताओ नोटिस जारी किया और फिर बर्खास्त कर दिया। 5 सितंबर 2018 को उन्हें सीआईडी ने गिरफ्तार किया। तब संजीव भट्ट पर आरोप लगा कि भट्ट जब बनासकांठा के डीसीपी थे उस वक्त उन्होंने एक वकील को नारकोटिक्स के झूठे केस में फंसाया। 20 जून 2019 को जामनगर कोर्ट ने 30 साल पहले हिरासत में हुई मौत के एक मामले में संजीव भट्ट को दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई। 1990 में भारत बंद के दौरान जामनगर में हिंसा हुई थी । तब संजीव भट्ट यहां के एसएसपी थे । हिंसा को लेकर पुलिस ने 100 लोगों को गिरफ्तार किया था । इनमें से प्रभूदास माधव जी की अस्पताल में मौत हो गई थी। प्रभु दास के भाई अमरूत दास माधव जी वैष्णवी ने भट्ट के खिलाफ मुकदमा किया था। जिसमें उन्होंने हिरासत में प्रताड़ना के आरोप लगाए थे।

तब भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने कहा था कि गिरफ्तार किए गए 133 लोगों में मृतक और उसका भाई संजीव भट्ट या उनके स्टाफ की हिरासत में नहीं थे। इनमें से किसी से भी संजीव भट्ट या उनके स्टाफ ने पूछताछ नहीं की थी। तब 30 अक्टूबर 1990 में जब स्थानीय पुलिस ने नजदीकी मजिस्ट्रेट के सामने इन लोगों को हाजिर किया था तो मृतक प्रभु दास माधव जी वैष्णवी या अन्य गिरफ्तार 133 लोगों ने किसी भी तरह के टाॅर्चर या कोई और अन्य शिकायत नहीं की थी। हिरासत में टाॅर्चर की शिकायत प्रभु दास माधव जी वैष्णवी की मौत के बाद अमृतलाल माधव जी ने दर्ज कराई थी जो कि विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी के सक्रिय सदस्य थे।

You may also like

MERA DDDD DDD DD
bacan4d toto
bacan4d toto
Toto Slot
slot gacor
slot gacor
slot toto
Bacan4d Login
bacan4drtp
situs bacan4d
Bacan4d
slot dana
slot bacan4d
bacan4d togel
bacan4d game
slot gacor
bacan4d login
bacantoto 4d
toto gacor
slot toto
bacan4d
bacansport
bacansport
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot gacor
slot77 gacor
Bacan4d Login
Bacan4d toto
Bacan4d
Bacansports
bacansports
slot toto
Slot Dana
situs toto
bacansports
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot gacor
bacan4d
bacan4d
bacan4d online
bandar slot
bacan4d slot toto casino slot slot gacor