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Uttarakhand

रक्तरंजित राजनीति की दस्तक

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीति और अपराध का संगम खासा पुराना है। 2014 के लोकसभा चुनाव में 34 प्रतिशत आपराधिक इतिहास वाले नेता सांसद चुने गए थे। 2019 के आम चुनाव में यह आंकड़ा 43 प्रतिशत पहुंच गया। इन सांसदों में से 29 प्रतिशत पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। देवभूमि कहलाए जाने वाले उत्तराखण्ड में भी इस आपराधिक ‘संगम’ ने दस्तक देनी शुरू कर दी है। राज्य विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री यशपाल आर्या और उनके विधायक पुत्र संजीव आर्या पर हुआ जानलेवा हमला एक रक्तरंजित भविष्य की राजनीति की तरफ इशारा कर रहा है। इस हमले के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की प्रतिक्रिया न केवल उनकी संवेदनहीनता का परिचय देती है, बल्कि ‘स्वच्छ राजनीति’ का दंभ भरने वाले भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लगा देती है

उत्तराखण्ड में 2022 के विधानसभा चुनावों के नजदीक आने के साथ ही ऐसी खबरें भी आ रही हैं जिनका सामना उत्तराखण्ड की जनता ने आज तक के विधानसभा चुनावों में नहीं किया। समय के साथ राजनीतिक विरोध का जो नया तरीका बाजपुर में पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्या और उनके नैनीताल से निवर्तमान विधायक पुत्र संजीव आर्या के साथ देखने को मिला उससे लगता है कि उत्तराखण्ड में राजनीतिक विरोध के नाम पर राजनीति के अपराधीकरण की दस्तक तो नहीं? विरोध के इस तरीके को राजनीतिक मान्यता देने वाले बयान उससे भी ज्यादा खतरनाक संकेत है जो भविष्य में इस प्रवृत्ति के गहराने की तरफ इशारा कर रहे हैं। खासकर तब जब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का घटना के अगले दिन तक पुराने प्रकरण से अनभिज्ञ रहने की बात कहना दर्शाता है कि चुनावों से पहले राजनीतिक संवेदनशीलता की कमी किस कदर प्रदेश के राजनीतिज्ञों में हावी हो गई है।

चार दिसंबर के दिन उत्तराखण्ड के पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल और उनके पुत्र संजीव आर्या बाजपुर में हुए हमले में बाल-बाल बचे। एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देहरादून में जहां जनता के बीच उत्तराखण्ड के प्रति अपने अगाध प्रेम की दुहाइयां दे रहे थे वहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के गृह जिले ऊधमसिंह नगर में एक हिस्ट्रीशीटर अपराधी के नेतृत्व में विरोध के नाम पर अराजकता फैला कुछ लोग कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहे थे। यशपाल आर्या और संजीव आर्या कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता सम्मेलन में भाग लेने बाजपुर जा रहे थे जहां कुछ नेता और कार्यकर्ता कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करने वाले थे। बाजपुर पहुंचने से कुछ पहले ही यशपाल आर्या के काफिले पर पूर्व जिला पंचायत सदस्य कुलविंदर सिंह ‘किन्दा’ के नेतृत्व में लगभग 20 प्रदर्शनकारियों ने काले झंडे के साथ प्रदर्शन करते हुए हमला कर दिया। कुलविंदर सिंह किन्दा का आपराधिक इतिहास रहा है। तराई में उसका खासा खौफ बताया जाता है। पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान भी उसके द्वारा यशपाल आर्या की सभा में गोलियां चलाई गईं थी। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि विरोध के नाम पर कुलविंद सिंह किन्दा और उसके 20-25 साथियों ने जिस प्रकार अराजकता का माहौल पैदा किया, उससे लगता है कि उनका इरादा विरोध से ज्यादा कुछ करने का था। खासकर कीलें गड़ी लाठियों के साथ विरोध के लिए आना किसी भी सूरत में अच्छी मंशा तो जाहिर नहीं करता। यशपाल आर्या का कहना है कि ‘विरोध के नाम पर प्रदर्शन होता तो उसे सामान्य मानकर नजरअंदाज किया जा सकता था लेकिन जिस प्रकार खतरनाक हथियारों, तलवारों से चन्द प्रदर्शनकारी लैस थे उससे साफ जाहिर होता है कि उनका इरादा मुझे तथा मेरे पुत्र को शारीरिक नुकसान पहुंचाना था।

