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Uttarakhand

खूबसूरत योजना की बदरंग तस्वीर

कुंभ तैयारियों की हकीकत/भाग-तीन

धर्मनगरी को खूबसूरत बनाने के लिए कुंभ मेला प्रशासन ‘पेंट माय सिटी’ योजना लेकर आया। जगह-जगह धार्मिक पेंटिंग करवाकर प्रशासन अपनी पीठ थपथपा सकता है। लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि पेंटिंग का जो कार्य स्थानीय संस्थाएं कम दरों पर करना चाहती थी, तो महाराष्ट्र, दिल्ली और बिहार जैसे बाहरी प्रदेशों की संस्थाओं को मोटी दरों पर बुलाने की क्या जरूरत थी। एक बात और कि भवनों पर देवी-देवताओं के चित्र ऐसी जगहों पर बना दिए गए जहां शौचालय हैं। इससे श्रद्धालु दुखी हैं

भव्य व दिव्य कुंभ के नाम पर वाहवाही लूटने के प्रयासों में लगे मेला प्रशासन ने करोड़ों रुपए लागत की महत्वाकांक्षी योजना ‘पेंट माय सिटी’ को लेकर खुद ही अपनी पीठ थपथपाई। लेकिन इस योजना में भारी भ्रष्टाचार को लेकर आरोप- प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। ऐसा लगता है कि यह महत्वाकांक्षी योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। शहर की सूरत संवारने के नाम पर शुरू की गई पेंट माय सिटी योजना मेले की अधिसूचना जारी होने से पूर्व ही मेला प्रशासन के लिए फजीहत का सबब भी बनती नजर आ रही है।

धर्मनगरी हरिद्वार के तमाम सरकारी और धार्मिक भवनों पर पेंट माय सिटी योजना के अंतर्गत धार्मिक चित्रकारी की गई है। शायद प्रशासन का मकसद इस धार्मिक चित्रकारी के जरिये श्रद्धालुओं को प्रभावित करना हो, लेकिन स्थिति बिल्कुल इसके उलट है। चूंकि चित्रकारी भवनों के काफी निचले हिस्से पर भी की गई है। ऐसे में मेला क्षेत्र में शौचालयों की कोई समुचित व्यवस्था न होने के चलते धार्मिक नगरी में जगह-जगह की गई चित्रकारी पर राहगीर शौच करते नजर आ रहे हैं। पेंट माय सिटी की शुरुआत जनवरी माह में शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने की थी। तब उन्होंने इस योजना की तारीफों में काफी कसीदे पढ़े थे। योजना का मकसद कुंभ से पूर्व धर्म नगरी को आध्यात्मिक रूप देने को लेकर था। जिसके अंतर्गत हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण एवं राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को यह जिम्मा सौंपा गया था। जहां एक ओर हरिद्वार के तमाम धार्मिक स्थलों सहित सरकारी भवनों पर धार्मिक चित्र की पेंटिंग का जिम्मा हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण तो तमाम फ्लाईओवर पर पेंटिंग नेशनल हाईवे अथारिटी ऑफ  इंडिया को दिया गया था। कुंभ को लेकर जारी की जाने वाली अधिसूचना भले ही अभी तक जारी ना हुई हो, परंतु मेला प्रशासन की इस महत्वाकांक्षी योजना में भ्रष्टाचार की बू आने लगी है। जहां एक ओर एचआरडीए द्वारा कराई जाने वाली वाॅल पेंटिंग का रेट 120 फुट तय कर बाहरी संस्थाओं को करोड़ों रुपए का कार्य दिया गया है, तो वहीं दूसरी ओर इसी तरह की पेंटिंग का कार्य नेशनल हाईवे ऑफ अथाॅरिटी द्वारा मात्र 25 रुपए फुट पर दिया गया है।

