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‘‘भाजपा का कूड़ा-करकट है लव जेहाद-थूक जेहाद’’

 

साक्षात्कार

 

राष्ट्रीय और उत्तराखण्ड राज्य के प्रमुख नेताओं में शुमार पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत 76 बरस की उम्र में भी खुद को राजनीतिक तौर पर प्रासंगिक बनाए हुए हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही रावत ‘एक अंतिम जीत’ की लालसा लिए कांग्रेस का झंडा और एजेंडा उठाए उत्तराखण्ड की परिक्रमा करने में जुटे हुए हैं। कांग्रेस की केंद्रीय कार्य समिति के सदस्य हरीश रावत संग ‘दि संडे पोस्ट’ के रोविंग एसोसिएट एडिटर आकाश नागर ने विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की

 

युवा राज्य और युवा नेताओं के मध्य एक 76 साल का नेता प्रदेश में सबसे ज्यादा सक्रिय दिखाई देता है। युवाओं संग आप सामंजस्य कैसे बिठा पाते है?
सामंजस्य नहीं बल्कि युवाओं को मुझ सरीखों से प्रेरणा लेनी चाहिए। 76 साल का हरीश रावत मेहनत परिश्रम करने से पीछे नहीं हट रहा है। 82 साल के खड़गे निरंतर संघर्ष कर रहे हैं, दौड़ रहे हैं, सत्ता को चुनौती दे रहे हैं। जो दूसरे लोग हैं उनको भी समझना चाहिए कि ये स्थिति संवैधानिक लोकतंत्र के लिए करो या मरो की है। आज अगर हम शक्ति का प्रयोग नहीं कर रहे और सीधे बल्ले से नहीं खेल रहे हैं तो फिर हम पिच पर खेलने लायक नहीं हैं।

2027 के लिए आप अपनी जो भी भूमिका चुनेंगे, क्या इस भूमिका को चुनने का निर्णय हरीश रावत का होगा या फिर आप इसमें कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की मंशा को भी तलाशंगे?

सभी के लिए नेतृत्व का निर्णय अंतिम होता है लेकिन मैं अपनी भूमिका थोड़े ही तलाश रहा हूं, समय मुझको भूमिका बता रहा है। समय का आदर करते हुए मैं अपनी बची-खुची ताकत को भी खड़ा कर रहा हूं। लोकसभा के चुनाव में यदि मुझे 10 दिन और मिलते तो मैं पासा पलट देता और केदारनाथ में अगर संसाधन और सत्ता का खेल नहीं हुआ होता तो वहां हम जीत जाते। जितनी मेरी क्षमता थी उस पर मैं लड़ता रहा। लोगों ने हमारी बात को सुना। लोग मुझको सुनना भी चाहते हैं। उनके बीच मैंने अपनी बात कही। इसका कितना असर उन पर हो रहा है यह तो आगामी दिनों में पता चलेगा।

