भारत सरकार की ऑडिट एजेंसी कैग ने आखिरकार उत्तराखण्ड में वर्षों से चल रहे अवैध खनन कारोबार का कच्चा-चिट्ठा अपनी ताजातरीन ऑडिट रिपोर्ट में सामने ला ही दिया है। वर्ष 2017-18 से 2020-21 तक की इस ऑडिट रिपोर्ट में केवल देहरादून जनपद में कई सौ करोड़ के अवैट्टा खनन का खुलासा किया गया है। कैग के अनुसार कोविड लॉकडाउन के समय देहरादून की तीन ऐसी नदियों में अवैध खनन किया गया जिनमें खनन पर पूर्ण प्रतिबंध था। इतना ही नहीं अवैध खनन की सामग्री की खरीददार भी राज्य सरकार ही निकली। इससे न केवल करोड़ों की राजस्व हानि राज्य को हुई है बल्कि इस काले कारोबार ने सारे तंत्र की कलई खोल डाली है
उपटकथा
उत्तराखण्ड अपने प्राकृतिक सौंदर्य और देवताओं की भूमि के नाम से पहचाना जाता है। अब लेकिन यह पहचान धीरे -धीरे धूमिल होने लगी है। देवभूमि की नई पहचान प्राकृतिक आपदाओं के नाम पर मनुष्य जनित आपदाएं और प्राकृतिक संसाधनों का अवैध और अवैज्ञानिक दोहन वाले प्रदेश बतौर स्थापित हो चली है। राज्य में अवैध खनन हमेशा से ही हर सरकार के कार्यकाल में बड़े स्तर पर होता रहा है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की ताजा रिपोर्ट ने वर्ष 2017 से 2020 के दौरान राज्य में हुए खनन की बाबत जारी अपनी रिपोर्ट में इन आरोपों को मयप्रमाण सही साबित पाया है कि राज्य में सरकारी तंत्र की मिलीभगत से खरबों की कीमत का अवैध खनन हुआ जिसके चलते राज्य को करोड़ों की राजस्व हानि उठानी पड़ी। कैग की ऑडिट रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं। हालात इस कदर खराब हैं कि भारत सरकार की एजेंसी तक को स्वीकारना पड़ा है कि राज्य सरकार का हर अंग इस अवैध खनन के कारोबार को रोकने में विफल रहा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इस ‘विफलता’ के पीछे राजनीतिक संरक्षण और इस काले कारोबार में सभी की सहभागिता तो असल कारण नहीं?
कैग के चौंकाने वाले खुलासे
लेखा परीक्षक (कैग) ने राजधानी देहरादून की तीन नदियों का परिक्षण करा जिसमें खनन स्थलों पर अवैध खनन के साक्ष्य पाए गए। संयुक्त भौतिक सत्यापन के माध्यम से अवैध खनन के तथ्य की पुष्टि हुई। कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ‘भूतत्व एवं खनिककर्म इकाई, जिला कलेक्टर, पुलिस विभाग, वन विभाग एवं परियोजना प्रस्तावक और गढ़वाल मंडल विकास निगम लिमिटेड जैसी सभी सरकारी एजेंसियां सामूहिक रूप से अवैध खनन को रोकने और उसका पता लगाने में विफल रहीं। भूतत्व में खनिककर्म इकाई (खनन विभाग), भारत सरकार की खनन निगरानी प्रणाली को विगत पांच वर्षों से अधिक समय से लागू करने में विफल रही।’
कैग की उपरोक्त टिप्पणी से स्पष्ट हो जाता है कि उत्तराखण्ड सरकार के सभी अंग जिनमें खनन विभाग, जिलाधिकारी, पुलिस विभाग, वन विभाग और यहां तक कि राज्य सरकार के निगम किस प्रकार से अवैध खनन को हर प्रकार की छूट देने का काम कर रहे हैं। कैग ने राज्य में अवैध खनन की पड़ताल करने के लिए देहरादून जिले में 2017-18 से 2020-21 तक अत्याधुनिक तकनीक ‘रिमोट सेंसिंग और जिओग्राफिक इन्फॉरमेशन सिस्टम (जीआईएस) के जरिए तीन नदियों- सौंग नदी, ठकरानी नदी और कुल्हाल नदी (यमुना) के 24 खनन स्थलों की जांच की। इन तीनों ही नदियों में