उत्तराखण्ड में एक बार फिर किडनी चोरी का मामला सुर्खियों में है। पहले राज्य की एक मंत्री के पति पर किडनी चोरी का आरोप लगा तो अब रानीखेत का एमएन श्रीवास्तव अस्पताल कटघरे में है। इस अस्पताल को लेकर गंभीर शिकायत है कि बग्वाली पोखर की एक महिला यहां अपेंडिक्स का इलाज कराने भर्ती हुई थी। इसका नाजायज फायदा उठाकर अस्पताल ने उसकी किडनी चोरी कर डाली। जिसका पता उसे बाद में तब चला जब वह बीमार रहने लगी। आश्चर्यजनक है कि इस मामले में करीब साल भर पहले हुई जांच आज तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है
उ त्तराखण्ड में वर्ष 2018 किडनी कांड के लिए भी जाना जाएगा। इस वर्ष अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में बग्वाली पोखर क्षेत्र की एक महिला ने अपेंडिक्स का ऑपरेशन कराया। ऑपरेशन के बाद जब वह बीमार हुई और इलाज कराने दिल्ली गई तो वहां पता चला कि उसकी एक किडनी गायब है। इसके बाद हड़कंप मच गया। महिला के पति द्वारा इस मामले की जांच कराने की मांग की गई तो रानीखेत शहर में दो पक्ष आमने-सामने आ गए। एक पक्ष डॉक्टर की तरफदारी करने लगा तो दूसरा पक्ष विरोध में उतर आया। मामला मीडिया की सुर्खियां भी बना। धरना-प्रदर्शन भी हुए। किसी ने पीड़ित महिला के लिए तो किसी ने चिकित्सक के समर्थन में लॉबिंग की। इसके बाद मामला शासन-प्रशासन तक पहुंचा। तीन-तीन बार जांच के आदेश दिए गए। एक जांच जिलाधिकारी द्वारा कराई गई तो दूसरी जांच प्रदेश के स्वास्थ्य निदेशक द्वारा कराई गई जबकि तीसरी जांच अल्मोड़ा की तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा कराई गई। चौंकाने वाली बात यह है कि आज मामले को एक साल होने को है, लेकिन अभी तक जांच का निष्कर्ष सामने नहीं आया। चर्चा है कि मामले को दबाया जा रहा है। सवाल उठ रहा है कि अगर मामले को दबाया जा रहा है तो क्यों और किसके दबाव में? हालांकि इस मामले को लेकर चर्चा यह भी चली थी कि तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को इसके चलते स्थानांतरित कर दिया गया था।
प्रदेश में जीरो टॉलरेंस की सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि वह अभी तक रानीखेत किडनी कांड की जांच को ओपन क्यों नहीं कर सकी है। जबकि मामला सत्तारूढ़ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के रानीखेत क्षेत्र का है। अजय भट्ट अपनी चिर -परिचित शैली के अनुसार किसी भी मामले की तुंरत और निष्पक्ष जांच की जमकर पैरवी करते हैं। विधानसभा में विपक्ष के उपनेता करण माहरा रानीखेत क्षेत्र के विधायक हैं। वे भी जनता का हर मुद्दा सदन में रखते हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पीड़िता की शिकायत पर जांच किसी नतीजे तक क्यों नहीं पहुंच पाई है?
