पिचानवे बरस की आयु पूरी कर चुका बनवसा बैराज अब इतिहास होने जा रहा है। इस बैराज से उत्तर प्रदेश की 22 लाख एकड़ भूमि सिंचित होती आई है। बहुत संभव है कि अब इस बैराज की जगह नया बैराज बनाया जाएगा। हालांकि एक संभावना यह भी बताई जा रही है कि अभी कुछ बरसों तक पुराने बैराज की मरम्मत आदि करा कर इसका इस्तेमाल किया जाता रहेगा
पच्चीस हजार लोगों की मौजूदगी में 11 दिसंबर 1928 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत यानी उत्तर प्रदेश के गर्वनर मैलकम हैली ने शारदा नदी पर बने जिस बनबसा डैम को राष्ट्र को समर्पित किया था लगता है शीघ्र ही वह इतिहास का विषय भर रह जाएगा। यह बैराज अब अपनी आधिकारिक उम्र पूरी कर चुका है। बैराज को बने 95 साल हो चुके हैं। अब यह बैराज बना रहेगा या फिर इसकी जगह नया बैराज बनेगा इसको लेकर इन दिनों आईआईटी रुड़की एवं केंद्रीय जल आयोग की टीम इसकी संरचना और वैज्ञानिक जांच कर रही है। शीघ्र ही ये अपनी रिपोर्ट यूपी सिंचाई विभाग को सौंपेंगे। उसी के बाद यह निर्णय लिया जाएगा कि यहां नया बैराज बनेगा या फिर इसी की मरम्मत कर आगे कुछ वर्षों तक और इसकी सेवा ली जाएगी। अगर नया बांध बनता है तो उसके लिए 1500 करोड़ रुपए चाहिए। हालांकि बनबसा बैराज के पास ही दूसरा बैराज बनाने को लेकर यूपी सिंचाई विभाग ने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। लेकिन सेंटर वाटर कमीशन की सहमति के बाद ही यह यह काम आगे बढ़ पाएगा। इस बैराज में अब कई जगह दरारें भी आ चुकी हैं। बीते कुछ वर्षों से बरसात के समय में इस बैराज से पानी ओवर फ्लो होने से आस- पास के सिसैया, बगुलिया, बलुवा-खैरानी, झाऊ -परसा आदि गांवों में जलभराव की समस्या पैदा हो जाती है। पिछली बरसात में ग्रामीणों के मकान, फसलों जलमग्न हो गई थी। जांच रिपोर्ट के बाद अगर इस बैराज को बंद करने का निर्णय लिया गया तो 22 एकड़ उस भूमि की सिंचाई का संकट पैदा हो जाएगा जो अभी तक इससे सिंचित होती आई है।
अभियांत्रिकी का यह नायाब नमूना बना तो है उत्तराखण्ड की भूमि में लेकिन इस पर अधिकार है उत्तर प्रदेश का। सुरक्षा भी इसकी उत्तराखण्ड करता है लेकिन सिंचाई का पूरा लाभ उठाता है उत्तर प्रदेश। सवाल यह भी है कि अगर यहां नया बैराज बनता है तो क्या इससे उत्तराखण्ड भी लाभांवित होगा? बहरहाल, इसे बनाने के पीछे अंग्रेजी सरकार की मंशा एक तो बड़े क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना था तो वहीं दूसरी ओर एक बड़े क्षेत्र को बाढ़ से होने वाली तबाही से बचाना भी था। इसी उद्देश्य के साथ 1920 में इसका निर्माण शुरू किया गया था। यह बैराज नेपाल को भारत से जोड़ता है। यहां से नेपाल के कंचनपुर एवं महेंद्रनगर की आवाजाही भी होती है। इस बैराज की खासियत यह है कि यह 598 मीटर लंबा है। इसके संचालन के लिए इसमें 34 गैट बने हुए हैं। इस बैराज से निकलने वाली नहर की लंबाई जो बनवसा से रायबरेली तक जाती है करीब 550 किमी है। इस नहर के संचालन के लिए 16 गेट बनाए गए हैं जो मैनुअल एवं हाइड्रो तकनीक से खोले और बंद किए जाते हैं। इसकी खासियत इसका फिशलैडर एवं सिल्ट इजेक्टर है। इस बैराज की जल घनत्व क्षमता 5.44 लाख क्यूसेक है। बनवसा स्थित यह बैराज ऐतिहासिक रहा है। इस बैराज से 22 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई होती है। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, हरदोई, लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ आदि जिलों के साथ नेपाल के कई इलाकों में इससे सिंचाई होती है। वर्ष 1918 में इसका निर्माण शुरू हुआ और 11 दिसंबर 1928 में यह राष्ट्र को समर्पित हुआ। तब इस बैराज के निर्माण में साढ़े नौ करोड़ रुपए की लागत आई थी। 25 हजार मजदूरों ने इस बैराज के निर्माण में अपना योगदान दिया था। बीमारी, हादसे, डाकुओं से मुठभेड़ में करीब एक हजार लोगों ने अपनी जानें भी गंवाई थी।
इसी बैराज के ऊपर जो पुल बना है उसकी विशेषता यह है कि वह ईंट के गारे और चूने से बना है। यह पुल 598 मीटर लंबा 10 फीट चौड़ा है। जंगली पेड़ों से निकलने वाले गोंद के साथ ही उड़द की दाल के घोल को मिलाकर इसकी दीवारें तैयार की गई। इसमें सीमेंट एवं अन्य चीजों का प्रयोग नहीं किया गया है। इस पुल को बनने में 11 साल लग गए थे। यह भारत-नेपाल को जोड़ने वाला वैध मार्ग है। लगता है शीघ्र ही यह इतिहास की वस्तु बन जाएगी। नए बैराज के निर्माण को लेकर उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के एसडीओ प्रशांत कुमार का कहना है कि इस बैराज में अब कई जगह दरारें आ चुकी हैं। इसकी उम्र भी पूरी हो चुकी है। इससे आने वाले समय में खतरा पैदा हो सकता है। हालांकि अभी आईआईटी रुड़की एवं केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट आनी है, उसी के बाद तय हो पाएगा कि नया बांध बनेगा या नहीं? हालंकि नए बैराज के लिए जमीन डाउन स्ट्रीम में देखी गई है।