पिथौरागढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कृष्णानंद उप्रेती की मेहनत और लगन से देश की आजादी से पूर्व ही एक शिक्षण संस्थान की नींव रखी गई थी जिसके भवन निर्माण के लिए म्यांमार में बस चुके सीमांत के व्यापारियों से धन संग्रह किया गया। फिलहाल ऐतिहासिक शैक्षणिक संस्थान अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। कारण बना है संस्थान की जमीनों का बंदरबांट करना जिसके विरोध में स्थानीय लोगों ने मोर्चा खोल दिया है। इस स्कूल की जमीन पर अन्य संस्थाओं के निर्माण के विरोध में दर्जनों ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखा है
सरकारी मशीनरी के अदूरदर्शी फैसलों, निर्णयों तथा सरकारी धन के दुरुपयोग की एक नहीं अनगिनत कहानियां हमारे आस-पास मौजूद हैं। इन तुगलकी नीतियों की बड़ी कीमत आम आदमी को चुकानी पड़ती है लेकिन इसके बावजूद शासन में कोई ऐसी संस्कृति विकसित नहीं हुई है जो इन गलत निर्णयों के लिए जवाबदेही ले या फिर उसकी जिम्मेदारी को सार्वजनिक रूप से स्वीकारे। इसी तरह के गलत निर्णयों का खामियाजा जनपद पिथौरागढ़ में स्थित दो शिक्षा केंद्रों को भुगतना पड़ रहा है। इसमें पहला है, केएन उप्र्रेती राजकीय इंटर कॉलेज एवं दूसरा, नन्हीं परी सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज है। विवाद यह है कि सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज के स्वीकृत होने के बाद जब इसके संचालन की बात आई तो तब इसे जीआईसी के परिसर में इस शर्त के साथ संचालित करने की अनुमति दी गई कि इंजीनियरिंग कॉलेज के दूसरी जगह भवन बनते ही इसे यहां से स्थानांतरित कर दिया जाएगा। बाद में इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए जिला मुख्यालय के मड़धूरा नामक स्थान पर जमीन की तलाश की गई और इस पर 15 करोड़ रुपए खर्च कर इसका परिसर भी बना लेकिन अब भूगर्भीय रिपोर्ट एवं शहर से दूर बताकर इसे फिर से जीआईसी से संचालित करने की योजना बनाई जा रही है। जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। मड़धूरा में जो इंजीनियरिंग कॉलेज के पास 7 हेक्टेयर की भूमि है अब उसमें से 4 हेक्टेयर जमीन एनडीआरएफ को दिए जाने की बात चल रही है। वहीं जीआईसी की भूमि पर अस्थाई रूप से चल रहे इंजीनियरिंग कॉलेज को स्थाई रूप से संचालित करने की कवायद हो रही है। अब जीआईसी के आस-पास स्थित हुडैती, बडौली, पौण, जीआईसी के ग्रामीणों का कहना है कि वे किसी भी हालत में यह जमीन इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए नहीं देंगे। ग्रामीणों का गुस्सा इसलिए भी जायज है कि इंजीनियरिंग कॉलेज के नाम पर 15 करोड़ खर्च कर अब जीआईसी की 35 नाली भूमि पर फिर से सीमांत प्रौद्योगिकी संस्थान का कैंपस बनाने की साजिश की जा रही है। इसके लिए भूमि हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू हो चुकी है। लोगों का आरोप है कि इस विद्यालय में स्थाई- अस्थाई भवनों का निर्माण कर इसके स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है वहीं इसकी ऐतिहासिकता से भी छेड़छाड़ की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि जिले में पहला हाईस्कूल स्थापित करने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे कृष्णानंद उप्रेती ने काफी मेहनत की थी। तब म्यांमार में