प्रदेश में कुछ माह बाद ही चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या के पति गिरधारी लाल साहू को हथियार बना उसके खिलाफ जारी गिरफ्तारी के वारंट को मुद्दा बनाने में जुट गई है। रेखा आर्या द्वारा सोशल मीडिया में जारी एक पोस्ट अनुसार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल को गिरधारी लाल साहू ने पांच हजार करोड़ की मानहानि का नोटिस भेजा है। कांग्रेस आज भले ही इसे एक चुनावी मुद्दा मान भुनाने का प्रयास कर रही हो, प्रदेश की राजनीति में अपराध और अपराधियों को संरक्षण देने और उन्हें फलने-फूलने का अवसर देने में कांग्रेस भी भाजपा समान ही दोषी है। गौरतलब है कि भाजपा में शामिल होने से पहले रेखा आर्या कांग्रेस की विधायक रह चुकी हैं। 2012 से 2016 तक कांग्रेस की सरकार में गिरधारी लाल साहू की तूती बोला करती थी। साहू के काले कारनामों का साम्राज्य इन चार सालों में प्रदेश में जबर्दस्त फला-फूला। ‘दि संडे पोस्ट’ ने लगातार कई समाचार गिरधारी लाल साहू के फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करते हुए प्रकाशित किए लेकिन न तो कांग्रेस सरकार, न ही उसके बाद सत्ता में आई भाजपा सरकार ने साहू के खिलाफ कोई एक्शन लिया
जून 11, 1990 के दिन उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में एक वृद्ध दंपत्ति नरेश जैन एवं पुष्पा जैन की नृशंस हत्या कर दी जाती है। हत्या के बाद इस दंपति की संपति को हड़पने का खेल शुरू होता है। नरेश जैन एवं पुष्पा जैन की हत्या करने और फर्जी तरीके अपना कर उनकी संपत्ति हड़पने के आरोप में 32 बरस के बाद अब इस हत्याकांड के नामजद आरोपी कानून की पकड़ में आते नजर आ रहे हैं। बरेली जिला एवं सत्र न्यायालय के अपर जिला जज अब्दुल क्यूम ने तीन आरोपियों को जेल भेज दिया है और एक अन्य के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर डाला है। यह एक अन्य अरोपी है बरेली सिविल लाइन्स थाने की हिस्ट्रीशीट नं. ए-173 का मुख्य किरदार गिरधारी लाल साहू। साहू है तो उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद का लेकिन उसके खिलाफ जारी एनबीडब्ल्यू ने उत्तराखण्ड की राजनीति में खासा हंगामा मचा दिया है। कारण है साहू की तीसरी पत्नी रेखा आर्या जो धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।
प्रदेश में कुछ माह बाद ही चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इसे मुद्दा बनाने में जुट गई है। रेखा आर्या द्वारा सोशल मीडिया में जारी एक पोस्ट के अनुसार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल को गिरधारी लाल साहू ने पांच हजार करोड़ की मानहानि का नोटिस भेजा है। कांग्रेस आज भले ही इसे एक चुनावी मुद्दा मान भुनाने का प्रयास कर रही हो, प्रदेश की राजनीति में अपराध और अपराधियों को संरक्षण देने और उन्हें फलने-फूलने का अवसर देने में कांग्रेस भी भाजपा समान ही दोषी है। गौरतलब है कि भाजपा में शामिल होने से पहले रेखा आर्या कांग्रेस की विधायक रह चुकी हैं। 2012 से 2016 तक कांग्रेस की सरकार में गिरधारी लाल साहू की तूती बोला करती थी। साहू के काले कारनामों का साम्राज्य इन चार सालों में प्रदेश में जबर्दस्त फला-फूला। ‘दि संडे पोस्ट’ ने लगातार कई समाचार गिरधारी लाल साहू के फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करते हुए प्रकाशित किए लेकिन न तो कांग्रेस सरकार, न ही उसके बाद सत्ता में आई भाजपा सरकार ने साहू के खिलाफ कोई एक्शन लिया।
अपने 02 जुलाई, 2017 के अंक में ‘दि संडे पोस्ट’ ने ‘अपराध को संरक्षण’ शीर्षक से एक एक्सक्लूसिव समाचार प्रकाशित किया था जिसमें किच्छा में एनएच 74 से सटे खसरा नंबर 107 को गिरधारी लाल साहू द्वारा बेनामी तरीके से खरीने का एग्रीमेंट और एग्रीमेंट के बाद बगैर जमीन का मूल्य चुकाए उसको आगे बेच डालने का खुलासा किया था। जब जमीन मालिक ने साहू द्वारा फर्जीवाड़ा कर बेची गई जमीन का कब्जा नहीं लेने दिया तब खरीददारों ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने का प्रयास किया। रेखा आर्या के विधायक होने के चलते ठगे गए लोगों की एफआईआर लेकिन दर्ज नहीं होने दी गई। 18 मार्च 2016 को जब विधानसभा में हरीश रावत सरकार के बहुमत परीक्षण से ठीक पहले रेखा आर्या भाजपा में शामिल हो गईं तब जाकर सरकार एक्शन में आई और साहू के खिलाफ ताबड़तोड़ मुकदमे दर्ज हो पाए।