हम अगर उत्तराखण्ड की बात करें तो क्या कभी आपने आत्म अवलोकन किया है कि उत्तराखण्ड को एक दिशा देने में आप एक बड़ी भूमिका निभा सकते थे। लेकिन ऐसा कर नहीं पाए। क्यों?
मैं किसी को दोष नहीं देता। जब मैं मुख्यमंत्री बना तब सामूहिक निर्णय लिए गए और उनको मैंने माना। वो लोग जो हमारे साथ खड़े रहे मैं उन पर कोई बात डालंू ये उचित नहीं। मेरे साथियों में कोई ऐसा साथी नहीं है जिसको मैंने अपनी बाहों का सहारा न दिया हो या जिसके साथ कभी न कभी मैं खड़ा न रहा हूं। मैं किसी को दोषारोपित करने के लिए कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा लेकिन मैं इतना जरूर कहना चाहूंगा कि इस राज्य के निर्माण के लिए बुनियादी प्रेरक तत्व और उन तत्वों को धरातल पर उतारने का अवसर यदि मुझे मिला होता तो आज का ये उत्तराखण्ड जिस तरीके से एक फड़फड़ाता हुआ उत्तराखण्ड है, वह न होता। आधे हिस्से में भयंकर पलायन हो रहा है और आधे हिस्से में आबादी का इतना बोझ हो गया है कि वो आबादी के बोझ से दबे पड़े है। वाइब्रेट विलेज की बात तो कह रहे है लेकिन यहां तो घोस्ट गांव की संख्या बढ़ रही है। हम गांवों में रहने वाले लोगों को एक अच्छा जीवन देना तो छोड़ो एक सुरक्षित जीवन भी नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे में कैसे हम अपेक्षा करें कि लोग बेहतर जीवन जी रहे हैं, मैंने एक भिन्न प्रकार के उत्तराखण्ड के निर्माण की हमेशा पैरवी की थी। आप हमारा 2002 का घोषणा पत्र देखिए, उस घोषणा पत्र में जिस उत्तराखण्ड की रचना की बात की गई थी उससे हम थोड़ा भटक गए। जब दो बार भटके तो मैंने आवाज उठाई। एक बार मैंने सरकार से कहा कि आप जमीन का कानून हिमाचल की तर्ज पर बनाईए। मैं आज कह रहा हूं मेरे पर भारी दबाव था। मैं तो चाहता था कि कुछ सालों के लिए जमीन बिक्री बंद हो और कुछ सालों के लिए इसे ढ़ाई सौ गज किया जाए। हमारे विजय बहुगुणा जी और सतपाल महाराज जी दूसरी लाइन पर सोचते थे। जिनके दबाव में ये 500 गज का हुआ। उत्तराखण्ड की रक्षा के लिए हमें शुरूआती दौर में ही कदम उठाने चाहिए थे। जमीन बचेगी तभी तो उत्तराखंडियत बचेगी। मैंने अब दिल्ली जाना भी कम कर दिया है। मुझे इस बात का संतोष है कि जितना समय मुझे विपरीत परिस्थितियों में मिला उसमें मैं उत्तराखण्ड के लिए जो बेस्ट कर सकता था उसे किया। हमने लोगों से कहा कि हमें आगे मौका दीजिए हम उत्तराखण्ड की न्यूनतम आय को 5 लाख तक पहुंचायेंगे। लेकिन हमको अवसर नहीं मिला। यदि उत्तराखण्ड पलायन का उत्तर ढूंढ़ रहा है, रोजगार को आगे बढ़ाने की योजना पर काम कर रहा है तो सरकार को हरीश रावत सरकार के मॉडल की तरफ जाना होगा। इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं।

पिछले 24 सालों में उत्तराखण्ड की राजनीति में भाजपा का ग्राफ निरंतर बढ़ता गया है जबकि कांग्रेस अपनी मजबूत जमीन खो रही है। ऐसा क्यों?
राजनीति में एक चक्र होता है। गुजरात मॉडल का एक चैलेंज उभर कर आया और मोदी जी भी एक चैलेंज के रूप में आए। उन्होंने बड़ी आकर्षक घोषणाएं की। उन्होंने कहा मैं 15 लाख हर खाते में दूंगा, उन्होंने कहा हर साल दो करोड़ नौकरियां दूंगा। लोगों को लगा कि जैसे किसी के तीन बच्चे है 5 होते तो पांचों को नौकरी मिल जाती। लोगों में ये कंपटिशन होने लगा कि उसके ज्यादा हैं मेरे कम हैं, अब तो सबकी नौकरियां लग जाएगी। किसानों से उन्होंने कहा कि हम आपकी आमदनी को दोगुनी कर देंगे और काला धन वापस ले आएंगे। उन लोगों को ये लगा कि ये काला धन वापस आएगा और हमारे खाते में जाएगा। उन्होंने इस तरह लिंकअप किया। लोगों ने अकल्पनीय सोच के लिए एक जादूगर को वोट दिया और वह जादू लोगों के दिमाग में आज भी है। वो एक जादू दिखाते हैं और जब तक उसका नशा उतरता है तब तक वो दूसरा जादू दिखा देते हैं। इस जादुई युग में 2017 में हम भी हार गए। ऐसा नहीं है कि लोग हमको वोट देना नहीं चाहते थे। पार्टी में इतनी बड़ी फूट पड़ी, इतने लोग निकल कर गए। यशपाल आर्य जैसे लोग निकल कर चले गए लेकिन उसके बावजूद हमारे 34 प्रतिशत वोट आए। ऐसा नहीं है कि उत्तराखण्ड हमारी योजनाओं को एप्रीसियेट नहीं कर रहा था लेकिन एक बड़ा जादूगर था वह दूसरे लोगों के वोट और हमारे साथी, सब अपने साथ समेटकर ले गया। जब जादू उतर जाएगा तो देख लेना कांग्रेस जिस पर हाथ रख देगी लोग कहेंगे वाह -वाह-वाह।

