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Uttarakhand

बेनाम परिवार पर प्रहार, मौन सरकार

एक तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सूबे में ‘लैंड जिहाद’ की बात कह अवैध मजारों को तुड़वा रहे थे तो दूसरी तरफ उनकी पार्टी के पौड़ी नगर पालिका चेयरमैन यशपाल बेनाम अपने घर में हिंदू-मुस्लिम समरसता की नींव जमा रहे थे। वह अपनी बेटी की शादी एक मुस्लिम युवक से तय कर चुके थे। जैसे ही शादी का कार्ड वायरल हुआ तो प्रदेश में हिंदू कट्टरपंथी विरोध में उतर आए। धर्म के ठेकेदारों को इससे देवभूमि की संस्कृति छिन-भिन्न होती नजर आई। वे बेनाम परिवार पर प्रहार करने लगे। विरोध-प्रदर्शन हुए और शादी रोकने की धमकी तक दी गई। उधर प्रदेश सरकार इस पूरे प्रकरण पर रहस्मय तरीके से मौन साधे रही। बहरहाल बेनाम ने बेटी की शादी स्थगित कर दी है

प्रकरण एक

उत्तराखण्ड के देश-विदेशों में चर्चित गीत ‘बेडू पाको बारा मासा’, ‘पारे भीड़े की बसंती छोरी’, सुर-सुरा मरूली बासिगे’, ‘ओ आली ओ लाली हौसिया’ की रचिता नईमा खान हैं उनके उक्त कालजयी लोक गीतों को जब ग्रामोफान पर रिकॉर्ड किया गया तो उत्तराखण्ड के लोक गीतों को राष्ट्रीय फलक पर पहचान मिली थी। ऐसी नईमा खान से शादी रचाने वाले सुप्रसिद्ध संगीतकार और नाटककर्मी मोहन उप्रेती थे। 19 फरवारी 1928 को अल्मोड़ा में जन्मे मोहन उप्रेती ने जब 1969 में हिंदू-मुस्लिम समरसता को निभाते हुए नैया (नईमा खान) से विवाह किया तो जैसे पहाड़ की सांस्कृतिक पहचान को पंख लग गए थे। दोनों की शादी को दो दिलों का गठबंधन जरूर कहा जा सकता है लेकिन इस अंतरधार्मिक जोड़े ने जो उत्तराखण्डी लोकसमाज को बदले में तोहफा दिया वह अक्षुण्ण है।

प्रकरण दो

2022 का विधानसभा चुनाव चल रहा था। उत्तराखण्ड के लगभग सभी मीडिया चैनल्स चुनाव पूर्व सर्वे में यह दिखा रहे थे कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार का आना तय है। भाजपा भी इससे काफी हद तक सहमत दिख रही थी। लेकिन चुनावों से कुछ दिन पूर्व ही सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल होने लगा। जिससे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कथित तौर पर यह बयान सामने आया कि उत्तराखण्ड में उनकी पार्टी चुनाव जीतने के बाद मुस्लिम यूनिवर्सिटी स्थापित करेगी। यह संदेश इतनी तेजी से वायरल हुआ कि खुद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत को मीडिया के सामने आना पड़ा। उन्होंने इसका खंडन करते हुए कहा कि उनके द्वारा ऐसी कोई बात या बयान नहीं दिया गया है। लेकिन देखते ही देखते मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने के इस संदेश से सियासी समीकरण उलट गए। फलस्वरूप चुनाव जीतने के मुहाने पर खड़ी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा।

प्रकरण तीन

गत 17 मई से सोशल मीडिया पर एक शादी का निमंत्रण कार्ड वायरल हुआ। यह कार्ड पौड़ी के नगर पालिका चेयरमैन और पूर्व विधायक यशपाल बेनाम की बेटी की शादी का था। 27 मई को होने वाली यह शादी मीडिया की सुर्खियों में इस वजह से बनी कि यशपाल बेनाम की पुत्री एक मुस्लिम युवक से शादी करने जा रही थी। यशपाल बेनाम की पुत्री और पेशे से इंजीनियर मोनिका की शादी अमेठी (उत्तर प्रदेश) के मोनिस खान से हो रही थी। देखने में यह कार्ड सामान्य-सा कार्ड था लेकिन कार्ड पर यशपाल बेनाम की बेटी के दुल्हे का नाम देखकर यह शादी सोशल मीडिया पर जमकर ट्रेंड कर गई। यह बात लोगों को रास नहीं आई कि भाजपा का एक नेता जो उनका प्रतिनिधि भी है वह अपनी बेटी की शादी एक मुस्लिम युवक से करे। इसे देखकर धर्म और संस्कृति के तथाकथित रक्षक परेशान हो उठे। मोनिस और मोनिका की शादी का यह कार्ड कट्टरपंथियों की आंखों में खटकने लगा। इस निमंत्रण कार्ड को लेकर सैकड़ों आपत्तिजनक पोस्ट और ट्वीट किए गए। देखते ही देखते सोशल मीडिया पर खूब लानत-मलानत का खेल शुरू हो गया। कुछ लोग इसे ‘लव जिहाद’ का नाम देने लगे तो कुछ ने इस कार्ड के जरिए भाजपा पर ही सवाल दागने शुरू कर दिए। भाजपा नेता यशपाल बेनाम को हिंदू दलों के कट्टरपंथी नेताओं के द्वारा धमकी देने का भी दौर चला। यहां तक कि धरना-प्रदर्शन भी किए जाने लगे। इस विरोध प्रदर्शन में हिंदू परिषद, भरैव सेना और बजरंग दल ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