बस चुके जिले के व्यापारियों से इसके लिए 60 हजार रुपया इकट्ठा किया गया। इसके बाद स्थानीय निवासियों से जमीन लेकर यहां पर एक विद्यालय स्थापित किया गया। जो बाद में वर्ष 1945 में हाईस्कूल एवं 1951 में इंटरमीडिएट बना। इस विद्यालय की स्थापना 1927-28 में हुई थी। लेकिन जीआईसी की इस जमीन पर धीरे-धीरे कई संस्थानों को खोला जा चुका है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि यहां पर एक के बाद एक संस्थाएं खोलकर इस विद्यालय की गरिमा को कम किया जा रहा है। यहां अब तक जवाहर नवोदय विद्यालय, खंड शिक्षा कार्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज, विकलांग भवन, शिक्षक भवन, जिला पुस्तकालय, अस्थाई गेस्ट हाउस का निर्माण किया जा चुका है। जिससे विद्यालय के छात्र-छात्राओं के अध्ययन में बाधा आ रही है। कई दफे इस मामले में मुख्यमंत्री को पत्र लिखे जा चुके हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कृष्णानंद उप्रेती ने सीमांत के बच्चों की परेशानी को देखते हुए इस स्कूल की नींव रखी। इसके लिए स्थानीय लोगों ने अपनी गोचर, पनघट की जमीन तक दान कर दी, तब जाकर इस स्कूल का निर्माण हुआ लेकिन अब इस प्राचीन-ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। वहीं दूसरी तरह मड़धूरा में 15 करोड़ खर्च करने के बाद भी इंजीनियरिंग कॉलेज को स्थाई परिसर तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। अब इंजीनियरिंग कॉलेज को असुरक्षित घोषित करने पर लोग सवाल उठा रहे हैं। लोगों का कहना है कि भूगर्भीय सर्वेक्षण के बाद आखिर यह भवन असुरक्षित कैसे हो गया? भवन बने दो वर्ष हो गए लेकिन इंजीनियरिंग कॉलेज अभी भी अस्थाई परिसर में चल रहा है। अब तकनीकी शिक्षा विभाग इन भवनों को असुरक्षित बता रहा है। अब ऐसे में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि आखिर 15 करोड़ की बर्बादी की जिम्मेदारी किसकी होगी और यह पैसा किससे वसूला जाएगा? क्या लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई होगी?
दूसरी तरफ जीआईसी की जमीनें दूसरे संस्थानों को धड़ल्ले से दी जा रही हैं। अब शिक्षा विभाग जीआईसी परिसर की 185 नाली भूमि में से 35 नाली भूमि पर सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज का कैंपस बनाने का प्रस्ताव जिलाधिकारी एवं निदेशालय को भेज चुका है। लेकिन दुर्भाग्य देखिए की इस विद्यालय में दूसरे शैक्षणिक संस्थानों के प्रस्ताव बनाने वाला शिक्षा विभाग खुद अपने विद्यालय के लिए एक सुरक्षा दीवार बनाने का प्रस्ताव तक नहीं बना पाया है। सुरक्षा दीवार न होने से यहां पर अराजक तत्वों का अड्डा भी बना रहता है। इस जमीन पर अन्य संस्थाओं के निर्माण के विरोध में अब राजनीतिक लोग भी मुखर होने लगे हैं। जहां आस-पास के 15 से अधिक ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिख इस जमीन पर इंजीनियरिंग कॉलेज न खोलने का अनुरोध किया है। शिक्षक-अभिभावक संघ एवं स्कूल प्रबंधक समिति भी केएन उप्रेती राजकीय इंटर कॉलेज की इस भूमि को अन्य संस्था को न दिए जाने का प्रस्ताव पारित कर चुकी है। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा है। उन्होंने जीआईसी शैक्षणिक संस्थान को धरोहर बताते हुए इसकी जमीन को बचाने की बात कही है।
जीआईसी परिसर, पिथौरागढ़