2017 की तगड़ी हार के बाद कांग्रेस में नेताओं के मध्य बेहतर समन्वय की जरूरत थी। वो उत्तराखण्ड के नेताओं में नजर नहीं आती। 2022 भी कांग्रेस हार गई। इसके लिए हरीश रावत खुद को कहां तक जिम्मेदार मानते है?
मुझको दृढ़ता से अपनी इस सोच पर कायम रहना था कि मैं चुनाव नहीं लडूंगा। यदि मैं चुनाव नहीं लड़ा होता तो पहली बात यह कि जिन लोगों ने फैलाया कि कांग्रेस 2027 का इंतजार कर रही है, वो बात नहीं उठती। यही कानाफूसी चली क्योंकि मैं था। मैंने लीडरशिप के सामने इस बात को रखा। दूसरी गलती यह रही कि अंतिम समय में आप मुझसे कह रहे हैं कि आप चुनाव लड़ो, लड़ना ही पड़ेगा। मेरे पास च्वाइस नहीं थी। जो च्वाइस थी उस पर आपने इतने बड़े ढक्कन लगा दिए और इतनी बड़ी बातें कर दी कि वो च्वाइस मेरे हाथ से निकल गई। खानपुर, रामनगर आदि विकल्प छीन लिए गए।

अन्ततोगत्तवा मुझको लालकुआं पटक दिया गया। मैं नहीं आना चाहता था। मुझे थोड़ा सा लोकसभा चुनाव के बाद इस बात का एहसास हो गया था कि मैं नैनीताल की कांग्रेस को अपने साथ नहीं रख पा रहा हूं और जब एक बेटी को विरोध करते हुए देखा जिसके लिए कहा गया था कि वो मान जाएगी आपका स्वागत करेगी, लेकिन जब वह नाराज दिखी तो मैंने पार्टी लीडरशिप को कहा कि मैं नहीं लड़ूंगा। मुझसे कहा गया कि तुम नहीं लड़ोगे तो इससे गलत संदेश जाएगा कि हरीश रावत नहीं लड़ रहे मतलब कांग्रेस खड़ी नहीं हो पा रही। मैंने यह जानते हुए भी हां की कि परिस्थितियां मेरे अनुकूल नहीं थी। इस तरह 2022 में जो हमारा प्लान था वह कार्यान्वित नहीं हुआ। दिल्ली से मुझे भेजा गया कि मेरे नेतृत्व में चुनाव होगा और चुनाव के बाद कांग्रेस लीडरशिप जिसको बनाएगी वही मुख्यमंत्री होगा। लेकिन देहरादून आते-आते ऑफिसली वो नारा बदल गया और सामूहिक नेतृत्व की बात कही जाने लगी। पूरे प्रचार से मुझे दूर रखा गया। मैंने 57 भाषण बनाए थे, प्लेटफॉर्म बनाए थे जहां मैं जा सकूं। उसके लिए वैन इत्यादि जो रखी गई थी उसमें एक जगह को छोड़कर मेरे वो भाषण कहीं नहीं सुनाए गए। केवल कुछ भाषण जिनको मैं फेसबुक में डाल सका, वही लोग सुन सके।

