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Uttarakhand

आप की धमक से सकते में भाजपा-कांग्रेस

उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल की विधानसभा सीट चंपावत में इस दफे चुनावी मुकाबला आम आदमी पार्टी के कारण रोचक होने के साथ-साथ त्रिकोणीय होने जा रहा है। यहां के वर्तमान विधायक भाजपा से हैं। अपना अधिकांश समय क्षेत्र से बाहर व्यतीत करने वाले विधायक कैलाश गहतोड़ी को पार्टी ने दोबारा प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस से पूर्व विधायक हेमेश खर्कवाल मैदान में हैं तो आम आदमी पार्टी से मदन सिंह महर ताल ठोंक रहे हैं

 

उत्तराखण्ड पांचवीं विधानसभा के लिए अपना जनप्रतिनिधि चुनने के लिए तैयार है। राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए हैं। कुमाऊं के इतिहास में चंपावत का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। चंद राजाओं की कर्मस्थली रहा चंपावत में चंद राजाओं का शासनकाल 869 वर्षों तक रहा। 1872 में तहसील का दर्जा पाने वाला चंपावत 1972 में पिथौरागढ़ जनपद का हिस्सा बना। 1997 में इसे पिथौरागढ़ से पृथक कर चंपावत को तत्कालीन मायावती सरकार ने जिले का दर्जा दे दिया।

उत्तराखण्ड राज्य बनने से पहले चंपावत विधानसभा का पर्वतीय इलाका पिथौरागढ़ विधानसभा का हिस्सा था। बनवसा और टनकपुर का क्षेत्र तब खटीमा विधानसभा का हिस्सा थे। 2002 में चंपावत विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। चंपावत जिले में लोहाघाट और चंपावत दो विधानसभा क्षेत्र हैं। चंपावत विधानसभा की बात करें तो 2002 से 2017 तक हुए चार विधानसभा चुनावों में यहां पर 2002 और 2012 में कांग्रेस तथा 2007 और 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज कराई। 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के हेमेश खर्कवाल यहां से विधायक चुने गये। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस भीतर भारी बगावत देखने को मिली थी। जहां कांग्रेस से बगावत कर विमला सजवाण मैदान मंे उतरीं वहीं भाजपा से मदन सिंह माहराना बगावत कर निर्दलीय मैदान में थे। माहराना की बगावत के चलते भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी हयात सिंह माहरा को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। यहां पर भाजपा के बागी मदन सिंह महाराना और कांग्रेस के विजयी प्रत्याशी हेमेश खर्कवाल के मध्य मात्र 500 वोटों का अंतर था। भाजपा के प्रत्याशी हयात सिंह माहरा और बागी प्रत्याशी माहराना के संयुक्त मतों का जोड़ 15728 था जो हेमेश खर्कवाल को कुल मिले मतों 8380 से कहीं अधिक था। 2007 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने मदन सिंह माहराना की पत्नी बीमा माहराना को अपना प्रत्याशी बनाया। हेमेश खर्कवाल कांग्रेस के प्रत्याशी थे। बीना माहराना हेमेश खर्कवाल को पराजित कर विधानसभा पहुंची। 2012 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने हरि प्रिया उर्फ ‘हेमा जोशी’ को अपना प्रत्याशी बनाया वहीं कांग्रेस से हेमेश खर्कवाल प्रत्याशी थे। इन चुनावों में भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर मदन सिंह महर बगावत कर बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़े। उनकी बगावत के चलते 2012 में भाजपा प्रत्याशी फिर तीसरे स्थान पर जा पहुंचे थे। कांग्रेस के हेमेश खर्कवाल यहां से विजयी रहे। 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने कैलाश गहतोड़ी को अपना प्रत्याशी बनाया जिन्होंने चंपावत विधानसभा क्षेत्र से लगातार चैथी बार कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में उतरे हेमेश खर्कवाल को भारी अंतर से हरा दिया। इस प्रकार देखा जाए तो 2002 से 2017 तक हुए चार विधानसभा चुनावों में दो बार कांग्रेस और दो बार भाजपा का कब्जा रहा है। खास बात ये है कि जब भी यहां से भाजपा के बागी उम्मीदवार खड़े हुए, भाजपा मुख्य लड़ाई से बाहर ही रही और उसे तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।

