लाकडाउन के चौथे चरण में उत्तराखण्ड में कोरोना का ज्वालामुख्यी बुरी तरह से फट पड़ा है। हजारो प्रवासी उत्तराखण्डियों के उत्तराखण्ड में आने के बाद कोरोना संक्रमण में बेहताशा तेजी सामने आई है। हालात इस कदर हो चुके हैं कि अब प्रदेश के सभी जिले पूरी तरह से कोरोना संक्रमित हो कर ओरेंज श्रेणी में आ चुके है। पर्वतीय जिले पहले कोरोना से मुक्त थे उनमें संक्रमण हो चुका है। सोमवार 25 मई को राज्य के स्वास्थ्य विभाग के द्वारा जारी किये गये हेल्थ बुलेटिन के अनुसार प्रदेश में कोरोना संक्रमितो की तादात 357 हो चुकी है जिसमें कोरोना के 267 एक्टिव केस हैं तथा 58 लोग स्वस्थ हो चुके है। साथ ही राज्य में अब 17 कंटोनमेंट जोन हो चुके है। सबसे ज्यादा गम्भीर बात यह सामने आई है कि विगत सात दिनो में कोरोना के दूगना होने की दर बुरी तरह से गिर की 3-98 हो चुकी है जो कि अपने आप में ही यी बताने के लिये काफी है कि प्रदेश में किस तरह से कोरोना का भयावह रूप सामने आ सकता है।
इसके अलावा प्रदेश में अभी तक चार लोगो की मौत भी हो चुकी है हांलाकी सरकारी दावो की माने तो जिन चार लोंगो की मौत हुई है उनकी मौते कोरोना से नही हुई है भले ही वे कोरोना से संक्रमित थे और उनका इलाज चल रहा था लेकिन उनकी मृत्यु का कारण अन्य बीमारी बताया जा रहा है।
कोरोना का ज्वालामुख्यी प्रदेश के हर जिलो में फूट पड़ा है उसके लिये यह प्रवासियो बी बड़ी तादात को बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि जिस तरह से तकरीबन डेढ लाख से भी ज्यादा प्रवासी में वापिस आये है उसके चलते ही कोरोना का संक्रमण के मरीजो में इजाफा हुआ है। जबकि माना जा रहा है कि अभी पांच लाख प्रवासियों के उत्तराखण्ड में आने को तेैयार है और उनके आने से हालात और भी खराब हो सकते है।
जस तरह से कोरोना संक्रमितो की तादात 357 तक पहुंच चुकी है उस से साफ है कि सरकार इसके लिये जो तेैयारी करना चाहिये थी वह नही कर पाई है। सरकार की लापरवाही इस कदर कर रही कि जब स्वयं मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड प्रवासियों के उत्तराखण्ड आने से 25 हजार तक संक्रमण पहुंचने की आंशका जता रहे थे तो वहीं राज्य में आने वाले प्रवासियों की जांच के नाम पर खानापूर्ती की गई।
लापरवाही की हद यह रही कि प्रवासियों की जांच के लिये सैम्पल तो ले लिये गये लेकिन उनको होम क्वारंटीन मे भेजा जाता रहा। जब जांच में कोरोना संक्रमण पाया गया तक उक्त प्रभावित को ढूंढ कर स्थागत क्वांरटीन करना पड़ा और उसका यात्रा इतिहास डुण्डा जाने लगा। जबकि यह पहले की करना जरूरी था। आज हालात यह हेै कि हजारो प्रवासियों को होम क्वांरटीन किया गया हे जिस से खतरा बढ़ चुका है।
सरकार की लापरवही का आलम यहां तक देखा जा रहा हे कि हजारो प्रवासियो की जांच के सैंपलों की जांच तक समय पर नही हो पा रही है। देहरादून के इंद्रेश अस्पताल से पांच कोरोना संदिग्ध मरीजो की जांच का नमूना दून मेडिकल कोलेज को भेजा गया था लेकिन दस दिनो के बाद भी जांच नही हो पाई है। बताया जा रहा हेै कि इसके लिये नमूना सही तरीके से नहीं लिया गया था लेकिन हैरत की बात यह है कि दून मडिकल कॉलेज प्रशासन के द्वारा इंद्रेश अस्पताल को दस दिनो तक यह नही बताया कि जांच का नूमना सही नही है। इस से यह जो साफ हो जाता है कि प्रदेश में कोरोना संक्रमितो की जांच के नाम पर किस कदर लापरवाही हो रही है।