लेकिन 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले आपकी ही जिद पर उत्तराखण्ड कांग्रेस का अध्यक्ष बदला गया, विधायक दल के नेता को बदला गया। गणेश गोदियाल अध्यक्ष बने लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। क्या उस वक्त बदलाव का समय सही था?
पहली बात स्पष्ट कर रहा हूं कि बदलाव मेरे कहने पर नहीं किया गया था बल्कि लीडरशिप आंतरिक सर्वेक्षण चलते इस नतीजे पर पहुंची थी कि उस समय का जो नेतृत्व है, उसके नेतृत्व में हम चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह निर्णय लीडरशिप ने लिया था। हां नए नेतृत्व की च्वाइस में मैंने अपना पक्ष रखा था उसका पार्टी ने सम्मान किया। इसके लिए मैं पार्टी का बहुत आभारी हूं। मैं समझता हूं कि गोदियाल के रूप में मैंने उत्तराखण्ड कांग्रेस को सही रास्ते पर लाने का प्रयास किया। आप हमारे तराशे हुए लोगों को देख लीजिए वो सब हीरे थे लेकिन जब उन्होंने ही रास्ता बदल दिया तो इसमें मेरी क्या गलती? वो मेरे ही विरोध में खड़े हो गए तो मैं कुछ नहीं कह सकता। गणेश गोदियाल कल क्या करेंगे मैं नहीं जानता लेकिन आज गणेश गोदियाल उत्तराखण्ड कांग्रेस की धरोहर हैं, सशक्त नेता हैं यहां से राष्ट्रीय स्तर तक जाने की उनमें क्षमता है। इसके अलावा प्रीतम सिंह मुझसे बेहतर नेता हैं।

इतनी पराजयों के बाद भी उत्तराखण्ड कांग्रेस के नेता कोई सबक नहीं ले रहे। गुटबाजी का वही हाल है। प्रदेश कार्यकारिणी अभी तक घोषित नहीं हुई। ऐसे में कांग्रेस का लुंजपुंज संगठन 2027 में भाजपा के मजबूत कैडर से कैसे लड़ पाएगा?
इस पर मैंने काम करना बंद कर दिया है और मैं इस मामले में कुछ भी नहीं कर रहा हूं। इसलिए ये न समझा जाए कि कोई चीज होगी वो मेरे खाते में आनी है जैसा 2022 में नेतृत्व परिवर्तन को लोगों ने मेरे खाते में डाला। मेरे खाते में कोई चीज आए उससे बचने के लिए मैं दिल्ली नहीं जाता। आज भी मैं अपनी मां की सौगंध खाकर कह रहा हूं कि मैंने कभी नहीं कहा कि आप परिवर्तन कीजिए।

आरोप कहे या आम धारणा कि हरीश रावत ने अपने इर्द-गिर्द एक अच्छी मंडली नहीं रखी। जिसका परिणाम आज हरीश रावत के सामने है। एक समय हरीश रावत का हनुमान तक कहे जाने वाले उनके समर्थक आज उनके विरोधी खेमे में खड़े हैं। क्या आप कभी इस पर विचार करते हैं?
इसके लिए मुझे अपनी कुंडली दिखानी पड़ेगी। जिनको हम राजनीति के मैदान में लाए वह गोल करने के बजाए मुझको ही बाहर करना चाहते है। यूं ही कोई बेवफा नहीं होता, कुछ तो मजबूरी रही होगी।

”हमारी पार्टी प्रारंभ से ही सनातनी रही है। ‘वसुधैव कुटम्वकम’ और ‘सर्वधर्म सम्भाव’ कांग्रेस की पहचान रही है। कांग्रेस ने इनको आजादी की लड़ाई का हिस्सा भी बनाया। राम के साथ हमारा संबंध गांधीवादी है। ‘रघुपति राघव राजा राम’ दुनिया का सबसे बड़ा राम भजन है। वे गांधी ही थे जिन्होंने देश की आजादी में पंडित जवाहर लाल नेहरू और जय प्रकाश जी से कहा कि बिहार और उत्तर प्रदेश में गांव-गांव में जाएं और रामलीलाओं में भाग लें। राम को देश की आजादी संग कांग्रेस ने ही जोड़ा था। राम को भाजपा ने अपने अहंकार के लिए मुद्दा बनाया। लेकिन उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय लिया सबने उसको स्वीकार किया। हम अपने राम को किसी विद्वेष के लिए नहीं बल्कि शबरी के बेर खाने के लिए प्रचारित करते हैं। हमारे राम रावण तक से भी विद्वेष नहीं करते हैं और लक्ष्मण से कहते हैं कि ये ज्ञानी हैं, जाओ लक्ष्मण इन से ज्ञान लो और इनके पैरों की तरफ बैठो। विद्वेष हमारी संस्कृति नहीं है। सनातन हमारी परंपरा है। नेहरू को क्यों पंडित नेहरू कहा जाता था? वे सेकुलर तो थे ही लेकिन हिन्दुस्तान की परंपराओं के प्रतीक भी थे। इसलिए उनको पंडित जवाहर लाल नेहरू कहा जाता था। गोविंद बल्लभ पंत भी इसी सनातनी संस्कृति के प्रतीक थे। इसलिए ही वो पंडित गोविंद बल्लभ पंत थे। हरगोविंद पंत उत्तराखण्डी संस्कृति के प्रतीक थे इसलिए उनको पंडित हरगोविंद पंत कहा जाता था”