हरीश रावत सरकार के समय दर्ज मुकदमों के बाद साहू ने गिरफ्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट की शरण ली थी। उसकी रिट् पेटिशन पर 4 अगस्त 2016 को निर्णय देते हुए न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की टिप्पणी बहुत कुछ कह जाती है। उन्होंने अपने निर्णय में लिखा-‘In the sequence of events, the petitioner has tried to give political colour to the incident. Learned Government Advocate has placed a list of criminal cases to show that the petitioner has criminal antecedents. The first case was registered against the petitioner in the year 1981, followed by others in 1982, 1983, 1985, 1986, 1990, 1991, 1993, 1995, 1996, 1997, 1998, 1999, 2002, 2003, 2004, 2006, 2007. The range of criminal activities of the petitioner varies from simple case of assaultèabuse to Goonda Act, attempt to murder and even murder, besides cheating and forgery. In reply, learned Senior Counsel for the petitioner submitted that the petitioner has been acquitted in all cases, but for one which is under Section 302 IPC, which has been stayed by Allahabad High Court.’
‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने 5 अगस्त, 2017 के अंक में ‘सबै भूमि गिरधारी की’ शीर्षक से एक समाचार प्रकाशित किया था। इस समाचार में हमारे द्वारा हल्द्वानी तहसील के गांव उदयलालपुर की 120 बीघा पट्टे की जमीन को जालसाजी और मनी लाउंड्रिग के जरिए साहू द्वारा हड़पने का पूरा कच्चा-चिट्ठा था। इसी समाचार में हमने साहू के मनी लाउंड्रिंग का भी पूरा इतिहास भय प्रमाण सामने रखा था। आयकर विभाग द्वारा साहू के रसोइए को आघोषित संपत्ति की बाबत भेजे गए नोटिस का भी सच सामने लाया गया था। त्रिवेंद्र सरकार लेकिन खामोश रही।
‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने 23, सितंबर 2017 के अंक में साहू के काले कारनामों का एक और कच्चा-चिट्ठा ‘बेनामी संपत्तियों का कारोबारी’ शीर्षक से प्रकाशित किया। इसमें बड़े पैमाने पर मनी लाउंड्रिंग के जरिए ‘साहू एंड कंपनी’ द्वारा उत्तराखण्ड में जमीनें खरीदने का पर्दाफाश किया गया था। साहू ने अपने रसोइए गिरीश चंद्र जोशी और ड्राइवर महेंद्र बिष्ट के नाम से कई खाते बैंकों में खोल रखे थे। गिरीश जोशी और महेंद्र बिष्ट मात्र कुछ हजार तनख्वाह पाने वाले साहू के ऐसे कर्मचारी हैं जिनके पास न तो इन्कम टैक्स का पैन नंबर हैं, न ही कमाई का कोई अन्य जरिया लेकिन उनके खातों से करोड़ों का आदान-प्रदान होता है। सारे प्रमाणों के बावजूद त्रिवेंद्र सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की क्योंकि तब तक रेखा आर्या राज्य सरकार में मंत्री बन चुकी थीं।
‘दि संडे पोस्ट’ के 15 अक्टूबर 2017 के अंक में सारे प्रमाणों सहित एक समाचार ‘किडनी चोर मंत्री पति’ प्रकाशित हुआ था। इसमें गिरधारी लाल साहू द्वारा अपनी दूसरे नंबर की पत्नी वैजन्तीमाला के लिए अपने ही मुलाजिम नरेशचंद्र गंगवार की किडनी धोखे से निकालने का सच सामने लाया गया था। साहू ने इस कांड को पहले गुड़गांव के प्रतिष्ठित मेदांता अस्पताल में अंजाम देने की कोशिश की थी। अस्पताल के कड़े नियम के चलते वहां जब सफलता नहीं मिली तो नरेश गंगवार को श्रीलंका ले जाया गया जहां इस कांड को अंजाम दिया गया। इस समाचार के प्रकाशित होने के बाद बड़ा हो- हल्ला मचा था। सरकार द्वारा निष्पक्ष जांच की बात कही गई लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।