हैरत की बात यह है कि एचआरडीए द्वारा कराई जा रही वाॅल पेंटिंग और एनएचएआई द्वारा कराई जा रही वाॅल पेंटिंग में एक ही तरह का मैट्रियल एवं एक ही तरह की आध्यात्मिक पुरानी चित्रों की वाॅल पेंटिंग कराई जा रही है। उसके बावजूद 5 गुना अधिक रेट दिया जाना किसी के गले नहीं उतर रहा है। बीते दिनों पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी पेंट माय सिटी को लेकर मेला प्रशासन पर कटाक्ष करते हुए भ्रष्टाचार का आरोप लगा चुके हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वाॅल पेंटिंग के कार्यों को करा रही निजी संस्थाएं चाहे वह एचआरडीए से जारी कार्यों को करने वाले हों या फिर एनएचएआई के कार्यों को करती आ रहे हों, सभी संस्थाएं वाॅल पेंटिंग के कार्य में लगे मजदूरों को एक हीं, रेट पर मजदूरी का भुगतान कर रही हैं। इसके बावजूद एचआरडीए द्वारा 5 गुना भुगतान किया जाना सीधे- सीधे भारी गोलमाल की ओर इशारा कर रहा है।

गौरतलब है कि जिस समय धर्म नगरी में पौराणिक एवं धार्मिक वाॅल पेंटिंग के माध्यम से भव्य रूप दिए जाने की योजना का प्रारंभ किया गया था उसी समय से वाॅल पेंटिंग के कार्यों को संपादित करने वाली संस्थाओं या निजी एजेंसियों द्वारा मेला प्रशासन से संपर्क स्थापित कर बहुत कम दरों पर वाॅल पेंटिंग करने की जानकारी दी गई थी। बावजूद इसके मेला प्रशासन ने भारी संस्थाओं जैसे महाराष्ट्र, बिहार और दिल्ली जैसे प्रदेशों से आई हुई संस्थाओं को महंगी दरों पर वाॅल पेंटिंग का कार्य दे दिया। ऐसे में 25 रुपए फुट की दर देने वाली स्थानीय संस्थाएं मेला प्रशासन का मुंह ताकती रह गई। एचआरडी द्वारा कराई जा रही वाॅल पेंटिंग में मानकों की बात करें तो अनुबंध के विपरीत मानकों की धज्जियां उड़ाते हुए भारी संस्थाओं द्वारा वाॅल पेंटिंग के कार्य को किया जा रहा है। अनुबंध के अनुसार पेंटिंग से पूर्व कार्यदायी संस्थाओं को प्रेशर वाटर पंप से दीवारों की धुलाई के साथ-साथ लोहे के ब्रश से दीवारों की सफाई और पेंटिंग के स्थानों पर टूटे हुए प्लास्टर को रिपेयर कराकर उसके बाद पुट्टी भरकर ही कार्य को किया जाना था, परंतु कहीं भी अनुबंध में तय शर्तों का पालन नहीं किया जा रहा है। यही नहीं अब तो मेला प्रशासन खुद ही धार्मिक वाॅल पेंटिंग की आस्था के साथ खिलवाड़ भी करता नजर आ रहा है।

जिस आस्था और विश्वास के साथ धर्म नगरी में राम पथ का दर्शन कराने संबंधी वाॅल पेंटिंग की गई थी उस राम पथ पर पौराणिक और धार्मिक वाॅल पेंटिंग के ठीक सामने सैकड़ों अस्थाई शौचालय मेला प्रशासन द्वारा रखवा दिए गए हैं। जो सीधे-सीधे हरिद्वार की आस्था के साथ खिलवाड़ करते नजर आ रहे हैं। यही नहीं यहां सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि जब इन स्थानों पर शौचालय स्थापित किए जाने थे तो फिर शौचालय के ठीक पीछे स्थित दीवार पर लाखों रुपए खर्च करके वाॅल पेंटिंग करवाए जाने का क्या कारण रहा है? सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार चर्चा तो यह भी है कि अपने चहेतों को खुश करने के लिए वाॅल पेंटिंग के कार्य बिना टेंडर 5 गुना अधिक दर पर सौंप दिए गए। हरिद्वार में स्थित अलकनंदा होटल के सामने हर की पैड़ी की ओर जाने वाले मार्ग पर आस्था पथ एवं रामायण रामपथ का नाम देते हुए पौराणिक व धार्मिक चित्रकारी की गई है यह वह मार्ग है जिस मार्ग से प्रतिदिन मेला प्रशासन से जुड़े तमाम अधिकारियों का आना जाना लगा रहता है बावजूद इसके आस्था और भक्ति के साथ खिलवाड़ करते हुए धार्मिक वाॅल पेंटिंग के सामने सैकड़ों शौचालयों का निर्माण कराया जाना बड़े सवाल खड़े कर रहा है?

