पर्वतीय क्षेत्र में फलोत्पादन और इस आर्थिकी से जोड़ने के लिए बना उद्यान विभाग हमेशा अविश्वसनीय आंकड़ों के सहारे चलता रहा है। अविभाजित उत्तर प्रदेश में 1988 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उद्यान विभाग को बेहतर बनाने के लिए ‘बक्शी एवं पटनायक कमेटी’ बनाई थी। इस कमेटी ने एक जांच की। जिसमें सामने आया कि उद्यान विभाग के आंकड़े 87 प्रतिशत गलत हैं। विभाग द्वारा दिए गए मात्र 13 फीसदी आकड़े ही सही हैं। तब से ही उद्यान विभाग संदेहों और सवालों के घेरे में रहा है। विभाग अपनी पीठ थपथपाने के लिए जो भारी-भरकम आंकड़े देता रहा है उसकी उच्चस्तरीय जांच की मांग की जाती रही है। इन दिनों उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग में एक बार फिर अनियमितताओं का दौर जारी है। उद्यान निदेशक डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। मामला मुख्यमंत्री दरबार तक जा पहुंचा है
प्रदेश में उद्यान विभाग की कारगुजारियां निरंतर सामने आ रही हैं। हालांकि इस विभाग में अनियमितता आज से नहीं बल्कि वर्षो से जारी है। लेकिन जब से उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण के निदेशालय में हिमाचल प्रदेश कैडर के एक अधिकारी की तैनाती हुई है तब से इस विभाग में अनियमितताओं का दौर चल रहा है। चौबटिया गार्डन स्थित निदेशालय में चर्चाओं का दौर है। लोगों का कहना है कि डेपुटेशन पर आए अधिकारी की तैनाती ही यहां घपले-घोटालों को अंजाम देने के लिए कराई गई है। स्थानीय लोगों ने इस अधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। चौबटिया गार्डन में भ्रष्टाचार का पौधा उगाने वाले इस अधिकारी ने कागजों में कीवी उगाने सहित कई कारनामे कर दिखाए हैं। फिलहाल एक और कारनामा सामने आया है। जिसमें अखरोट प्रजाति के पौधे की जीवितता पूरी तरह शून्य साबित हो चुकी है। इसके अलावा बाहर के मजदूरों को उत्तराखण्ड में लाकर उन्हें लाखों का भुगतान कर दिया गया। याद रहे कि प्रदेश में तकनीकी विभाग का दम भरने वाला उद्यान विभाग है। जिसमें तीन हजार पांच सौ से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों की लंबी-चौड़ी फौज है। यही नहीं बल्कि इस विभाग में प्रतिवर्ष कर्मचारियों के वेतन पर ही लगभग एक सौ बयालीस करोड़ रुपए खर्च होता है। ऐसे विभाग में कश्मीर और हिमाचल प्रदेश की निजी नर्सरियों से लाखों रुपए के सेब व अखरोट के बीजू पौधे तथा साइनवुड उच्च दामों में मंगा कर कश्मीर के मजदूरों से सूबे के कई जनपदों की राजकीय पौधालयों में ग्राफ्टिंग के कार्य करवाए गए। जिसका लाखों का भुगतान संबंधित जनपदों में मुख्य उद्यान अधिकारियों द्वारा किया गया। हालांकि इसमें भी संदेह है कि बाहर से आयातित इन मजदूरों से जमीन पर पौधे लगाए भी गए हैं या पूर्व की तरह महज कागजी खानापूर्ति तो नहीं कर दी गई है?