स्थानीय विधायक मयूख महर भी सचिव विधानसभा को नियम 58 के तहत चर्चा की मांग कर चुके हैं। अपने पत्र में विधायक महर ने लिखा है कि शहर के मुख्यालय में स्थित होने के कारण इस स्कूल की भूमि पर अनेक विभागों की नजर रहती है। सुकौली जाने वाली रोड के चौड़ीकरण के लिए भी स्कूल की भूमि जबरदस्ती अधिग्रहित की गई। इस स्कूल परिसर में एक शिक्षा लाइब्रेरी होते हुए एक अन्य लाइब्रेरी खोल दी गई। साथ ही सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज की कक्षाओं को चलाने के लिए यहां अस्थाई टिन बनाए गए हैं। अब स्थानीय प्रशासन स्कूल की भूमि पर इंजीनियरिंग कॉलेज खोलना चाहता है। जबकि मड़धूरा में इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए 50 हेक्टेयर जमीन आवंटित की गई है। विधायक मयूख महर विधानसभा में अतारांकित प्रश्न के तहत यह सवाल उठा चुके हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कृष्णानंद उप्रेती के पौत्र व स्वतंत्रता सेनानी एवं उत्तराधिकारी संगठन से जुड़े राजेश मोहन उप्रेती कहते हैं कि करोड़ों का विकलांग विद्यालय जिसे वरदानी बजेटी में बनना था, उसे भी यहां बना दिया गया। मड़धूरा में इंजीनियरिंग कॉलेज का भवन बन चुका है तो ऐसे में इंजीनियरिंग कॉलेज को यहां से शीघ्रताशीघ्र स्थानांतरित कर देना चाहिए। वहीं यहां बने इंजीनियरिंग कॉलेज को स्पोर्ट्स भवन का दर्जा देकर इसे जीआईसी को हस्तान्तरित किया जाए ताकि खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले खिलाड़ी यहां रह सकें।
बात अपनी-अपनी
यह एक ऐतिहासिक स्कूल के अस्तित्व की लड़ाई है। स्कूल की व्यवस्थाओं में सुधार के बजाय यहां अव्यवस्थाएं पैदा की जा रही हैं। इस ऐतिहासिक विद्यालय परिसर से अन्य संस्थाओं के संचालन से यहां के अध्ययन-अध्यापन में व्यवधान पैदा हो रहा है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों, अभिभावक संघ की सहमति के बिना ही जनपद के बड़े अधिकारी वर्ग द्वारा मनमाने तरीके से निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं। वर्ष 1928 में रखे इस विद्यालय की नींव पर कभी कुछ तो कभी कुछ निर्माण हो रहा है। इस विद्यालय के मूल स्वरूप को बनाए रखना बेहद जरूरी है।
राजेश मोहन उप्रेती, लेखक एवं शिक्षक
इस भूमि पर इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने का प्रयास जनहित में गलत कार्य है। जिस तरह से विद्यालय की भूमि में विकलांग विद्यालय, जिला पुस्तकालय, गेस्ट हाउस, शिक्षक भवन बन चुके हैं, उसके चलते विद्यालय के विकास के लिए अब जमीन नहीं बची है। दूसरी तरफ इंजीनियरिंग कॉलेज के निर्माण में धन की जो बर्बादी की गई है, इसकी जांच भी अवश्य की जाए।
मनोहर सिंह खाती, अध्यक्ष, स्वतंत्रता सेनानी एवं उत्तराधिकार संगठन
हमने इसके लिए मुख्यमंत्री को पत्र भेजा है जिसमें उन्हें अन्य संस्थाओं को इस परिसर में न खोले जाने का अनुरोध किया है। यह भी कहा है कि इस विद्यालय की भूमि को अन्य संस्थाओं को कतई न दिया जाए। अगर इस भूमि की इसी तरह बंदरबांट होती रही तो यह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के सपनों पर कुठाराघात होगा। हमारा उद्देश्य जीआईसी की जमीन को बचाना है और इस विद्यालय की ऐतिहासिकता को बनाए रखना है। इसके लिए अगर बड़ा आंदोलन भी करना पड़े तो हम करेंगे
कल्पना उप्रेती, ग्राम प्रधान, हुडैती