क्या कांग्रेस भीतर विचारधारा के स्तर पर विचलन हो रहा है। धर्म निरपेक्षता के दावों के बीच ‘साफ्ट हिंदुत्व’ पर अमल। लोकसभा चुनाव से पहले आप भी अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन कर आते हैं। क्या ये धर्मनगरी हरिद्वार को संदेश देने के लिए था, जहां से आपके बेटे लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे।

हमारी पार्टी प्रारंभ से ही सनातनी रही है। ‘वसुधैव कुटम्वकम’ और ‘सर्वधर्म सम्भाव’ कांग्रेस की पहचान रही है। कांग्रेस ने इनको आजादी की लड़ाई का हिस्सा भी बनाया। राम के साथ हमारा संबंध गांधीवादी है। ‘रघुपति राघव राजा राम’ दुनिया का सबसे बड़ा राम भजन है। वे गांधी ही थे जिन्होंने देश की आजादी में पंडित जवाहरलाल नेहरू और जय प्रकाश जी से कहा कि बिहार और उत्तर प्रदेश में गांव-गांव में जाएं और रामलीलाओं में भाग लें। राम को देश की आजादी संग कांग्रेस ने ही जोड़ा था। राम को भाजपा ने अपने अहंकार के लिए मुद्दा बनाया। लेकिन उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय लिया सबने उसको स्वीकार किया। हम अपने राम को किसी विद्वेष के लिए नहीं बल्कि शबरी के बेर खाने के लिए प्रचारित करते हैं। हमारे राम रावण तक से भी विद्वेष नहीं करते हैं और लक्ष्मण से कहते हैं कि ये ज्ञानी हैं, जाओ लक्ष्मण इन से ज्ञान लो और इनके पैरों की तरफ बैठो। विद्वेष हमारी संस्कृति नहीं है। सनातन हमारी परंपरा है। नेहरू को क्यों पंडित नेहरू कहा जाता था? वे
सेकुलर तो थे ही लेकिन हिन्दुस्तान की परंपराओं के प्रतीक भी थे। इसलिए उनको पंडित जवाहरलाल नेहरू कहा जाता था। गोविंद बल्लभ पंत भी इसी सनातनी संस्कृति के प्रतीक थे। इसलिए ही वो पंडित गोविंद बल्लभ पंत थे। हरगोविंद पंत उत्तराखण्डी संस्कृति के प्रतीक थे इसलिए उनको पंडित हरगोविंद पंत कहा जाता था। हमारी समझ हिंदुत्व की है और सनातनी है और भाजपा की समझ हिंदुत्व की तनातनी है। ये लड़ाई सनातनी और तनातनी की है।