पौड़ी के झंडा चौक पर हिंदुत्ववादी संगठनों ने भाजपा नेता यशपाल बेनाम के खिलाफ धार्मिक उन्माद तक शुरू कर दिया। कई संगठनों ने बेनाम का पुतला फूंका। विश्व हिंदू परिषद के पौड़ी जिला के कार्यकारिणी सदस्य दीपक गौड़ ने तो यहां तक कह दिया वे इस शादी का पुरजोर विरोध करेंगे। लिहाजा पौड़ी के नगर पालिका अध्यक्ष यशपाल बेनाम की पुत्री की शादी का कार्ड जब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था तो तुच्छ मानसिकता वाले लोग इसे ‘लव जिहाद’ को प्रोत्साहित करने का षड्यंत्र तक करार देने लगे। जबकि दूसरी तरफ कुछ लोगों ने सियासी हथियार के तौर पर इसे इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। उनके अनुसार यशपाल बेनाम पौड़ी में 3000 मुस्लिम मतों पर अपना एकाधिकार जमाए रखने के लिए अपनी बेटी का दूसरे धर्म के युवक के साथ विवाह करा रहे हैं। हालांकि दूसरी तरफ यह भी स्पष्ट था कि शादी के इस मामले में दोनों परिवारों की रजामंदी साफ देखी जा रही थी। इसके बावजूद भी धर्म और संस्कृति के ठेकेदारों ने इस मुद्दे को बेहद संवेदनशील बना दिया। यहां तक कि ‘लव जिहाद’ को लेकर आक्रामक रूख में दिखने वाली भाजपा के वरिष्ठ नेता की बेटी का मुस्लिम युवक से विवाह पर विपक्षी नेता भी खूब तंज कसते दिखाई दिए। इस सब के बावजूद यशपाल बेनाम अपनी बेटी के फैसले के पक्ष में खड़े नजर आए। बेनाम बोले ‘लोग क्या कह रहे हैं और क्या कर रहे हैं इससे उन्हें कोई मलतब नहीं हैं, यह 21वीं सदी है। अब नई पीढ़ी अपना भविष्य खुद तय कर रही है। हम दोनां परिवार दोनों बच्चों की खुशी और बेहतर भविष्य के लिए आपसी रजामंदी से शादी कर रहे हैं। विवाह संपूर्ण हिंदू रीति-रिवाज से संपन्न होगा।’

हालात यह हो गए कि 21वीं शदी के तीसरे दशक में दो जोड़ों में होने वाला विवाह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया। सवाल यह भी उठने लगे कि उत्तराखण्ड में ही इस अंतरधार्मिक विवाह पर ऐसा बवंडर क्यों? जब पहले ही कांग्रेस के नेता सचिन पायलट की पत्नी सारा अब्दुला से लेकर भाजपा के सुब्रमण्यम स्वामी की लड़की सुहासिनी और हैदर एक-दूसरे के साथी बन चुके हैं तो क्या मौजूदा समय में यशपाल बेनाम के परिवार पर सामाजिक प्रहार करना उनकी निजता का हनन नहीं है?
बेनाम परिवार की खुशियों में धार्मिक कट्टरता का जहर फैलाने में साधु-संतों से लेकर पौड़ी की मंदिर समिति भी पीछे नहीं रही। इस समाज के लोगों का बेनाम की बेटी की शादी को लेकर गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने इसे गढ़वाल क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं माना। उनका कहना है कि सनातन धर्म के लोगों का और वह भी जो जनप्रतिनिधि हैं, इस तरह का फैसला भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। कमलेश्वर मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने कहा कि यह फैसला बेहद अफसोसजनक है। जबकि नागेश्वर मंदिर के महंत रविन्द्रनाथ का कहना है कि यह तो जनता को समझना चाहिए कि जो लोग समाज के प्रेरणा स्रोत होते हैं वे लोग ऐसा काम करेंगे तो क्या होगा?