बड़ी मात्रा में अवैध खनन की पुष्टि हुई। ऐसा तब जबकि इन तीनों ही नदियों में खनन की अनुमति बंद थी और राज्य सरकार द्वारा यहां खनन के पट्टे आवंटित नहीं किए गए थे। कैग ने अपनी जांच में तकनीकी सहायता के लिए पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़ को सलाहकार नियुक्त किया था जिसकी तकनीकी मदद से कोविड महामारी के दौरान जब संपूर्ण देश में पूरी तरह लॉकडाउन था, देवभूमि की राजधानी की तीन नदियों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन की पुष्टि हुई। जाहिर है लॉकडाउन में अवैध खनन बगैर पुलिस, जिला प्रशासन और राजनीतिक संरक्षण बगैर होना संभव नहीं है। ऐसे में बीते सात बरसों से प्रदेश की सत्ता में काबिज भाजपा सरकार का ‘भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश’ के संकल्प पर बड़ा प्रश्नचिÐ लग जाता है।
सैटेलाइट तस्वीरों और जीआईएस ने पकड़ा अवैध खनन
कैग ने सर्वप्रथम ठकरानी नदी में अवैध खनन की जांच की। इस जांच के नतीजे हैरतनाक और खौफनाक हैं जिनसे पता चलता है कि प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह से अवैध खनन के कारोबार में शामिल है। कैग ने पाया कि
‘‘ठकरानी खनन स्थल यमुना नदी पर स्थित है और इस साइट को जनवरी 2017 से खनन के लिए पट्टे पर नहीं दिया गया है। तद्नुसार, जनवरी 2017 से कोई खनन गतिविधि नहीं होनी चाहिए थी। उक्त खनन स्थल पर कोई अवैध खनन गतिविधि हुई या नहीं, इसका आकलन करने के लिए तकनीकी सलाहकार की मदद से 2020 में अलग- अलग समय पर सेंटिनल इमेज का विश्लेषण किया गया। इन इमेजेज की समीक्षा करने पर लेखा परीक्षा ने पाया कि फरवरी 2020 तक घेरे हुए क्षेत्र में कोई खनन गतिविधि नहीं थी। मई 2020 की इमेज में क्रमिक रूप से काला पैच दिखाई देने लगा, यह फरवरी से मई 2020 तक खनन गतिविधि का सूचक है। यह उल्लेखनीय है कि इस अवधि में कोविड-19 महामारी के कारण लगभग पूर्ण लॉकडाउन था। मानसून की अवधि (जुलाई से सितंबर) के दौरान नदी के किनारे की सामग्री फिर से भर जाती है। इसलिए, लेखा परीक्षा द्वारा उक्त साइट पर अक्टूबर 2020 के बाद अवैध खनन के विस्तार क्षेत्र की जांच की गई। इमेजेज में स्पष्ट रूप से अक्टूबर से नवंबर 2020 की अवधि के दौरान अवैध खनन गतिविधि में वृद्धि दिखाई दी। यह भी देखा गया कि अवैध खनन की घटना 2020 तक ही सीमित नहीं थी। विगत वर्षों के सेंटिनल इमेजेज का विश्लेषण करने पर लेखा परीक्षा ने पाया कि खनन चिÐ 2017, 2018 और 2019 में भी मौजूद थे। सेंटिनल इमेजेज के अतिरिक्त गूगल अर्थ इमेजेज का उपयोग करके उसी क्षेत्र का विश्लेषण किया गया तथा लेखा परीक्षा ने व्यापक खनन चिन्ह देखे।’’
कैग ने सौंग नदी के खनन बंद होने के दौरान भी अवैध खनन किए जाने की बाबत अपनी रिपोर्ट में लिखा है-

‘‘वर्ष 2018 से 2020 तक के वर्षों में खनन गतिविधियों में वृद्धि हुई है और अक्टूबर 2019 तक पूरे नदी के किनारे को आच्छादित कर लिया गया है। रिमोट सेंसिंग इमेज के विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्षों की स्थलीय निरीक्षण द्वारा पुष्टि की गई थी। तद्नुसार संयुक्त भौतिक सत्यापन के दौरान लेखा परीक्षा ने गड्ढे निर्माण, जल भराव, खनन के ढेर आदि जैसे खनन चिÐ देखें।’’