आज जब भाजपा उत्तराखण्ड में पीढ़ीगत बदलाव की ओर बढ़ रही है, कांग्रेस अभी उस तरह की हिम्मत नहीं जुटा पाई है, क्या कारण है, क्या इससे कांग्रेस को बिखराव का भय है?
इससे बड़ा बदलाव क्या हो सकता है कि सबसे यंग आदमी हमारा अध्यक्ष है जो सारे प्रदेश में नाच रहा है। गणेश गोदियाल उससे पहले के यंग हैं। प्रीतम सिंह किसी यंग से कम हैं क्या? जनरेशन परिवर्तन कांग्रेस में हो रहा है। क्या हमारा विरेन्द्र परिवर्तन नहीं है? मैं तो पहले से ही जनरेशन परिवर्तन लेकर आया हूं। हमने मनोज तिवारी और हेमेश खर्कवाल को, जो छात्र संघ के अध्यक्ष थे और नगर पालिका के अध्यक्ष रहे, उनको विधानसभा का चुनाव लड़ाया। उसके बाद हरीश धामी को लेकर आए, ललित फर्सवान को लाए। इससे साबित होता है कि कांग्रेस के अंदर जनरेशन लीडरशिप है। इनको जरा सा रवां होने की जरूरत है। जब तक मैं हूं तब तक यदि मुझसे थोड़ा सा पॉजिटिव चीजे लें तो मैं समझता हूं कि आने वाले कल के ये बहुत अच्छे नेता बन सकते हैं।

24 वर्षों के उत्तराखण्ड राज्य का आकलन आप किस रूप में करते हैं?
अब राज्य को 25 साल होने जा रहे हैं। 25 साल में जिस उत्तराखण्ड ने कभी नशाखोरी के खिलाफ ‘नशा नहीं रोजगार दो’ का आंदोलन चलाया था वो आज ‘उड़ता उत्तराखण्ड’ हो रहा है। जिस तरह नशाखोरी बढ़ रही है और युवाआंे को अपने शिकंजे में ले रही है उससे स्पष्ट हो जाता है कि हम किस दिशा की तरफ जा रहे हैं। बेरोजगारी आज चरम पर है। पीआरडी की एक छोटी सी भर्ती हो रही है। उत्तराखण्ड के हजारों बेरोजगार पिथौरागढ़ में इस भर्ती में शामिल होने के लिए खेतों में और सड़कों पर सो रहे हैं। ये हकीकत रोजगार के दावों को झुठला रही हैं। महिला अत्याचार की स्थिति ये है कि यहां कई निर्भया कांड हो चुके हैं। हमारी दलित वर्ग की बेटियों के संग जिस तरीके से कई जगहों में घटनाएं घटी हैं वह चिंतनीय हैं। सत्ता इतनी मधांध है कि सत्ता के लोगों के नाम इन घिनौनी घटनाओं में आ रहे हैं। मुख्यमंत्री न चाहते हुए भी अपनी पार्टी के नेताओं का, जिनका नाम महिला उत्पीड़न में आ रहा है, उन्हें प्रोटेक्ट कर रहे हैं। अंकिता भंडारी से लेकर लालकुआं तक उनको ऐसे अपराधियों को प्रोटेक्ट करना पड़ रहा है। क्या यही वह उत्तराखण्ड है जिसके लिए बलिदान दिया गया था? महिलाओं के संघर्ष से बना उत्तराखण्ड आज महिलाओं की अस्मिता की रक्षा नहीं कर पा रहा है। गांव के गांव खाली हो गए हैं। बेरोजगारी की वृद्धि दर देश में उत्तराखण्ड में सर्वाधिक है। ऐसे राज्य की कल्पना तो नहीं की गई थी। इन सवालों का समाधान एक ही है। चाहे पच्चीस साल बाद करो चाहे तीस साल बाद करो, चाहे 34 साल बाद, करो समाधान यह है कि जो उत्तराखंडियत की सोच हमने दी, जिसके पौधे हमने लगाए उन्हीं के चारों तरफ उत्तराखण्ड को आना होगा।