2022 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो यहां कांग्रेस-भाजपा को आप से कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। आम आदमी पार्टी ने यहां से मदन सिंह महर को प्रत्याशी बनाया है। पूर्व में आरटीआई एक्टिविस्ट और समाज सेवी रहे मदन सिंह महर एबीसी ‘अल्मा मातेर’ के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। चंपावत विधानसभा में शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े मदन सिंह महर 2012 के विधानसभा चुनावों से सक्रिय राजनीति में आए। महर ने 2012 का चुनाव बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़ा और 27 प्रतिशत वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। एक दिन में 365 आरटीआई आवेदन डालने वाले मदन सिंह महर ने 2012 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। 2013 में बसपा छोड़ 2014 में भाजपा में शामिल हुए महर 2017 में भाजपा से विधानसभा चुनावों में सशक्त दावेदार थे लेकिन भाजपा ने उनकी मजबूत दावेदारी को दर किनार कर कैलाश गहतोड़ी को उम्मीदवार बनाया। कैलाश गहतोड़ी की कार्यशैली से नाराज महर ने 2018 में भाजपा छोड़ दी और 2021 में आम आदमी पार्टी में शामिल हो गये। मदन सिंह महर का कहना है ‘विधायकों से उनके कार्यकाल का हिसाब मांगने की आप पार्टी की मुहिम चलते वर्तमान विधायक से उनके कार्यकाल का हिसाब मांगने के लिए चंपावत जिला मुख्यालय से ढाई सौ किलोमीटर दूर उनके आवास काशीपुर जाना पड़ा क्योंकि विधायक अपने क्षेत्र में उपलब्ध ही नहीं होते हैं। अपने अठारह सौ दिनों के कार्यकाल में विधायक अपने विधानसभा क्षेत्र में शायद सौ दिन भी नहीं आए होंगे। आम आदमी पार्टी इस क्षेत्र में पूरी शिद्दत के साथ विधानसभा चुनावों के लिए डटी है।’

भारतीय जनता पार्टी में दावेदारों की एक लंबी लिस्ट थी। लेकिन पार्टी ने सीटिंग विधायक को ही यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। 2017 के विधानसभा चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और संघ पृष्ठभूमि के बड़े नेताओं की कृपा के चलते भाजपा का टिकट पा गए कैलाश गहतोड़ी मोदी लहर बदौलत चुनाव जीत गए थे। लेकिन इस बार पार्टी के अंदर और जनता का मिजाज देखते हुए लगता है कि उनकी राह कतई आसान नहीं है। पार्टी के अंदर उनके लिए उठते असंतोष के स्वर भाजपा को भारी पड़ने जा रहे हैं। उन पर आरोप हैं कि विधायक निधि से कराए गए निर्माण कार्यों की ठेकेदारी में उनके परिवार के ही लोग शामिल हैं। भाजपा के सूत्रों की मानें तो कैलाश गहतोड़ी के कार्यकाल में भाजपा का कैडर बिखराव के कगार पर है जिसे समेट पाना आसान नहीं होगा। गहतोड़ी के बारे में भाजपा के अंदर भी शिकायत है कि उनका अधिकतर समय काशीपुर में ही बीतता है और अपनी विधानसभा में उनके दर्शन कभी-कभार ही होते हैं। चंपावत विधानसभा में भाजपा की राजनीति चुनावी दृष्टि से देखें तो 2002 से लेकर 2017 तक के विधानसभा चुनावों में भाजपा हर बार नया प्रत्याशी लाई है। कोई प्रत्याशी को दोबारा टिकट नहीं दिया है। भाजपा ने हमेशा चंपावत विधानसभा के मूल नेताओं की उपेक्षा कर बाहर के उम्मीदवार को टिकट दिया है। भाजपा कार्यकर्ताओं का मानना है कि पार्टी ने इस बार भी वही भूल दोहराई है जिसका खामियाजा भुगताना पड़ेगा। पार्टी के ही एक पदाधिकारी का कहना है कि अगर विधायक को ‘विजय संकल्प यात्रा’ के दौरान नदियों के गेट बंद करवा कर वहां खनन में लगे मजदूरों की समर्थक बता कर भीड़ जुटाने की कवायद करनी पड़े तो समझा जा सकता है कि उनका पार्टी कार्यकर्ताओं से इन साढ़े चार सालों में कैसा सामंजस्य रहा होगा।