बहरहाल, देहरादून निवासी बीरवान सिंह रावत को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण निदेशालय से संबंधित जो जानकारी प्राप्त हुई है वह चौंकाने वाली है। जिसमें सामने आया है कि जनपदों के मुख्य उद्यान अधिकारियों के कार्यालय द्वारा राज्य की राजकीय और निजी नर्सरियों को दरकिनार कर दिया गया तथा कश्मीर और हिमाचल की निजी पंजीकृत नर्सरियों से लाखों रुपए के सेब व अखरोट के बीजू पौधे, साइनवुड, विभिन्न किस्मों के सेव के कलमी पौधे उच्च दामों में क्रय कर मंगाए गए हैं। जबकि सेव के पौधे निर्यात करने के लिए देशभर में उत्तराखण्ड प्रसिद्ध है। यहां के सेव की प्रजाति को देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में सराहा जाता है। इतना ही नहीं बल्कि राजकीय पौधालयों में ग्राफ्ट बांधने हेतु मजदूर भी कश्मीर से बुलाए गए हैं। जम्मू कश्मीर की जाविद नर्सरी से लाए गए मजदूरों से पौधों की ग्राफ्टिंग कराई गई है। जबकि उत्तराखण्ड की 94 उद्यान नर्सरियों के अलावा सूबे में हजारों बेरोजगार ऐसे हैं जिन्हें यह कार्य बखूबी आता है। बाहर से आए मजदूरों के द्वारा किए गए इस कार्य की सफलता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। इसे उत्तरकाशी के मुख्य उद्यान अधिकारी की एक रिपोर्ट से बखूबी समझा जा सकता है।
मुख्य उद्यान अधिकारी उत्तरकाशी की रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर के मजदूरों से बीस हजार अखरोट में कराए गए ग्राफ्टिंग में जीवितता प्रतिशत शून्य पाई गई है। यानी की जिन स्पेशलिस्ट मजदूरों को ग्राफ्टिंग के लिए दूसरे प्रदेश से लाया गया उनके द्वारा किए गए कार्य की उपलब्धता नगण्य पाई गई है। इसके अलावा सेब में भी जीवितता मात्र 54 से 56 प्रतिशत ही रही। सामाजिक कार्यकर्ता दीपक करगेती ने बताया कि अन्य जनपदों में भी यही स्थिति है। लेकिन सरकार को शपथ पत्र दिए जाने के बाद भी सरकार मामले को दबाए बैठी है। शासनादेश 17 मई 2021 के अनुसार कृषि एवं कृषक कल्याण, उद्यान विभाग की कृषकों को देय अनुदान आधारित योजनाओं का भुगतान डीवीटी (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर) द्वारा सीधे कृषकों के खाते में डालने के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन उद्यान विभाग द्वारा कृषकों को सेव के कलमी पौधे कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश की पंजीकृत निजी नर्सरियों से उच्च दामों में स्वयं क्रय कर वितरित किए गए।
गौरतलब है कि वर्तमान उद्यान निदेशक डॉ हरमिंदर सिंह बाजवा पर वित्तीय अनियमितताओं के कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। जिनमें से एक कीवी के पौधे का मामला भी है। जानकारी के अनुसार गत् 6 जुलाई को कीवी के पौधों की सूचना जिला स्तरीय अधिकारियों से मांगी गई थी। जबकि शासन स्तर से यह जांच स्थलीय निरीक्षण करके की जानी थी। चौंकाने वाली बात यह है कि प्राप्त होने वाले कीवी के पौधों की मूल सूचना को ही बदलवा दिया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो यह काम उद्यान निदेशक द्वारा कराया गया। जिससे कि अच्छी रिपोर्ट पेश कर सरकार को गुमराह करने का कार्य किया जा सके। पिथौरागढ़ जिले से प्राप्त उद्यान विभाग की मूल रिपोर्ट में यह घपला स्पष्ट हो रहा है जिसमें कीवी के पौधों की दो-दो रिपोर्ट बनाई गई। पिथौरागढ़ के उद्यान अधिकारी ज्ञानेंदर प्रताप सिंह द्वारा पहली रिपोर्ट 7 जुलाई 2022 को पत्रांक संख्या 796 से बनाई गई। जिसमें दो योजनाओं के तहत विवरण भेजा गया था। पहली योजना मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना है जिसके तहत लगे कीवी के पौधों की जीवितता 55 प्रतिशत बताई गई। जबकि दूसरी योजना