गत् 31 अक्टूबर को उत्तराखण्ड दौरे पर पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ‘मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना’ के बहाने उत्तराखण्ड में चुनावी रणनीति की एक बड़ी बिसात बिछा गए। इस बिसात में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ही अगला मुख्यमंत्री घोषित करने के साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को चुनाव में मुख्य विरोधी बताकर अमित शाह ने स्पष्ट संकेत दे डाले हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के चुनावी एजेंडे में कांग्रेस से ज्यादा हरीश रावत ही रहने वाले हैं।
गौरतलब है कि गृहमंत्री ने अपने लंबे वक्तव्य में आम आदमी पार्टी का एक बार भी जिक्र नहीं किया। अमित शाह का पूरा वक्तव्य हरीश रावत पर केंद्रित रहा। कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर जमकर आरोप लगाते हुए शाह ने स्टिंग और डेनिश शराब को लेकर तंज कसे साथ ही हरीश रावत की दुखती रग छेड़ते हुए नमाज के लिए छुट्टी दिए जाने का जिक्र करके धार्मिक धु्रवीकरण की तरफ भी चुनावी कैम्पेन का रुख मोड़ दिया। हरीश रावत के कार्यकाल में विधानसभा चुनाव से पूर्व प्रदेश के सरकारी विभागों में कार्यरत मुस्लिम कर्मचारियों के लिए शुक्रवार की नमाज के लिए दो घंटे की छुट्टी देने की घोषणा की गई थी। इस घोषणा को सरकार की तुष्टीकरण की नीति के तौर पर देखा गया था। स्वयं कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेता भी इसे गैर जरूरी मान रहे थे। अब चुनावी रण में हरीश रावत की इस घोषणा को लेकर भाजपा हरीश रावत पर हमलावर हो रही है जिसका आगाज स्वयं अमित शाह ने कर दिया है। शाह का हरीश रावत पर धार्मिक तुष्टीकरण के आरोप लगाने से यह भी साफ हो गया है कि आने वाले चुनाव में भाजपा और उसके नेता रावत पर ही पूरा फोकस करने वाले हैं।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक जिस तरह हरीश रावत कांग्रेस को मजबूत कर रहे हैं, वह भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होने वाली है। अभी तक के तमाम चुनावी सर्वे भी रावत की लोकप्रियता सामने रख रहे हैं, जिसके चलते भाजपा कांग्रेस के बजाय उन पर फोकस कर रही है। यही कारण है कि अमित शाह ने अपने वक्तव्य में रावत के स्टिंग प्रकरण और धार्मिक तुष्टिकरण के आरोपों के तीर जमकर चलाए।
कांग्रेस के पंजाब प्रभारी पद से मुक्त हो रावत की सक्रियता प्रदेश में पहले से ज्यादा देखने को मिली है। भाजपा पर कांग्रेस के बजाय हरीश रावत ही ज्यादा हमलावर है। अमित शाह इसी के चलते कांग्रेस के अन्य नेताओं के बजाय हरीश रावत पर ही हमलावर रहे। गौरतलब है कि बीते पांच सालों में भाजपा नेताओं द्वारा हरीश रावत के स्टिंग प्रकरण और ‘डेनिश’ शराब को लेकर कोई खास चर्चा तक नहीं की।हालांकि शराब को लेकर उठ रहे आरोपों का चुनाव में क्या असर होगा यह तो अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन राजनीतिक जानकार इसे चुनावी रणनीति का ही एक बड़ा हिस्सा मान रहे हैं।
त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय में रुड़की और देहरादून में अवैध शराब के मामले में लोगांे की मौत और प्रदेश में शराब के करखाने लगाए जाने पर कांग्रेस भाजपा पर लगातार हमलावर रही है। देवप्रयाग के समीप शराब का कारखाना खोले जाने को लेकर स्वयं भाजपा नेताओं ने खासा विरोध जताया था। कांग्रेस ने इसे भाजपा का असल शराब प्रेम बताकर सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी तरह से हरीश रावत सरकार में सामने आए स्टिंग ऑपरेशन का मामला सीबीआई के हवाले कर भाजपा तो भूल गई लेकिन त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय जो स्टिंग ऑपरेशन सामने आए, कांग्रेस ने उन पर जमकर बवाल काट बढ़त हासिल कर ली है।
हरीश रावत की बढ़ती लोकप्रियता और उनके राजनीतिक कौशल के त्रस्त भाजपा ने अब धार्मिक तुष्टिकरण का मुद्दा उठा रावत को घेरने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इसकी शुरुआत कुछ अर्सा पहले भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी ने की थी जिसे अब चुनावी हथियार का रूप केंद्रीय गृहमंत्री ने दे डाला है। इसकी काट के लिए रावत ने भाजपा से इस बाबत उनकी सरकार द्वारा जारी किए गए शासनादेश को सामने लाने की चुनौती दे दिया है। रावत का कहना है कि ऐसा कोई आदेश उनके द्वारा दिया ही नहीं गया था। भाजपा झूठे आरोप लगा भ्रम फैलाने का काम कर रही है। रावत के इस कथन पर भाजपा मौन धारण किए हुए है। जानकारों का कहना है कि नमाज के लिए शुक्रवार को अवकाश दिए जाने संबंधी कोई शासनादेश है ही नहीं इसलिए रावत की चुनौती को भाजपा इग्नौर कर रही है। कुल मिलाकर केंद्रीय गृहमंत्री का इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना स्पष्ट संकेत दे रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में डबल इंजन की सरकार से नाराज जनता को साधने के लिए भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण का सहारा लेने जा रही है। साथ ही उसकी चुनावी कैम्पेन का टारगेट कांग्रेस के बजाय हरीश रावत रहने वाले हैं।