पड़ताल
उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल को साफ.सुथरा शासनकाल कहा गया। भ्रष्टाचार के मामलों में भी त्रिवेंद्र सरकार की ज्यादा घेराबंदी देखने को नहीं मिली। लेकिन गत् दिनों जब प्रदेश के पूर्व काबिना मंत्री हरक सिंह रावत के संस्थानों पर् विजिलेंस के छापे पड़े और सीबीआई जांच शुरू हुई तो उन्होंने त्रिवेंद्र सरकार पर सवाल खड़े कर दिए। ये सवाल सूर्यधार झील के निर्माण को कठघरे में खड़ा करते हैं। ष्दि संडे पोस्टष् ने सूर्यधार झील के निर्माण और उसमें प्रभावित गांवों का दौरा कर जमीनी हकीकत देखीए जहां झील में झोल तो स्पष्ट नजर आया। साथ ही जिन ग्रामीणों को विकास के सपने दिखाए गए थे वे सपने आज भी अधर में हैं। झील से किसी का कल्याण हुआ तो वह है प्रोपर्टी डीलर्स और उनके प्रोजेक्ट
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का ड्रीम प्रोजेक्ट सूर्यधार झील एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है। पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत के पुत्र के प्रतिष्ठानों पर पड़े विजिलेंस के छापे के बाद हरक सिंह रावत द्वारा भाजपा सरकार के खिलाफ मुखर होकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर सूर्यधार झील के निर्माण पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। हरक का तो यह भी कहना है कि अगर भ्रष्टाचार के मामलों में सीबीआई जांच करवाने की जरूरत हैे तो सबसे पहले सूर्यधार झील के मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए। जिसमें करोड़ों रुपए खर्च करके झील का निर्माण किया गया और इसमें अनियमितताएं हुई हैं। भले ही हरक सिंह रावत का यह बयान उनके ऊपर जांच की कार्रवाई के बाद आया है लेकिन इससे एक बार फिर सूर्यधार झील सुर्खियों में है। लगभग 64 करोड़ रुपए की लागत से बनाई गई इस झील से स्थानीय ग्रामीणांे को कोई लाभ नहीं हो रहा हैए यहां तक कि सिंचाई के साधनों को बढ़ाए जाने के मामले में भी झील बनने से कोई खास फायदा नहीं होता दिखाई दे रहा है जिससे झील के निर्माण के औचित्य पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं।
वर्ष 2017 में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा डोईवाला विधानसभा के अंतगर्त सूर्यधार गांव से दो किमी दूर सिल्ला की चौकी में सूर्यधार झील के निर्माण की घोषणा की गई। इस झील को मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट के तौर पर जमकर प्रचारित भी किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इस योजना के निर्माण के लिए त्वरित गति से कार्य कराने के निर्देश भी जारी किए थे। नाबार्ड से योजना स्वीकृत हुई और इसके लिए 29 करोड़ रुपए का बजट भी स्वीकृत किया गया। सिंचाई विभाग को इस प्रोजेक्ट का जिम्मा दिया गया और 29 नवंबर 2020 को पूरे तामझाम के साथ सूर्यधार झील का लोकापर्ण मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा किया गया जिसमें उनके द्वारा झील में नौकायन करके क्षेत्र में पर्यटन गतिविधियों को नया मुकाम मिलने के साथ ही इस क्षेत्र के विकास के लिए इससे मील का पत्थर साबित होने का सपना दिखाया गया था। निर्माण के तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी सूर्यधार झील से कोई खास फायदा नहीं होता नजर आ रहा है। जबकि सिंचाई विभाग द्वारा इसके निर्माण में जमकर अनियमितताएं बरती गई हैं। बगैर स्वीकृति के ही मनमाने ढंग से 29 करोड़ रुपए की बजाय 64 करोड़ रुपए इस योजना में खर्च कर दिए गए जिसका कोई लाभ क्षेत्र की जनता को हुआ हो यह भी नहीं दिखाई दिया।