 

चंपावत विधानसभा में 2002 से 2007 और 2012 से 2017 तक की अवधि में जो विकास कार्य मेरे कार्यकालों में स्वीकृत और शुरू हो गए थे वो भाजपा के कार्यकाल में ठहर गए। मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि 2012 में मुझे उन विकास कार्यों की शुरुआत वहीं से करनी पड़ी मैं जहां पर छोड़कर गया था। भाजपा के कार्यकाल में विकास ठहर सा गया और उन्होंने चंपावत विधानसभा को विकास के पैमाने पर कई सालों पीछे धकेल दिया।
हेमेश खर्कवाल, कांग्रेस प्रत्याशी, चंपावत

भाजपा जिलाध्यक्ष दीप चन्द्र पाठक, पूर्व जिलाध्यक्ष एडवोकेट शंकर दत्त पाण्डे और युवा नेता गोविंद सामंत भी पार्टी से टिकट की दावेदारी कर रहे थे। शुरुआत से ही संघ से जुड़े दीप चन्द्र पाठक बूथ अध्यक्ष पद से जिलाध्यक्ष पद तक पहुंचे हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष, भाजपा की जिला इकाई के महामंत्री व वर्तमान में जिलाध्यक्ष दीप चन्द्र पाठक की दावेदारी 2012 के विधानसभा चुनावों में उनकी कम उम्र के चलते खारिज कर दी गई थी। 2017 के विधानसभा चुनावों में उनकी सशक्त दावेदारी बड़े नेताओं की भेंट चढ़ गई जब इन नेताओं के आशीर्वाद के चलते कैलाश गहतोड़ी टिकट पा गए। 2019 में टनकपुर नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव बहुत कम अंतर से हारे दीप चन्द्र पाठक गहतोड़ी को टिकट दिए जाने से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। 36 वर्षों से पार्टी संगठन से जुड़े एडवोकेट शंकर दत्त पाण्डे भी चंपावत सीट से भाजपा के सशक्त दावेदारों में से एक थे। भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष रह चुके शंकर दत्त पाण्डे इस बार चंपावत विधानसभा के मूल निवासी को ही उम्मीदवार बनाने के पक्ष में थे। भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य पाण्डे संगठन के हर छोटे बड़े पद पर रह चुके हैं। पाण्डे भी पार्टी के निर्णय चलते बेहद खिन्न हैं।

हम राजनीति करने नहीं, राजनीति बदलने आए हैं। राजनीति में बदलाव समय की भी मांग है। कांग्रेस भाजपा दोनों ने एक जैसे ही काम किए हैं। कांग्रेस ‘ए’ टीम है तो भाजपा ‘बी’ टीम है। जब ये दोनों दल इस बार जनता के मध्य जाएंगे तो जनता इनसे सवाल पूछेगी। मुझे नहीं लगता कि इनके पास अपनी उपलब्धियों के विषय में कुछ ठोस जवाब होंगे। आम आदमी पार्टी जमीनी स्तर पर काम करेगी ताकि सत्य जनता के सामने आए। हम केजरीवाल जी द्वारा दिल्ली में आम जनता को उपलब्ध कराई गई सुविधाएं उत्तराखण्ड की जनता को भी देने के लिए प्रतिबद्ध और वचनबद्ध हैं।
मदन सिंह महर, विधानसभा प्रभारी, आप चंपावत