इसी प्रकार कुल्हाल नीद में अवैध खनन की बाबत इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि
‘‘खनन पट्टा और पर्यावरणीय स्वीकृति के अनुसार खनन केवल पट्टे पर दिए गए क्षेत्र के भीतर ही किया जा सकता है जिसका सीमांकन जिला कलेक्टर और खनन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से पर्यावरणीय स्वीकृति और खनन पट्टे में जियो को-
ऑर्डिनेट का उपयोग करके किया जाता है। तकनीकी सलाहकार ने आधिकारिक तौर पर पट्टे पर दि गए क्षेत्र के बाहर खनन गतिविधियों को रिपोर्ट किया।’’
कई सौ करोड़ का अवैध खनन केवल देहरादून में
कैग ने इन तीन नदियों की बाबत, जहां खनन पूरी तरह से बंद था, चौंकाने वाला खुलासा किया है। कोविड महामारी के दौरान इन नदियों में भारी मात्रा में अवैध खनन किया गया। कैग के अनुसार ‘57 .11 लाख मैट्रिक टन की सीमा तक अवैध खनन का अनुमान है।’ बाजार मूल्य के हिसाब से इस अवैध खनन का न्यूतनम मूल्य दो सौ करोड़ रुपया होता है। कैग ने इस अवैध खनन के चलते राज्य सरकार को 39.98 करोड़ रुपयों की राजस्व हानि की बात भी अपनी रिपोर्ट में कही है।
एम्बुलेंस, कैश वैन, फायर ब्रिगेड, पेट्रोल टैंकर आदि के जरिए अवैध खनन!

कैग की रिपोर्ट न केवल अवैध खनन की महागाथा सामने लाती है, बल्कि सरकारी तंत्र की मिलीभगत का एक और राजफाश करती है। यह राज है खनन सामग्री ढोने के लिए खनन विभाग द्वारा ऐेसे वाहनों के नंबर पर ई-रवन्ना (सरकारी पास जिसके द्वारा खनन सामग्री एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाई जाती है) जारी करना जो एम्बुलेंस, बैंकों की नकदी ले जाने वाली कैश वैन, फायर ब्रिगेड, पेट्रोल टैंकर, दो पहिया वाहन और कृषि कार्यों के ट्रेक्टरों के नंबर थे। जाहिर है बगैर जांच -पड़ताल किए अवैध खनन को बेरोकटोक जारी रखने के उद्देश्य से ऐसे ई-रवन्ना जारी किए गए। कैग ने अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा करते हुए 43 हजार ऐसे वाहनों के नंबर पकड़े हैं जो एम्बुलेंस, कैश वैन, फायर ब्रिगेड, पेट्रोल टैंकर आदि के हैं। ऐसे अभिवहन पासों (ई-रवन्ना) की बाबत कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ‘‘अभिवहन पास अवैध खनन को रोकने और पता लगाने में महत्वपूर्ण नियंत्रक है। तद्नुसार इसमें सभी प्रविष्टियां (लीज संख्या, प्रपत्र संख्या, वाहन संख्या, खनिज की मात्रा, क्रेता का विवरण) पूर्ण और प्रमाणिक होना चाहिए।’’
रिपोर्ट में भारी मात्रा में गलत वाहनों के नंबर पर ई-खन्ना दिए जाने की बाबत टिप्पणी की गई है कि
‘‘उत्तराखण्ड सरकार ने 2007 में वाणिज्यिक माल वाहनों (सी), सरकारी वाहनों (जी), यात्री कैरिज वाहनों (पी) और टैक्सियों (टी) को पंजीकृत करने के लिए निर्दिष्ट शृंखला लागू की थी। ‘यूके’ (उत्तराखण्ड) शृंखला के पंजीकरण संख्या वाले वाहनों के अभिवहन पास की समीक्षा करने पर यह पाया गया कि जी, पी और टी शृंखला वाले वाहनों का उपयोग उपखनिजों के परिवहन के लिए किया गया था, जो अवैध था क्योंकि निर्दिष्ट शृंखला वाले वाहनों का उपयोग वाणिज्यिक वस्तुओं/सामग्री ले जाने के लिए नहीं किया जाना था। लेखा परीक्षा में पाया गया कि गैर- वाणिज्यिक वाहनों की श्रेणी के अंतर्गत कुल 6,303 वाहनों से संबंधित 0.49 लाख अभिवहन प्रपत्रों के अंतर्गत 3 .74 लाख मीट्रिक टन मात्रा प्रभावित थी। गैर-वाणिज्यिक वाहनों की तैनाती कानून प्रवर्तन संचालन की प्रभावकारिता पर प्रश्न उठाती है। वर्ष 2018-21 के दौरान, कुल 5.54 लाख मीट्रिक टन उपखनिजों का परिवहन 60,882 वाहनों से 3.59 लाख अभिवहन पासों के सापेक्ष जिनके पास कोई वाहन संख्या नहीं थी या बड़ी संख्या में वाहन संख्या उत्तराखण्ड के बाहर से या पंजीकरण संख्या पुरानी शृंखला की थी, से किया गया था।’’