हैरानी की बात यह है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के ड्रीम प्रोजेक्ट के तौर पर प्रचारित इस योजना का बजट दुगने से भी ज्यादा खर्च किया गया है लेकिन इसके मूलभूत काम आज भी पूरे नहीं हो पाए हैं जिसमें सुरक्षा दीवार और सड़क जो कि इस योजना के बजट से ही होना थाए को आज तक पूरा नहीं किया गया। आज भी सूर्यधार गांव जाने वाली सड़क ही पक्की हो पाई है जबकि झील तक जाने के लिए दो किमी. की सड़क का डामरीकरण तक नहीं हो पाया है। 29 नवंबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा इस झील का लोकार्पण किया गया और झील को आरएसएस के वरिष्ठ नेता गजेंद्र नैथानी ष्ताउ जीष् को समर्पित करके इसका नाम करण गजेंद्र नैथानी जलाशय किया गया। सबसे दिलचस्प बात यह हैे कि 29 नवंबर 2020 को सूर्यधार झील का लोकार्पण किया गया जिसमें सरकारी खर्च जमकर किया गया। यहां तक कि झील में नौका चलाए जाने के लिए जरूरी जल स्तर को बनाए रखने के लिए समूचे क्षेत्र की सिंचाई नहर को बंद करके डाम में पानी भरा गया। किराये पर नौका और बतखों को झील में छोड़ा गया।
स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा झील में नौकायान करके उसको नौका विहार के लिए पर्यटन क्षेत्र बताया गया लेकिन महज दो दिन बाद ही झील में पानी का स्तर एक फुट के करीब रह गया। मौजूदा समय में बरसात के कारण डाम की झील में भरपूर पानी है लेकिन दो माह के बाद पानी का स्तर बेहद कम हो जाएगा। गर्मियों में तो पानी बेहद कम होता है जिससे पर्यटकों को नोैका विहार तो दूर स्नान करने के लिए भी पानी नहीं रहता। हकीकत में इस झील में महज तीन माह ही पानी रहता हैए शेष माह में पानी इतना कम हो जाता है कि सिंचाई के लिए भी पानी पूरा नहीं हो पाता है।
रानी पोखरी न्याय पंचायत के भोगपुरए रानीपोखरीए रानीपोखरी मौजाए बड़कोटए लिस्ट्राबादए रैणापुरए बागीए रखवाल गांवए कौड़सीए सारंधवाला गा्रम सभाओं के दर्जनों गांवांे के किसानों के लिए एक मात्र सिंचाई का सहारा यही सिल्ला की चौकी से अंग्रेजों द्वारा बनाई गई नहर ही है जो भोगपुर से कुछ दूर पर दोनाली से दो भागों में विभाजित हो जाती है। इन गांवों में केवल बरसात के दिनों में ही भरपूर सिचांई इसी नदी से हो पाती है जबकि शेष माह में पानी के लिए रोस्टर व्यवस्था तक करनी पड़ती है। इस नहर के स्रोत में पानी लगातार कम होता जा रहा है। साथ ही वर्षों पुरानी नहर भी क्षतिग्रस्त हो चुकी है। इनके पुनर्निर्माण और मरम्मत के लिए लगातार मांग की जा रही है।
स्थानीय निवासी और पत्रकार चंद्र प्रकाश बुड़ाकोटी का कहना है कि जितने करोड़ रुपए में सूर्यधार झील का निर्माण किया गया है उसके चौथाई बजट से सभी नहरों की मरम्मत हो सकती थी। झील में केवल बरसात में ही पानी रहता हैए गर्मियों में जब फसलांे को सबसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है तब फसलों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है।
इस झील के निर्माण के समय में भी इसके औचित्य पर सवाल खडे़ होने लगे थे लेकिन सभी सवालों को नजर अंदाज कर दिया गया। आज इस झील से क्षेत्र में केवल बाहरी लोगों को ही लाभ होता नजर आ रहा हैं। बाहरी लोगों द्वारा जमीनें खरीदी गई है और बड़े.बड़े रिसोर्ट निर्माणाधीन है। जबकि स्थानीय निवासियों को इससे कोई फायदा नहीं हो रहा है।