एचआरडीए द्वारा कराई जा रही वाॅल पेंटिंग में माॅनिटरिंग का भी यह हाल है कि कई स्थानों पर शौचालयों पर ही धार्मिक और पौराणिक वाॅल पेंटिंग कर दी गई है ऐसा नजारा हरिद्वार नगर निगम मैं देखने को मिला यहां मेला अधिकारी का आवास होने के साथ-साथ एचआरडीए का कार्यालय भी है। यही नहीं मुख्य नगर अधिकारी का आवास और कार्यालय भी इसी स्थान पर मौजूद है बावजूद इसके मेला अधिकारी आवास के ठीक नाक के नीचे नगर निगम कर्मचारी यूनियन कार्यालय के लिए बने शौचालय पर ही नंदी तथा अन्य धार्मिक पेंटिंग कर दी गई है। खैर अपनी शुरुआत से ही विवादों में घिरी पेंट माय सिटी योजना में भ्रष्टाचार का खुलासा तो जांच के बाद ही सामने आयेगा लेकिन इतना साफ है कि सब गोलमाल की तर्ज पर इस योजना में भी भारी भ्रष्टाचार की बू आ रही है।

बात अपनी-अपनी

पेंट माय सिटी के सभी कार्य नियमानुसार किए जा रहे हैं। जहां तक एचआरडीए द्वारा 130 से 140 रुपए वर्ग फीट पर बाहरी संस्थाओं को वाॅल पेटिंग का कार्य देने का सवाल है, तो अच्छे कलाकार देखते हुए अधिक रेट पर कार्य कराए गए हैं। किरण भटनागर की संस्था को एनएचएआई ने नहीं, प्राइवेट व्यक्ति द्वारा एनएचएआई के फ्लाई ओवर पर 25 रुपए वर्ग फिट वाॅल पेंटिंग का कार्य दिया गया है। उन लोगों ने इतने कम रेट पर कार्य क्यों दिया ये तो वही बता सकते हैं। जहां तक धार्मिक वाॅल पेंटिंग के सामने अस्थाई शौचालयों को स्थापित किए जाने का सवाल है, तो यह सही नहीं है। लेकिन शौचालय क्यों रखे गए इसका जवाब आपको अंशुल सिंह जी दे सकते हैं।
हरवीर सिंह, अपर मेलाधिकारी कुंभ

कुंभ की कमान जब ऐसे अधिकारी को दी गई हो जिसको कुंभ जैसे आयोजन का कोई अनुभव ही नहीं, तो इस तरह के मामले सामने आना कोई बड़ी बात नहीं है। इसीलिए जहां अस्थाई पुलों का निर्माण किया जाता रहा है वहां इस बार गंगा नदी पर स्थाई पुल बना दिए गए जिसके चलते जहां एक ओर खनन को बढ़ावा मिलेगा तो वहीं दूसरी ओर कुंभ के पश्चात जंगलों में आम आदमी का दखल बढ़ने से जंगलों का दोहन भी निश्चित है।
स्वामी शिवानंद महाराज, परमाध्यक्ष मातृ सदन

हमारे द्वारा मानकों का पालन करते हुए एनएचएआई के फ्लाईओवर पर वाॅल पेंटिंग का कार्य किया जा रहा है जिसमें गुणवत्ता का भी पूरा ख्याल रखा जा रहा है। यह कार्य 25 रुपए वर्ग फीट की दर से किया जा रहा है जिसमें मैट्रियल और लेबर भी शामिल है जो कार्य दूसरे लोग 130 से लेकर 140 रुपये वर्ग फीट तक में कर रहे हैं और जो मैट्रियल वह इस्तेमाल कर रहे हैं वही मैट्रियल प्रयोग करते हुए हम 25 रुपये फुट में कार्य दे रहे हैं।
किरण भटनागर, अध्यक्ष द नेचर फाउंडेशन सोसाइटी

अगर 130, 132 या 140 रुपये फुट में ही वाॅल पेंटिंग का कार्य किया जाना था और वह कार्य भी उसी स्तर का होना था जिस प्रकार का कार्य स्थानीय आर्टिस्ट कर रहे हैं, तो समझ से परे हैं। मैं दावे से कह सकता हूं कि जितने बजट में मेला प्रशासन ने बाहरी कंपनियों से महंगी दरों पर वाॅल पेंटिंग का कार्य कराया है उतने बजट में हमारी संस्था उसी क्वालिटी के कार्य को पूरे प्रदेश में कर सकती है।
शिखर पालीवाल, अध्यक्ष बीइंग भागीरथ

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