मामला 18 मार्च 2018 का है। बग्वाली क्षेत्र की नैडी कुवाली गांव की निवासी एक महिला खष्टी देवी को अपैंडिक्स का दर्द था। जिसका इलाज कराने वह रानीखेत के कालिका स्थित एमएन श्रीवास्तव अस्पताल आई। जहां के वरिष्ठ चिकित्सक ओपीएल श्रीवास्तव ने महिला की जांच की। बकायदा उनका अल्ट्रासाउंड भी कराया गया। इसके बाद डॉक्टर श्रीवास्तव ने कहा कि मरीज का ऑपरेशन तुरंत कराना पड़ेगा, क्योंकि मरीज की जान को खतरा है। हालांकि महिला को अपैंडिक्स का दर्द था जो कई महीनों से था और वह अपने पति के साथ खुद चलकर डॉक्टर के यहां आई थी। लेकिन जिस तरीके से डॉक्टर ने जान बचाने के लिए तुरंत ऑपरेशन की आवश्यकता बताई तो इसके लिए वह तैयार हो गए। मरीज खष्टी देवी के पति खेम सिंह के अनुसार उनके पास ऑपरेशन के लिए पैसे भी नहीं थे क्योंकि वह तो सिर्फ मरीज को दिखाने और दवा लाने के लिए आए थे। लेकिन तत्काल रिश्तेदारों की मदद से पैसों की व्यवस्था की गई। बहरहाल, 18 मार्च 2018 की रात को ही ऑपरेशन हो गया। इसके बाद कई दिनों तक मरीज का अस्पताल में इलाज चलता रहा। एक अप्रैल 2018 को महिला को अस्पताल से डिस्चार्ज करके घर भेज दिया गया। खेम सिंह बताते हैं कि अस्पताल से डिस्चार्ज हो जाने के कुछ दिनों बाद ही उनकी पत्नी की तबियत फिर खराब रहने लगी। जिसके चलते उसे वह दिल्ली में रह रहे एक रिश्तेदार की मदद से होली फैमिली अस्पताल ले गए। 11 जून 2018 को खष्टी देवी को होली फैमिली के अस्पताल में दिखाया गया। जहां उसकी अल्ट्रासाउंड जांच भी की गई। इस दौरान होली फैमिली के डॉक्टरों ने उसकी जांच में पाया कि महिला की एक किड़नी नहीं है। यह बात जब उन्होंने मरीज के साथ आए उनके पति और रिश्तेदारों से कही तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।
खष्टी देवी के परिजन बताते हैं कि जब एमएन श्रीवास्तव अस्पताल में मरीज के अपैंडिक्स का ऑपरेशन हुआ था तो डॉक्टर ओपीएल श्रीवास्तव द्वारा यही कहा गया था कि अपैंडिक्स की एक गांठ ऑपरेशन करके निकाल दी जाएगी। खेम सिंह कहते हैं कि उनसे या उनके परिवार के किसी भी सदस्य से किडनी की बाबत कोई बात नहीं की गई थी। यहां तक कि जब मरीज को 18 मार्च 2018 के दिन ऑपरेशन के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था तब अल्ट्रासाउंड जांच भी की गई थी। यह जांच एमएन श्रीवास्तव अस्पताल में ही हुई थी। जांच खुद डॉक्टर ओपीएल श्रीवास्तव द्वारा की गई थी। जिसमें दोनों किड़नियों को ठीक यानी नार्मल, बताया गया है। अगर किडनी में कुछ खराबी होती तो उन्हें बताया जाता। या फिर अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में यह बात सामने आती है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। यहां तक कि जब ऑपरेशन हो गया तो उसके बाद भी डॉक्टर ने जो दवाइयां लिखी उसमें भी कोई ऐसी दवाई नहीं थी जो किडनी की बीमारी या ऑपरेशन से संबंधित हो। इस मामले में किडनी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात जब परिजनों ने चिकित्सक से की तो उन्होंने बताया कि उसे किडनी खराब होने का तब पता चला जब उसने पेट में ऑपरेशन का चीरा लगा दिया था। इसके बाद पता चला कि मरीज की दांई तरफ की किडनी खराब है। परिजनों ने जानना चाहा कि आखिर ऑपरेशन से पहले या ऑपरेशन के दौरान उन्हें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया? यहां तक कि ऑपरेशन के महीनों बाद भी उन्हें यह क्यो ंनहीं बताया गया कि उनके मरीज की किडनी निकाली जा चुकी है। डॉक्टर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलने के बाद पीड़ित के परिजनों ने दिल्ली से ही सबसे पहले 4 जुलाई 2018 को अल्मोड़ा के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को ईमेल के जरिए अपनी व्यथा बताई और मामले की जल्द जांच कराने की गुहार लगाई। इसके बाद 13 जुलाई 2018 को पीड़ित महिला के परिजन खुद अल्मोड़ा पहुंचे और एक बार फिर मामले की जांच कराने की मांग की। इसके मद्देनजर तीन जांच कराई गई। सबसे पहले जांच अल्मोड़ा की तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा जांच कराने के आदेश हुए।