सिल्ला की चौकी स्थित अपना छोटा. सा जलपान शेड चलाने वाले विरेंद्र सिंह बिष्ट का कहना हैए इस झील के बनने में उनकी जमीन भी चली गई है लेकिन मैंने कोई मुआवजा तक नहीं लिया कि झील बनने से कम से कम हमारा कुछ तो फायदा होगा। लेकिन कुछ नहीं हुआ। सड़क पक्की नहीं है जिससे पर्यटक आते ही नहीं। झील से महज आधा किमी दूर कंडोली गांव है जिसमें स्थानीय निवासी गांधी रावत द्वारा अपनी निजी भूमि पर छोटा और बेहद खूबसूरत रिसोर्ट बनाया गया है। उनका कहना है कि उनके रिसेार्ट में पर्यटक आते हैं लेकिन बहुत कम ही आ पाते हैंए सड़क के पक्के न होने के चलते इस ओर पर्यटकों का रूझान नहीं है। हमें सरकारी योजना से बैंक लोन भी केवल इसी सड़क के न होने के चलते नहीं मिल पाया है।
कंडोली गांव के वयोवृद्ध बीर सिंह रावत का कहना हेै कि इस क्षेत्र में जमीनों के खरीददार बहुत ज्यादा आ रहे हैं। लोगों को लालच दे रहे हैं कि वे अपनी जमीनों को बेच दें। झील के बनने से उनको कोई फायदा नहीं हुआ है जैसे पहले था वैसा ही आज भी जीवन चल रहा है।
सिल्ला की चौकी में जलपान की दुकान चलाने वाले अनुराग रावत जरूर कुछ फायदा होने की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि झील बनने से सड़क बनी है पहले तो सड़क भी नहीं थी। कम से कम आज सड़क तो हैए कभी न कभी पक्की भी होगी। गर्मियों में ज्यादा लोग यहां आते हैं। उनका खानाए कोल्ड ड्रिंक आदी से हमारी कमाई हो जाती है। सूर्यधार झील के मामले में सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज द्वारा जांच करवाए जाने के आदेश भी जारी किए गए लेकिन त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय में वे भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। धामी सरकार के आते ही सिंचाई विभाग के तत्कालीन चीफ इंजीनियर बीडी सिंह को निलंबित किया गया लेकिन जांच रिपोर्ट को आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। इस मामले में पत्रकार और खानपुर के वर्तमान विधायक उमेश कुमार द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री पर सूर्यधार झील के निर्माण में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए थे।
The Sunday Post ने वर्ष 12 के अंक 43 में ष्विवादों में त्रिवेंद्र के करीबीष् शीर्षक से आवरण.कथा समाचार प्रकाशित किया था जिसमें सूर्यधार झील के निर्माण और सिंधवाल गांव के लिए करोड़ों रुपए की लागत से बनाए गए पुल की अंदरूनी हकीकत का खुलासा किया था। तब टीवी पत्रकार उमेश कुमार ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर गंभीर आरोप लगाते हुए ष्दि संडे पोस्टष् को अपना बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि ष्त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपने सलाहकारों और ओएसडी को फायदा पहुंचाया। अपने जमीन के कारोबारी मित्र को करोड़ों रूपयों का फायदा पहुंचाने के लिए सूर्यधार झील का निर्माण करवाया गया। जब संजय गुप्ता ने सूर्यधार गांव में कौड़ियों के भाव में कई बीघा जमीन खरीद ली तब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तुरंत सूर्यधार झील का निर्माण करने की घोषणा कर दी।