कैग ने भारत सरकार के ‘परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय’ के डेटाबेस की मदद से 2017 से 2020 तक खनन कार्यों के लिए प्रयोग में लाए गए 4 ़37 लाख वाहनों की जांच की तो बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा सामने आ गया। कैग ने पाया कि राज्य सरकार के खनन विभाग ने खनन कार्य के लिए वाहनों को जो पास (ई-खन्ना) जारी किए उनमें से 43 हजार वाहन एम्बुलेंस, कैश वैन, फायरब्रिगेड, पैट्रोल टैंकर) दो/तीन पहिया वाहन व ई-रिक्शा थे। स्पष्ट है कि अवैध खनन के लिए पास जारी करते हुए अनाप-शनाप नंबर ऐसे पास (ई-खन्ना) में डाले गए जिनका खनन कार्य से कोई लेना-देना नहीं था। कैग ने अपनी रिपोर्ट में ऐसे वाहनों को स्पष्ट रूप से चिन्हित किया है-
बड़े स्तर पर जीएसटी की चोरी
कैग ने अपनी रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाला खुलासा जीएसटी की चोरी की बाबत किया है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 से 2021 के दौरान 1,00,65,109 लेन-देन/अभिवहन पासों में 33,86,869 में क्रेता (खरीददार) की पंजीकरण संख्या नदारत थी और इनमें से (33,86,869 पासों में से) मात्र 91,817 पासों में जीएसटी संख्या दर्ज थी जिससे सीधा तात्पर्य यह है कि लगभग सभी उप-खनिज ऐसे व्यक्ति- संस्थाओं को बेचे गए जिनका जीएसटी के साथ कोई पंजीकरण नहीं था। कैग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से जीएसटी नुकसान की बात कही है।
सरकार ही निकली अवैध खनन की खरीददार
सबसे ज्यादा हैरान करने वाला सच कैग की रिपोर्ट में किया गया यह खुलासा है कि स्वयं राज्य सरकार की निर्माण एजेंसियों ने अवैध खनन के कारोबारियों से भारी मात्रा में उपखनिज खरीदे। कैग की रिपोर्ट में लिया गया है कि ‘सरकार की कुछ निर्माण एजेंसियों से प्राप्त सूचना के अनुसार, लेखा परीक्षा ने पाया कि ‘‘निर्माण एजेंसियों ने ठेकेदारों को अभिवहन पास के बिना (अर्थात अवैध रूप से खनन की गई सामग्री) अनुभाति 37 .7 लाख मैट्रिक टन खनन सामग्री का उपयोग करने की अनुमति दी थी।’’
इतना ही मानो काफी नहीं था, कैग ने अवैध खनन सामग्री का सरकारी निर्माण एजेंसियों द्वारा खरीदे जाने चलते अकेले देहरादून जिले में ‘न्यून्तम 104.48’ करोड़ रुपए की राजस्व हानि का अनुमान लगाया है। यह आकलन इस आधार पर किया गया कि अवैध खनन को यदि पकड़ा जाता तो राज्य सरकार नियमानुसार रॉयल्टी का पांच गुना जुर्माना लगाती। वर्ष 2017-18 से 2020-21 के दौरान देहरादून जिले में राजकोष में 26 ़02 करोड़ ऐसे उपखनिज की रायल्टी जमा की गई जो अवैध खनन कर निकाला गया था। यदि इस पर पांच गुना का जुर्माना लगाया जाता तो सरकार को 104.08 करोड़ अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होता, जो नहीं लिया गया।