जीरो टाॅलरेंस का दावा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के राज में बने करोड़ों रुपए के पुल धराशायी हो गए। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने या जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हुई। हैरानी की बात यह है कि लोक निर्माण विभाग के जिन चेयरमैन के कार्यकाल में पुल क्षतिग्रस्त हुए उन्हें आज नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के शासन में भी तीन माह का सेवा विस्तार दे दिया गया है
भाजपा की पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र रावत सरकार के दौरान बने करोड़ों के पुल धराशायी हो गए हैं। इससे साफ हो गया है कि त्रिवेंद्र राज में निर्माण कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार का खेल खेला जा रहा था। देहरादून में थानो रायपुर मार्ग में 40 करोड़ की लागत से बनाए गए तीन फ्लाईओवर पुलों में से सबसे लंबे स्पाम वाले बड़ासी पुल की एप्रोच दीवार ढह गई, जबकि पिछले वर्ष इसी मार्ग पर स्थित भोपालपानी सेतु की दीवार में भी दरार आ चुकी थी। हालांकि अब तीरथ सरकार त्रिवेंद्र सरकार के कारनामों को साफ करने के लिए जांच करने और निलंबन की कार्यवाही कर रही है, लेकिन निलंबन में भी विभागीय स्तर पर बड़ा खेल किया जा रहा है। जिस अधिकारी के कार्यकाल में इन पुलों का निर्माण या यूं कहें कि कोई जिम्मेदारी ही नहीं थी उसे भी शासन स्तर से निलंबित कर दिया गया है। इसके चलते शासन औेर विभागीय स्तर पर हो रही कार्यवाही के पीछे चहेतों को बचाने का खेल रचे जाने की आशंकाएं जताई जा रही हैं।
रायपुर थानो मार्ग के तीसरे बड़े पुल बड़ासी की एप्रोच दीवार 16 जून को अचानक ढह गई। साथ ही दूसरी एप्रोच दीवार भी अब अपनी जगह से खिसकने लगी है। इस पुल के निर्माण और तकनीक में पहले ही खामियां जताई जा चुकी थी, लेकिन विभागीय अधिकारी इस पर आंखें मूंदे रहे। अब पुल की दीवार का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से ढह गया है जिससे आवागमन बंद कर दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि इस पुल पर वर्तमान में डोईवाला टोल प्लाजा बनने और देहरादून से आसानी से बगैर किसी ट्रैफिक जाम के ही जाॅली ग्रांट एयरपोर्ट पहुंचने के चलते यातायात का भारी दबाव बन चुका है। बावजूद इसके विभाग पुल की क्षतिग्रस्त दीवार की मरम्मत करने के बजाय जांच रिपोर्ट का इंतजार कर रहा है। सतही तौर पर यह मामला निर्माण में भ्रष्टाचार और बड़े घोटाले की ओर इशारा कर रहा है। वर्ष 2018 में भोपालपानी पुल के ध्ंासाव की घटना सामने आ चुकी थी। तब सरकार और खासतौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने इसे अपनी सरकार की जीरो टाॅलरेंस नीति के खिलाफ मानते हुए कड़ी कार्यवाही कर संबंधित अधिकारियों को निलंबित कर दिया था और तीनों ही पुलों की जांच के आदेश दिए थे। अभी भी इन पुलों की जांच चल ही रही है। जांच में बड़ासी पुल की तकनीकी और निर्माण संबंधित जांच भी की गई लेकिन जांच में कोई खामियां नहीं पाई गई।
अब दो वर्ष के बाद बड़ासी पुल की एप्रोच दीवार के ढह जाने से यह साफ हो गया कि जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति ही की जाती रही। सबसे मजेदार बात यह है कि भोपालपानी पुल के क्षतिग्रस्त होने के चलते तत्कालीन लोक निर्माण विभाग के अधिशाशी अभियंता शैलेंद्र मिश्रा और एई कांडपाल को निलंबित करते हुए इनका पदावन तक किया गया। एई कांडपाल को पदावन करते हुए जेई के पद पर भेज दिया गया जिस पर रहते हुए ही वह सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। साथ ही एक्शन शैलेंद्र मिश्रा को भी एई के पद पर पदावन कर दिया गया। इन तीनों पुलों के निर्माण की जिम्मेदारी इन दोनों अधिकारियों के पास ही थी। हैरानी इस बात की है कि शैलेंद्र मिश्रा को कुछ ही माह में बहाल कर दिया गया और उनका स्थानांतरण कुमाऊं क्षेत्र में कर दिया गया। अब बड़ासी पुल के मामले में प्राथमिक जांच के बाद फिर से मिश्रा और सहायक अभिंयता अनिल कुमार चंदोला के साथ-साथ जीत सिंह अधिशाशी अभिंयता को निलंबित कर तीनों को क्षेत्रीय मुख्य अभियंता कार्यालय पौड़ी से एटेैच कर दिया गया।