यह स्पष्ट है कि त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री रहते हुए जमीनों के कारोबारियों के साथ सांठ.गांठ करके सरकारी योजना लागू करवाते रहे हैं।ष् सूर्यधार झील के आस.पास बड़े.बड़े रिसोर्ट बनाए गए हैं उससे यह तो साफ है कि झील के निर्माण से भले ही स्थानीय निवासियों को कोई लाभ नहीं हुआ हो लेकिन जमीन और होटल कारोबारियों को तो बहुत बड़ा फायदा पहंुचा है। आज झील के ठीक ऊपर एक विशाल भूखंड में एक भव्य रिसोर्ट का निर्माण हो रहा है लेकिन यह निर्माण किस का है और किसने यह भूखंड खरीदा है किसी को इसकी कोई जानकारी नहीं है। बताते हैं कि इस रिसोर्ट को देखने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी झील के लोकार्पण के समय गए थे।
बात अपनी-अपनी
अभी जांच चल रही है। बजट कैसे बढ़ाया गयाए पानी कम है इन सभी मामलों की जांच चल रही है। जांच के बाद ही पता चलेगा।
जयपाल सिंहए चीफ इंजीनियर, सिंचाई विभाग, उत्तराखण्ड
अभी हमने रिवाईज इस्टीमेट शासन को दिया हुआ है। जैसे ही इस्टीमेट स्वीकृत होगा तो सारे रूके काम पूरे कर दिए जाएंगे जिसमें सौंदर्यीकरण और सुरक्षा दीवार के साथ ही सड़क का डामरीकरण भी पूरा कर दिया जाएगा।
जेसी उनियालए चीफ इंजीनियर, सिंचाई विभाग दून कैनाल
नहीं बदली सूर्यधार की तकदीर
जिस गांव के नाम पर त्रिवेंद्र रावत सरकार के द्वारा करोड़ों रूपए खर्च करके सूर्यधार झील का निर्माण करवाया है उस सूर्यधार गांव की और उसके आस.पास बदहाली के हालत अंतिम चरण तक पहुंच चुकी है। जिस तरह से देहरादून का बासमती चावल विख्यात है कभी उससे भी बेहतर बासमती चावल उगाने वाला सूर्यधार बिल्डरों और भू कारोबारियों की भंेट चढ़ चुका है। सूर्यधार झील से अगर किसी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है तो वह भू करोबारियों और बिल्डर्स लॉबी को ही हुआ है जबकि स्थानीय ग्रामीणों को इस झील से रत्ती भर भी फायदा हुआ नहीं दिखाई देता है। उनके भाग्य में आज भी निरंतर पलायन और बुनियादी सुविधाओं की कमी ही लिखी हुई है जिसके चलते कभी 350 बीघा सिंचित भूमि वाले इस गांव में 150 बीघा भूमि बाहरी लोगों द्वारा कौड़ियों के भाव खरीदी गई है और उसे अब बेहद ऊंचे दामों में बाहरी प्रदेशों के लोगों को बेचा जा रहा है।
गडूल क्षेत्र के अंतर्गत इठारना ग्राम सभा का ही एक गांव सूर्यधार है। यह गांव राजस्व अभिलेखों में दर्ज है। यह गांव कब बसावट में आया था यह तो सही किसी को नहीं पता लेकिन सदियों से इस क्षेत्र की समतल और भरपूर सिंचित उपजाऊ भूमि होने के चलते यह क्षेत्र सनगांवए नाही कलाए बमेंतए काटल और बडेरना गांव के कास्तकारों का सेरा हुआ करता था। सेरा उस भूमि को कहा जाता है जहां सिंचाई के साधन हो और उस भूमि में धान की फसल होती है।
इस क्षेत्र में बासमती धान की सबसे ज्यादा खेती होती रही है। साथ ही गेहूंए मक्काए आलू और प्याज के अलावा अरबी और अदरक की भी भरपूर खेती होती रही है। स्थानीय जानकारी के अनुसार करीब सौ डेढ़ सौ वर्ष पूर्व गांवों के कास्तकरों ने अपनी फसलों की सुरक्षा आदि के लिए सूर्यधार में अपने आवास बनाए और धीरे.धीरे सूर्यधार में 70 परिवारांे का एक भरपूर गांव बस गया। आज भी इस गांव में सौ डेड़ सौ साल पुराने आवासीय भवनों को देखा जा सकता है जिनकी निर्माण शैली इतनी मजबूत हेै कि इन कालखंडों में अनेक भूकम्पांे से भी उन पर असर नहीं पड़ा है।