आप जनता और कार्यकर्ता के साथ ही संगठन की नब्ज जानने वाले नेताओं में शुमार होते हैं। क्या इस बात को आप स्वीकार करेंगे कि मुख्यमंत्री बनने के बाद आपके व्यक्तित्व पर एक नेता की जगह एक प्रशासक हावी हो गया था?
ये आरोप मुझ पर सरासर गलत है। मैंने आमजन के मुख्यमंत्री के रूप में अपने आपको स्थापित करने के लिए सत्ता का उपयोग किया। मेरे घर से कभी कोई खाली हाथ वापस गया हो उसका कोई उदाहरण प्रस्तुत कर दें। मैंने गांव-गांव में लोगों की समस्याओं को सुना। एक मुख्यमंत्री को अच्छा जननेता भी होना पड़ता है। लेकिन अच्छा जननेता आप तब बनते हैं जब आप अच्छे प्रशासक हों। मैंने दोनों का समन्वय रखा। आप मेरे समय में देखिए, यात्राएं कुशलतापूर्वक चालू रहीं। मैंने प्रशासन से टेंट तक में काम करवाया है। लोगों से कहा कि गैरसैण में राजधानी बनने तक शासन को टैंट में ही चलाया जाएगा। मैंने कभी प्रशासन को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। बल्कि सेवक को प्रशासक के ऊपर हावी रखा।

जब आप मुख्यमंत्री बने तब आपने बॉर्डर एरिया के गांवों के विकास के लिए सीमांत विकास प्राधिकरण बनाया था। लेकिन आपका कार्यकाल खत्म होने के बाद यह प्राधिकरण भी निष्प्रभावी हो गया। हालांकि बार्डर एरिया के डवलपमेंट को वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा ‘वाइब्रेट विलेज’ जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं। आपकी ओर केंद्र की इस योजना में कितनी समानता है तथा किससे सीमांत का विकास हुआ है।
आज ड्रेनेज की समस्या सारे प्रदेश में है उसका हमने डिपार्टमेंट बनाया। हमने पर्वतीय चकबंदी का डिपार्टमेंट बनाया लेकिन आज कहां है वो डिपार्टमेंट? हमने एक जलसंवर्धन प्रकोष्ठ बनाया। हमने ‘मेरा गांव मेरी सड़क’ जिसे आप अब ‘मुख्यमंत्री सड़क योजना’ के रूप में देख रहे हैं, बनाई। हमको दिल्ली जाने की जरूरत कभी पड़ी ही नहीं। हमने ‘मेरा गांव मेरी सड़क’ योजना से ही सड़कें बनवाई। वन अधिनियम का तोड़ हमने निकाला। लेकिन आपने हमारी योजनाओं को कचरे के डब्बे में डाल दिया। इसी तरह से वृक्ष बोनस, दुग्ध बोनस, जल बोनस, बकरी पालन हो अथवा मंडुवा बोनस, ये सब मेरे कार्यकाल में शुरू किए गए। यदि आप चाहते हैं तो आपके पास वो मॉडल है जिसकी मैंने शुरूआत वर्षों पहले ही कर दी थी। मेरे पास सिर्फ तीन साल थे और उन तीन साल में सवा साल आपदा में गुजर गया था। उसके बाद एक साल तो मैं खुद राजनीति आपदा से लड़ने में लगा रहा। लेकिन लड़ते-लड़ते भी मैंने उत्तराखण्डियत के बीज बोए। अब इन लोगों ने उन बीजों के ऊपर तेजाब डाल दिया है। मैं इनको कोई दोष नहीं दे रहा हूं। यदि आज सीमांत प्राधिकरण काम नहीं कर रहा है तो मेरी गलती नहीं है। आप अब जिसे वाइब्रेट विलेज कह रहे हैं वह तो घोस्ट विलेज बन चुके हैं। विलेज तो ऐसे ही होंगे जैसे सांसदों द्वारा गांव गोद लेने का ड्रामा किया गया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बार-बार डेमोग्राफी चेंज की बात कह रहे हैं। धामी जी की इस डेमोग्राफी चेंज की बात से आप कितना इत्तेफाक रखते हैं। क्या आपको लगता है कि प्रदेश में डेमोग्राफी चेंज हो रहा है?
मेरे पास सबके कल्याण की योजना का कंसेप्ट था। मैंने बंगालियों को लक्ष्य बनाकर उनके कल्याण की योजना बनाई चाहे वो हमको वोट नहीं दे रहे। मैंने छिटपुट जातियों के लिए सारे घाटों में पूजा-पाठ और तीज त्योहार की व्यवस्था कराई। जिसको यहां कोई जानता भी नहीं है। राजभर लोगों के लिए मैंने सुहेलदेव की मूर्ति की स्थापना कराई। जिस काम की आज भाजपा नकल कर रही है। लेकिन इन्होंने मुझे एक धर्म का समर्थक या पोषक और हिंदू के विरोध में खड़ा कर दिया। मैं चाहता हूं कि हिंदू किसी के विरोध में न हो क्योंकि हिंदू शब्द में विरोध है ही नहीं। हिंदू तो हर धर्म-संप्रदाय को आत्मसात करता है। हिंदू के मामले में मेरी सोच अलग है तो भाजपा की दूसरी है। इसलिए मैं इस विषय पर ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगा। ये डेमोग्राफी चेंज, लव जिहाद, इत्यादि भाजपा का कूड़ा-करकट है।