राज्य सेक्टर योजना के अंतर्गत कीवी के निःशुल्क फल-पौध वितरण के तहत जीवितता 60 प्रतिशत बताई गई थी। कारण यह था कि पौधों की जीवितता बहुत कम थी। पिथौरागढ़ के उद्यान अधिकारी की रिपोर्ट को देखें तो दोनों योजनाओं में बहुत से पौधे मृत पाए गए। मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के तहत रोपित किए गए कुल कीवी के पौधों की संख्या 1912 थी, जिनमें जीवित पाए गए पौधों की संख्या 1625 ही रह गई थी। यानी की 45 प्रतिशत पौधे पनपने ही नहीं पाए। ये पौधे ऐसे थे जो मृत अवस्था में हो गए। इसके अलावा दूसरी राज्य सेक्टर योजना अंतर्गत निःशुल्क फल पौध वितरण के तहत रोपित किए गए कुल पौधे 3000 थे। जिनमें जीवित बचे पौधां की संख्या 1800 थी।

इस सच्चाई को लेकर उद्यान निदेशक पचा नहीं पाए। सूत्र बताते हैं कि यह रिपोर्ट मिलते ही सरकार की आंखों में धूल झोंकने के उद्देश्य से उद्यान निदेशक बवेजा द्वारा उसी समय पिथौरागढ़ के उद्यान अधिकारी को मूल रिपोर्ट बदलने और जीवितता प्रतिशत बढ़ाकर देने को कहा। बताया गया कि दबाव के बाद पिथौरागढ़ के उद्यान अधिकारी ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने आनन-फानन में ही एक बार फिर दूसरी रिपोर्ट बनाकर निदेशक हरमिंदर सिंह बवेजा को भेजी। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास मौजूद इस रिपोर्ट में क्रमांक संख्या पहले जैसी रिपोर्ट की 796/विविध/ 2022-23 थी यही नहीं बल्कि दिनांक भी वही 7 जुलाई 2022 था लेकिन रिपोर्ट परिवर्तित कर निदेशक बवेजा के मनमुताबिक बना दी गई। उद्यान विभाग पिथौरागढ़ द्वारा जो दूसरी रिपोर्ट निदेशालय भेजी गई उसमें कीवी के दोनों योजनाओं पौधों की जीवितता बढ़ा दी गई। बढ़ी हुई जीवितता के अनुसार जो दूसरी रिपोर्ट बनाई गई उसमें मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के रोपित पौधे की संख्या तो वही पुरानी 1912 थी लेकिन जीवितता जो पहले 1025 थी उसे बढाकर 1050 कर दिया गया। इस तरह इस योजना के पौधों का प्रतिशत भी बढ़ गया। जो जीवितता प्रतिशत पहले 55 प्रतिशत था वह 60 प्रतिशत कर दिया गया। इसी तरह राज्य सेक्टर योजना अंतर्गत निःशुल्क फल पौध वितरण में भी कागजों में बढ़ोतरी की गई। रोपित पौधों की संख्या 3000 पहले जैसी ही रही लेकिन इसके मुकाबले जीवितता जो 1800 थी उसे बढ़ाकर 2700 कर दिया गया। जब संख्या बढ़ाई तो इसके प्रतिशत में बढ़ोतरी होना भी स्वाभाविक था। फलसवरूप 85 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत हो गई।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि उत्तराखण्ड में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा कृषकों के पलायन रोकने और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए सरकार द्वारा अनेकों योजनाएं 50 से 90 प्रतिशत सब्सिडी आधारित चलाई जा रही हैं। उत्तराखण्ड सरकार और भारत सरकार की मंशा है कि उत्तराखण्ड में कृषकों की आजीविका बागवानी आधारित कई पर्वतीय राज्यों के अनुरूप हो। लेकिन विभाग में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा योजनाओं का लाभ जमीन तक पहुंचने ही नहीं दिया जा रहा है। सरकार किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए बागवानी मिशन तथा जिला सेक्टर की योजनाओं में कीवी के क्षेत्रफल विस्तार की योजनाएं चला रही है। कीवी की पौध दो प्रकार से तैयार की जाती है पहला तो सीड की बुवाई कर उससे तैयार सिडलिंग पर कीवी की टहनियों को ग्राफ्ट कर तैयार किया जाता है तथा दूसरा कीवी की टहनियों को काटकर सीधे मिट्टी की क्यारी में लगाकर तैयार किया जाता है। कीवी एक अंगूर की तरह लता वाला पौधा है। कीवी की कटिंग से तैयार पौधे की अधिक प्रमाणिकता होती है।