70 वर्षीय स्थानीय निवासी नरपाल पुंडीर बताते हैं कि इस क्षेत्र के शिक्षक नेता स्वर्गीय देव उनियाल प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बेहद करीबी थे। वह जब भी नेहरू जी से मिलने जाते थे साथ में सूर्यधार की बासमती चावल भी भेंट स्वरूप ले जाते थे। यहां की बासमती की महक और स्वाद बहुत अच्छा माना जाता था। स्थानीय निवासी बताते हैं कि जब भी सूर्यधार के खेतों में बासमती की फसल पकती थी तो फसल से समूचे क्षेत्र में जबर्दस्त सुगंध फैल जाती थी। इस बासमती को लेने के लिए अनेक स्थानीय और बाहरी लोग आते थे और गांवों के किसानों को नकद या जो इस क्षेत्र में नहीं होता था उसको किसानांे को देते थे और बासमती खरीदते थे। देहरादून के अलावा सहारनपुर तक के आढती भी सूर्यधार की बासमती को खरीदने के लिए आते थे।
दुर्भाग्य से जिस बासमती को भारत के पहले प्रधानमंत्री बेहद पंसद करते थे आज वही बासमती इस गांव से पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसे बिडंबना ही कहा जाएगा कि आजादी के 68 वर्ष यानी वर्ष 2015 में इस क्षेत्र के लिए एक सड़क बनाई गईए जो कि वर्षों तक कच्ची ही रही लेकिन सूर्यधार झील के निर्माण के बाद इस सड़क को पक्का किया गया। जैसे ही सड़क मिली बासमती की खेती तब तक चौपट हो चुकी थी। जिस तरह से आज देहरादून में बासमती की खेती करीब 90 फीसदी खत्म हो चुकी है उसी तरह से सूर्यधार भी बासमती की खुशबू अब केवल पुरानी यादोें में ही सिमट कर रह गई है। यह तक हेै जब सूर्यधार गांव प्रदेश की राजधानी से महज 32 किमी दूर है।
सनगांवए नाही कलाए बमेंतए काटल और बडेरना गांव के निवासियों द्वारा अधिकतर जमीन बेची जा चुकी है। हालांकि कई लोगों के आवासीय भवन भी हैं लेकिन अब उन में ताले ही पड़े हुए हैं। अधिकतर लोग या तो देहरदूनए भोगपुरए थानोए जौली ग्रांट आदी में बस गए है ंऔर अपनी जमीनों को बिल्डरों को बेच चुके हैं। सूर्यधार गांव भी पलायन का शिकार हो चुका है। आज महज 40 परिवार ही इस गांव में रह चुके हैं जिनमें से आधे से ज्यादा अन्य स्थानांे में अपने आवास बना चुके हैं। लेकिन जो गांव में रह रहे हैं उन पर भूमि कारोबारियों के द्वारा जमिन बेचने का भारी दबाव बनाया जा रहा है।
हैरत की बात यह हेै कि यह सभी भूमि कारोबारी 5 से दस लाख रुपए प्रति बीघा भूमि को गांव के लोगों से खरीद चुके हैं लेकिन आज उसी जमीन को 80.90 लाख रुपए प्रति बीघा बाहरी लोगों को बेच रहे हैं लेकिन बाकी बची.खुची जमीनों को महज दस लाख रुपए में बेचने का दबाव बना रहे हैं। बिल्डरों द्वारा खरीदी गई जमीनों में तीस फिट चौड़ी सड़क बनाए जाने की योजना हेै जिसके पूरा होने में कई किसानांे की जमीनों आड़े आ रही है जिसके लिए उन पर जमीनंे बेचने का दबाव बनाया जा रहा है। इससे ग्रामीणों में दहशत और डर का भाव बना हुआ है।
स्थानीय निवासी नाम न छापने की शर्त पर आरोप लगा रहे हैं कि भूमि के कारोबारी राजनीतिक रसूख के चलते सूर्यधार में बची.खुची खेती को भी पूरी तरह से समाप्त करने का बड़ा षड्यंत्र कर रहे हैं जिसमें सिंचाई विभाग भी उनका साथ देने का काम कर रहा है। जिस कारण गांव की सिंचाई की गूलें और नहरांे की मरम्मत नहीं हो पा रही है। यहां तक कि सिंचाई के लिए ट्यूबेल लगाए जाने की मांग को नकारा जा रहा है।
इस गांव के लिए तीन बार सिंचाई विभाग द्वारा तकनीकी सर्वे किया जिसमें जांच में सूर्यधार गांव में पानी नहीं मिलने की बात कहकर ट्यूबेल के निर्माण में असर्मथता जताई गई है। हैरत की बात यह है कि सूर्यधार गांव में बाहरी लोगों द्वारा मुर्गी फार्म और अन्य कार्य के लिए बड़े.बड़े निर्माण किए गए हैं जिसमें तीन.तीन ट्यूबेल और बोरबेल लगाए गए हैं जिनमें पूरे वर्ष भरपूर पानी आता है। लेकिन सिंचाई विभाग द्वारा इस क्षेत्र में पानी नहीं होने की बात कही जा रही है जबकि सूर्यधार गांव जाखण नदी के तट पर बसा हुआ है और जमीन के नीचे भरपूर पानी है। इससे ग्रामीणों द्वारा भूमि कारोबारियों के हित में सिंचाई विभाग द्वारा षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप कहीं न कहीं सत्य प्रतीत हो रहा है।