कांग्रेस की बात करें तो पिछले चार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने हरीश रावत के विश्वस्त हेमेश खर्कवाल पर ही भरोसा जताया है। दो चुनावों में जनता ने उन्हें विधायक बनाया। अपने दो कार्यकालों का जिक्र करते हुए हेमेश खर्कवाल का कहना है कि ‘2002 से 2007 और 2012 से 2017 तक के समय में कांग्रेस की सरकार से जो मैंने कार्य स्वीकृत करवाए आने वाले जनप्रतिनिधि उसमें निरंतरता नहीं रख पाए। 2002 से 2007 मेरे कार्यकाल में शुरू किए गये विकास कार्य 2007 से 2012 तक ठप्प रहे। पूरे चंपावत में विकास के नाम पर ठहराव सा दिखा। यही हाल 2017 के बाद अब तक है। जब विकास पूरे चंपावत में दिख नहीं रहा है। भाजपा और विधायक विकास के नाम पर जनता के बीच वोट मांगने नहीं जा सकते। लेकिन मुझे अफसोस होता है कि भाजपा सरकारों में विकास की निरंतरता की कमी के चलते मुझे अपने क्षेत्र के कार्यों को वहीं से शुरू करना पड़ा मैं जहां छोड़ गया था।’

खर्कवाल का कहना है कि उत्तराखण्ड में पहली तहसील उनके समय में नारायण दत्त तिवारी सरकार में पूर्णागिरी बनी चंपावत तहसील बनने पर एसडीएम का पद लोहाघाट में दिया गया। जनता की मांग पर उन्होंने जिला मुख्यालय में एसडीएम का पद सृजित करवाया। दर्जनों हाई स्कूल इंटर काॅलेज बनाए एवं उच्चीकृत करवाएं। टनकपुर में अस्पताल, सूरवीदांग-डांडा मोटर मार्ग जिसकी बरसों पुरानी मांग थी वो बनवाया। ट्रामा सेंटर, तल्ला देश और रीठा साहब में इंटर काॅलेज सहित कई स्कूल स्वीकृत करवाए। टनकपुर में डिग्री काॅलेज, बनवसा में डिग्री काॅलेज, अमोड़ी जैसे ग्रामीण क्षेत्र में डिग्री काॅलेज उनके ही कार्यकाल में खुला। चंपावत की पेयजल समस्या के निदान हेतु 30 करोड़ की लागत से पंपिंग योजना स्वीकृत करवाने की बात, खर्कवाल करते हैं। वे कहते हैं कि ‘अठारह माह में इस योजना को पूरा हो जाना था लेकिन हमारे विधायक उसे आज भी चालू नहीं करवा पाए हैं। दो पाॅलिटेक्निक, दो आईटीआई तथा 26 करोड़ की लागत से चंपावत में इंटिग्रेटेड नर्सिंग काॅलेज स्वीकृत करवा कर नया बिल्डिंग भी तैयार है लेकिन इस सरकार के पिछले पांच सालों में ये यहां कक्षाएं तक चालू नहीं करवा पाए। जिला मुख्यालय को जोड़ने वाली हर सड़क को हाॅटमिक्स करवा कर गया था। अब आप सड़कों के हाल देखिए।’

कांग्रेस और भाजपा को बारी-बारी से अवसर देने वाली चंपावत विधानसभा में इस बार रोचक संघर्ष की उम्मीद है। मदन सिंह महर के साथ आप पार्टी का बढ़ता प्रभाव भाजपा और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। भाजपा के लिए यहां एक बड़ा संकट कैलाश गहतोड़ी के प्रति लोगों की नाराजगी के साथ-साथ एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर भी है।

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