हैरत की बात यह है कि स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के द्वारा सार्वजनिक तौर पर यह माना था कि आने वाले समय में प्रवासियों के आने से राज्य में कोरोना के मरीज 25 हजार तक पहुंच सकते है लेकिन राज्य सरकार इससे निपटनेे लिये पूरी तरह तैयार है। जिस तरह से मुख्यमंत्री ने बयान दिया था उस के अनुरूप सरकार ने तैयारियां बरती हो यह देखने को नही मिला।प्रवासियों को संस्थागत क्वांरटीन करने की बजाये सरकार का पूरा फोकस होम क्वारंटीन करने में ही लग रहा जिस से राज्य के पर्वतीय क्षेत्रो के हालात बद से बदतर होते चले गये और आज हालात यह हैे कि जो पहाड़ी जिले अभी तक कोरोना से मुक्त थे उनमें कोरोने के मरीजो की तादात दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।
गौर करने वाली बात यह भी है कि 22 तारीख तक प्रदेश में केवल रूद्रप्रयाग ही एकमात्र ऐसा जिला था जिसमें कोरोना का एक भी मरीज नहीं था लेकिन इस स्थिति को संभालने की बजाय लापरवाही बरती गई और प्रवासियों को होम क्वारंटीन करने के लिये भेजा ताजा रहा जिस से रूद्रप्रयाग जिला भी कोरोना की चपेट में आ चुका है। जबकि सरकार इस पर गम्भीर होती हो रूद्रप्रयाग जिलो को कम से कम कोरोना से मुक्त रखा जा सकता था।
सरकार की इसी लापरवाही को दखेते हुये हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई जिस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को हर प्रवासी को राजय की सीमा में ही क्वारंटीन करने ओर उसकी जांज करने तथा जब तक जांच रिर्पोट न आये उसे उसके घर न भेजने के आदेश जारी करने पड़े।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने प्रदेश की सीमा में क्वांरटीन करने के मामले मे अपने हाथ खड़े कर दिये है। सरकार का कहना हेै कि इतने बड़ी तादात में प्रवासियों को प्रदेश की सीमा में क्वांरटीन करने मे सरकार समर्थ नही है। क्योंकि सरकार क्वांरटीन किये गये लेागो के रहने और खाने के अलावा अन्य सुविधायें जुटाने मे असमर्थ है।
हाईकोर्ट से जारी किये गये आदेश के आठवे बिंदु जिसमे स्पष्ट तौर पर कहा हेै कि हर प्रवासी को हर हालता में राज्य की सीमा मे संथागत क्वांरटीन करने और उनकी जांच कर के जब तक जांच रिपोर्ट नही आती है उसे एक सप्ताह तक क्वांरटीन रखा जाये। यही बिंदु राज्य सरकार के लिये मुसीबत का कारण बन चुका है। सरकार के द्वारा हाईकोर्ट के आदेश का घंटो तक कैबिनेट बैठक मे ंमंथन कर के सरकार ने यह माना है कि हर रोज हजारो लेाग राजय में वापिस आ रहे है। दस दिनो तक इतने बड़ी तादात में लेागो को रहने ओैर खाने की व्यवस्था करना होगी। राज्य सरकार अपना जबाब हाईकोर्ट में दाखिल करेगी।
सरकार के मंथन से यह साफ हो गया है कि सरकार प्रवासियों को प्रदेश की सीमा में क्वांरटीन करने में पूरी तरह से असमर्थ है। जबकि मुख्यमंत्री के द्वारा प्रवासियों को प्रदेश की सीमा में रोकना और उनकी जांच करना व्रूवहारिक ही नही मान चुके है और इस पर हाईकोर्ट में सरकार का जबाब देने की बात करह रहे है तो समझा जा सकता है कि आने वाले समय में प्रदेश को कितनी बड़ी चुनैती से जूझना पड़ सकता है क्योंकि माना जा रहा है कि अभी तकरीबन 5 लाख उत्तराखण्ड आने के लिये तैयार बैठे है जिसमें ढाई लाख से भी ज्यादा उत्तराखडियों के द्वारा अपना रजिस्ट्रेशन करवाया जा चुका है।