इसके चलते अब खेती के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। बरसाती फसल के लिए तो सिंचाई का पानी मिल जाता है लेकिन गर्मियों में फसलों के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है जिसके चलते अब खेती भी कम होती जा रही है। यही नहीं अब इस क्षेत्र में जंगली पशुओं का आतंक बना हुआ है। सूअर, लंगूर, बंदरों के साथ.साथ हाथियों का विगत दस वर्ष से आतंक इस क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। साथ ही आवारा और छोड़े गए पालतू पशुओं भारी आतंक मचाया हुआ है जो खड़ी फसलों को तबाह कर रहे हैं।
यही नहीं इस गांव के लिए लगभग एक किमी . सड़क कई वर्ष पूर्व बन चुकी थी। जो कि पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के ही प्रयासांे से स्वीकृत हुई थी। पहली निर्वाचित कांग्रेस की तिवारी सरकार के समय में विजय बहुगुणा राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे और इस प्रयासों से यह सड़क सनगांव और नाही कला होते हुए सतेली ग्राम सभा तक के लिए स्वीकृत हुई थी। थानो भोगपुर मार्ग पर जाखण नदी के पुल के पूर्वी छोर से सड़क का निर्माण किया गया है। इसी सड़क से सूर्यधार गांव के लिए एक संपर्क मार्ग भी बनाया गया जोे वर्षों तक कच्चा ही रहा। पूर्ववर्ती कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के समय ष्मेरा गांव मेरी सड़क योजनाष् के तहत सीसी मार्ग में तब्दील किया गया लेकिन आज इस योजना का साईन बोर्ड भी झाडिंयों में गिरा हुआ हैए साथ ही सड़क भी क्षतिग्रस्त हो रही है। सड़क के साईन बोर्ड की हालत को देखकर यह समझा जा सकता है कि जिस तरह से सूर्यधार के विकास के बड़े.बड़े दावे किए गए हैं वह सभी दावे साईन बोर्ड की ही तरह धराशायी नजर आ रहे हैं।
बात अपनी-अपनी
हमारा गांव सबसे अच्छी बासमती के लिए जाना जाता था। आज बासमती पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। मेरे स्वयं पांच भाई इसी गांव में खेती करते थे आज चार भाई पलायन कर चुके हैं। हम और कोई काम नहीं कर सकते। अपनी जमीनों को बेचकर हम कहीं और जमीन नहीं ले सकते। सिंचाई की व्यवस्था खत्म हो रही हैए पूरा पानी नहीं है। बिल्डर्स जमीनों को बेचने का दबाव बना रहे हैं। अगर हमने जमीनंे बेच दी तो हम कहां जाएंगेए यह डर बना हुआ है। सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च करके सूर्यधार झील बनाई जिसका फायदा सूर्यधार गांव को नहीं मिला हैए उल्टा हमारी जमीनें ही बिक गई हैं। हमारे भाग्य में तो गांव में पक्के रास्ते तक नहीं हैं।
नरपाल सिंह पुडीर, स्थानीय कास्तकार और निवासी
खेती जानवरों ने चौपट कर दी। पहले खेती से गुजारा हो जाता था अब वह भी खत्म हो रहा है। हमारी जमीनंे दस लाख में खरीद कर 80.80 लाख में बेच रहे हैं और हमें 10 लाख में ही बेचने का दबाव बनाया जा रहा है। सरकार भी बिल्डरों के पक्ष में काम कर रही है। झील हमारे गांव के नाम पर बनाई गई है लेकिन उसका रत्ती भर फायदा हमारे गांव को नहीं मिला। हम यह नहीं कह सकते कि हमारी जमीनें कब तक बची रहेगी।
देवपाल सिंह रावत, स्थानीय निवासी