मैं चुनौती देकर कह रहा हूं जितने लोग आए हैं जितने कब्जे हुए हैं, भाजपा के समय में हुए हैं, इसमें भाजपा का एडमिनिस्टेटिव फेलियर है। जिसको श्री धामी एडमिट कर रहे हैं। लव जिहाद के रूप में तो आप हमारे ऊपर एक कलंक थोप रहे हैं। क्या इससे देश-दुनिया में ये संदेश नहीं जा रहा है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां लव जिहाद से क्या होता है? मुझे कहने तक की हिम्मत नहीं आ रही है। आप ऐसा कहकर हमारी बहनों-बेटियों का अपमान कर रहे हैं। लेकिन जब लोगों को ये लोरी जैसा लग रहे हैं तो मैं क्या कर सकता हूं? उत्तराखण्ड के लोग ये लोरी सुनकर खुश हैं। आजकल तो थूक जिहाद चला रखा है। कोई खाने में थूक रहा है। ऐसे व्यक्ति को तो हर धर्म वाला जूते मारेगा। अब आप उसको जिहाद बना दे रहे हैं। अरे भाई थूक जिहाद तो छोड़ों मूत जिहाद भी हो गया। गाजियाबाद में तो एक हिंदू महिला तांत्रिकों के चक्कर में आकर मूत में खाना बनाती रही और खिलाती रही तो ये मूत जिहाद भी है। उत्तराखण्ड पलायन के खिलाफ जिहाद मांगता है, उत्तराखण्ड बेरोजगारी के खिलाफ जिहाद चाहता है और इसके लिए हम सबको सामूहिक रूप से लड़ना होगा।

”हिंदू तो हर धर्म-संप्रदाय को आत्मसात करता है। हिंदू के मामले में मेरी सोच अलग है तो भाजपा की दूसरी है। इसलिए मैं इस विषय पर ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगा। ये डेमोग्राफी चेंज, लव जिहाद, इत्यादि भाजपा का कुड़ा करकट है। मैं तो चुनौती देकर कह रहा हूं जितने बाहरी लोग आए हैं, जितने कब्जे हुए हैं, भाजपा के समय में हुए हैं। इसमें भाजपा का एडमिनिस्टेटिव फेलियर हैं। जिसको श्री धामी एडमिट कर रहे हैं। लव जिहाद के रूप में तो आप हमारे ऊपर एक कलंक थोप रहे हैं­­­। क्या इससे देश-दुनिया में ये संदेश नहीं जा रहा है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां लव जिहाद से क्या होता है? मुझे कहने तक की हिम्मत नहीं आ रही है। आप ऐसा कहकर हमारी बहनों-बेटियों का अपमान कर रहे हैं। लेकिन जब लोगों को ये लोरी जैसे लग रहे है तो मैं क्या कर सकता हूं? उत्तराखण्ड के लोग ये लोरी सुनकर खुश हैं। आजकल तो थूक जिहाद चला रखा है। कोई खाने में थूक रहा है। ऐसे व्यक्ति को तो हर धर्म वाला जूते मारेगा। अब आप उसको जिहाद बना दे रहे हैं। उत्तराखण्ड पलायन के खिलाफ जिहाद मांगता है, उत्तराखण्ड बेरोजगारी के खिलाफ जिहाद चाहता है और इसके लिए हम सबको सामूहिक रूप से लड़ना होगा”

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