इस निलंबन में भी विभागीय अधिकारियों के द्वारा खेल किया गया है। अधिशारी अभियंता जीत सिंह रावत ने 17 अक्टूबर 2018 को कार्यभार संभाला था, जबकि पुल का निर्माण 10 अक्टूबर 2018 को हो चुका था। यहां तक कि जीत सिंह रावत के पदभार संभालने से पूर्व ही 21 करोड़ का भुगतान ठेकेदार कंपनी दून एसोसिएट्स को हो चुका था। इससे जीत सिंह रावत के निलंबन के मामले में विभागीय अधिकारियों और सरकार की कार्यवाही पर सवाल खड़े होने लगे हैं, जबकि विभागीय स्तर पर प्राथमिक जांच में तीनों को अपने दायित्वों का सही निर्वहन न करने के आरोप लगाए गए हैं। माना जा रहा है कि जीत सिंह रावत को जानबूझ कर निलंबित किया गया है जिससे विभाग में नाराजगी का माहौल पैदा हो और इसी माहौल को शांत करने के लिए कुछ समय के बाद निलंबन की कार्यवाही वापस ले ली जाएगी जिस तरह से पूर्व में भोपाल पानी पुल के मामले में तत्कालीन अधिशासी अभियंता शैलेंद्र मिश्रा को कुछ समय के बाद निलंबन वापस लेकर बहाल कर दिया गया था।
ऐसा ही फिर से किए जाने की आंशकाएं जताई जाने लगी हैं। जिस तरह से लोक निर्माण विभाग के अभियंताओं में जीत सिंह रावत के निलंबन पर भारी नाराजगी जताई जा रही है और निलंबन वापस न लेने पर आंदोलन किए जाने की बातंे भी सामने आ रही हैं उससे तो लगता है कि निलंबन की कार्यवाही की गई है। हालांकि मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने इस पूरे मामले के उच्च स्तरीय जांच के आदेश देते हुए दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करने के संकेत दिए हैं। इससे तो यही लगता है कि इस बार पुल के निर्माण में अपने दायित्व सही तरीके से न निभाने वाले अधिकारियों पर बड़ी कार्यवाही हो सकती है। लेकिन हकीकत यह है कि जिस अधिकारी के कार्यकाल में पुल क्षतिग्रस्त हुए हैं उसका ही सरकार ने तीन माह का सेवा विस्तार रिटायर होने से महज 12 घंटे पहले ही कर दिया। हैरानी की बात यह है कि लोक निर्माण विभाग जिसके आधीन इन पुलों को निर्माण किया गया उसके विभागीय अध्यक्ष यानी पीडब्ल्यूडी चीफ हरिओम शर्मा को तीरथ सरकार ने तीन माह का सेवा विस्तार दे दिया है।
शर्मा 30 जून को सेवानिवृत होने वाले थे, लेकिन 29 जून को ही उन्हें तीन माह का सेवा विस्तार दे दिया गया। सरकार का तर्क है कि वर्तमान में प्रदेश में राज्य सेक्टर की विभिन्न योजनाओं के अलावा केंद्र सरकार द्वारा संचालित महत्वाकांक्षी परियोजनाएं जैसे आल वेदर रोड, राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं तथा केंद्रीय सड़क अवस्थापना निधि के कार्य हरिओम शर्मा की ओर से नियंत्रक अधिकारी द्वारा किए जा रहे हैं। इसलिए उनके अनुभव और योग्यता के चलते उनका सेवा विस्तार किया गया है, जबकि हरिओम शर्मा के कार्यकाल में तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा मामलों की जांच चल रही है। साथ ही इनके ही कार्यकाल में भी कई अभियंता निलंबित भी हो चुके हैं। बावजूद इसके शासन और सरकार हरिओम शर्मा पर ही भरोसा जता रही है।
इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि त्रिवेंद्र का दुलारा तीरथ को भी प्यारा। सूत्रों की मानें तो सरकार चुनावी वर्ष में अनेक सड़क योजनाओं की घोषणाएं करने वाली है जिसमें पूर्व से जानकार व्यक्ति का विभागीय चीफ होना जरूरी मान रही है। इसके चलते पुलों के निर्माण में घपले की आशंका के बावजूद सरकार हरिओम शर्मा को सेवानिवृत नहीं करना चाहती इसी के चलते उनको सेवा विस्तार दिया गया है, जबकि इन तीनों पुलों के निर्माण में लोक निर्माण विभाग के चीफ हरिओम शर्मा की ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि उनके ही कार्यकाल में दो वर्ष के भीतर दो नवनिर्मित पुल क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। अब इन पुलों के निर्माण की कहानी को भी समझना होगा। दरअसल, 2017 में सत्ता संभालते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने अपनी विधानसभा सीट डोईवाला के रायपुर थानो मार्ग में वर्षों से चली आ रही पुलों की मांग पर तीन फ्लाईओवर जैसे पुलों के निर्माण को मंजूरी दी। इनमें सिरवालगढ़, भोपालपानी और बड़ासी पुलों का निर्माण आरंभ किया गया। तीनों पुल का निर्माण केंद्रीय सड़क अवस्थापना निधि के तहत किया गया। इनके निर्माण में 40 करोड़ की लागत आई है। बड़ासी का पुल सबसे लंबा और ऊंचाई वाला पुल है। इसकी लागत 17 करोड़ बताई जा रही है। अक्टूबर 2018 में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा इंवेस्टर समिट का आयोजन किया गया।
इसी आयोजन के चलते इन तीनों पुलों पर त्वरित गति से काम किया गया और तीनों पुल समिट से पूर्व ही यातायात के लिए आरंभ कर दिए गए। दरअसल, इंवेस्टर समिट का आयोजन रायपुर के महाराणा प्रताप स्पोर्ट काॅलेज के स्डेडियम में किया जाना तय हुआ था जिसके लिए जाॅलीग्रांट एयरपोर्ट से उद्योगपतियों और निवेशकों को बगैर किसी परेशानी के कार्यक्रम स्थल पर आसानी से पहुंचाया जा सकता था। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आए थे। इससे यह समझा जा सकता है कि ये तीनों पुल सरकार के लिए कितने महत्वपूर्ण थे। इसी जल्दबाजी में पुलों का निर्माण किया गया और कई खामियों को अनदेखा किया गया। जानकारी के अनुसार पुल के डिजाइन को विभागीय स्तर पर ही बदला गया जिससे तकनीकी खामियां भी सामने आई हैं। भोपालपानी पुल के मामले में तो विभाग ने तुंरत कार्यवाही करके मामले को शांत किया और पुल के क्षतिग्रस्त हिस्से को भी जल्द ही सही कर के यातायात बहाल कर दिया था, क्योंकि सरकार के भव्य इंवेस्टर समिट कार्यक्रम का आयोजन होना था। लेकिन बड़ासी पुल की दीवार की मरम्मत विभागीय जांच आने तक शांत ही है, जबकि यह पुल देहरादून आने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
डोईवाला टोल प्लाजा के आरंभ होने के बाद इस थानो रायपुर मार्ग की महत्ता अत्याधिक हो चुकी है। आज प्रतिदिन हजारो वाहन इस रोड से गुजरते हैं जिससे पुल के निर्माण के समय जो यातायात का दबाव माना गया था वह आज उससे कहीं ज्यादा हो गया है। इससे साफ है कि पुल के निर्माण में भविष्य में बढ़ने वाले यातायात के दबाव की भारी अनदेखी की गई है जिसका परिणाम यह रहा कि बड़ासी पुल की एप्रोच दीवार का एक बड़ा हिस्सा ढह गया है। क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार चंद्रप्रकाश बुड़ाकोटी कहते है कि वे प्रतिदिन थानो रायुपर मार्ग से ही देहरादून आते हैं। अब इस रोड पर वाहनों का दबाव इतना बढ़ गया है कि इस रोड की जरूरत सबसे ज्यादा हो चुकी है। लेकिन विभाग ने दीवार की मरम्मत का काम शुरू नहीं किया है। पूछने पर बताया जाता है कि जब तक जांच रिपोर्ट सामने नहीं आएगी तब तक मरम्मत नहीं होगी। बरसात का महीना आरंभ हो गया है। अगर बरसात के दिनों में भी इस पुल पर यातायात चलता रहा तो बहुत बड़ी दुर्घटना भी हो सकती है।
बात अपनी-अपनी
मुझे इस मामले में कुछ नहीं कहना है प्लीज।
जीत सिंह रावत, अधिशासी अभियंता लोक निर्माण विभाग
इस मामले में मैं क्या बता सकता हूं। वे ही बताएंगे जो जांच कर रहे हैं, आप उनसे पूछिए।
शैलेंद्र मिश्रा, तत्कालीन अधिशासी अभियंता एवं वर्तमान सहायक अभियंता लोक निर्माण विभाग
नोट : इस संबंध में लोक निर्माण विभाग के अध्यक्ष हरिओम शर्मा से उनकेे दूरभाष नम्बर 9412996496 तथा एस के बिरला मुख्य अभियंता लोक निर्माण विभाग से उनके दूरभाष नम्बर 9412004992 पर बात करने की कोशिश की गई, लेकिन बात नहीं हो पाई।