अगर हमारे कार्यकर्ता बीच में न आते तो हमारे साथ कुछ भी अनहोनी हो सकती थी।’ उनका स्पष्ट आरोप है कि ये सब प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और कैबिनेट मंत्री अरविंद पाण्डे की शह पर हुआ। आर्या का यह भी आरोप है कि इस प्रकरण में कांग्रेस का एक नेता भी शामिल है जो खुद को किसान नेता कहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देहरादून में हुई रैली के दिन हुई बाजपुर की इस घटना ने उत्तराखण्ड की राजनीति में उबाल ला दिया है। जहां कांग्रेस नेताओं ने इसे भाजपा की साजिश करार दी है, वहीं भाजपा इसे कांग्रेस की अंदरूनी कलह कह अपना पल्ला झाड़ती दिख रही है। घटना के अगले दिन ही प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव इस घटना के विरोध में प्रदर्शन में शामिल होने देहरादून आ पहुंचे। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने हैलीकॉप्टर से हल्द्वानी पहुंचकर यशपाल आर्या से मुलाकात की। पूरी कांग्रेस इस घटना के विरोध में सड़कों पर उतर आई है।

उत्तराखण्ड की राजनीति में यशपाल आर्या का कद काफी बड़ा है। वो सिर्फ वरिष्ठ राजनेता ही नहीं, उत्तराखण्ड में एक बड़ा दलित चेहरा भी है। भले ही वो भाजपा में रहे या फिर कांग्रेस में, उनके कद का दलित नेता उत्तराखण्ड की राजनीति में कोई और नहीं है। कांग्रेस से भाजपा में जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अपने लिए एक महत्त्वपूर्ण चेहरे के रूप में इस्तेमाल किया। जहां तक संजीव आर्या की बात है, कई महत्त्वपूर्ण अवसरों पर केंद्रीय रक्षा और पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट ने संजीव आर्या को आने वाले समय में उत्तराखण्ड का शीर्ष नेता तक कहा था। बताया जाता है कि एक अवसर पर तो अजय भट्ट ने यशपाल आर्या से यहां तक कहा कि ‘यशपाल जी, आप भविष्य में कभी भाजपा छोड़ भी दें तो संजीव को
भाजपा में ही रहने दीजिएगा, ये युवा ही उत्तराखण्ड के भविष्य हैं।’ यशपाल आर्या, संजीव आर्या की कांग्रेस में वापसी ने उत्तराखण्ड में भाजपा को झटका दिया है। यशपाल आर्या की कांग्रेस में वापसी के बाद यशपाल आर्या की सुरक्षा भी हटा दी गई थी जिस पर उन्होंने प्रदेश सरकार के एक बड़े अधिकारी से नाराजगी भी जाहिर की थी। स्वयं की सुरक्षा पर अंदेशा जाहिर करने पर उन्हें एक सरकारी गनर जरूर उपलब्ध करा दिया गया था। संजीव आर्या बताते हैं जिस प्रकार की धमकियां उन्हें तथा उनके पिता को दी जा रही थी और सोशल मीडिया के माध्यम से जिस प्रकार विरोध करने का प्रचार किया जा रहा था उसके चलते उन्होंने ऊधमसिंह नगर के प्रशासन को पहले ही सतर्क कर दिया था। घटना वाले दिन भी उन्होंने सुबह बाजपुर के कोतवाल से कुछ अनहोनी की आशंका जाहिर की थी लेकिन ऊधमसिंह नगर के शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अब ये पुलिस का गैर-जिम्मेदाराना रवैया है या फिर पुलिस पर ऐसा कोई दबाव था जिससे वो घटना के समय
मूकदर्शक बने रहे, यह तो घटना की निष्पक्ष जांच से ही सामने आ सकता है।