बाद में इस मामले ने ऐसा तूल पकड़ लिया कि भाजपा नेता यशपाल बेनाम ने शादी को रोकने में ही भलाई समझी। जो व्यक्ति 21वीं शदी की बात कह नई पीढ़ी को अपना भविष्य तय करने की बात कर रहे थे, वह एकाएक बैकफुट पर आते दिखाई दिए। लोगों को तब आश्चर्य हुआ जब शादी की तयसुदा तारीख से महज 5 दिन पहले ही यशपाल बेनाम मीडिया के सामने उपस्थित हुए और उन्होंने शादी स्थगित करने की बात कही। बेनाम बोले ‘सोशल मीडिया पर उपजे विवाद के बाद दोनों परिवारों ने आपसी सहमति से शादी समारोह के समस्त कार्यक्रम नहीं कराए जाने का निर्णय लिया है। जनप्रतिनिधि होने के नाते मैं नहीं चाहता था कि बेटी की शादी पुलिस और प्रशासन की सुरक्षा के साए में संपन्न हो। बेटी की शादी को लेकर भविष्य में

परिवार शुभ

चिंतकों एवं वर पक्ष के साथ मिलकर निर्णय लिया जाएगा।’ साथ ही यह भी कहा कि उनके कुछ पदाधिकारियों ने भी फोन किया था। कुछ ने उन्हें अपना निजी मामला बताया तो कुछ ने उन्हें परिवार के सदस्य के नाते समझाया भी। वह जोर देते हुए यह कहते सुने गए कि राज्य के नेताओं ने भी इस बारे में उनसे कुछ नहीं कहा। लेकिन वह खुद ही परिवार की सहमति से यह फैसला ले रहे हैं कि फिलहाल हम इस शादी को स्थगित कर रहे है। राज्य आंदोलनकारी गीता गैरोला कहती हैं कि बेनाम के इस बयान को अगर समझे तो वह स्पष्ट कह रहे हैं कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी अभी स्थगित की है, बल्कि इस पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई है। देर-सबेर वह अपनी बेटी के हाथ पीले करेंगे। लेकिन इस दौरान वह धार्मिक वाद-विवाद की बलिबेदी पर अपनी पुत्री की ख्वाहिशों को मरने नहीं देंगे। तब देखना यह होता कि भविष्य में यशपाल बेनाम का यह फैसला उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन के करियर में क्या भविष्य तय करेगा?

दूसरे धर्म में शादी पर मिलते हैं पचास हजार
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक तरफ प्रदेश सरकार ‘लव जिहाद’ जैसे मामलों को लेकर कानून लागू कर रही है तो दूसरी तरफ किसी दूसरे धर्म में शादी करने पर 50000 का प्रोत्साहन राशि दी जाती है। वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखण्ड में इससे संबंधित नियमावली को जैसे का तैसा स्वीकार कर लिया गया था, जिसमें ऐसे विवाह करने वाले दंपतियों को 10,000 रुपए दिए जाते थे। वर्ष 2014 में उत्तराखण्ड की तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार ने इसमें संशोधन कर इस प्रोत्साहन राशि को बढ़ाकर 50,000 कर दिया गया। अंतर-धार्मिक विवाह के अलावा अंतर्राज्यीय विवाह करने वाले दंपतियों को भी यह प्रोत्साहन राशि दी जाती है। बताता जाता है कि 1976 में एनडी तिवारी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस योजना की शुरुआत की थी। प्रोत्साहन तब 10,000 रुपए था। वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखण्ड में नियमावली 1976 को लागू कर दिया था। इसने नियमावली का बहुत कम लोगों को पता था। लेकिन 2 साल पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में पौड़ी के तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी ने जैसे ही एक पत्र इस बाबत जारी किया तो प्रदेश में जैसे भूचाल सा आ गया था।

 

बात अपनी-अपनी
यशपाल बेनाम से मेरा सवाल है कि वह यह बताए कि वह जिन लेगों को टारगेट करते हुए संगीनों के साए में शादी करने की बात कह रहे थे जिनके डर से उन्होंने बेटी की शादी स्थगित कर दी। वे लोग आखिर कौन हैं? साथ ही मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि जिन कट्टरपंथियों ने यशपाल बेनाम को धमकी दी है उन पर आप ने क्या कार्रवाई की है।
करण माहरा, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस

बेनाम ने बेहद साहस का काम किया है। अपनी बेटी की पसंद का सम्मान करना और उसके साथ खड़ा होना निश्चित ही सराहनीय है। इस काम के लिए उनकी लानत-मलानत करने वाले सिर्फ और सिर्फ घृणा में डूबे हुए लोग हैं। दो युवाओं की मोहब्बत की शादी के मुकाम पर पहुंचने में जिनके भीतर घृणा उपज रही है उन्हें मानसिक उपचार की जरूरत है।
कामरेड इंद्रेश मैखुरी, सचिव माकपा उत्तराखण्ड

 

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