4 फरवरी 2018 के अपने अंक में हमने त्रिवेंद्र सरकार में राज्यमंत्री रेखा आर्या की बेनामी संपत्तियों का खुलासा करता एक समाचार ‘बेनामी संपत्तियों की रेखा’ शीर्षक से प्रकाशित किया था। इस समाचार के जरिए हमने वर्तमान राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बन चुकी आर्या के नाम किच्छा के गांव सिरोली में साहू द्वारा बेनामी तरीके से खरीदी गई जमीन को इन्कम टैक्स की जांच शुरू होने के बाद 3 अक्टूबर 2017 में अपनी पत्नी के नाम किए जाने का खुलासा किया था। यह जमीन पहले साहू ने अपने रसोइए गिरीश जोशी के नाम खरीदी थी। बाद में इसे रेखा आर्या के नाम कर दिया गया। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास मौजूद दस्तावेज अनुसार रेखा आर्या ने गिरीश चंद्र जोशी से यह जमीन कुल 12 लाख बत्तीस हजार में खरीदी। इसकी रजिस्ट्री में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि यह धनराशि किस बैंक के जरिए गिरीश जोशी के खाते में डाली गई। ना ही यह स्पष्ट है कि नकद धन का आदान-प्रदान हुआ है। यह जांच का विषय है कि कितनी धनराशि का सही में हस्तांतरण हुआ है। बकौल गिरीश जोशी उससे केवल रजिस्ट्री कराई गई है। किसी भी प्रकार का कोई लेन-देन नहीं हुआ है। भाजपा सरकार में मंत्री रेखा आर्या द्वारा इंकमटैक्स के क्रिमिनल विंग द्वारा जांच के घेरे में आ चुके व्यक्ति से जमीन खरीदना गंभीर प्रकरण है। ऐसे में जबकि उक्त गिरीश जोशी पर गिरधारी साहू के लिए बेनामी संपत्तियों को खरीद के आरोप हों, रेखा आर्या द्वारा जमीन खरीदना स्पष्ट करता है कि गिरीश जोशी के नाम पर दर्ज संपतियों को अब खुर्द-बुर्द किया जा रहा है ताकि भविष्य में गिरीश जोशी का बेनामी संपत्ति कानून की पकड़ में आने से पहले ही ऐसी संपतियों को साहू परिवार अपने नाम कर सके। इस समाचार को भी त्रिवेंद्र सरकार ने इग्नौर कर दिया।
पच्चीस दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कालाधन, भ्रष्टाचार और बेनामी संपत्ति को लेकर देश संग अपने विचारों को साझा किया था। ‘मन की बात’ रेडियो का सर्वाधिक सुना जाने वाला ऐसा कार्यक्रम है जिसके जरिए प्रधानमंत्री मोदी अपना विजन और दर्शन जनता संग साझा करते हैं। पीएम ने कहा ‘हमने कड़े प्रावधान के साथ बेनामी प्रोपर्टी कानून को नए सिरे से बनाया है। कानून सबके लिए समान होता है, चाहे व्यक्ति हो, संगठन हो या राजनीतिक दल। उन्होंने यह भी कहा कि ‘एक संवेदनशील सरकार होने के नाते जितने भी नियम बदलने पड़ेंगे, हम बदलेंगे ताकि लोगों की परेशानी कम हो।’
प्रधानमंत्री ने बेनामी संपति पर अपनी ढृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए 1988 में बने बेनामी लेन-देन (निषेध) अधिनियम को एक नवंबर 2016 को संशोधित कर दिया। इन संशोधित कानून में ऐसी संपत्तियां जब्त करने के साथ भारी जुर्माना और सात साल जेल का प्रावधान है। केंद्र सरकार बेहद कड़ाई के साथ कालेधन और बेनामी संपत्ति की धर-पकड़ में जुटी है। पिछले कुछ बरसों में प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई ने हजारों करोड़ की बेनामी संपत्ति जब्त कर डाली हैं। दूसरी तरफ उत्तराखण्ड सरकार बेनामी संपत्ति के खिलाफ प्रधानमंत्री की जंग के प्रति न केवल उदासीन, बल्कि मूक बनी बैठी नजर आ रही है।
कुल मिलाकर देवभूमि में गिरधारी लाल साहू जैसों को राजनीतिक संरक्षण देने का काम कांग्रेस-भाजपा ने जमकर किया है। चूंकि आज रेखा आर्या भाजपा में हैं इसलिए कांग्रेस बजरिए गिरधारी लाल साहू भाजपा को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करती नजर आ रही है। प्रदेश की राजनीति और राजनेताओं का चरित्र एक समान है। बहुत संभव हैं कांग्रेस से बागी हो भाजपा में शामिल हुए नेताओं में से कुछ चुनाव से ठीक पहले घर वापसी कर लें। यदि ऐसा हुआ और घर वापसी करने की छटपटाहट रेखा आर्या के भीतर भी उबाल मारने लगी तब कांग्रेस ऐसे सभी को गले लगाने में देर नहीं करेगी। गिरधारी लाल साहू तब भाजपा के टारगेट में आ जाएंगे। खेला चलता रहेगा।