उन्होंने इस मामले की जांच के लिए सीओ को जिम्मेदारी सौंपी। अल्मोड़ा की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा 15 जुलाई 2018 को ही जांच शुरू करा दी थी। लेकिन आज तक जांच सामने नहीं आई है। इसी तरह एक जांच अल्मोड़ा के जिलाधिकारी को सौंपी गई। यह जांच भी अभी तक सामने नहीं आ सकी है। तीसरी जांच अल्मोड़ा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा कराई गई। बताया गया कि यह जांच उन्होंने स्वास्थ्य निदेशक को भेज दी। स्वास्थ्य निदेशक मुख्य चिकित्सा अधिकारी की जांच से संतुष्ट नहीं हुए। इसके चलते उन्होंने बकायदा एक जांच टीम का गठन किया। करीब सात माह बाद भी इस जांच का कोई निष्कर्ष सामने नहीं आया है। सवाल यह है कि घटना का एक साल होने को हो लेकिन अभी तक भी कोई जांच सामने क्यों नहीं आई है।
अस्पताल की साख पर सवाल
पिछले चार दशक से रानीखेत के कालिका में मरीजों का इलाज कर रहा एमएन श्रीवास्तव अस्पताल किडनी प्रकरण के बाद सवालों और संदेहों के घेरे में है। मामले के सामने आते ही क्षेत्र के कई लोग निकटवर्ती अस्तालों में अपनी जांच कराने को जुटे रहे। ये लोग पूर्व में इस अस्पताल में अपना अपैंडिक्स या किसी और बीमारी से संबंधित ऑपरेशन करा चुके हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि गत् वर्ष जिन दिनों यह किडनी कांड मीडिया के जरिए सामने आया तो ऐसे कई मामले चर्चा में आए। ताड़ीखेत सहित कई गांवों के लोग सामने आए और उन्होंने अस्पताल पर उनकी किडनी गायब करने के आरोप लगाए। महीनों तक अस्पताल का नाम खूब चर्चा में रहा। लेकिन एकाएक सब मामले गौण हो गए। इस बात को लेकर भी चर्चा है कि जो लोग कुछ दिन पूर्व तक अपनी-अपनी किडनियों के गायब होने की बातें कह रहे थे वह आखिर अब चुप क्यों हैं? कहीं वह दबाव बनाने की राजनीति तो नहीं कर रहे थे? इसी के साथ सवाल यह भी है कि मरीज खष्टी देवी के समर्थन में उतरे कुछ समाजसेवी और नेता आखिर अचानक भूमिगत क्यों हो गए? उनकी पीड़िता को न्याय दिलाने की मुहिम मुकाम तक पहुंचने से पहले ही दम क्यों तोड़ गई? जबकि अभी तक पीड़िता की जांच रिपोर्ट समाने नहीं आ सकी है तो ऐसे में पीड़िता की आवाज बनने वाले इस मुद्दे पर मौन क्यों हैं?
बात अपनी-अपनी
किडनी निकालकर डॉक्टर भला क्या करेगा। वह उसका प्रत्यारोपण तो कर नहीं सकता और न ही किडनी को दिल्ली
भिजवा सकता है, क्योंकि किडनी 4 से 6 घंटे तक ही सुरक्षित रह सकती है। इस मामले में कुछ लोगों ने डॉक्टर को बदनाम करने और अपने हित साधने की कोशिश की है। हालांकि सच क्या है, यह तो जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकेगा।
करण माहरा, विधायक रानीखेत
हमारे गांव की महिला की किडनी तो निकाली गई है। किडनी निकालना जरूरी ही था तो मरीज के परिजनों से सलाह ली जाती।
कुंदन राम, ग्राम प्रधान नैडीकुवाली
ऑपरेशन के पहले मरीज की दोनों किडनियां नॉर्मल थी। आज एक किडनी गायब कैसे हो गई? सबसे ज्यादा गलत तो यह है कि मरीज और उनके परिजनों को किडनी की सच्चाई से दूर रखा गया। पहाड़ में ऐसे कई मरीज हैं जो इस डॉक्टर का शिकार हुए हैं।
राजेंद्र बिष्ट, जिला पंचायत सदस्य के पति
जो मेरे साथ हुआ है, वह किसी और के साथ न हो। अंधेरे में रखकर किसी भी मरीज का कोई अंग निकालना गैर कानूनी है।
खष्टी देवी, पीड़ित मरीज
मैंने मरीज का अपेंडिक्स का ऑपरेशन करते समय पेट खोला तो मुझे किडनी खराब दिखाई दी। जिसको मैंने निकाल दिया। रही बात अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट की तो वह गलत हो सकती है। जरूरी नहीं है कि सभी अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट सही हां। मैं चाहता हूं कि यह मामला जल्द खुले। इसके लिए मैं अरटीआई भी लगा रहा हूं।
डॉ. ओपीएल श्रीवास्तव, डायरेक्टर एमएन श्रीवास्तव हॉस्पिटल रानीखेत