राजनीतिक जानकार इसे तराई, विशेषकर ऊधमसिंह नगर की राजनीति में यशपाल आर्या और धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री अरविंद पाण्डेय के मध्य वर्चस्व की जंग के रूप में भी देख रहे हैं। यशपाल आर्या और अरविंद पाण्डे की राजनीतिक अदावत किसी से छिपी नहीं है। थाने से 40 मीटर की दूरी पर हुई इस घटना ने पूरे मामले में अरविंद पाण्डेय की भूमिका पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। घटना के अंदेशा की आशंका पहले से ही पुलिस को बता दी गई थी। पुलिस प्रशासन तब भी सोया रहा। अराजक तत्वों के खिलाफ भी पुलिस द्वारा रिपोर्ट तब लिखी गई जब यशपाल आर्या अपने समर्थकों के साथ तीन घंटे तक धरने पर बैठे रहे। सवाल है कि जब एक पूर्व मंत्री को अपनी रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए घंटों मशक्कत करनी पड़ती है तो आम जनता पुलिस से कैसे न्याय की उम्मीद कर सकती है। बताते हैं कि घटनास्थल पर मौजूद एक पुलिस अधिकारी के मोबाइल पर लगातार एक मंत्री के फोन आ रहे थे। घटनास्थल पर उपस्थित एक कांग्रेस के नेता का आरोप है कि मंत्री पुलिस के आला अफसरों पर एफआईआर दर्ज न करने का दबाव बना रहे थे। यशपाल आर्या की तरफ से आरोपियों पर रिपोर्ट दर्ज करने के बाद प्रतिपक्षियों की ओर से भी यशपाल आर्या और संजीव आर्या सहित उनके समर्थकों पर भी मुकदमा दर्ज करा दिया गया है।

इस घटना के बाद राजनीतिक दलों खासकर भाजपा नेताओं की जो प्रतिक्रिया आई वो चौंकाने वाली है। प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी घटना के अगले दिन तक इस घटना से अनभिज्ञ होने की बात कह कर प्रदेश के सूचना तंत्र पर ही सवाल खड़े कर देते हैं। उत्तराखण्ड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक एक हाथ आगे बढ़कर बयान देते हैं। ‘जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।’ मानो वो इस तरह की घटना के इंतजार में बैठे थे। भाजपा के सह चुनाव प्रभारी और राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह की प्रतिक्रिया थी कि ‘दल बदलते हैं तो ऐसा ही होता है’ अब ये संदेश सिर्फ भाजपा छोड़कर जाने वालों के लिए था या फिर अन्य दलों को छोड़कर भाजपा मंे आने वालों के लिए था, यह समझ से परे है। सवाल यहां पर उस नयी विकसित होती राजनीतिक संस्कृति का भी है जिसमें विरोध के नाम पर हिंसा को जायज ठहराने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। राजनीति में हिंसक अवसरों की व्याख्या अपनी सुविधानुसार करने की प्रवृत्ति भविष्य में किसी भी दल पर भारी पड़ सकती है।

 

बात अपनी-अपनी

यशपाल आर्या पर प्राणघातक हमला हुआ है। प्रदेश में यशपाल आर्या के बढ़ते हुए कद को देखते हुए उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश की गई है। कांग्रेस इस कायराना हरकत के खिलाफ जमकर लड़ेगी। ये हमला भाजपा के उच्च स्तरीय षड्यंत्र का परिणाम है। ऐसे लोगों के लिए समाज में कोई जगह नहीं है। ये लोकतंत्र पर हमला है और इससे लोकतांत्रिक तरीके से लड़ा जाएगा।
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री

ये सब सोची-समझी साजिश के तहत किया गया है। जिस प्रकार गिने-चुने प्रदर्शन करने वालों के तेवर थे उससे लगता है कि वो मेरी और संजीव की हत्या ही कर देना चाहते थे। वो तो कार्यकर्ताओं ने खुद पर हमले झेल कर हमें बचा लिया।
कुलविंदर सिंह किंदा जैसे अपराधी को किसका संरक्षण है? भाजपा सरकार के मंत्री और अपराधियों का बेमेल गठबंधन इस घटना के पीछे है। भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा यही है। जनता सब बखूबी जानती है। भाजपा अपराधियों के बूते हमें और कांग्रेस को रोकना चाहती है। लेकिन क्षेत्र की जनता इनके मंसूबों को विफल कर देगी।
यशपाल आर्या, पूर्व कैबिनेट मंत्री

यह कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई है, इसमें भाजपा को दोष देना गलत है। जो जैसा बोएगा, वैसा ही काटेगा। कानून के हिसाब से कार्रवाई की जाएगी, जो दोषी होगा उसे सजा मिलेगी।
मदन कौशिक, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा

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